THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Wednesday, November 27, 2013

Sufferings in India has doubled in recent years मुक्त बाजार का नतीजा यह संकटों के पहाड़ के नीचे दब गया जन गण मन भारतीयों को सबसे ज्यादा झेलना पड़ रहा है दुनिया की आर्थिक मंदी का दंश তিন হাজার কোটি কালো টাকা পরিকল্পনা বরাদ্দ ছাঁটাই করতে পারে অর্থমন্ত্রক

Sufferings in India has doubled in recent years

मुक्त बाजार का नतीजा यह

संकटों के पहाड़ के

नीचे दब गया

जन गण मन

भारतीयों को

सबसे ज्यादा

झेलना पड़ रहा है

दुनिया की

आर्थिक मंदी

का दंश

তিন হাজার কোটি কালো টাকা

পরিকল্পনা বরাদ্দ ছাঁটাই করতে পারে অর্থমন্ত্রক


पलाश विश्वास

Suffering, on average, has increased worldwide in the past several years, and nowhere more than in South Asia. (AP)


मुक्त बाजार का नतीजा यह

संकटों के पहाड़ के

नीचे दब गया

जन गण मन

यही नहीं,मुक्त बाजार

के छन छन कर

होते विकास से

भारत का जो हुआ

सो हुआ,वाइरस

यह संक्रमित हो

गया पूरे दक्षिण

एशिया में


भारतीयों को

सबसे ज्यादा

झेलना पड़ रहा है

दुनिया की

आर्थिक मंदी

का दंश


परमाणु बम जापान

में गिरा हिटलर

के खिलाफ

यूरोप को बचाने

की खातिर

नागासाकी और हिरोशिमा

का ध्वंस हुआ

यूरोप का सारा

युद्ध गृहयुद्ध

अब स्थानांतरित

भारतीय उपमहाद्वीप में

पारमाणविक जायनवादी

सैन्य गठजोड़ और

विकास की आड़ में

राष्ट्रों के अंधाधुध

सैन्यीकरण से

अखंडता और एकता

के बारह बज गये

फिर आतंक के

विरुद्ध अमेरिका और

इजराइल के

युद्ध में पार्टनर हम

बदले में अबाध

पूंजी निवेश

निरंकुश बेदखली

राष्ट्रव्यापी इंफ्रा

उत्पादन प्रणाली

सेनसेक्स सेक्स में

सामहित और

दसों दिशाओं से

खुलने लगे

धुआंधार कयामत

के नजारे

प्रकृति से बलात्कार

मनुष्यता के

खिलाफ जारी हैं

रंग बिरंगे

युद्ध अपराध

और चारों तरफ

युद्धक धर्मोन्माद

मुद्दों पर कोई

बात कर ही नहीं रहा

हर हाथ में मोबाइल है

लेकिन कहीं कोई

संवाद है ही नहीं

जनसरोकार के मोर्चे

पर टंगा है

सन्नाटा शामियाना

कारपोरेट साम्राज्यवाद

आक्रमण से लहूलुहान

देश,अर्थव्यवस्था

संस्थागत निवेशकों के

हवाले हो गया

बिना ऐतराज

और नयी महाजनी

सभ्यता के शिकंजे

में छटफटा रहा

है जन गण मन


गैस प्राइस

डबल करने

पर जल्द

लगेगी मुहर

रिलायंस को

होगा फायदा



पहली अप्रैल से

रिलायंस हित में

दाम बढ़ेंगे गैस के

जनहित याचिका

दायर है सुप्रीम कोर्ट में

सब्सिडी खत्म हो

रही है आधार लिंक

के बावजूद

खुफिया निगरानी

की जद में आकर

भी आपके हाथ में

लगेगा महज

उड़ान भरते बटेर

नेल्प की नीलामी

फिर तय है

कोयला ब्लाकों की

बंदर बांट पर

आपने किसका

क्या उखाड़ लिया

जो नेल्प के खेल

पर लगायेंगे लगाम

भारत सरकार

बढ़ाते ही जायेगी

तेल का दाम

ईरान में समझौते से

खिल गयी

बाजार की बांछें

क्यों,समझ लीजिये

विनियंत्रित है पेट्रोल

विनियंत्रित हो जाने

की बारी अब डीजल की

ईरान से अब हासिल

होगा ज्यादा तेल

बंपर होगा कारोबार

बिना सब्सिडी

तेल बाजार बम बम


इंडियन ऑयल के रोड शो से निराश सरकार अब विनिवेश का लक्ष्य पाने के लिए नए रास्ते तलाशने लगी है। सूत्रों का कहना है कि नए रास्तों के तहत सरकार एसयूयूटीआई (स्पेसिफाइड ट्रस्ट ऑफ इंडिया) के शेयर बेचना और ईटीएफ जैसे विकल्प शामिल हैं।


सूत्रों के मुताबिक इंडियन ऑयल के रोड शो से सरकार को निराशा मिली है। दरअसल निवेशकों ने इंडियन ऑयल के बेहतर भविष्य पर सवाल उठाए हैं। निवेशकों ने डीजल डीकंट्रोल के बाद इंडियन ऑयल के निजी कंपनियों से मुकाबले पर सवाल उठाए हैं।


सूत्रों की मानें तो सरकार को अब विनिवेश के दौरान बेहतर रिस्पॉन्स मिलने पर शक है। लिहाजा सरकार की ओर से विनिवेश के दूसरे विकल्पों पर विचार शुरू किया जा रहा है।


सूत्रों का कहना है कि सरकार की ओर से एसयूयूटीआई के शेयर जल्द बेचने पर विचार किया जा रहा है। साथ ही पब्लिक सेक्टर एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) में शामिल होने वाली कंपनियों की लिस्ट जल्द तैयार की जाएगी। सरकार की इंडियन ऑयल के अलावा कोल इंडिया, पावर ग्रिड, इंजिनियर्स इंडिया समेत 6 कंपनियों में विनिवेश की योजना है।



योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया ने बुधवार को कहा कि अगले वित्त वर्ष में जीडीपी वृद्धि दर 6 फीसदी से अधिक रहेगी और चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में अर्थव्यवस्था का निष्पादन बेहतर रहेगा। हैदराबाद में इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, 'मैं बहुत सहजता से कह सकता हूं कि वृद्धि दर 6 फीसदी से अधिक रहेगी। यह नई सरकार की नीति पर निर्भर करेगी।'


आहलूवालिया ने कहा, 'मेरा अनुमान है कि दूसरी छमाही पहली छमाही से बेहतर होगी। मुझे नहीं लगता कि फिलहाल हमें सुधार का मजबूत संकेत दिखाई देता है। लेकिन लोग मानते हैं कि अर्थव्यवस्था का सबसे बुरा दौर गुजर चुका है।' कार्यक्रम के बाद संवाददाताओं से बातचीत में आहलूवालिया ने कहा, 'चालू वित्त वर्ष में चालू खाते का घाटा जीडीपी के 2.5 से 2.7 फीसदी के बीच रहेगा।'

তিন হাজার কোটি কালো টাকা

নয়াদিল্লি: চলতি বছরের প্রথম ছ'মাসে দেশে হিসাব বহির্ভুত তিন হাজার কোটি টাকার সন্ধান পেয়েছে কেন্দ্রীয় অর্থনৈতিক গোয়েন্দা সংস্থা (সিইআইবি)৷ বিভিন্ন অর্থনৈতিক অপরাধের অনুসন্ধান চালিয়ে তথ্য সংগ্রহ করা এবং সেই তথ্য অন্যান্য দপ্তরের সঙ্গে আদান প্রদান করাই এই অর্থমন্ত্রকের অন্তর্গত এই কেন্দ্রীয় সংস্থাটির প্রধান কাজ৷ চলতি বছরের জানুয়ারি থেকে জুলাই মাসের মধ্যে ১৭৪টি কর ফাঁকি এবং হিসাব বহির্ভুত কালো টাকাকে ঘুরপথে সাদা করার সন্ধান পেয়েছে সংস্থাটি৷ এর মধ্যে কালো টাকার পরিমাণ ৩০০০.৯৮ কোটি টাকা৷ এছাড়া ৩৮৬ কোটি টাকার আবগারি, শুল্ক এবং পরিষেবা কর ফাঁকির বিষয়ও সংস্থাটির নজরে এসেছে৷ আরও গভীরভাবে অনুসন্ধানের জন্য হাতে পাওয়া যাবতীয় তথ্য অন্যান্য তদন্তকারী সংস্থাগুলির কাছেও পাঠিয়েছে সিইআইবি৷


দেশের বিভিন্ন আইনি তদন্তকারী ও গোয়েন্দা সংস্থার কাছ থেকে প্রায় ৮৪৩টি তথ্য পেয়েছে সিইআইবি৷ এর মধ্যে সব থেকে বেশি, ৪০৮টি তথ্য পরিষেবা কর দপ্তরের কাছ থেকে এসেছে৷ ১২০টি তথ্য এসেছে রাজস্ব সংক্রান্ত গোয়েন্দা দপ্তরের কাছ থেকে৷ ৮৪৩টি ঘটনায় ব্যক্তিগত ভাবে ও দেশের শিল্প সংস্থাগুলি সম্মিলিতভাবে তিন হাজার কোটি টাকার বেশি কর ফাঁকি দিয়েছে৷ প্রতিটি ঘটনারই পৃথক অনুসন্ধান চালু করেছে সংশ্লিষ্ট দপ্তর৷


সন্দেহজনক আর্থিক আদান প্রদানের তথ্য সংগ্রহ এবং বিশ্লেষণের দায়িত্ব যে সংস্থার হাতে রয়েছে সেই ফিনান্সিয়াল ইন্টেলিজেন্স ইউনিটও ৩৩টি ঘটনার তথ্য সিইআইবি-র হাতে তুলে দিয়েছে৷ প্রাইভেট প্লেসমেন্টের মাধ্যমে হিসাব বহির্ভুত ২,২৮০ কোটি টাকা ঘুরপথে সাদা করার সন্ধান পেয়েছে সংস্থাটি৷ প্রাইভেট প্লেসমেন্টের মাধ্যমে সর্বাধিক ৫০ জন নির্বচিত ব্যক্তি বা গোষ্ঠীর মধ্যে সংস্থার শেয়ার বিক্রি করা হয়৷


কর ফাঁকি রুখে রাজস্ব আদায় বাড়াতে কেন্দ্রীয় সরকার বদ্ধপরিকর৷ কর ফাঁকি দিলে সংশ্লিষ্ট ব্যক্তি বা সংস্থার বিরুদ্ধে কঠোর পদক্ষেপ করা হবে বলে সতর্ক করে দিয়েছে কেন্দ্রীয় অর্থমন্ত্রক৷


गैस प्राइस डबल करने पर जल्द लगेगी मुहर, RIL को होगा फायदा

ईटी | Nov 27, 2013, 10.13AM IST

मुंबई:

सरकार 3 हफ्ते के अंदर नए गैस प्राइसिंग फॉर्मूले को नोटिफाई कर देगी। इससे रिलायंस इंडस्ट्रीज और दूसरी कंपनियों को अगले साल अप्रैल से गैस की डबल कीमत मिलेगी। यह बात ऑयल मिनिस्टर वीरप्पा मोइली ने कही है। कैबिनेट ने इस साल जून में गैस की कीमत डबल करने की मंजूरी दी थी। उसके बाद से इस पर मंत्रालयों के बीच खींचतान चल रही थी। मोइली के बयान से गैस प्राइस पर तस्वीर साफ हो गई है।


इससे रिलायंस और सरकार के बीच झगड़ा खत्म होने की उम्मीद भी बढ़ी है। यह विवाद तब शुरू हुआ था, जब जयपाल रेड्डी ऑयल मिनिस्टर थे। उस समय ऑयल मिनिस्ट्री ने रिलायंस पर जान-बूझकर गैस प्रॉडक्शन कम करने का आरोप लगाया था। उसने रिलायंस से इसके लिए जुर्माने की भी मांग की थी। सरकार के हालिया कदमों के बाद रिलायंस अपने फील्ड डिवेलपमेंट प्लान पर काम शुरू कर सकती है। हालांकि, अगर कंपनी गैस होर्डिंग की दोषी पाई जाती है, तो उस पर सरकार जुर्माना भी लगा सकती है।


मिनिस्ट्री पहले ही फील्ड डिवेलपमेंट कॉस्ट के तौर पर 1.8 अरब डॉलर की भरपाई करने से मना कर चुकी है। रिलायंस ने इसका कड़ा विरोध किया था।

मोइली ने मुंबई में संवाददाताओं से कहा, 'कैबिनेट कमेटी ऑन इकनॉमिक अफेयर्स ने गैस की कीमत बढ़ाने का फैसला लिया था। यह अगले साल अप्रैल से लागू होना है। इसका फायदा सभी सरकारी और प्राइवेट कंपनियों को मिलेगा। रिलायंस ने कम गैस प्रॉडक्शन विवाद के सुलझने तक बैंक गारंटी देने का प्रस्ताव रखा है। ऑयल मिनिस्ट्री इसे स्वीकार करती है और इस बारे में जल्द ही कैबिनेट नोट लाया जाएगा।'


