THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Friday, May 18, 2012

बोफोर्स बनता टूजी घोटाला

बोफोर्स बनता टूजी घोटाला

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बोफोर्स बनता टूजी घोटाला
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क्या टू जी स्पेक्ट्रम घोटाला भी बोफोर्स की राह पर चल पड़ा है? बचाव पक्ष और अभियोजन पक्ष में अप्रत्यक्ष दोस्ती की तकरीर होगी? तथ्य हवा हवाई होंगे? बाहर आने के बाद अब ए राजा सीबीआई को खरीद सकता है? सीबीआई-सरकारी वकीलों को खरीद सकते है? टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले के गवाहों को खरीद सकते हैं? मनमोहन सिंह-सोनिया गांधी से राजनीतिक सौदेबाजी कर अपने को पाक साफ करने की न्यायिक शक्ति भी हासिल कर सकते हैं? सीबीआई द्वारा जुटाये गये मजबूत-कमजोर तथ्यों को हवा-हवाई भी करा सकते हैं ए राजा? ए राजा बोफोर्स दलाल क्वात्रोच्चि की तरह ब्लैकमैंलिंग का हथियार भी इस्तेमाल कर सकते हैं? भ्रष्टाचार के खिलाफ जारी मुहिम भी ठंडी हो सकती है?

ऐसा कहना या फिर ऐसी आशंका जाहिर करना अनर्थ भी तो नहीं है। इसलिए कि ए राजा अब तिहाड़ से आजाद हैं। उसके पास राजनीतिक ताकत है। ए राजा के पास धन-दौलत की ताकत है। ए राजा के पास टाटा-अंबानी जैसे कारपोरेटेड घराने हैं? मनमोहन सिंह-सोनिया गांधी सत्ता के भागीदार द्रमुक ए राजा के साथ हैं। क्या आप बीएमडब्ल्यू कांड को भूल गये। बीएमडव्ल्यू कांड के धनी और रसूख बालक अभियुक्त ने हाईकोर्ट में पुलिस-सरकारी वकील को क्या नहीं खरीदा था? बचाव और अभियोजन पक्ष ने एक होकर क्या बीएमडब्ल्यू कांड को दफन करने की साजिश नहीं रची थी? प्रमाणित तौर पर और न्यायिक परीक्षण में बिकने-खरीदे जाने के आरोप साबित होने के बाद भी क्या आरके आनन्द जैसे वकील सुप्रीम कोर्ट में वकालत नहीं कर रहे हैं? मनमोहन सरकार पर कृपा कर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश बाला कृष्णन ने अथाह संपति नहीं कमायी? बीएमडब्ल्यू कांड की कसौटी पर देखें तो सीबीआई और सरकार के वकील और महकमें की ईमानदारी खरीदना कोई कठिन काम भी नहीं है। इसीलिए जब तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता यह आशंका जाहिर करती हैं कि टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले पर कानून का शिकंजा कमजोर पड़ रहा है और यह भी हो सकता है कि द्रमुक राजनीतिक सौदेबाजी के तहत टू जी घोटाले पर पर्दा डाल कर अपने भ्रष्टाचारियों को बचा सकता है तब इसे स्वाभाविक ही माना जा सकता है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री जयललिता का यह आरोप और उक्त आशंका यह कहकर खारिज नहीं किया जा सकता है कि वे द्रमुक की प्रतिद्वंद्वी राजनीतिज्ञ शख्सियत हैं।

कई ऐसी राजनीतिक और कारपारेटेड शक्तियां हैं जिन पर टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले में शामिल होने के आरोप हैं पर सीबीआई और मनमोहन सिंह सरकार की कृपा से बचने के फिराक में लगे हुए हैं और घोटाले के प्रसंग व जांच को लंबा खींचबा कर जन दबाव हटवाने की कोशिश में हैं। जनदबाव के कारण ही न्यायपालिका टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले में सख्त हुई थी और यह उम्मीद जगी थी कि टू जी स्पेकट्रम घोटाले के सभी बड़े अभियुक्तों को जरूर सजा मिलेगी और भ्रष्टाचार की अग्नि से मुक्ति भी मिलेगी। न्यायपालिका अपने कर्तव्यों का निर्वाहन कितनी दूर तक करती है और कितनी ईमानदारी से करती है, यह देखना दिलचस्प होगा।

