THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Friday, November 29, 2013

धर्म में भी और सूअरबाड़े में भी,माकपाई पाखंड का दूसरा अध्याय ধর্মে ও মদে নিষেধাজ্ঞা জারি সিপিএমের

धर्म में भी और सूअरबाड़े में भी,माकपाई पाखंड का दूसरा अध्याय

ধর্মে ও মদে নিষেধাজ্ঞা জারি সিপিএমের


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास


कामरेड धर्म को अपने आदि सिद्धांतकारों के हवाले हाल फिलहाल तक अफीम कहते रहे हैं लेकिन सत्यनाराय़ण की कथा से शुरु हर कर्मकांड में सक्रिय हिस्सेदारी तकरते रहने वाले कामरेडों को जन विच्छिन्न होते जाने का अहसास बंगाल में मुकम्मल सफाये के बाद हुआ और पार्टी ने विचारधारा की नयी व्याख्याएं कर डाली।अंततः बंगाली माकपाई कामरेडों की कर्मकांडी ज्योतिष वर्चस्व वाले बंगाल में सत्ता में वापसी का मार्ग सुगम बनाने के लिए धर्म कर्म की इजाजत दे दी ही गयी।


जैसे कि हर कर्म अपकर्म को विचारधारा मुताबिक इति सिद्धम अंकीय पद्धति से साबित करने वाले पार्टी के मुखर मेधा संप्रदाय बाकी दलों से ज्यादा प्रतिबद्ध हैं तो अभी उद्धरण देकर समझाया जा ही रहा था कि मार्क्स ने धर्म के बारे में जो कहा है,उसका असली मतलब क्या है कि अब खबर आ गयी कि बंगाल में कामरेडों को धर्म कर्म की इजाजत तो है लेकिन मलयाली कामरेडों को नहीं है।


क्योंकि बंगाल की दलदली जमीन में कामरेड़ों के पांव भारी हो गये हैं,निकलही नहीं रहे हैं।


बाकी भारत में त्रिपुरा में कुल जमा दो लोकसभा सीटें हैं,जिनका कोई ठिकाना नहीं है कि अब किस तरह लुढ़क जायें,  मध्यकालीन सामंती गायपट्टी को कामरेडों ने पहले ही जाति अस्मिता की राजनीति के हवाले कर दिया है।


इसलिए जाहिर है कि भगवान पुरुषोत्तम की कुल्हाड़ी के वार से बनी ब्राह्मणी जमीन केरल से बेहतर घमने की कोई दूसरी जगह नहीं है।


केरल की सीटें ज्यादा से ज्यादा हासिल करने के लिए कामरेडों को धर्म कर्म और मद्यपान की मनाही कर दी गयी है।


बंगाल में जो नौबत है कि अब लोकसभा चुनाव के लिए लेंस लगाकर वाम उम्मीदवार खोजने होंगे,जीतने की कोई संभावना है नहीं कहीं, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सत्ता पार्टी ने ऐसी दुर्गति कर दी है कि सिद्धांतों की तिलांजलि देकर तिनका पकड़कर कामरेड बने रहे ,यही काफी है।


कभी कामरेड संप्रदाय हालिया बहुजन सांस्कृतिक आंदोलन की तरह संसदीय राजनीति को सारे पापों का यमद्वार माना करते थे। चारु मजुमदार के अनुयायी संसदीय राजनीति को सूअरबाड़ा कहा करते थे। हालांकि नवउदारवादी मुक्तबाजार में चारु मजुमदार के अनेक क्रांति साथियों का भी कायाकल्प हो गया है वे संसदीय राजनीतिकी प्रासंगिकता साबित करने के लिए अनेक दस्तावेज निकाल चुके हैं। लेकिन संसदीय राजनीति करने वालों ने संसदीय राजनीति को लिखित मौखिक तौर पर भले ही सूअर बाड़ा नहीं कहा हो, भले ही राज्यों में यत्र तत्र अन्यत्र वे सत्ता में रहे हों लेकिन केंद्र सरकार को वे हमेशा सूअरबाड़ा ही मानते रहे हैं।


इसी वजह से ज्योति बसु को फ्रधानमंत्री न बनने देने  की ऐतिहासिक भूल हो गयी । हालांकि इस भूल का संशोधन करते हुए आपातकाल को अनुशासनपर्व मानने वाले भाकपाइयों ने केंद्र सरकार  में शामिल होकर  इंद्रजीत गुप्त को अल्पकाल के लिए केंद्रीय गृहमंत्री बना दिया और उन्हीके चरण चिन्हों पर चलते हुए काग्रेसी ख्वाबगाह की बिस्तर पर लोटपोट होते हुए माकपा ने कामरेड सोमनाथ चटर्जी को न्यूनतम कार्यक्रम के तहत बनी यूपीए प्रथम की जनसंहारी सरकार का लोकसभाध्यक्ष बना दिया।