जून में कैबिनेट के गैस की कीमत बढ़ाने के फैसले का पावर और फर्टिलाइजर सेक्टर ने विरोध किया था। गुरदास दासगुप्ता जैसे कुछ नेता भी इसके खिलाफ थे। सरकार ने ऑयल कंपनियों को गैस की कीमत बढ़ाने की औपचारिक तौर पर जानकारी नहीं दी थी। वहीं, ऑयल मिनिस्ट्री ने यह कहा था कि वह रिलायंस के केजी डी-6 ब्लॉक की गैस की बढ़ी हुई कीमत वसूलने की इजाजत नहीं देगी। हालांकि, अब कंपनी के बैंक गारंटी देने के प्रस्ताव के बाद वह इसके लए तैयार हो गई है।


कमोडिटी बाजारः कच्चे तेल में क्या करें

प्रकाशित Wed, नवम्बर 27, 2013 पर 12:04  |  स्रोत : CNBC-Awaaz

कच्चे तेल में आज गिरावट बढ़ गई है। एमसीएक्स पर कच्चे तेल का दाम 0.6 फीसदी तक गिरकर 5,860 रुपये के नीचे आ गया है। दरअसल अमेरिका में कच्चे तेल के भंडार में करीब 70 लाख बैरल की बढ़त हुई है। इसका असर नायमैक्स पर कच्चे तेल की कीमतों पर दिखा है। हालांकि ब्रेंट क्रूड अभी भी 110 डॉलर के ऊपर कारोबार कर रहा है। वहीं एमसीएक्स पर नैचुरल गैस करीब 1 फीसदी की उछाल के साथ 242 रुपये पर कारोबार कर रहा है।


सोने में आज बेहद सुस्त कारोबार हो रहा है। वहीं चांदी में दबाव बना हुआ है। आज अमेरिका में साप्ताहिक बेरोजगारी के आंकड़े आने वाने वाले हैं। एमसीएक्स पर सोना 0.1 फीसदी की बढ़त के साथ 30,170 रुपये पर कारोबार कर रहा है। एमसीएक्स पर चांदी सपाट होकर 44,500 रुपये के आसपास कारोबार कर रही है।


एमसीएक्स पर निकेल सपाट है, जबकि बाकी मेटल्स करीब 0.5 फीसदी तक गिर गए हैं। कॉपर 0.3 फीसदी की कमजोरी के साथ 442 रुपये के नीचे आ गया है। एल्युमिनियम में 0.4 फीसदी, लेड में 0.6 फीसदी और जिंक में 0.2 फीसदी की कमजोरी आई है।


रेलिगेयर कमोडिटीज की निवेश सलाह


सोना एमसीएक्स (दिसंबर वायदा) : खरीदें - 30080, स्टॉपलॉस - 29890 और लक्ष्य - 30500


चांदी एमसीएक्स (दिसंबर वायदा) : खरीदें - 44200, स्टॉपलॉस - 43650 और लक्ष्य - 45000


कॉपर एमसीएक्स (नवंबर वायदा) : बेचें - 443.8, स्टॉपलॉस - 446.5 और लक्ष्य - 438.5


कच्चा तेल एमसीएक्स (दिसंबर वायदा) : खरीदें - 5820, स्टॉपलॉस - 5770 और लक्ष्य - 5940


निकेल एमसीएक्स (नवंबर वायदा) : खरीदें - 836, स्टॉपलॉस - 828 और लक्ष्य - 848


लेड एमसीएक्स (नवंबर वायदा) : बेचें - 129.5, स्टॉपलॉस - 130.5 और लक्ष्य - 127.3


जिंक एमसीएक्स (नवंबर वायदा) : खरीदें - 116, स्टॉपलॉस - 115 और लक्ष्य - 117.35



बाजार का सुस्त हाल, ये शेयर करेंगे मालामाल

प्रकाशित Wed, नवम्बर 27, 2013 पर 09:54  |  स्रोत : CNBC-Awaaz

आईडीबीआई कैपिटल के हेड ऑफ रिसर्च सोनम उदासी का कहना है कि चुनावों के नतीजों का ज्यादातर पॉजिटिव असर बाजार में हो चुका है। हालांकि बाजार की मौजूदा चाल में कुछ ऐसे शेयर हैं जिन पर दांव लगाकर कमाई की जा सकती है।


सोनम उदासी के मुताबिक सरकारी बैंकों में आगे भी कमजोरी जारी रहने की आशंका है। वहीं मिडकैप प्राइवेट बैंकों में अगले 1 साल तक अच्छा रुझान रहने की उम्मीद है। हाल की अच्छी खबरों और तेजी के बाद टेलिकॉम शेयरों में अगले 1 साल तक खराब प्रदर्शन की आशंका है।


सोनम उदासी का मानना है कि टाटा स्टील में आगे और अच्छी खबरें आने की उम्मीद है। कोरस की स्थिति में सुधार हुआ तो शेयर की री-रेटिंग हो सकती है। साथ ही अगले 3 साल में कोर बिजनेस में सुधार के चलते रिलायंस इंडस्ट्रीज का एबिटडा 2 गुना हो सकता है, ऐसे में रिलायंस इंडस्ट्रीज में निवेश का अच्छा मौका है।


सोनम उदासी ने बताया कि ऑटो सेक्टर में टाटा मोटर्स का प्रदर्शन शानदार रहेगा। हालांकि छोटी अवधि में मारुति सुजुकी के शेयर में तेजी की उम्मीद कम है। वहीं टू-व्हीलर कंपनियों में बजाज ऑटो सबसे पसंदीदा शेयर है।


आईटी सेक्टर में तेजी से फायदाः इंफो एज

प्रकाशित Wed, नवम्बर 27, 2013 पर 14:25  |  स्रोत : CNBC-Awaaz


Info Edge

बीएसई | एनएसई 27/11/13

इंफो एज इंडिया के सीएफओ अंबरीश रघुवंशी का कहना है कि पिछले 2-3 महीने से नौकरी डॉट कॉम पर जॉब इंडेक्स बेहतर हुआ है। अर्थव्यवस्था में थोड़ा सुधार आया है और आईटी सेक्टर में तेजी के चलते कंपनी को फायदा हुआ है क्योंकि कंपनी के पोर्टल पर 25 फीसदी नौकरी आईटी सेक्टर के लिए तलाशी जाती हैं।


वैश्विक तौर पर इंटरनेट कंपनियों के लिए माहौल बेहतर हो रहा है और कंपनी का मार्केट शेयर इसी के चलते बेहतर हुआ है। कंपनी के पास नौकरी डॉट कॉम, 99एकड़ डॉट कॉम और शिक्षा डॉट कॉम जैसे पोर्टल हैं ये तीनों ही अच्छा कारोबार कर रहे हैं।


इंफो एज की जौमैटो मीडिया में 57 करोड़ रुपये के निवेश की योजना है। ये निवेश लंबी अवधि के लिए किया जाएगा। इसके लिए आंतरिक साधनों से पूंजी का इस्तेमाल किया जाएगा। इंफो एज के पास 430 करोड़ रुपये की नगदी है और कंपनी पर कोई कर्ज नहीं है।


क्यूई3 का नहीं डर, घरेलू बाजार लगाएंगे दौड़

प्रकाशित Wed, नवम्बर 27, 2013 पर 10:11  |  स्रोत : CNBC-Awaaz

फ्रैंकलिन टेम्पलटन एएमसी के एमडी और सीआईओ आर सुकुमार का कहना है कि भारतीय कंपनियों के मार्जिन बहुत कम हैं। साथ ही भारतीय कंपनियों के वैल्यूएशन काफी आकर्षक हैं। वहीं भारतीय बाजारों के लिए क्यूई3 कटौती को लेकर ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है। क्यू्ई3 कटौती का बाजारों पर लंबी अवधि तक असर नहीं दिखेगा।


आर सुकुमार के मुताबिक अमेरिका में बेरोजगारी और ग्रोथ को लेकर चिंता जारी है। हालांकि क्यूई3 कटौती को लेकर इक्विटी बाजार को डरना नहीं चाहिए। लेकिन भारतीय बाजारों के लिए घरेलू दिक्कतें बड़ी चुनौती है। फिर भी भारत में अच्छी रिकवरी के संकेत मिल रहे हैं।


आर सुकुमार का मानना है कि घरेलू बाजारों के लिए चुनाव के नतीजों का असर छोटी अवधि के लिए रहेगा। लेकिन कंपनियों की आय में बढ़त बाजार के लिए अहम साबित होगा। लंबी अवधि में भारतीय कंपनियों की आय अच्छी रहनी चाहिए। फिलहाल सेक्टर के मुकाबले शेयरों पर नजर रखने की सलाह है। फार्मा और आईटी शेयरों के वैल्यूएशंस आकर्षक हैं। टेलिकॉम और कैपिटल गुड्स शेयरों से भी कमाई के आकर्षक मौके हैं।

बाजार में 10% की तेजी संभव, सेंसेक्स 22000 तक चढ़ेगा

प्रकाशित Mon, नवम्बर 25, 2013 पर 10:57  |  स्रोत : CNBC-Awaaz

बीएनपी पारिबा इंडिया के एशियन इक्विटी स्ट्रेटेजिस्ट मनीषी रायचौधरी का कहना है कि छोटी अवधि में एफआईआई निवेश के बारे में कहना मुश्किल है। सितंबर-अक्टूबर में बाजार में करीब 20 फीसदी की तेजी आई है क्योंकि रिजल्ट सीजन उम्मीद से बेहतर रहा है। अगले 2 महीने में बाजार में 20-25 फीसदी का उछाल मुश्किल है।


मौजूदा स्तर से बाजार में 10 फीसदी की तेजी मुमकिन है। वित्त वर्ष 2014 के अंत में सेंसेक्स 22,000 तक जा सकता है। गिरावट आने पर बाजार लंबी अवधि के लिए आकर्षक हो सकता है। हालांकि छोटी अवधि के लिए भविष्यवाणी करना मुश्किल है। कुछ समय तक बाजार की चाल विधानसभा चुनाव नतीजों, क्यूई3 की कटौती, ब्याज दर पर निर्भर करेगी। बाजार की नजर ग्रोथ के आंकड़ों पर भी रहेगी।


मनीषी रायचौधरी के मुताबिक आम चुनावों के बाद इंडस्ट्री फ्रेंडली सरकार बनने पर मार्केट में तेजी संभव है। आम चुनाव अभी 6-7 महीने दूर हैं लेकिन हाल के सभी ओपिनियन पोल बीजेपी के पक्ष में हैं। चूंकि ओपिनियन पोल ज्यादा भरोसेमंद नहीं हैं इसलिए फिलहाल चुनाव नतीजे की भविष्यवाणी करना मुश्किल है। इसके चलते चुनाव नतीजे की बजाए फंडामेंटल पर नजर रखना जरूरी है।


करेंट अकाउंट घाटा काबू में आ रहा है। वित्त वर्ष 2014 में करेंट अकाउंट घाटा 50-55 अरब डॉलर रहने की उम्मीद है जो पिछले साल के मुकाबले कम रहेगा। घाटे को नियंत्रित करने के सरकारी कदमों से फायदा मिला है।


मनीषी रायचौधरी के मुताबिक आगे चलकर रुपया 62-64 के दायरे में रह सकता है। देश में महंगाई अब भी चिंताजनक स्तर पर है इसलिए ब्याज दर में अभी और बढ़ोतरी होगी।


रुपये की गिरावट से आईटी सेक्टर को फायदा मिल रहा है। वहीं चुनिंदा फार्मा शेयर भी पसंद हैं। एफएमसीजी में पसंदीदा शेयर आईटीसी है। इस समय गांवों में आय कमाने वाली कंपनियों के शेयर पसंद हैं। वहीं चुनिंदा प्राइवेट बैंक पर भी भरोसा कायम है। एलएंडटी में निवेश करना फायदेमंद हो सकता है।

रिफॉर्म आने पर ही इकोनॉमी में सुधार संभव

प्रकाशित Tue, नवम्बर 19, 2013 पर 10:33  |  स्रोत : CNBC-Awaaz

बाजार में दिख रही शानदार तेजी से निवेशकों के चेहरे खिल गए हैं। एक दिन में बाजार में 450 अंकों से ज्यादा की तेजी से निवेशकों में उत्साह देखा जा रहा है। आज भी बाजार में मजबूती का सिलसिला जारी है और निफ्टी 6200 के करीब पहुंच गया है। जानकारों का मानना है कि बाजार में तेजी जारी रहेगी और विदेशी निवेशकों का रुझान बना रहेगा।


बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच के हेड ऑफ रिसर्च ज्योतिवर्धन जयपुरिया का कहना है कि भारतीय बाजारों में अब भी ग्रोथ कमजोर है जिसके चलते बाजार सीमित दायरे में ही कारोबार करेंगे। भारतीय इकोनॉमी की ग्रोथ फलहाल धीमी है और बेहतर रिफॉर्म आने पर ही इकोनॉमी में सुधार आ सकता है।