भारतीय राजनीतिक संस्कृति का पतन देखिये। लोकतांत्रिक संस्कृति के वाहक दलों की बेशर्मी भी देख लीजिये। ए राजा की जमानत पर हुई रिहाई पर उनकी पार्टी द्रमुक ने बम-फटाखे छोड़े। दिल्ली से लेकर तामिलनाडु तक खुशियां मनायी गयी। द्रमुक के छोटे कार्यकर्ता से लेकर द्रमुक के सरगना करूणानिधि तक खुश हैं। खुशियां भी ऐसी मनायी गयी जैसे ए राजा कोई भ्रष्टाचार के खलनायक नहीं बल्कि ईमानदारी के नायक हों। एक भ्रष्टाचारी की रिहाई पर जमकर खुशियां मनाने की यह संस्कृति क्या लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए सकारात्मक मानी जायेगी? क्या इस तरह की संस्कृति से देश में भ्रष्टाचारियों के भ्रष्ट आचरण और भ्रष्ट मानसिकता का पोषण नही होता है? क्या ऐसी संस्कृति पर जनचेतना नहीं जगनी चाहिए। पर सवाल यहां यह उठ सकता है कि भ्रष्टाचारियों के खिलाफ जनचेतना जगायेगा तो कौन? सरकारी मिशनरी और भ्रष्टाचारी लोग तो अन्ना आंदोलन को ही देश के लिए खतरा घोषित करने में लगे हुए हैं। भ्रष्टाचारियों के पक्ष में कैसी-कैसी ताकत हैं, यह भी बताने की जरूरत है क्या?

टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले के कई राज अभी भी दफन हैं। कई अनसुलझे सवाल हैं। बहुत सारी परतें अभी भी सीबीआई-न्यायालय की नजर ओझल हैं। अनसुलझे राज-सवाल और ओझल परते सिर्फ और सिर्फ ए राजा के भ्रष्टाचार की लाइब्रेरी में कैद हैं। अगर ए राजा ने अपने भ्रष्टाचार की लाइब्रेरी से राज, अनसुलझे सवालों व परतों की असलियत उजागर कर दी तो मनमोहन सिंह, पी चिदम्बरम और सोनिया गांधी तक मुसीबत में फंस सकते हैं और तिहाड़ की हवा खा सकते हैं। खासकर चिदम्बरम के खिलाफ सुब्रहण्यम स्वामी की मुहिम ने अभी दम तोड़ा नहीं है और सुब्रहण्यम स्वामी की अर्जी अभी भी न्यायिक परीक्षण में खड़ी है।

अगर भ्रष्टाचारियों के पक्ष में बड़ी-बड़ी और निर्णायक शक्तियां खड़ी नहीं होती तब क्या लोकपाल जैसा भ्रष्टाचार विरोधी नियामक अधर में लटकता? जनचेतना की भी अपनी विसंगतियां हैं। कुनबे पंसद, जाति पसंद, भाषा पसंद, क्षेत्रीयता पसंद जनचेतना ही द्रमुक, जैसी राजनीतिक पार्टियां को भ्रष्टाचार और अपसंस्कृति के गर्त में जाने के बाद भी नायक बनाती है। अगर ऐसा नहीं होता तो ए राजा की जमानत पर हुई रिहाई के बाद खुशियां मनाने की हिम्मत ही द्रमुक के पास नहीं होती। सिर्फ द्रमुक की ही बात नहीं है। लालू, मायावती, चन्द्रबाबू नायडु और यदियरपा जैसे कुनबेबाज और भ्रष्टाचार के आरोपी जनादेश पर सवार होकर राजनीतिक पटल पर विराजमान हैं? आखिर क्यों? क्या इससे लोकतंत्र की स्वस्थ परंपरा व लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों पर चाबुक नहीं चलता है?