लेकिन परमाणु विकिरण से पापबोध इतना प्रबल हुआ कि कामरेड सोमनाथ चटर्जी ही पार्टी से बाहर हो गये।


कांग्रेसी ख्वाबगाह की शरीकी के मध्य पूंजीवादी विकास के स्वर्णिम राजमार्ग पर बंगाली कामरेडों ने इतनी तेज दौड़ लगायी कि मरीचझांपी नरसंहार पर तीस साल तक खामोश बंगाली नागरिक समाज की प्राण प्रतिष्ठा हो गयी सिंगुर और नंदीग्राम भूमि आंदोलन के बजरिये।शेरनी पर सवार हो गयी हैं ममता बनर्जी तब से और उनके सामने पड़ने से हर कामरेड को अपना शिकार बना रही है शेरनी।


शेरनी के कालाजादू से बचने के लिए इसीलिए मंत्र तंत्र यंत्र महज बंगाल के लिए और बंगाली कामरेडों के लिए।


वैसे भी कामरेडों की दृष्टि हमेशा बंगाल और केरल तक सीमाबद्ध हैं। नक्सलियों और माओवादियों की तरह हजार धड़े नहीं हैं और न भारकपा की तरह पूरी तरह सत्ता वंचित हैं माकपाई।


शिवरात्रि का आखिरी दिया अभी माणिकबाबू त्रिपुरा में सहेजे हुए हैं और उस बाती का तेल कब तक चलेगा माकपा का धर्म ही जाने।


बंगाल और केरल लाइन की पटरियों पर माकपाई संसदीय रेलगाड़ी चल रही है,जिसकी मंजिल में भारतीय भूगोल का कोई नक्शा इन दो राज्यों के अलावा मात्र त्रिपुरा है।


जाहिर है कि माकपाई धर्म में भी हैं और सूअरबाड़े में भी हैं।ऐसा बंगाल के प्रसंग में कहा जा सकता है। लेकिन केरल के संदर्भ में कह सकतेहैं कि धर्म में कतई नहीं हैं। हां,हो सकता है कि सूअर बाड़े में जरुर होंगे कामरेड। फिर नीतियों और रणनीतियों का बारीक से बारीक विश्लेषण है।आत्म आलोचना है।भूल स्वीकार पद्धति है। जाहिर है कि देश काल पात्र के हिसाब से कामरेडों को अपनी विचारधारा में जरुरी संशोधन करतेरहने का मौलिक अधिकार इसी सूअरबाड़े के लोकतंत्र में ही हासिल है।


मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की केरल इकाई के तीन दिवसीय पूर्ण सत्र का बुधवार को उद्घाटन करते हुए पार्टी महासचिव प्रकाश करात ने कहा कि यह पार्टी को आत्ममंथन का अवसर देगा। उन्होंने कहा कि पूर्ण सत्र संगठन को मजबूत करने और इसमें सुधार करने का अवसर देगा। यह सुधार की जाने वाली चीजों की एक वर्षीय अभियान के जरिए सुधार का भी एक साधन बनेगा।


करात ने कहा, "सदस्यता के मामले में पार्टी की केरल इकाई सबसे बड़ी इकाई है और इसने कई संघर्षो की अगुवाई की है।" करात ने कहा, "एक साल लंबे सुधार अभियान का मकसद अभिमान, तड़क-भड़क पूर्ण जीवनशैली, गुटबंदी और अन्य दुराचारों को दूर करना है। चूंकि हम कम्युनिस्ट पार्टी हैं इसलिए हम गलतियों को ठीक कर सकते हैं। मुझे विश्वास है कि हम यह कर सकते हैं।"


65 वर्षीय पलक्कड़ के मूल निवासी करात ने कहा, "कम्युनिस्ट पार्टी होने का मतलब है हर सदस्य को जनता की सेवा के लिए तत्पर रहना चाहिए, खासकर कामगार तबके की सेवा के लिए।" सम्मेलन शुक्रवार को समाप्त होगा और अगले वर्ष लोकसभा चुनाव से पहले यह पार्टी के प्रमुख लोगों को सक्रिय करेगा। सम्मेलन की शुरुआत के प्रतीक रूप में पार्टी के अनुभवी नेता वी.एस. अच्युतानंदन ने पार्टी का झंडा फहराया।