भारत समेत उभरते बाजारों में तेजी वैश्विक कारणों से आ रही है। चीन में फिलहाल कुछ दिक्कतें हैं इसलिए एफआईआई भारत में निवेश पर बुलिश रहेंगे। पिछले कुछ सालों में उभरते बाजारों में मजबूत विदेशी पूंजी आती देखी गई है। अगर फेड द्वारा क्यूई3 में कमी की जाती है तो दुनिया भर के बाजारों में अस्थिरता और दबाव देखा जा सकता है। सभी का मानना है कि क्यूई3 में कटौती मार्च 2014 से शुरु हो जाएगी पर हमारा मानना है कि जनवरी से राहत पैकेज वापस लिया जा सकता है।


ज्योतिवर्धन जयपुरिया के मुताबिक दूसरी तिमाही नतीजों का सीजन खराब ही रहा है। लोकसभा के चुनाव के बाद बाजार को रिफॉर्म लाने वाली सरकार पसंद आएगी। कई सारी पार्टिया होने के चलते बाजार को थर्ड फ्रंट पसंद नहीं है। चुनाव से पहले बाजार में तेज उछाल की उम्मीद है पर क्यूई3 कटौती के चलते बाजार पर असर होगा और इसके चलते चुनाव तक बाजार दायरे में कारोबार कर सकता है।


रुपया मौजूदा स्तरों पर कन्सोलिडेट करेगा और रुपये में ज्यादा मजबूती या कमजोरी आने की उम्मीद नहीं है। करेंट अकाउंट घाटा 3 फीसदी पर रहने की संभावना है। इस समय सॉफ्टवेयर, फार्मा, टेलीकॉम और ऑटो शेयर पसंद हैं लेकिन कंज्यूमर सेक्टर पसंद नहीं है।


ब्लू ओशन कैपिटल के फाउंडर और सीईओ निपुण मेहता का कहना है कि अमेरिका में जेनेट यलन के क्यूई3 टालने के संकेतों से भारतीय बाजार में तेजी आ रही है। एफआईआई भी इसी के चलते भारत में जमकर खरीदारी कर रहे हैं। एफआईआई की बढ़ती खरीदारी के चलते ही बाजार ऊपर जा रहे हैं।


जब तक लिक्विडिटी आती रहेगी तब तक बाजार में तेजी बनी रहेगी। हालांकि अभी बाजार के फंडामेंटल में बदलाव नहीं आया है। नतीजे भी ठीक ठाक रहे हैं और कई मोर्चों पर कंपनियों ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया है।


निपुण मेहता के मुताबिक देश में आर्थिक आंकडों में ज्यादा अंतर नहीं आया है और निवेशकों को इसके आधार पर बाजार में संभलकर निवेश करना चाहिए। इस समय निवेशकों को खास शेयरों में निवेश करना चाहिए। मिडकैप आईटी शेयर, मिडकैप फार्मा शेयरों में निवेश किया जा सकता है। लंबी अवधि के लिए निवेशक आईटी, फार्मा के लार्जकैप शेयरों में निवेश कर सकते हैं। वहीं शॉर्ट टर्म ट्रेडर्स के लिए भी बाजार में समय समय पर कमाई के मौके आते रहेंगे।


मैक्वायरी कैपिटल के हेड ऑफ रिसर्च इंडिया राकेश अरोड़ा का कहना है कि वित्त वर्ष 2014 की दूसरी तिमाही के नतीजों ने उम्मीदों से बेहतर प्रदर्शन किया है। आगे चलकर ऑटो सेक्टर, मेटल सेक्टर और निजी बैंकों में कमाई बढ़ सकती है। ऑटो सेक्टर, मेटल सेक्टर और निजी बैंकों की अगले कुछ महीनों में री-रेटिंग हो सकती है। हालांकि पीएसयू बैंकों में अब हालत सुधर सकती है।


ऑटो सेक्टर में टाटा मोटर्स सबसे पसंदीदा शेयर है और घरेलू बिक्री में बढ़त के चलते मारुति सुजुकी में भी खरीदारी की राय है। बैंकिंग शेयरों में पीएनबी और एसबीआई में निवेश कर सकते हैं वहीं मिडकैप शेयरों मेंप्रेस्टीज एस्टेट्स और गुजरात पीपावाव में खरीदारी कर सकते हैं।


इस समय सीमेंट सेक्टर के अच्छा प्रदर्शन करने की उम्मीद नहीं है तो इससे दूर रहने की ही सलाह है। जेपी एसोसिएट्स से भी दूरी बनाए रखनी चाहिए। वहीं टाटा स्टील में 427 रुपये का लक्ष्य रखा जा सकता है। यूके में अर्थव्यवस्था में सुधार के चलते टाटा स्टील का प्रदर्शन सुधर रहा है। आगे चलकर आयरन ओर की कीमतों में मजबूती आएगी और लंबी अवधि में भी ये उच्च स्तरों पर रहेंगी।


फार्मा शेयरों में सन फार्मा, रैनबैक्सी लैबोरेटरीज औरग्लेनमार्क में निवेश कर सकते हैं। रैनबैक्सी लैबोरेटरीज की ड्रग एब्सोर्बिका कंपनी की आय बढ़ाने में मुख्य रुप से आगे रहेगी।




পরিকল্পনা বরাদ্দ ছাঁটাই করতে পারে অর্থমন্ত্রক

নয়াদিল্লি: চলতি অর্থবর্ষে আর্থিক ঘাটতিকে জাতীয় উত্‍পাদনের ৪.৮ শতাংশে নিয়ে আসতে বদ্ধপরিকর অর্থমন্ত্রী পি চিদম্বরম৷ আর সে লক্ষ্যে পৌঁছতে পরিকল্পিত খাতে ব্যয়ের যে লক্ষ্য বাজেট প্রস্তাবে নেওয়া হয়েছিল তার থেকে ১৫ শতাংশ বা ৮০ হাজার কোটি টাকা খরচ কমানোর পথে হাঁটতে পারে কেন্দ্রীয় সরকার৷ কেন্দ্রীয় অর্থমন্ত্রকের এক শীর্ষ আধিকারিক বলেন, 'বিভিন্ন সরকারি দপ্তরের পরিবর্তিত আনুমানিক খরচের তালিকা তৈরি হচ্ছে৷ সার্বিকভাবে পরিকল্পিত খাতে সরকার ১৫ শতাংশ খরচ কমাতে পারে৷' তিনি বলেন, 'চলতি অর্থবর্ষে বিভিন্ন সরকারি দপ্তরের জন্য যে পরিমাণ অর্থ বরাদ্দ করা হয়েছিল এখন পর্যন্ত সংশ্লিষ্ট দপ্তরগুলি তার থেকে খুব সামান্যই খরচ করতে পেরেছে৷ আর সেই কথা মাথায় রেখেই পরিকল্পিত খাতে খরচ কমানোর সিদ্ধান্ত নেওয়া হয়েছে৷' চলতি অর্থবর্ষে পরিকল্পিত খাতে ব্যয়ের জন্য ৫.৫৫ লক্ষ কোটি টাকা বরাদ্দ করে কেন্দ্রীয় সরকার৷ পরিকল্পিত এবং অপরিকল্পিত খাতে খরচ বাবদ মোট ১৬.৬৫ লক্ষ কোটি টাকা বরাদ্দ করা হয়েছিল৷ এর আগে ২০১২-১৩ অর্থবর্ষে পরিকল্পিত খাতে খরচ ৯০ হাজার কোটি টাকা কমিয়ে ৪.২৯ লক্ষ কোটি টাকা করা হয়েছিল৷ এর ফলে আর্থিক ঘাটতি জাতীয় উত্‍পাদনের ৪.৯ শতাংশে বেঁধে রাখতে পারা গেছিল৷


অর্থমন্ত্রকের আধিকারিকের মতে, 'গ্রামোন্নয়ন মন্ত্রকের জন্য বাজেট প্রস্তাবে যে পরিমাণ টাকা বরাদ্দ করা হয়েছিল পরিবর্তিত হিসাবে তার থেকে ১৮ শতাংশ খরচ কমানো হতে পারে৷ পরিবর্তিত অনুমানে গ্রামোন্নয়ন মন্ত্রক ও মানব সম্পদ উন্নয়ন মন্ত্রকের জন্য বরাদ্দ করা টাকা থেকে যথাক্রমে ১৫ হাজার কোটি টাকা ও পাঁচ হাজার কোটি টাকা কমিয়ে দিয়েছে কেন্দ্রীয় অর্থমন্ত্রক৷' সরকার পরিকল্পিত খাতে খরচ কমিয়ে দেওয়ায় উদ্বেগ প্রকাশ করে প্রধানমন্ত্রী ও অর্থমন্ত্রীকে তা বিবেচনা করার জন্য চিঠি পাঠিয়েছেন কেন্দ্রীয় গ্রামোন্নয়ন মন্ত্রী জয়রাম রমেশ৷ 'এর ফলে মন্ত্রকের উন্নয়নমূলক কাজ বাধাপ্রাপ্ত হবে,' বলেছেন রমেশ৷


২০১৩-১৪ অর্থবর্ষের প্রথম ছ'মাসে দেশের আর্থিক ঘাটতি বাজেট অনুমানের ৭৬ শতাংশ স্পর্শ করেছে৷ এর পরিপ্রেক্ষিতে সেপ্টেম্বরে সরকারি খরচ কমাতে নতুন নিয়োগ বন্ধ করার পাশাপাশি পাঁচতারা হোটেলে সরকারি অনুষ্ঠান না করা এবং সরকারি আধিকারিকদের বিমানের এগজিকিউটিভ ক্লাসে ভ্রমণে রাশ টানার মতো বেশ কিছু পদক্ষেপ করেছে কেন্দ্রীয় সরকার৷


दुनिया में आर्थिक सुस्ती का दंश सबसे अधिक भारतीयों को झेलना पड़ा है जिसके कारण हाल के वर्षों में देश की एक चौथाई आबादी की मुसीबतें बढ़कर दोगुनी हो चुकी हैं।

सर्वेक्षण करने वाली अमेरिकी एजेंसी के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था में आयी सुस्ती के कारण न सिर्फ भारतीयों की मुश्किलें बढ़ी हैं, बल्कि इसके कारण दक्षिण एशियाई क्षेत्र भी प्रभावित हुआ है।

एजेंसी के अनुसार इन सबके पीछे रिश्वतखोरी और लालफीताशाही को खत्म करने तथा ऊर्जा क्षेत्र में भारतीय बाजार में खुलापन लाने में सरकारी नीतियों की विफलता सबसे बड़ा कारण रही है।


यही कारण रहा है कि विश्व बैंक ने भारत को कारोबार के लिहाज से निम्न देशों की श्रेणी में रखा है।



Suffering in India has more than doubled in recent years with one in every four Indian reported to be bearing the brunt of the nations poor economic performance in recent years, a latest Gallup poll said.


Increase in sufferings in India has also resulted in increase in sufferings in South Asia, the latest report from the American opinion poll agency said.


"Average suffering in India more than doubled between 2006 to 2008 and 2010 to 2012. In 2012, a full quarter of Indians were suffering," it said.


"The significant deterioration in Indians' well-being is likely to be rooted in the country's disappointing economic performance. India's growth rate has now sunk from 9.4 per cent in the first quarter of 2010 to 4.4 per cent in the second quarter of 2013, the worst quarterly rate since 2002," it said.


Gallup said the Indian government's failure to cut graft and red tape, as well as to liberalise its markets for labour, energy and land explains why the World Bank continues to rank the country as a bad place to do business.


Suffering, on average, has increased worldwide in the past several years, and nowhere more than in South Asia. One in seven adults worldwide rated their lives poorly enough to be considered suffering in 2012.


South Asia led the world in suffering at 24 per cent, followed by 21 per cent in the Balkans and the Middle East and North Africa.


Gallup said the massive increase in suffering among South Asians is largely attributable to negative developments in India, the region's giant.


India's northern neighbour Nepal has fared no better, it said adding that average suffering there increased by 17 percentage points between 2006-2008 and 2010-2012.

"Yet because of its relatively small population, the increase in suffering had a negligible effect on the regional average. Since Nepal abolished the monarchy five years ago, the country has been mired in a political crisis that has paralysed the economy," it said.