सीबीआई की बेईमानी अब ओझल भी नहीं है। केन्द्र सरकार की गुलामी क्या सीबीआई नहीं करती है? सीबीआई को मोहरे की तरह केन्द्र सरकार अपने स्वार्थो की पूर्ति के लिए नचाती है। सीबीआई की मर्दागनी तभी जागती है जब केन्द्र सरकार चाहती है। नहीं तो सीबीआई शिथिल पड़ी रहती है। केन्द्र सरकार के स्वार्थ साधने के लिए सीबीआई कैसे-कैसे खेल खेलती है, यह भी जगजाहिर है। बोफोर्स तोप सौदे का हस्र क्या आपको मालूम नहीं है। यह प्रमाणित बात थी कि बोफोर्स तोप सोदेबाजी में रिश्वतखोरी हुई थी। राजीव गांधी-सोनिया गांधी के रिश्तेदार क्वात्रोच्चि के खाते में रिश्वतखोरी के पैसे भी जमा हुए थे। सीबीआई जांच के दौरान सबूत ही नहीं जुटायी। सीबीआई सबूत जुटाती तो रिश्वतखोर जेल में होते और इसकी आंच कांग्रेस-सोनिया तक आ सकती थी। सीबीआई ने मनमोहन सिंह सरकार के इशारे पर क्वात्रोच्चि के सील खाते को खुलवाया और बोफोर्स तोप दलाली कांड को न्यायिक दफन के लिए खेल-खेला। सीबीआई टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले में भी घोटालेबाजों को बचाने के लिए अपना जंजाल खड़ा करना शुरू कर दिया है। सीबीआई अगर मजबूती और चाकचौबंद ढंग से टूजी स्पेक्ट्रम की जांच और अभियुक्तों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाती तो ए राजा को जमानत का हकदार ही नहीं माना जा सकता था। छोट-छोटे भ्रष्टाचार और अन्य मामलों में गरीब-गुरबे को सालों-साल जमानत नहीं मिलती है पर ए राजा जैसे घोटाले बाज बड़े और नामी वकीलों के साथ ही साथ भ्रष्ट व फिक्सिंग प्रक्रिया के बल पर जमानत पाने के हकदार बन बैठते हैं। इस न्यायिक खामी को कैसे दुरुस्त किया जा सकता है? यह भी विचारणीय प्रश्न है।

टू जी स्पेक्ट्रम में कई राजनीतिज्ञ और कई कारपोरेटेड घराने ऐसे हैं जो बचने की कोशिश करने में लगे हुए हैं। अनिल अंबानी सीबीआई और मनमोहन सिंह की कृपा से जेल जाने से साफ बच गये। अनिल अंबानी के अधिकारी जेल जरूर गये। जबकि जेल अनिल अंबानी या फिर अनिल अंबानी की पत्नी को जाना चाहिए था। द्रमुक के नेता और पूर्व संचार मंत्री दयानिधि मारन के खिलाफ भी सबूत हैं पर सीबीआई वीरता नहीं दिखा रही है। गृहमंत्री पी चिदम्बरम ने अपने बेटे को टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले से जुड़ी टेलीकॉम कंपनी के शेयर दिलाये। यह मामला अभी-अभी संसद में हंगामा मचाया था। टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले का भविष्य क्या होगा? घोटालेबाजों को सजा मिलेगी या नहीं? टू जी स्पेक्ट्रम के घोटालेबाज बोफोर्स दलाल कांड के अभियुक्तों की तरह कहीं बरी तो नहीं हो जायेंगे? इसलिए कि सीबीआई और भारत सरकार अप्रत्यक्षतौर पर टू जी स्पेक्ट्रम के घोटालेबाजों के साथ खड़ी हुई है। जनदबाव नहीं होता तो टू जी स्पेक्ट्रम के घोटालेबाजों पर न तो मुकदमा चल पाता और न ही घोटालेबाज तिहाड़ जेल जा पाते। अगर टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले में कारपोरेटेड सरगनाओं और राजनीतिज्ञों को सजा नहीं हुई तो फिर देश की जनता की गाढ़ी कमाई आगे भी लुटती रहेगी।

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