इसके साथ ही इतने दिनों बाद बंगाल में ममता के आधारविरोधी जिहाद और राज्य विधानसभा में आधार योजना के खिलाफ प्रस्ताव पास कराने की तैयारी के बाद माकपा ने आखिरकार  केंद्र सरकार से अपील कर ही दी  है कि वह लोगों को विभिन्न लाभ मुहैया कराने के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य बनाने का अपना निर्णय वापस ले।


माकपा ने राज्यस्तरीय बैठक के दौरान केरल के पलक्कड़ में पारित प्रस्ताव में आरोप लगाया कि केंद्र ने किसी संसदीय कानून के समर्थन के बिना आधार कार्ड को अनिवार्य बना दिया है और यह इस मामले पर उच्चतम न्यायालय के बार बार दिए गए आदेश की अवहेलना है।


उसने कहा कि हालांकि इस मामले में संसद में एक विधेयक पेश किया गया था लेकिन इस विधेयक को जिस स्थायी समिति के पास भेजा गया था उसकी रिपोर्ट ने इसके मुख्य प्रावधानों को अस्वीकार कर दिया था।


माकपा ने अपने प्रस्ताव में कहा, ''रसोई गैस पर सब्सिडी के लिए आधार से जुड़े बैंक खाते अनिवार्य बनाने का तेल कंपनियों का निर्णय अस्वीकार्य है क्योंकि अब तक देश की केवल 25 प्रतिशत जनसंख्या के पास ही आधार कार्ड हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि अधिकतर लोग इस बात को लेकर चिंतित हैं कि क्या उन्हें वह लाभ मिलेगा या नहीं जिसके वह हकदार हैं।''एकदम वही शब्दावली है जो की ममता बनर्जी की है।अजब संजोग है।गजब योगायोग है।


पार्टी ने आरोप लगाया है कि यह सरकार की सब्सिडी और कल्याण कार्यों संबंधी भुगतान को धीरे-धीरे समाप्त करने की नव-उदारवादी नीति का हिस्सा है।


माकपा ने कहा, ''सरकार के लाभों को आधार कार्ड से जोड़ने के लिए समय सीमा तय करने के निर्णय ने विभिन्न कल्याण योजनाओं के लाभार्थियों को चिंतित कर दिया है।''


माकपा ने कहा कि प्रधानमंत्री पद के भाजपा के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी को बड़े औद्योगिक घरानों का अभूतपूर्व समर्थन मिल रहा है क्योंकि उन्होंने संकेत दिया है कि सत्ता में आने के बाद वे उनके हित बेहतर ढंग से साधेंगे।


माकपा की केरल इकाई के तीन दिन के अधिवेशन का उद्घाटन करते हुए पार्टी महासचिव प्रकाश करात ने कहा कि वामपंथी पार्टियों का उद्देश्य कांग्रेस और भाजपा का विरोध करना है, क्योंकि अकेले उसके पास ही इस संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए विश्वसनीयता और जनविश्वास है।


करात ने कहा, नरेन्द्र मोदी एक ऐसे राजनीतिक नेता हैं, जिन्हें देश के तमाम बड़े निगमों और व्यापारिक घरानों का अभूतपूर्व समर्थन हासिल है, यह संकेत करता है कि कांग्रेस के मुकाबले भाजपा निगमों का ज्यादा अच्छी सेवक है।


उन्होंने कहा कि मोदी नीत भाजपा से एक अन्य खतरा यह है कि यह हिंदुत्व सांप्रदायिक एजेंडा कार्यान्वित करना चाहती है। उन्होंने कहा, हमने पिछले एक साल में देखा कि देशभर में तनाव और सांप्रदायिक झड़प शुरू करने के लिए एक सुव्यवस्थित सांप्रदायिक अभियान चलाया गया।

माकपाई नैतिकता बी संघी नैतिकता से अलग कोई स्वतंत्र पाठ नहीं है क्योंकि सीबीआई अदालत द्वारा एसएनसी लवलीन भ्रष्टाचार मामले में बरी किए जाने के साथ ही माकपा की केरल इकाई के सचिव पिनरई विजयन मुख्यमंत्री पद के लिए वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) के संभावित प्रत्याशी बनकर उभरे हैं।