बदलाव के ख्वाब

में पक रही जमीन

उम्मीदों के फूल

खिल रहे हैं

धर्मोन्मादी जनादेश

निर्माण की कारपोरेट

कवायद में

जहां हर विकल्प

अब कारपोरेट है

विध्वंस के एजंडे ही

लागू होंगे अब

भारत की संसद से

बदलेगा तो सिर्फ

सत्ता का रंग

बाकी जो हो रहा है

होता रहेगा वही

और तेज,तेज तेज


विश्व बैंक ने कहा कि खराब मौसम भारत सहित कुछ क्षेत्रों में खाद्य कीमतों को प्रभावित कर सकता है।

विश्व बैंक के अनुसार, इस साल जून व अक्तूबर के दौरान खाद्य की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में गिरावट आई, लेकिन अब भी यह ऊंची बनी हुई हैं।

विश्व बैंक के अनुसार, कीमतों में कमी के लिए उत्पादन पहलुओं के साथ-साथ मौसम का भी योगदान है।


फिल्मों में हिंसा कम दिखाए हॉलिवुड: ओबामा

वॉशिंगटन

अमेरिकी राष्ट्रपति बाराक ओबामा ने हॉलिवुड से कहा है कि वह अपनी फिल्मों में हिंसा और बंदूक के इस्तेमाल को बढ़ावा न दे। इनका बच्चों के दिमाग पर बहुत बुरा असर पड़ता है।


लॉस ऐंजिलिस में ड्रीमवर्क्स स्टूडियोज में मंगलवार को ओबामा ने कहा कि जब भी बंदूक और हिंसा का मुद्दा आता है तो हमें यह देखना होगा कि कहीं हम इस चीज को बढ़ा-चढ़ाकर तो नहीं दिखा रहे हैं। कारण कि जो भी कहानी आप बच्चों से कहते हैं, वह उनके नजरिए और जिंदगी को बदलने का काम करेगी।


इस साल की शुरुआत में इस इलाके के नेताओं ने वाइस प्रेजिडेंट बाइडेन के साथ चर्चा में कहा था कि हॉलिवुड हमारे बच्चों को सुरक्षित रखने की दिशा में क्या कर सकता है?


'मोदी की जीत शेयर बाजार में बुल रन का संकेत'ET Now | Nov 27, 2013, 11.40AM IST

गोल्डमन सैक्स एसेट मैनेजमेंट के फॉर्मर चेयरमैनजिम ओ नील ने ईटी नाउ को दिए इंटरव्यू में कहा है कि चुनाव के बाद भारतीय शेयर बाजार के लिए टर्निंग पॉइंट आ सकता है। पेश हैं उनसे बातचीत के मुख्य अंश:


स्टॉक मार्केट के लिए 2014 कैसा रहेगा?


करेंसी बाजार को देखकर लग रहा है कि ग्लोबल इकनॉमी की हालत बेहतर हो रही है। खासतौर पर विकसित देशों की। चीन भी इसी क्लब का हिस्सा है। दूसरी ओर, अमेरिका और जापान के लिए यह साल अच्छा रहा है। वहां बॉन्ड यील्ड बढ़ सकती है। अमेरिका में राहत पैकेज की वापसी की बहस जारी रहेगी, जो स्टॉक मार्केट के लिहाज से नेगेटिव है। इसलिए हमें इनवेस्टमेंट में मौकापरस्त होना पड़ेगा।


अगले साल के टॉप 3 इमर्जिंग मार्केट्स कौन रहेंगे?


चीन इसमें पहले नंबर पर है। मुझे अफ्रीकी मार्केट्स भी पसंद हैं। भारत में लोकसभा चुनाव के नतीजे बाजार के लिए काफी अहमियत रखते हैं। लोगों की राय देखकर लगता है कि नरेंद्र मोदी की लीडरशिप में लोकसभा चुनावों में बीजेपी की जीत शेयर बाजार के लिए अच्छी खबर होगी। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि वह चुनाव जीतेंगे, लेकिन अगर वह जीतते हैं, तो बाजार के लिए अच्छा होगा।


क्या लोकसभा चुनाव के बाद भारत के लिए टर्निंग पॉइंट आएगा?


पिछले दो-तीन साल से मैं भारत का आलोचक रहा हूं। इस दौरान यहां कुछ भी अच्छा नहीं हुआ। नरेंद्र मोदी ने गुजरात में काफी अच्छा काम किया है। इसलिए उनसे नेशनल लेवल पर भी ऐसी ही उम्मीद की जा रही है। अगर भारत पक्का इरादा दिखाता है, तो इसकी कई कथित मुश्किलें रातोंरात दूर हो सकती हैं। इसलिए अगर मोदी चुनाव जीतते हैं, तो वह नेशनल लेवल पर भी वही सब कर सकते हैं। हालांकि यह आसान नहीं होगा।


क्या आपको अभी शेयर बाजार की हालत देखकर नहीं लगता कि अमेरिकी राहत पैकेज की वापसी बहुत बुरी नहीं होगी? यह इकनॉमिक रिकवरी का संकेत भी तो हो सकता है।


बाजार पर राहत पैकेज की वापसी के आसार का कुछ असर पड़ चुका है। इसलिए अगर इसकी शुरुआत दिसंबर में होती है, तो मार्केट इससे काफी जल्द उबर जाएगा। अगर अमेरिकी इकनॉमी की उम्मीद से ज्यादा मजबूती के चलते राहत पैकेज वापस लिया जाता है, तो यह बुरी खबर नहीं होगी।


पिछले 6 महीनों में भारत में करेंसी को स्टेबल बनाने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। इंटरेस्ट रेट में भी बढ़ोतरी हुई है। करेंट एकाउंट डेफिसिट के भी टारगेट से कम रहने की उम्मीद है। क्या इन बातों का मतलब यह लगाना चाहिए कि भारत के लिए बुरा वक्त खत्म हो चुका है?


लोग भारत और रुपये पर ज्यादा ही बेयरिश हो गए थे। अगर करेंट एकाउंट डेफिसिट के मामले में हालात सुधर रहे हैं और आपके पास मोदी और सप्रोर्टिव कैबिनेट हो, तो एफडीआई बढ़ाने के लिए कई पॉलिसी का ऐलान किया जा सकता है। रुपया मिड 50 रेंज में फिर आ सकता है। यह नामुमकिन नहीं है।


आर्थिक रफ्तार धीमी रहने का डर

Updated on: Wed, 27 Nov 2013 09:03 PM (IST)

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। बढि़या मानसून ने खेती और अंतरराष्ट्रीय बाजारों की मांग ने निर्यात की रफ्तार को बढ़ाया है। मगर इन दोनों क्षेत्रों का बेहतर प्रदर्शन दूसरी तिमाही में आर्थिक विकास की दर को पांच फीसद तक ले जाने में कामयाब नहीं हो पाया है। चालू वित्त वर्ष 2013-14 की जुलाई-सितंबर तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के बढ़ने की दर साढ़े चार से पांच फीसद के बीच रह जाने की आशंका है।

पढ़ें: अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर और राहत

सरकार इस शुक्रवार को दूसरी तिमाही के जीडीपी आंकड़े जारी करेगी। ज्यादातर रिसर्च एजेंसियों का मानना है कि इस अवधि की जीडीपी वृद्धि दर 4.5 फीसद के आसपास सीमित रह सकती है। सेवा क्षेत्र और औद्योगिक उत्पादन की रफ्तार बेहद धीमी रह जाने के चलते आर्थिक विकास की दर में सुस्ती का रुख चालू वित्त वर्ष में शुरू से ही बना रहा है। हालांकि इस दौरान कृषि क्षेत्र की विकास दर साढ़े तीन फीसद से ऊपर रहने की संभावना है। दूसरी तिमाही की शुरुआत से ही निर्यात के क्षेत्र में भी प्रदर्शन सुधर रहा है। पहली तिमाही में आर्थिक विकास दर 4.4 फीसदी रही थी।

इस अवधि के दौरान सबसे खराब स्थिति औद्योगिक उत्पादन की रही है। औद्योगिक उत्पादन की रफ्तार तीन महीने की इस अवधि में 2.6 फीसद से ऊपर नहीं उठ पाई। तीन महीने की औद्योगिक क्षेत्र की औसत विकास दर 1.73 फीसद के आसपास रहने की उम्मीद है। सेवा क्षेत्र भी अपेक्षित रफ्तार हासिल नहीं कर पाया है। इसके चलते दूसरी तिमाही की जीडीपी दर पांच फीसद से नीचे रहने की आशंका है।

इस दौरान सरकार की तरफ से अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ाने के कई उपाय किए गए हैं, लेकिन इनका कोई ठोस नतीजा नहीं निकला। ब्याज की ऊंची दरों और महंगाई के चलते देश में निवेश का माहौल अभी तक नहीं बन पाया है। इसके बावजूद सरकार मान रही है कि तीसरी और चौथी तिमाही में आर्थिक विकास दर के आंकड़ों में बदलाव दिख सकता है। अच्छे मानसून से हुई बढि़या पैदावार ने ग्रामीण बाजार में मांग बढ़ाई है। इसका नतीजा मैन्यूफैक्चरिंग पर भी दिखेगा।

सरकार की उम्मीदों के विपरीत जानकार मानते हैं कि पूरे साल की आर्थिक विकास दर भी पांच फीसद को नहीं छू पाएगी। वित्तीय एजेंसी क्रिसिल ने 4.8 और इक्रा ने 4.6 फीसद विकास दर का अनुमान लगाया है। अन्य एजेंसियों को भी देश की विकास दर पांच फीसद से ऊपर जाने की उम्मीद नहीं है।


http://www.jagran.com/news/business-economy-growth-not-10893851.html



The Union Cabinet will soon decide on putting a cap or limit on hikes in natural gas prices following a new pricing formula coming into effect from April 1, 2014, Oil Secretary Vivek Rae said on Wednesday.

The Union Cabinet had in June decided to price all domestically produced natural gas at an average of the price prevailing at international gas trading hubs and the actual cost of importing liquid gas (LNG). The pricing formula will be effective from April 1, 2014 for a period of five years, with the price being revised quarterly.

The price for each quarter will be calculated based on the 12-month trailing average price with a lag of one quarter (i.e. price for April to June 2014 will be calculated based on the averages for 12 months ended December 31, 2013).

Using the approved price formula, the price effective for April 1, 2014 is estimated at around USD 8.40 per million British thermal unit, double the current price of USD 4.20. Both Finance Ministry and Power Ministry have sought cap or upper limit to which rates can be raised so as not to put excessive burden on consumers like electricity stations.

"Suggestions have been made that there has to be cap on the price. And there is also a suggestion that we should exclude spot (LNG) deals from the formula because they are very volatile... Cabinet will take a decision (on these) shortly and we will notify the gas pricing formula," Mr Rae told reporters on sidelines of a CII event here.

He, however, said there was no question of going back on the decision to revise prices. "There is no possibility of revision in formula. The only thing is whether to include or exclude spot (LNG) transactions and whether to have a cap or not."

While the Finance Ministry wants a ceiling price under the formula as gas producers will reap unlimited gains in case of an upswing in global prices, the Power Ministry feels any price of more than USD 5 will lead to electricity generation cost which cannot be absorbed by consumers.

Asked how soon the Cabinet would decide on the issue, he said, "may be in a week or 10 days."

The new gas price formula has not been notified so far also because of a dispute over whether Reliance Industries should get the new rates considering the fact that it has not produced as per pre—stated targets from eastern offshore KG-D6 block, he said. The Cabinet will also decide if RIL be paid USD 4.2 for currently producing fields till the shortfall is met or the charges that it hoarded gas are proved wrong.

Alternatively, RIL may be allowed higher gas price provided it gave a bank guarantee equivalent to the incremental rate. The bank guarantee will be encashed in case it is proved that RIL deliberately produced lower than target, he added.


86 blocks on offer in round ten of NELP

SPECIAL CORRESPONDENT

The HinduUnion Minister for Petroleum and Natural Gas, Veerappa Moily. File Photo: V. Sudershan

Nearly 55 blocks have received clearances

The Ministry of Petroleum and Natural Gas has decided to put 86 hydrocarbon blocks for bidding in the round X of New Exploration Licensing Policy (NELP) by January 15, 2014, to attract more investment into the exploration and production (E&L) sector, petroleum minister Veerappa Moily said here.

Addressing a press conference here on Tuesday, the minister said that out of these identified blocks, 53 to 55 blocks had received all clearances from different agencies while clearances for the rest would be received by the time of bidding.

"The Production Sharing Contract (PSC) regime continues in NELP X, and, in the process, we may make some modifications," the minister said.Mr. Moily, on Monday evening, met investors and fund managers in Mumbai to seek their views as to how to improve the investment climate in the E&P sector. At this meeting, investors pointed out certain short- and long-term measures that would help in the revival of their confidence. Mr. Moily assured them that all sort-term concerns would be addressed in two months.

Elaborating on the short-term concerns of investors, Joint Secretary Exploration A. Giridhar said "Investors wanted clarity in production sharing administration. There were concerns on delay in grant of clearances,and they wanted to know government's policy on integrated discoveries."

Investors also wanted to know government's shale gas policy. There were concerns on taxation issues as well. "Basically, policy and fiscal issues are bothering them. They want to concentrate on exploration, and do not want to go around seeking clearances," Mr.Giridhar added.

Hydrocarbon potential

Mr.Moily, in his address, said that India must harness the potential of its hydrocarbon resources and be energy-independent by 2030. "There is excellent prospect of oil and gas sector in this country, and we need more investment. We have taken several administrative decisions, and the real development has taken off in the past 30 months (under me)."

The minister said that the recent gas discovery at KG-D6 basin by Reliance Industries could be the biggest ever in the country.

The discovery, named 'D-55', has been notified to the government of India.

He said that the dispute with Reliance would be resolved soon. "There is dispute with regard to only two discoveries. They (RIL) have offered bank guarantee. I am confident that the matter will be cleared in 10 to 15 days," Mr.Moily said.

He expected the Supreme Court to appoint a third arbitrator at the earliest so that the issues between RIL and the Government could be resolved at the earliest. The minister said despite negative headlines appearing in the media several positive developments had taken place in the sector. "We have, over the past few months, cleared as many as $7 billion worth investment proposals submitted by RIL," the minister said.

Mr.Moily also announced the exploration of first shale gas by ONGC off the coast of Gujarat.

http://www.thehindu.com/business/Economy/86-blocks-on-offer-in-round-ten-of-nelp/article5394325.ece


Outlook on economy negative: Standard & Poor's threatens India's 'next govt' with downgrade

ENS Economic Bureau : New Delhi, Thu Nov 07 2013, 21:37 hrs

Rating agency Standard & Poor's notes a marked slowdown in India's growth, which complicates the government's debt dynamics and ability to implement reforms.



The S&P action comes just days after a Goldman Sachs research report said politics is now trumping economics and expressed optimism over a possible political change, led by the BJP's prime ministerial candidate Narendra Modi coming to power.

The implications for India of a ratings downgrade would be difficult.

Once India loses its investment grade there could be a flight of capital from the country as overseas pension and insurance funds, which invest in a debt market only if it enjoys an investment grade, will pull out.

The sovereign credit ratings issued by S&P points out that India has several key strengths like a robust participatory democracy and a free press, a low external debt and ample foreign exchange reserves plus an increasingly credible monetary policy with a largely freely floating exchange rate.

But these strengths are counterbalanced by significant weaknesses, it says.

These include "an onerous public finance load, lack of progress on structural reforms, and shortfalls in basic services typical of a nation with a GDP per capita of $1,500".

The detailed analysis points out that real per capita growth had averaged more than 6 per cent annually from FY '04 to FY '11. But growth has "slowed steadily since then to half that level, fraying the social contract and putting at risk the declining trend in government debt".

The rating agency's comments sent the rupee down to a five-week low of 62.41 to a dollar compared with 62.39 Wednesday. it fell to a low of 62.73 in intra-day trade, its lowest since September 30. S&P added that the challenges for the new government will include placing its fiscal accounts on a firmer footing, phasing out diesel subsidies, financing the expansion of food subsidies, and introducing the nationwide common goods and services tax.

http://www.indianexpress.com/news/outlook-on-economy-negative-standard---poors-threatens-indias-next-govt-with-downgrade/1191942/

आप जिनको चुनकर

भेजते हैं संसद

आपकी आवाज

कितनी उठाते हैं वे

पहेली है अनसुलझी

आपके हक हकूक

की आवाज कभी

नहीं दर्ज होती

किसी ससदीय

कार्यवाही में

नीतिगत फैसले

भी हमेशा एकतरफा

कारपोरेट राजनीति

फंडिंग भी कारपोरेट

कारपोरेट लाबिइंग

गवर्नेंस है दरअसल

मंत्रियों की मौज है

आखिर वे किसकी

लड़ाई लड़ते हैं

जरा मुलाहिजा

फरमायें


सब्सिडियरी बनाने वाले फॉरेन बैंकों को कई छूटें

इकनॉमिक टाइम्स | Nov 27, 2013, 11.04AM IST


मुंबई:

आरबीआई ने साफ किया है कि भारत में सब्सिडियरी कंपनी बनाने वाले फॉरेन बैंकों को कैपिटल गेंस और स्टांप ड्यूटी से छूट मिलेगी। इस कदम से बड़े विदेशों बैंकों को भारत में पूर्व स्वामित्व वाली सब्सिडियरी खोलने के लिए प्रेरणा मिल सकती है।


स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक, सिटी बैंक, हांगकांग और शंघाई बैंकिंग कॉरपोरेशन और डोएचे बैंक जैसे विदेशी बैंक इन शर्तों को सब्सिडियरी बनाने की राह में बाधा कहते रहे हैं। डीबीएस बैंक, इंडिया के सीईओ और जनरल मैनेजर संजीव भसीन ने बताया, 'इस स्पष्टीकरण से हमें देश में कंपनी बनाने की दिशा में कदम बढ़ाने में मदद मिलेगी।'


कुछ समय पहले आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने फॉरेन बैंकों के घरेलू ऑपरेशंस को पैरेंट कंपनी से अलग करने का सुझाव दिया था। फॉरेन बैंकों ने केंद्रीय बैंक से कैपिटल गेंस टैक्स और इन बैंकों के मौजूदा ब्रांचों को पूर्व स्वामित्व वाली सब्सिडियरी में बदलने पर लगने वाले स्टांप ड्यूटी के बारे में सवाल पूछे थे।


पीडब्ल्यूसी के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर एस कुमार ने बताया, 'टैक्स का मसला यांत्रिक है। बैंकिंग रेगुलेटर ने फॉरेन बैंकों को यह आश्वासन देकर बेहतर काम किया है, क्योंकि टैक्स विभाग अपने ऑर्डर के जरिए अलग राय पेश कर सकता था।' कुमार के मुताबिक, 'इससे किसी बैंक की स्ट्रैटेजी में बदलाव नहीं होगा। सब्सिडियरी बनाने का मामला पूंजी की जरूरत, रेगुलेटरी कॉस्ट और जरूरी लेंडिंग नॉर्म से जुड़ा होता है। टैक्स मामले पर स्पष्टीकरण से बैंकों को पॉजिटिव राय बनाने में मदद मिलेगी।'


इंडियन बैंक्स एसोसिएशन के चीफ एडवाइजर (लीगल) एम आर उमरजी ने बताया, 'इससे संपत्तियों (अचल संपत्ति समेत) के ट्रांसफर की प्रक्रिया आसान हो जाएगी। स्टांप ड्यूटी लगने की हालत में सब्सिडियरी बनाने के लिए कंपनियों को भारी खर्च वहन करना पड़ता। इससे भारत में काम कर रहे फॉरेन बैंकों को यहां सब्सिडियरी कंपनी बनाने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा।'


स्कीम के मुताबिक, भारत में चार बड़े फॉरेन बैंक- सिटी बैंक, स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक, हांगकांग एंड शंघाई बैंकिंग कॉरपोरेशन और डोएचे बैंक अपनी एंट्री डेट (अगस्त 2010) के आधार पर सब्सिडियरी बनाने से बच सकते हैं। भारत में सब्सिडियरी बनाने वाले फॉरेन बैंकों की नेटवर्थ कम से कम 500 करोड़ रुपये होनी चाहिए।


आरबीआई के मुताबिक, ये नियम विदेशी बैंकों को घरेलू बैंकों जैसा दर्जा देने की दिशा में बेहद अहम कदम हैं। इसके जरिए फॉरेन बैंक की सब्सिडियरी को स्थानीय स्टॉक एक्सचेंजों में लिस्ट कराया जा सकेगा। 31 मई 2013 के मुताबिक, भारत में कुल 43 फॉरेन बैंक हैं, जो कुल 333 ब्रांचों के जरिए ऑपरेट कर रहे हैं। साथ ही, देश में 47 बैंकों की मौजूदगी रिप्रेजेंटेटिव ऑफिस के जरिए है। भारत में बैंकिंग सेक्टर के कुल एसेट्स में फॉरेन बैंकों की हिस्सेदारी महज 7 फीसदी है। यह बाकी सेक्टरों के मुकाबले काफी कम है।

Ministries clash over cap on foreign stakes in drug firms

BY MANOJ KUMAR

NEW DELHI Wed Nov 27, 2013 8:44pm IST

Pharmacists dispense free medication, provided by the government, to patients at Rajiv Gandhi Government General Hospital (RGGGH) in Chennai July 12, 2012.

CREDIT: REUTERS/BABU/FILES

(Reuters) - The finance ministry is resisting pressure from other departments to cap foreign ownership of domestic drugmakers, fearing such a move would discourage potential investors, a senior ministry source said.

The industry ministry and the health ministry have proposed that the government limit foreign ownership to 49 percent of domestic pharmaceutical firms that produce critical drugs such as vaccines and cancer treatment medicines.

The proposed cap comes as Finance Minister P Chidambaram is seeking foreign money to help revive the economy and fund a wide current account deficit.

"It will be a retrograde step and discourage investors," said a senior official at the finance ministry, who has direct knowledge of the issue.

"The investment climate is already so bad. Who would like to come after such decisions?" he said, adding the ministry expects the cabinet to take what he described as an "appropriate" decision.

Some members of government, health activists and the opposition are concerned that a string of takeovers of Indian generic drugmakers by foreign pharmaceutical companies could limit access for the poor to medicine.

A top official at the industry ministry said concerns arose after the government approved a deal by U.S.-based Mylan (MYL.O) to buy a unit of Strides Arco lab Ltd (STAR.NS) for about $1.6 billion in September.

The official said the takeover of generic drug manufacturers could make medicines unaffordable for the poor among India's 1.2 billion population.

India's pharmaceutical sector attracted $11.39 billion in foreign investment between 2000 and August 2013, roughly 6 percent of its total $200 billion foreign investment inflows, according to the Department of Industrial Policy & Promotion (DIPP).

A move to restrict foreign investment would roll back a 2012 policy allowing 100 percent ownership in the sector.

Industry analysts say such a decision would affect Indian companies looking for foreign partners to help expand their capacity.

"If this is implemented, it would be a disaster for the pharmaceutical industry," Ranjit Kapadia, an analyst at Centrum Broking, said. "Companies want majority control. If that is capped, then foreign investor sentiment would definitely take a hit."

ALTERNATIVE PROPOSALS

A decision on the proposal, which may be discussed by the cabinet on Thursday, could take some time.

The source said the ministry had proposed alternative ways to ease concerns about access to medicine.

One idea is to promote generic drugs through tax or fiscal incentives, the official said, adding that greater investment in the sector would help keep down domestic prices and push up exports.

The finance ministry also says that recent moves to restrict the prices of close to 400 drugs, including treatments for diabetes, cancer and hypertension, are a better way to tackle price issues.

"We can bring more drugs under price control if the purpose is to check prices," the finance official said.

Global drugmakers are looking to boost their presence in emerging markets including India to gain access to production of cheaper generic medicines as governments worldwide battle rising healthcare costs and patents expire for a large number of drugs.

Earlier this year, a parliamentary panel headed by Shanta Kumar, a leader of the main opposition Bharatiya Janata Party, asked the government to prohibit foreign investors from buying stakes in India's low-cost generic drug firms, claiming this was pushing up prices.

"A few more takeovers of this kind may destroy the benefits arising out of India's generics revolution," the panel wrote in a report submitted to parliament in August.

The health ministry has expressed concerns that takeovers of generic drugmakers could hit the supply of drugs for government health programmes.

India plans to almost double spending on the health in the next five years. It currently has one of the lowest vaccination coverage levels in the world.

Industry officials and bankers deny that the takeovers have pushed up prices or affected access to drugs.

(Additional reporting by Abhishek Vishnoi in MUMBAI; Editing by Frank Jack Daniel and Jane Baird)

India's east coast braces as Cyclone Lehar advances

(Thomson Reuters Foundation) - Authorities evacuated thousands of villagers living in low-lying areas, suspended fishing operations and put disaster response teams on standby on Wednesday as a severe cyclone hurtled towards the eastern coast.


और नतीजा भी

देख लीजिये

कैसे दवा से लेकर

निर्माण हो रहा

है पूंजी के हवाले

समझ लीजिये

फिर सूचना

महाविस्फोट की

तरह इंफ्रा धमाके

के कौन होंगे शिकार

Restore investor trust, EU tells India

SPECIAL CORRESPONDENT

Joao Cravinho.


The European Union (EU) has urged India to regain the confidence of foreign investors as many companies from the EU are keen to invest in India despite various problems.

"It is important for India to regain investors' confidence. Many of our companies are large investors in China but they also want to invest in India, which is the other growth pole in Asia. So, many companies are present in India despite the problems," said Joao Cravinho, Ambassador, Head of Delegation European Union in India.

"The prospect of growth is better in India. The market and prospects will be much bigger ten years from now. Among investors from EU, there is positive sense on India's medium-to-long term future," Mr. Cravinho added. He was addressing select journalists here on Tuesday.

He said the biggest concern among EU investors was the uncertainty under which they operated in India. "The uncertainty of the tax regime here is devastating. There is uncertainty with regard to licensing. These uncertainties really frighten the European investors. The time the courts take here to resolve disputes is a real deterrent for investment," he added.

However, he said trade relationship between India and EU was on the rise, and the EU enjoyed a healthy relationship with India. In 2012 bilateral trade was estimated to be little less than 100 million euros, slightly less than 2011. But this year there are signs of improvement.

In 2012, foreign direct investment inflow from India into EU was a negative 0.7 billion euros while the FDI outflow from the EU to India was 6 billion euros.


Govt to review FDI policy in pharma, housing tomorrow

The HinduGovernment will be making a review of FDI police in the construction and Pharma sector on Thursday. A file picture shows a group labourers returning from a construction site in Rajarhat near Kolkata. Photo: Arunangsu Roy Chowdhury.