वामपंथी वैसे तो सांप्रदायिक सौहार्द्र की बातें कम बढ़-चढ़कर नहीं करते। माकपा ने पिछले दिनों दिल्ली में एक सम्मेलन करके अपनी साख पर नए सिरे से शान चढ़ाने की कोशिश की। लेकिन व्यावहारिक धरातल पर इसका दृष्टिकोण भी औरों से भिन्न नहीं रहा है। ऐसे कई मौके आए, जब केरल और पश्चिम बंगाल की वामपंथी सरकारों ने सांप्रदायिक ताकतों के आगे घुटने टेक दिए। मुस्लिम कट्टरपंथियों को संतुष्ट करने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने दुनिया भर से दुत्कारी जा रही तस्लीमा नसरीन को अपने राज्य में शरण देने से इनकार कर दिया था।

यहां राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार अदालत के फैसले से उनके लिए संगठनात्मक भूमिका से आगे बढ़कर 2016 में होने वाले अगले विधानसभा चुनाव में उतरने के रास्ते की बाधाएं हट गई हैं।

वीएस अच्युतानंदन द्वारा खड़ी की गई चुनौतियों के बावजूद यद्यपि पार्टी में विजयन की भूमिका सशक्त बनी रही, लेकिन लवलीन मामले ने इन वर्षों में उन्हें खूब परेशान किए रखा।

अदालत के फैसले से अब उन्हें बड़ी राहत मिली है। भ्रष्टाचार के इस मामले ने उन्हें लंबे समय तक डराए रखा और उनके विरोधियों ने इसे आधार बनाकर उन पर जमकर आरोप लगाए थे।

मामला 1998 में एलडीएफ सरकार में बिजली मंत्री के रूप में विजयन के कार्यकाल के दौरान तीन पन बिजली परियोजनाओं के नवीनीकरण का ठेका कनाडाई कंपनी एसएनसी लवलीन को दिए जाने से जुड़ा है।

सीबीआई ने जब विजयन को मामले में आरोपी बनाया तो पार्टी ने कहा था कि अमेरिका के साथ असैन्य परमाणु मुद्दे पर वाम दलों द्वारा संप्रग 1 से समर्थन वापस लिए जाने के कारण कांग्रेस की ओर से की गई यह बदले की कार्रवाई है।

लेकिन अच्युतानंदन ने पार्टी के इस आधिकारिक रूख से अलग रूख अपनाया था और उन्हें खुलेआम भिन्न मत प्रकट करने के लिए माकपा पोलित ब्यूरो से हटा दिया गया था।


ধর্মে ও মদে নিষেধাজ্ঞা জারি সিপিএমের

Nov 28, 2013, 09.26PM IST


বিশ্বজিত্‍ বসু


শুদ্ধকরণ, ঘুরে দাঁড়ানো-র প্রতিশ্রুতি-প্রতিজ্ঞাই সার৷ ২০১১-য় রাজ্যপাট খোওয়ানো ইস্তক সাংগঠনিক ভাবে এবং নির্বাচনী ময়দানে বিপর্যয় বরং উত্তরোত্তর বেড়েছে বঙ্গ সিপিএমে৷ এ দিকে শিয়রেই লোকসভা ভোট৷ সর্বভারতীয় পর্যায়ে সামান্যতম প্রাসঙ্গিকতা ধরে রাখতে হলেও বলার মতো সংখ্যায় আসন পেতে হবে৷ পশ্চিমবঙ্গ থেকে আসন বাড়ানোর আশা বাস্তবসম্মত হবে না ধরে নিয়েই দক্ষিণের দিকে মুখ ফিরিয়েছেন সিপিএম কেন্দ্রীয় নেতৃত্ব৷ দক্ষিণের একমাত্র যে রাজ্যে দলের প্রাসঙ্গিকতা রয়েছে, সেই কেরালা-কে কেন্দ্র করেই 'ঘুরে দাঁড়ানো'র ঘুঁটি সাজাতে চাইছেন প্রকাশ কারাটরা৷ কেরালা-র পার্টিতেও গোষ্ঠীদ্বন্দ্ব তীব্র৷ আরও অনেক অসুখই রয়েছে৷ তবু বাংলার চেয়ে কেরালা-র উপরেই আপাতত বেশি ভরসা কারাট-ব্রিগেডের৷ সাংগঠনিক ত্রুটি-বিচ্যুতি কাটিয়ে দলকে শক্তিশালী করতে বুধবার থেকে পালাক্করে শুরু হয়েছে কেরালা সিপিএমের তিন দিনের বিশেষ সম্মেলন বা প্লেনাম৷