The Cabinet is likely to take a decision on Thursday on relaxing FDI norms for the housing sector and reducing foreign investment limit to 49 per cent in rare and critical areas of the pharma segment.

The Cabinet would also deliberate on the stand to be taken by India in the forthcoming WTO meet in Bali between December 3-6.

"All the three issues are there in the Cabinet's agenda. The matters were listed in Monday's meeting but was deferred," an official said.

According to media reports, negotiators in Geneva, (the WTO headquarter) failed to sort out differences yesterday on issues like trade facilitation and food security ahead of the Ministerial Conference in Bali.

India is demanding an amendment to the Agreement in Agriculture of WTO in order to implement its food security law. The US and EU are opposing any such amendment.

On FDI in pharmaceuticals, several departments, including the DIPP, have raised serious concerns over continuous acquisitions of Indian drug makers by global multinational firms.

The Department of Industrial Policy and Promotion (DIPP) has proposed to reduce FDI cap from 100 per cent to 49 per cent in the "rare or critical pharma verticals".

According to sources, three categories have been proposed to define "rare or critical". It includes companies with five or more manufacturing units, and companies with 40 per cent or more market share irrespective of the total number of manufacturing facilities.

"If an entity manufactures multiple products, it will be treated as critical if either of the above two conditions are satisfied for at least one third of the products," said a source.

The DIPP has also proposed incorporating conditions for foreign firms like mandatory investment in R&D and non-compete clause in the shareholders pact.

India at present permits 100 per cent FDI in the pharma sector through automatic approval route in the new projects, but the foreign investment in existing pharma companies are allowed only through FIPB's approval.

Regarding FDI in the housing sector, DIPP has proposed relaxing FDI norms including easing conditions for exit before the three-year lock-in period. It has proposed easing conditions for exit of foreign players before the three-year lock-in period.

  • No tax on foreign banks converting to WoS: RBI

SPECIAL CORRESPONDENT

The Reserve Bank of India has clarified that conversion of existing foreign bank branches into wholly-owned subsidiaries in India will not attract any capital gains tax nor stamp duty.

"In this context, it may be indicated that Government of India has inserted, by the Finance Act, 2012, a new Chapter XII-BB titled 'Special Provisions relating to Conversion of Indian Branch of a foreign bank into a subsidiary company' in Income Tax Act, 1961, inter alia, exempting capital gains arising from such conversion from capital gains tax, with effect from April 1, 2013,'' the RBI said in a release.

On the applicability of stamp duty in the case of conversion of existing branch of a foreign bank into a wholly-owned subsidiary, the RBI pointed out that "a new section '8E' had been inserted in Indian Stamp Act, 1899 vide Banking Laws (Amendment) Act, 2012 notified in Gazette of India Notification dated January 18, 2013, exempting from stamp duty on any conversion of a branch of a foreign bank into wholly-owned subsidiary or transfer of shareholding of a bank to a holding company in terms of the scheme or guidelines of RBI.''

This clarification comes in the wake of RBI receiving several queries from foreign banks on capital gains tax and incidence of stamp duty on conversion of existing foreign bank branches into wholly-owned subsidiaries.

The RBI issued the 'Framework for setting up of wholly-owned subsidiaries by foreign banks in India' on November 6.

The apex bank had said that foreign banks with complex structures and which did not provide adequate disclosures would have to operate in India only through wholly-owned subsidiaries (WoS) in order to regulate and avoid 2008-type crisis.

Listing

While allowing foreign banks to list their subsidiaries in the local stock exchanges, the RBI had prescribed that the minimum paid-up equity capital or net worth for a WoS would be Rs. 500 crore.

However, it gave the foreign banks operating in India before August 2010 the option to continue their operations in branch model.

There were 43 foreign banks in India with a network of 333 branches as of March 2013. At present, foreign banks have presence in India only through branches.

http://www.thehindu.com/business/Economy/no-tax-on-foreign-banks-converting-to-wos-rbi/article5394327.ece


GDP growth likely edged up to 4.6 percent last quarter

1 OF 2. A worker walks over giant pieces of concrete that will be used to make tunnels for the metro railway, at a casting yard in Chennai November 20, 2013.

CREDIT: REUTERS/BABU


BANGALORE - India's economic growth likely picked up slightly in the July-September quarter as improved manufacturing activity steered it from a four-year low in the previous three months, a Reuters poll showed on Tuesday.

(Reuters) - India's economic growth likely picked up slightly in the July-September quarter as improved manufacturing activity steered it from a four-year low in the previous three months, a Reuters poll showed on Tuesday.

Any improvement would be welcome news for the government as a string of opinion polls forecast a poor performance for the ruling party in general elections which must be held by next May.

Economic growth virtually halved in two years to 5 percent in the last fiscal year - the lowest level in a decade - and most economists surveyed by Reuters last month expect 2013/14 to be worse.

The consensus of 40 economists showed gross domestic product expanded 4.6 percent year-on-year in the last quarter, better than the 4.4 percent in the previous three months, which was the lowest since the global financial crisis.

"It is only a marginal improvement with much of the support from a slight recovery in manufacturing sector," said Upasna Bhardwaj, an economist at ING Vysya Bank.

A moderate recovery in Indian factories and exports were probably the main drivers for an increase in overall growth in the quarter through September. Annual industrial output picked up 2 percent in September, driven by an uptick in export and domestic orders.

Stronger global demand for India's exports also led to an increase in production, with exports growing 11.15 percent annually in September.

Also, a good monsoon should have boosted rural income and perked up flagging consumer demand.

However, a dearth of investment lies at the heart of India's economic malaise.

Little improvement is expected ahead of the general election, with investors doubting whether Prime Minister Manmohan Singh's minority government can force through any bold actions between now and then.

Radhika Rao, an economist at DBS in Singapore, said euphoria surrounding Singh's earlier reform plans had eased after they failed to materialise.

"It is not surprising that the private sector keeps expansion plans on ice," Rao added.

With wholesale price inflation moving back above the Reserve Bank of India's perceived comfort level of 5 percent and consumer inflation quickening to more than 10 percent, there is little expectation the central bank will act to ease policy boost growth.

In face, new RBI chief Raghuram Rajan has hiked interest rates twice in as many months since September, tackling rising prices head on.

(Polling and analysis by Sarbani Haldar; Editing by Kim Coghill)



खनन में देर, कोयले से अंधेर

सुधीर पाल सिंह / नई दिल्ली November 27, 2013

कंपनियों के निजी उपयोग के लिए आवंटित कोयला खदानों के उत्पादन में आई गिरावट से देश को वित्तीय तौर पर क्या नुकसान हो सकता है? जवाब के तौर पर कहा जा सकता है कि देश को इससे 1.4 लाख करोड़ रुपये की चपत लगी है और उत्पादन में आई गिरावट की प्रमुख वजह कोयला ब्लॉकों को मिलने वाली मंजूरियों में देरी के साथ साथ खदानों को विकसित करने में कंपनियों की नाकामी है।

इस आंकड़े में पिछले पांच साल के दौरान कोयले की कमी से बिजली का उत्पादन न हो पाना और बाहर से आयात किए गए कोयले की लागत भी शामिल है। साथ ही उत्पादन न होने से कोयले की जो किल्ल हुई उससे आयातित कोयले से भी नहीं पाटा जा सका। इसकी वजह से बिजली उत्पादन के मोर्चे पर जो संभावित बढ़त मिल सकती थी उसका लाभ हासिल नहींं किया जा सका।

कंसल्टेंसी कंपनी केपीएमजी के मुताबिक पिछले पांच वर्षों के दौरान मंजूरियों में हुई देरी की वजह से निजी उपयोग के लिए आवंटित कोयला खदानों से 39.4 करोड़ टन का नुकसान हुआ जबकि खदानों को 54 महीनों के भीतर विकसित कर लिया जाना था। इसमें से 20 करोड़ टन उत्पादन की कमी को आयात से पाटने की कोशिश की गई। इस आयातित कोयले की अनुमानित लागत 3,980 रुपये प्रति टन है और बंदरगाह आधारित संयंत्र के लिए घरेलू कोयले की लागत 2,380 रुपये प्रति टन है। जबकि आयातित कोयले की अतिरिक्त लागत 32,000 करोड़ रुपये अलग से बनती है।

बाकी बचे 19.4 करोड़ टन कोयले की भरपाई आयात के जरिये नहीं पूरी की जा सकी और इसकी वजह से उत्पादन के मोर्चे पर नुकसान हुआ। एक यूनिट बिजली के उत्पादन के लिए 0.68 किलोग्राम कोयले खपत के आधार पर देश को बिजली उत्पादन के मामले में 285.2 अरब यूनिट का नुकसान उठाना पड़ा। अगर औसतन प्रति यूनिट 4 रुपये की लागत के आधार पर देखा जाए तो यह नुकसान 1.14 लाख करोड़ रुपये होता है।

दोनों आंकड़ों को साथ मिलाकर देखें तो निजी उपयोग के लिए आवंटित कोयला खदानों के उत्पादन में आई गिरावट की वजह से कुल 1.46 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। घाटे के इस आंकड़े पर प्रतिक्रिया के लिए बिजली और कोयला मंत्रालयों को भेजे गए ईमेल पर कोई जवाब नहीं मिल पाया है। केपीएमजी के पार्टनर संतोष कामत के मुताबिक नुकसान के आंकड़े इस बात की ओर इशारा करते हैं कि मंजूरी दिए जाने की प्रक्रिया को तेज की जाए। उन्होंने कहा, 'आकलन यह बताता है कि समय की महत्ता को उचित तरीके से नहींं समझा गया है। यह वास्तव में राष्टï्र की क्षति है। हालांकि मंजूरियों में देरी की वजह से ही कुल 146,118 करोड़ रुपये का घाटा नहीं हुआ बल्कि इसके लिए कई और भी कारण जिम्मेदार हैं। लेकिन सबके बावजूद मंजूरी दिए जाने में होने वाली देरी एक बड़ी वजह है।'

बहरहाल निजी क्षेत्र इस आकलन से संतुष्टï होता नहीं दिख रहा। एसोसिएशन ऑफ पावर प्रोड्यूसर्स के महानिदेशक अशोक खुराना ने कहा, 'उत्पादन में होने वाली कमी को पाटने के लिए कोयले का आयात किया जाता है और इसे केवल उन मामलों में ही देखा जाना चाहिए जहां परियोजनाएं तैयार हो चुकी है लेकिन खदान से उत्पादन शुरू नहीं हो पाया है और ऐसे मामले काफी कम हैं।Ó वर्ष 1993 के बाद केंद्र सरकार 49 अरब टन भंडार वाले 218 कोयला ब्लॉकों का आवंटन कर चुकी है। इनमें से आधे आवंटन निजी कंपनियों को किए गए जबकि बिजली उत्पादक कंपनी एनटीपीसी को कुल आरक्षित भंडार का दसवां हिस्सा आवंटित हुआ। कोयला ब्लॉक आवंटन में हुई कथित अनियमितताओं का मामला सामने आने के बाद कोयला मंत्रालय अंतरमंत्रालय समूह की सिफारिश के आधार पर अभी तक कुल 51 ब्लॉकों का आवंटन रद्द कर चुका है।

http://hindi.business-standard.com/storypage.php?autono=79030

  1. रिलायंस कम्युनिकेशंस - विकिपीडिया

  2. hi.wikipedia.org/wiki/रिलायंस_कम्युनिकेशंस

  3. रिलायंस कम्युनिकेशंस. मुक्त ज्ञानकोष विकिपीडिया से. यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज. रिलायंसकम्युनिकेशंस. रिलायंस कम्युनिकेशंस. प्रकार · Public (NSE: RCOM, BSE: 532712). उद्योग · Telecommunications. स्थापना, 2004. संस्थापक, Dhirubhai Ambani. मुख्यालय, Navi ...

  4. रिलायंस अनिल धीरूभाई अंबानी समूह - विकिपीडिया

  5. hi.wikipedia.org/.../रिलायंस_अनिल_धीरूभाई_अंबानी_समू...

  6. रिलायंस अनिल धीरूभाई अम्बानी समूह कई कम्पनियों वाला एक औद्योगिक घराना या समूह है। अनिल अंबानी इसके मालिक हैं। मुकेश अंबानी एवं अनिल अम्बाणी के आपसी झगड़े के कारणरिलायंस इण्डस्ट्रीज के विभाजन हुआ और यह समूह अस्तित्व में आया।

  7. रिलायंस इंडस्ट्रीज़ (Reliance Industries) - विकिपीडिया

  8. hi.wikipedia.org/.../रिलायंस_इंडस्ट्रीज़_(Reliance_Industries)

  9. रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड (Reliance Industries Limited) (BSE: 500325‎, एलएसई: RIGD) बाज़ार मूल्य के आधार पर निजी क्षेत्र में भारत की सबसे बड़ी संगुटिका कम्पनी है, मार्च 2010 में समाप्त होने वाले वित्त वर्ष में इस कंपनी का वार्षिक टर्नओवर US$ 44.6 ...

  10. रिलायंस इंडस्ट्रीज - moneycontrol.com पर जाइए

  11. hindi.moneycontrol.comबाजार

  12. रिलायंस इंडस्ट्रीज stock prices, F&O Qoute along with Reliance Historic price charts for NSE / BSE. Get रिलायंस इंडस्ट्रीज detailed report in terms of Mutual fund holdings, financials and Annual reports.

  13. रिलायंस - अन्य हिन्दी ख़बरें

  14. khabar.ndtv.comविषय

  15. रिलायंस homepage on NDTVKhabar.com Find Hindi News articles about रिलायंस.रिलायंस News, Photos, Video & More न्यूज़, ताज़ा ख़बर on NDTV India, NDTVKhabar.com.

  16. रिलायंस के लिए समाचार

  17. अंबानी की कंपनी रिलायंस के खिलाफ अभी ... - बिजनेस

  18. business.bhaskar.comKarobar Jagat

  19. 17-11-2013 - पड़ताल - कृष्णा-गोदावरी बेसिन में ओएनजीसी और रिलायंस के गैस के कुएं जुड़े हुए हैं, इसलिए ऐसा लगता है। इस तरह की घटनाएं दुनिया भर में होती हैं और इसका उल्लेख भी है। लेकिन कहीं शिकायत करने से पहले इसे प्रमाणित करना होगा कि ...

  20. रिलायंस इंडस्ट्रीज: खरीदें - Broker's Pick - Navbharat ...

  21. navbharattimes.indiatimes.comबिज़नसशेयर बाजार

  22. 2 दिन पहले - Broker's Pick 200 डे ऐवरेज का करेक्शन ट्रेडिंग के लिए स्टॉक को...

  23. मैंने रिलायंस इंडस्ट्रीज के साथ पक्षपात नहीं ...

  24. zeenews.india.com/hindi/news/business/i-did-not-biased.../195688

  25. 5 दिन पहले - पेट्रोलियम मंत्री एम वीरप्पा मोइली ने कम्युनिस्ट पार्टी के सांसद गुरूदास दासगुप्ता के आरोपों से इंकार करते हुये उच्चतम न्यायालय से कहा है कि उन्होंने रिलायंस इंडस्ट्रीज लि के साथ कोई पक्षपात नहीं किया है। उन्होंने दावा ...

  26. रिलायंस जियो सिर्फ 10 लाख नंबर आवंटित हों ... - होम

  27. www.livehindustan.com/.../article1-gsm-association-of-india-45-87-3784...

  28. 6 दिन पहले - जीएसएम उद्योगों के संगठन सेल्युलर आपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआई) ने दूरसंचार विभाग से कहा है कि रिलायंस जियो इन्फोकॉम को विशिष्ट नंबरों की श्रृंखला न आवंटित की जाए।


रिलायंस इंडस्ट्रीज ने डी1, डी3 गैस क्षेत्र का 10वां कुआं बंद कियानई दिल्ली : रिलायंस इंडस्ट्रीज लि. ने पूर्वी अपतटीय केजी-डी6 ब्लाक के मुख्य गैस क्षेत्र के एक और कुएं को बंद कर दिया। पानी घुसने की वजह से कंपनी को यह कदम उठाना पड़ा है। इससे इस क्षेत्र का उत्पादन घटकर अपने अब तक के निचले स्तर 87.3 लाख घनमीटर प्रतिदिन पर आ गया है।


हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय (डीजीएच) की स्थिति रिपोर्ट के अनुसार, ''रिलायंस इंडस्ट्रीज ने इसी महीने अपने मुख्य धीरूभाई 1 व 3 ब्लाक में 7 नंबर का कुआं कम दबाव व पानी अधिक निकलने की वजह से बंद किया है। बी-7 दसवां कुआं है जिसे कंपनी को 2010 के अंत से लेकर अभी तक बंद करना पड़ना है। पानी और मिट्टी की वजह से इन कुओं से गैस उत्पादन कठिन हो गया है।


रिलायंस इंडस्ट्रीज ने 2 अप्रैल को अपना ए1 कुआं गैस भंडार अध्ययन के लिए बंद किया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस एक और कुएं के बंद होने के बाद 17 नवंबर को समाप्त सप्ताह में डी1 और डी3 क्षेत्र से गैस उत्पादन घटकर अपने नये निचले स्तर 87.3 लाख घनमीटर प्रतिदिन पर आ गया है।


इसी ब्लाक के एमए तेल क्षेत्र के 33.2 लाख घनमीटर प्रतिदिन के उत्पादन के साथ केजी-डी6 क्षेत्र से गैस उत्पादन सप्ताह के दौरान 1.20 करोड़ घनमीटर प्रतिदिन रह गया है।


रिलायंस इंडस्ट्रीज ने अभी तक डी1 और डी3 क्षेत्रों में 22 कुओं की खुदाई की है। इनमें से सिर्फ 18 से उत्पादन शुरू हुआ है। इन 18 में से भी अब 10 कुएं बंद किए जा चुके हैं।


इससे पहले कंपनी ने 9 जनवरी को बी6 और पिछले साल 29 नवंबर को बी4 कुओं को बंद किया था। केजी-डी6 से गैस उत्पादन अप्रैल, 2009 में शुरू हुआ था और मार्च, 2010 में यह अपने अधिकतम स्तर 6.94 करोड़ घनमीटर प्रतिदिन पर पहुंच गया था। (एजेंसी)

MILLENNIUM SPECIAL

1,000 Years Ago

India in the 11th century, "A mixture of pearls and dung"...

ABRAHAM ERALY

Twenty-first century sey hame kya lena dena hai (twenty-first century, what do we have to do with it)?" scoffs union minister Murli Manohar Joshi. The honourable minister is of course right, though not quite in the sense he means. For the vast majority of Indians, the dawn of the new millennium would be a day like any other, for them to roll off their charpoys, put on their yokes and resume their drab, mindless and unvarying daily grind.




The principle of duty sans reward, as the Gita enjoined, gave birth to modern india's 'chalta hai' attitude.




Nor would the day be all that different for the celebrants. For them, it would be memorable only for waking up with the most horrendous-ever collective hangover of mankind, with the fetid aftertaste of champagne - or arrack or hooch or whatever - in their mouths, and a faint regret in their minds for having made such awful fools of themselves the previous night. It is unlikely that the dawn of the new millennium would mark the beginning of anything particularly consequential. The millennium morning would be momentous only notionally, as a paper event.

In contrast, the turn of the first millennium in India was the end of one phase of our history and the beginning of another. For, in the very first year of the 11th century began the Turkish invasion, which eventually led to the six century-long dominance of India by Turko-Afghan and Mughal rulers, during which the very face of India changed.

The Turkish invaders found India in a sorry state. For about a thousand years, roughly between 600 BC and AD 500, India was a dynamic, progressive and prosperous nation but had long since slid eyeless into the Dark Ages. The state of Indian culture at the end of the first millennium was dismal. "The so-called scientific theorems of... [Indians] are in utter confusion, devoid of any logical order, and in the last instance always mixed up with the silly notions of the crowd... a mixture of... pearls and dung," writes Al-Beruni, the distinguished 11th century Arab scholar-scientist.

India was not alone in this predicament. It was the Dark Ages in Europe too at this time. However, Europe eventually pulled out of the Dark Ages. India did not. In many ways, India today is where it was a thousand years ago. Its institutions have changed and so has its economic and technological environment, but its socio-cultural ethos remains shockingly medieval. It also remains a wretchedly poor and backward country, having over 270 million adult illiterates (about half the total illiterates of the world) and some 350 million people living in absolute poverty. No nuclear test, no military victory, can erase this most awful reality.

How did we get to this state? Our general tendency is to blame it on foreign invasions. This is convenient, for it absolves us of the responsibility for our predicament. But it won't do. Only the weak blame others; the strong blame themselves. Besides, the blight in India had set in many centuries before the British or even the Turkish conquest of India. The true explanation for our plight, therefore, has to be sought in our own institutions and values, by comparing the dynamic phase of our civilisation at the beginning of the first millennium with its inertial phase at its close.

The significant factor here seems to be that during virtually the entire dynamic phase of our civilisation, the religion of the dominant classes in India was Buddhism, not Hinduism. The two religions, though offshoots of the Vedic religion, were entirely unlike each other. Buddhism was a demanding religion, which imposed absolute dharmic imperatives on human conduct and insisted that man should strive to transcend his environment and his own innate nature.In contrast, Hinduism was an undemanding, I'm-OK-you're-OK religion, which accepted ethical pluralism, assigned to each caste its own dharma and advised man to be contented with his lot, however despicable his lot might be. Buddhism inculcated discipline and endeavour, Hinduism inculcated passivity and fatalism. The emphasis of Buddhism was on conduct, that of Hinduism on faith.

There were no gods in Buddhism to turn to for forgiveness or redemption. So also in Jainism. Even Upanishadic Hinduism rejected the concept of god as a creator-ruler and reduced divinity to a pure abstraction, the all-pervasive underlying principle of the cosmic order. India, which is today a land of flamboyant religiosity, was for many centuries dominated by rationalist, godless religions, incredible though it might seem.

But the scene changed in the second half of the first millennium AD, when rustic Hinduism, with its simplistic faith in gods and rituals, became the religion of India, displacing not only Buddhism but even Hinduism's own higher (Vedantic) tradition. By the end of the millennium, Buddhism was in full retreat.

Thus, Indian society at the end of the first millennium was radically different from what it was at its beginning. The most pernicious aspect of the new dispensation was the full-blown caste system. Under this, as Manu had decreed, a man of low birth could never become high by high associations, though a man of high birth could become low by low associations. One could move down, but never up. The caste system didn't envisage any possibility of progress, either for society or for the individual.

In such an environment, enterprise was useless, individualism inconceivable. Doing one's own duty without looking for reward, as the Gita enjoined, in practice meant doing one's duty passively, without pride or pleasure in one's work.

So it was that the chalta hai syndrome became our national malady, characterised by a dismal work ethic, corruption, hypocrisy, servility (towards superiors) and tyranny (towards inferiors). These attitudes have implicit socio-religious sanction in India. Is it any wonder that corruption is pervasive and brazen in today's India, and no one feels the slightest guilt about it, since we believe that any wrong or sin, however vile, can be made right by performing suitable rituals?

We delude ourselves in imagining that our national salvation lies in reviving the values of classical Hinduism but the truth is that those values, and the social system that went with them, are precisely what still keep us mired in the Dark Ages. They are not the best of Indian culture, or even the best of Hinduism.

In many respects, the past we imagine never even existed. Take, for instance, the notion that ancient Indians were a particularly spiritual people. As Swami Vivekananda put it: "It is not that we did not know how to invent machinery, but our forefathers knew that if we set our hearts after such things, we would become slaves and lose our soul, our moral fibre." These are inspiring words. But hardly factual. The fact is that ancient Indians were no more spiritual than any other ancient people, as even a cursory study of the Vedas would show.

We cannot in any case revert to our ancient lifestyle - many of those practices (animal sacrifice, sati, child marriage, untouchability) are crimes today, and some others (beef-eating, for instance) are deadly sins.

Besides, there is no road back to the past, except in our fancies. However glorious our heritage, we cannot live on it today.

We have to move on. It is science and technology that would save us, not any gods, whether Hindu, Buddhist, Muslim or Christian. Even Vivekananda, for all his advocacy of spiritualism, recognised the value of materialism. "We talk foolishly against material civilisation," he said. "I do not believe in a god who cannot give me bread here giving me eternal bliss in heaven! India is to be raised, the poor are to be fed, education has to spread, the evil of priest-craft has to be removed. " Or, as Nehru said: "We've had enough of Rama and Krishna. Not that I do not admire these great figures of our tradition, but there's work to be done."

A true patriot today is the man who hates India in its present plight and does something about it and not the man who proclaims that India is the greatest nation and does nothing to relieve its misery. To claim, as our netas do, that we are today a great nation is sheer folly, for the pretence of being great obviates the need to strive for greatness. But then, as Al-Beruni said about Indians in the 11th century AD: "Folly is an illness for which there is no medicine."


Abraham Eraly is the author of The Last Spring and is currently working on a book on ancient India.


http://www.outlookindia.com/article.aspx?208388








India in depth: Changing recipe of monetary sauceIn question: Monetary policy of India's central bank

Reuters : Singapore, Tue Oct 15 2013, 17:25 hrs


The Reserve Bank of India's in-house rule for setting interest rates is a secret sauce in desperate need of a new recipe.


The ingredients for the rate-setting formula are not known. But a Breakingviews examination of India's call-money rates, inflation and GDP over the past 13 years shows that the central bank has historically placed a rather low emphasis on taming inflation, while fretting more about output slumps and currency swings.


The danger of such an algorithm is plain to see. While the government's fiscal recklessness deservedly shares the blame for India's stagflation, monetary ineptitude is equally responsible for hobbling the once fast-growing economy.


That is about to change. Raghuram Rajan, the RBI's new governor, unexpectedly raised the policy rate in September, giving a strong hint that the central bank is turning into an inflation hawk. He also set up a panel to recommend a fresh monetary strategy that is more "predictable and transparent."