কেরালার পার্টি-সংগঠন নিয়ে নেতৃত্ব যে কতটা সিরিয়াস, বোঝা যায়, প্লেনামে পেশ হওয়া দলীয় নির্দেশিকা থেকেই৷ সেখানে স্পষ্ট ভাবে বলে দেওয়া হয়েছে, পার্টি সদস্যরা কোনও ধর্মীয় বা জাতপাত-ঘেঁষা প্রতিষ্ঠানের পদে থাকতে পারবেন না৷ যুক্ত থাকতে পারবেন না রিয়েল এস্টেট কারবারেও৷ সদস্যদের ভাবমূর্তির উন্নতিতে এমনকী মদ্যপানেও নিষেধাজ্ঞা আরোপ করা হয়েছে৷ এই সব সমস্যা পশ্চিমবঙ্গের মতোই কেরালা-তেও সিপিএমের মাথাব্যথার কারণ হয়েছে৷ বঙ্গে এ-সব নিয়ে নানা সময়ে নানা ভালো ভালো কথা বলাও হয়েছে আলিমুদ্দিনের নেতাদের তরফে৷ কিন্ত্ত ওই পর্যন্তই৷ রিয়েল এস্টেটের কারবারে এই সে দিন পর্যন্তও বাংলার সর্বত্র রাজ করেছেন সিপিএম নেতা-কর্মীরাই৷ চাঁদমণি থেকে রাজারহাট--বাম-আমলে জড়িয়েছে এমনকী মন্ত্রীদের নামও৷ শুদ্ধকরণের স্লোগান আউড়ে যাওয়া হয়েছে৷ জনমানসে বিশেষ কিছুই শুধরোয়নি৷ ক্ষমতা হারানোর পরেও নেতা-কর্মীদের আচরণ যে বদলায়নি, অতি-সম্প্রতি কলকাতা জেলা কমিটির প্রতিবেদনেই তা কবুল করা হয়েছে৷


এই অবস্থায় বাংলা নয়, কেরালার উপরেই বেশি ভরসা করছেন কারাটরা৷ ভাবমূর্তি ফেরানোর টোটকা সেখানেই বেশি কাজে আসবে বলে মনে করছেন সিপিএম নেতৃত্ব৷ আর সেই সূত্রেই লোকসভা ভোটে ঘুরে দাঁড়ানোরও স্বপ্ন দেখছেন তাঁরা৷ আর তা করবেন নাই বা কেন, পশ্চিমবঙ্গের নেতারা যে সমস্যা স্বীকার করতেই নারাজ৷ কেরালার প্লেনামে মদ্যপানে নিষেধাজ্ঞার নিদান নিয়ে হালকা চালে মহম্মদ সেলিমের যেমন মন্তব্য, 'এখানে (বাংলা) সিপিএমে কি মাতাল ঘুরে বেড়াচ্ছে?' বস্ত্তত, শুদ্বকরণ নিয়ে বাংলার পার্টিতে কাজের চেয়ে স্লোগানই বেশি, এমন একটা ধারণা ক্রমেই পেয়ে বসছে গোটা দলে৷


সে দিক থেকে পিনারাই বিজয়ন, ভি অচ্যুতানন্দনের কাজিয়া সত্ত্বেও কেরালায় দলের আশা বেশি দেখছেন প্রকাশ কারাটরা৷ প্লেনামে দলীয় শৃঙ্খলা ও মার্কসীয় আদর্শের উপর জোর দিয়ে সাংগঠনিক রিপোর্টে বলা হয়েছে, 'পার্টি সদস্যরা কোনও ধর্মীয় প্রতিষ্ঠানের পদে থাকতে পারবেন না৷ মন্দির, মসজিদ, গির্জার কমিটিতে থাকতে পারবেন না৷ জাতপাতের সঙ্গে জড়িত কোনও সংস্থায় থাকা চলবে না৷ কুসংস্কার ও অবৈজ্ঞানিক কার্যকলাপের বিরুদ্ধেও প্রচার চালাতে হবে৷' রাখঢাক না করে এবং হালকা ভাবে না নিয়ে রিপোর্টে কবুল করা হয়েছে, 'দলীয় সদস্যদের একাংশ মদ্যপানে আসক্ত৷ দলে থাকতে হলে অবশ্যই মদ ছাড়তে হবে৷ কারণ মদ্যপান সামাজিক ব্যাধি৷' কমিউনিস্ট পার্টিতে রিয়েল এস্টেট কারবারি ও মাফিয়াদের যে জায়গা নেই-- স্পষ্ট জানিয়ে দেওয়া হয়েছে তা-ও৷



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