The central bank needn't become a completely open book. But a more robust response to inflation is a welcome break from the past. A monetary policy rule that targets several variables risks falling between stools. That's the case now. Inflation is almost at double-digit levels but the economy, which grew just 4.4 percent in the June quarter, is operating below capacity. The paradox is partly explained by the RBI's actions. The central bank's target short-term interest rate has in the past responded three times more forcefully to an output shortfall than to higher inflation.


Such a policy rule can work without any major hiccups for a long time, but it has a corrosive effect on behaviour. Even in the event of hyperinflation, savers can't expect the central bank to come to their rescue. Fearing erosion of their savings, they add gold and real estate to their portfolios. Fiscal overreach makes things worse. Elevated government deficits absorb a bulk of dwindling financial savings, pushing interest rates higher than they would otherwise have been. That blunts the impact of monetary policy. Growth plummets, but inflation stays high. A stagflation-type crisis erupts.


Police investigate blasts that killed six near Kudankulam nuclear plant

BY ANUPAMA CHANDRASEKARAN

CHENNAI Wed Nov 27, 2013 7:44pm IST

A policeman walks on a beach near Kudankulam nuclear power project in Tamil Nadu September 13, 2012.

CREDIT: REUTERS/ADNAN ABIDI/FILES

(Reuters) - Police are investigating whether anti-nuclear activists were behind bomb blasts that killed six people near the Kudankulam nuclear power plant which started production in October despite protests by villagers.

At least two crude bombs exploded on Tuesday in a house just a kilometre (half a mile) from the Russian-built plant on India's southernmost tip in the district of Tirunelveli.

Police have filed a formal investigation that names three people in connection with the explosions, Sumit Sharan, a senior police official in Tirunelveli, told Reuters. One of them died and two were wounded in the blasts.

"We are trying to find out if they are members of the anti-nuclear group," Sharan said on Wednesday.

The much-delayed Kudankulam plant started producing electricity five weeks ago, with an initial output of 160 MW.

The plant, which should produce 2 gigawatts, has been dogged for a quarter of a century by opponents, including an anti-nuclear movement which sees it as a threat to the safety of villagers.

Unable to rely on a coal sector crippled by supply shortages and mired in scandal, India is pushing ahead with the construction of nuclear reactors despite global unease over safety.

The main anti-nuclear group in Tirunelveli denied any role in the explosions.

"We made it clear immediately that we have nothing to do with the bomb blasts," said S P Udayakumar, founder of the People's Movement Against Nuclear Energy.

Udayakumar said he believed gangs involved in illegal mining were behind the blasts.

(Writing by Shyamantha Asokan; Editing by Sanjeev Miglani, Robert Birsel)


Nuclear deal will boost ties with Iran: Moily

N. S. VAGEESH

MUMBAI, NOV 26:  

Union Minister for Petroleum and Natural Gas, Veerappa Moily, has said that "engagement'' with Iran will increase following the pact that Iran has struck with six major powers at Geneva on Sunday to freeze its nuclear programme.

He was answering questions on the impact of the Iran nuclear deal to a select group of media persons in Mumbai last night.

According to Petroleum Ministry officials, India is likely to import 11 million tonnes of crude oil from Iran this year. This is significantly down from 13 mt imported in 2012-13, 18 mt in 2011-12 and 21 mt in 2009-10.

India imports 80 per cent of its oil requirements. Iran, once a major supplier now contributes about 7 per cent of India's oil requirements. Net import of oil has been around 125 mt in the last couple of years.

(This article was published on November 26, 2013)

http://www.thehindubusinessline.com/economy/nuclear-deal-will-boost-ties-with-iran-moily/article5392779.ece?utm_source=thehindu&utm_medium=widget&utm_campaign=Widget+Promo

Rumours trigger panic-buying of salt in northeast India

David Lalmalsawma

NOV 15, 2013 15:00 UTC

ASSAM | MANIPUR | MEGHALAYA | MIZORAM | SALT

Rumours of an impending salt shortage led to panic-buying in India's north-eastern states and parts of West Bengal state on Friday, officials and media reports said, with a kilo of salt being sold for as much as 200 rupees ($3) compared to average retail selling prices of about 20 rupees (around 35 cents).

Witnesses reported people queuing up at grocery stores to stockpile salt packets, with several shops running out of the usually cheap and plentiful product a day after similar rumours surfaced in Bihar state.

On Thursday, the Bihar state government said that there was abundant supply of the condiment after panic-buying in several districts and state capital Patna following rumours of a reduced supply from Gujarat state, India's biggest producer of salt.

উপযুক্ত রিটার্ন দিতে ব্যর্থ মিউচুয়াল ফান্ড


এই সময়: গত এক বছরে ভারতের শেয়ার বাজার রেকর্ড মাত্রা ছুঁলেও দেশের মিউচুয়াল ফান্ড সংস্থাগুলি আশানুরূপ রিটার্ন দিতে পারেনি৷ ২০০৮ সালে বিশ্বজুরে চলতে থাকা আর্থিক সঙ্কটের সময়েও এরকম দুরবস্থা হয়নি ভারতের মিউচুয়াল ফান্ড সংস্থাগুলির৷ শেয়ার বাজার থেকে খুচরো ক্রমাগত খুচরো বিনিয়োগকারীরা বেড়িয়ে যাওয়ায় এমনিতেই শেয়ার বাজার নিয়ামক সংস্থা সেবি (সিকিওরিটিজ এক্সচেঞ্জ বোর্ড অফ ইন্ডিয়া) সন্ত্তষ্ট নয়৷ এমতাবস্থায় মিউচুয়াল ফান্ডগুলির খারাপ ফল আগুনে ঘি জোগানোর কাজ করবে৷ ভারতের প্রথম সারির ২০টি ইকুইটি ফান্ড চলতি বছরে বিনিয়োগের উপর মাত্র ০.৫ শতাংশ রিটার্ন দিয়েছে৷ ২০০৮ সালের পরে এটাই সব থেকে খারাপ রিটার্ন৷ মিউচুয়াল ফান্ড সংস্থাগুলিকে এর ফল ভুগতে হতে পারে৷ নতুন মিউচুয়াল ফান্ড প্রকল্পে ছাড় দেওয়ার আগে সংশ্লিষ্ট সংস্থার আবেদনপত্র আরও খুঁটিয়ে পরীক্ষা করা চালু করতে পারে সেবি৷


মিউচুয়াল ফান্ডগুলি খারাপ ফল করায় বেশ কিছুটা হতদ্যম হয়ে পড়েছেন সংশ্লিষ্ট ফান্ড ম্যানেজাররা৷ এপ্রিল থেকে অগস্ট মাস পর্যন্ত ডলার নিরিখে টাকার বিনিময় দর রেকর্ড ২০ শতাংশ পড়ে যায়৷ একই সঙ্গে অগস্টের মাঝামাঝি সময়ে শেয়ার বাজার সূচক সেনসেক্সের পতন হয় ১০.২ শতাংশ৷ এই দুই ঘটনাকেই মিউচুয়াল ফান্ডেগুলির খারাপ ফলের জন্য দায়ী করছেন সংশ্লিষ্ট ফান্ড ম্যানেজাররা৷ এইচডিএফসি অ্যাসেট ম্যানেজমেন্টের প্রশান্ত জৈন বলেন, 'চলতি অর্থবর্ষের শুরু থেকেই ভারতীয় অর্থনীতির ক্ষেত্রে এক অনিশ্চয়তার পরিবেশ তৈরি হয়েছে৷ মার্কিন ফেডারেল রিজার্ভের মাসিক ৮,৫০০ কোটি ডলারের ত্রাণ প্রকল্প গুটিয়ে ফেলার আশঙ্কা এবং টাকার বিনিময় দরে সংশোধনের কারণে বিনিয়োগের ক্ষেত্রে আমাদের যথেষ্ট সাবধানী হয়ে এগোতে হয়েছে৷ অনেক ভাবনা চিন্তা করে বিনিয়োগ করতে হয়েছে এবং সমগ্র বিষয়টি আমাদের বিপক্ষে গেছে মিউচুয়াল ফান্ডগুলির খারাপ ফল তারই প্রমাণ৷'


এইচডিএফসি অ্যাসেট ম্যানেজমেন্টের টপ ২০০ ফান্ড এ বছরে একই হারে রিটার্ন দিয়েছে৷ অন্যদিকে, ইকুইটি ফান্ডের রিটার্ন আগের বছরের তুলনায় ২.২ শতাংশ কমেছে৷ বছরের শুরুতে সাবধানী পদক্ষেপ করার পাশাপাশি রাষ্ট্রায়ত্ত সংস্থার শেয়ারে বিনিয়োগ করেও ক্ষতি হয়েছে এইচডিএফসি অ্যাসেট ম্যানেজমেন্টের৷ ভারতীয় স্টেট ব্যাঙ্কের শেয়ার খারাপ ফল করায় সংস্থাটির বিনিয়োগ মার খেয়েছে৷ রিলায়েন্স ক্যাপিটাল অ্যাসেট ম্যানেজমেন্টের খারাপ ফলের কারণ ঝুঁকিপূর্ণ মিডক্যাপ ফান্ডে বিনিয়োগ৷ অন্যদিকে, প্রচুর বিদেশি বিনিয়োগ আসায় ভাল ফল করেছে ব্লুচিপ সংস্থাগুলি৷ রিলায়েন্স অ্যাসেট ম্যানেজমেন্টের ইকুইটি বিভাগের প্রধান সুনীল সিঙ্ঘানিয়ার মতে, 'ভারতীয় বিনিয়োগকারীদের তুলনায় বিদেশি বিনিয়োগকারীরা শেয়ার বাজারে অনেক বেশি সক্রিয় ভূমিকা পালন করেছে৷ এর ফলে গত এক বছরে নির্দিষ্ট কিছু বড় সংস্থার শেয়ারেই সব থেকে বেশি বিনিয়োগ এসেছে৷'


তবে, ব্লুচিপ সংস্থায় বিনিয়োগের ক্ষেত্রেও ফান্ড ম্যানেজাররা ভুল করেছেন৷ উদাহরণস্বরূপ আইটিসি লিমিটেডের কথা বলা যেতে পারে৷ ভারতের প্রথম সারির ছ'টি মিউচুয়াল ফান্ডই এই সংস্থার শেয়ারে বিনিয়োগ করে৷ কিন্ত্ত, এ বছরের গোড়ায় সিগারেট ও ভোগ্যপণ্যের বিক্রি অপ্রত্যাশিতভাবে কমে যাওয়ায় সংস্থার শেয়ার দর প্রায় ৫ শতাংশ পড়ে যায়৷


জুন মাসে ভারতের মিউচুয়াল ফান্ড সংস্থাগুলিকে তাদের খারাপ ফলের জন্য সতর্ক করেন সেবি চেয়ারম্যান ইউ কে সিনহা৷ দেশের ৪৭টি মিউচুয়াল ফান্ড সংস্থার মধ্যে লাভদায়ক নয় এমন সংস্থাগুলিকে ব্যবসার প্রকৃতি বদলের পরামর্শও দেন তিনি৷ বিড়লা সান লাইফ অ্যাসেট ম্যানেজমেন্টের কো-চিফ ইনভেস্টমেন্ট অফিসার মহেশ পাটিল বলেন, 'মিউচুয়াল ফান্ড সংস্থা এবং ব্যক্তিগত প্রকল্পগুলির ফলাফলের বিষয়টিকে সেবি আগাম গুরুত্ব দিচ্ছে৷ মিউচুয়াল ফান্ড প্রকল্পগুলি তাদের নির্ধারিত সীমার নিরিখে কী ধরণের ফল করছে তার উপরও নিয়ামক সংস্থাটি নজর রাখছে৷' খুচরো বিনিয়োগকারীদের শেয়ার বাজারে বিনিয়োগে উত্‍সাহী করে তুলতে এবং তাদের স্বার্থ অক্ষুন্ন রাখতে এ বছর বেশ কিছু নতুন নিয়ম চালু করেছে সেবি৷ নভেম্বরেই শেয়ার বাজার তালিকাভুক্ত সংস্থাগুলির প্রয়োজনীয় তথ্য জমা দেওয়ার নিয়মে পরিবর্তন এনেছে নিয়ামক সংস্থাটি৷ আশানুরূপ রিটার্ন দিতে পারছে না এমন মিউচুয়াল ফান্ড প্রকল্পগুলির ক্ষেত্রে কী পদক্ষেপ করা হবে সে বিষয়ে সেবি স্পষ্ট কিছু জানায়নি৷ তবে, নিয়ামক সংস্থাটি নতুন মিউচুয়াল ফান্ড প্রকল্পে সবুজ সংকেত দেওয়ার আগে সংশ্লিষ্ট আবেদনপত্র আরও খুঁটিয়ে দেখবে বলেই অ্যাসেট ম্যানেজারদের ধারণা৷ মিউচুয়াল ফান্ডগুলি খারাপ রিটার্ন দেওয়ায় এ বছর ইকুইটি ফান্ড থেকে ১০,৬০০ কোটি টাকা তুলে নিয়েছে খুচরো বিনিয়োগকারীরা৷


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