THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Sunday, March 24, 2013

बीच बहस में आरोप-प्रत्यारोप

बीच बहस में आरोप-प्रत्यारोप


… अल्प विराम के बाद आज सुबह साथी अभिनव सिन्हा का निम्न आलेख मिला। सोचा इसे पोस्ट न किया जाये क्योंकि हस्तक्षेप के अलावा कहाँ क्या चल रहा है यह हमारा अधिकार क्षेत्र नहीं है और न ही हमारी इसमें कोई दिलचस्पी है।… लेकिन फिर बाकी मेल देखे तो हमारे सम्मानित लेखक पलाश विश्वास जी के दो मेल भी इनबॉक्स में थे। एक किन्हीं कथित अंबेडकरवादी चिंतक का पत्र था कि वह इस बहस में अरविन्द स्मृति संगोष्ठी के निष्कर्षों पर किताब प्रकाशित कर रहे हैं कि मार्क्सवादी कैसे हिन्दू साम्राज्यवादियों से ज्यादा खतरनाक हैं। तथा 33 वर्ष बंगाल में रहने तथा हिंदू साम्राज्यवाद से मूलनिवासी बहुजनों की मुक्ति के लिए 50 से अधिक किताबें लिखने के कारण वे मार्क्सवादियों के चरित्र को बेहतर जानते हैं और हिंदू साम्राज्यवाद के दूसरे पोषकों- गाँधीवादी और राष्ट्रवादियों- की तुलना में बहुजन मुक्ति की राह में मार्क्सवादी ज्यादा बड़ी बाधा हैं।

चूँकि किताबें छापना उन चिंतक महोदय का धंधा है इसलिये उनका पत्र विज्ञापन की श्रेणी में आता है। लेकिन पलाश जी का दूसरा मेल हाशिया की कॉपी पेस्ट था। जाहिर है कि अब हाशिया की पोस्ट और अभिनव सिन्हा के उस पोस्ट के उत्तर को एक साथ पोस्ट करने में कोई दुविधा नहीं है। हम यहाँ एक बात साफ कर दें कि हमारी श्रद्धा व्यक्तिगत टिप्पणियों और व्यक्तिगत हमलों में कतई नहीं है चूँकि किसी भी विमर्श में निजी हमले मूल बहस के साथ अन्याय करते हैं। हम दोनों पक्षों से सिर्फ निवेदन कर सकते हैं कि बहस की मर्यादा कायम रखें। … और अगर बहस इस बात पर केन्द्रित रहे कि संगोष्ठी का एप्रोच पेपर क्या था और जो निष्कर्ष निकले उन पर दोनों पक्षों का क्या स्टैण्ड है। बहरहाल पहले हाशिया का कॉपी पेस्ट भी पलाश जी के मेल से ही कॉपी करके दे रहे हैं (साथी रेयाज उल हक के ब्लॉग से नहीं) उसके बाद अभिनव सिन्हा का आलेख ( दोनों ही बिना किसी काट-छाँट के, हालांकि दोनों ही आरोप-प्रत्यारोप हैं और हमें नहीं लगता कि इससे बहस में कोई सहयोग मिलेगा।)  

-    सम्पादक, हस्तक्षेप   

 http://hastakshep.com/?p=30859

हाशिया की पोस्ट ( पलाशजी के मेल से )

आप इस वीडियो को देखिए. पिछले कई दिनों से चंडीगढ़ सम्मेलन के आयोजकों की तरफ से इसी वीडियो को लेकर दावे किए जा रहे थे. मेहरबानी करके इसे पूरा देखें. और अगर आप खोज सकें तो खोजें कि कहां आनंद तेलतुंबड़े ने अपनी बातें वापस ली हैं, कहां उन्होंने उससे कुछ अलग कहा है, जो वे पिछले लगभग दो दशकों से लिखते-कहते आए हैं. कहां उनकी बातों में तालमेल की कमी और असंगति लग रही है. अगर आप बता सकें तो जरूर बताएं. चूंकि वीडियो में सारी बातें आ गई हैं, इसलिए हाशिया को अलग से इस पर टिप्पणी करने की जरूरत महसूस नहीं हो रही है.

लेकिन कुछ दूसरी बातों पर कुछ टिप्पणी किए जाने की जरूरत है. अभिनव सिन्हा ने एक पोस्टमें और फिर टिप्पणियों के एक लंबे सिलसिले में बार बार यह कहा है कि हाशिया ने एक मुहिम चला रखी है और यहां साजिश रची जा रही है. हाशिया पर इस मामले पर यह सिर्फ दूसरी पोस्ट है. क्या सिर्फ एक अकेली पोस्ट को  मुहिम और साजिश मानना जायज है? हां, हाशिया ने दूसरे पक्ष या पक्षों को प्रस्तुत नहीं किया, इसलिए नहीं किया क्योंकि दूसरे पक्ष एक दूसरी वेबसाइट पर पहले से ही आ रहे थे और हाशिया को उन सबको कट-पेस्ट करने की जरूरत महसूस नहीं हुई. लेकिन हाशिया ने उन्हें नजरअंदाज भी नहीं किया और अपनी अब तक की अकेली पोस्ट में इस बहस की शुरुआती और एक मुख्य पोस्ट का लिंक भी जोड़ा था, ताकि पाठक वहां तक पहुंच सकें और दूसरे पक्ष को जान सकें. वैसे हाशिया हर मामले में इसे जरूरी नहीं समझता कि वह दोनों पक्षों को पेश करे. हाशिया की रुचि इसमें है भी नहीं, खास कर किसी ऐसे मामले में तो और भी नहीं, जब एक पक्ष की सारी और पूरी बातें पहले से ही कहीं और प्रकाशित हो रही हों. इनका एक लिंक दे दिया जाना ही काफी होगा, जैसा कि इस मामले में भी किया गया.

हाशिया का मानना है कि बाबासाहेब अंबेडकर और जाति विरोधी संघर्षों के बाकी नायकों को देखने के नजरिए में फर्क असल में भारतीय समाज और दुनिया की व्यवस्थाओं को देखने और उन्हें बदलने के संघर्ष में फर्क से पैदा होता है. यह फर्क इससे भी आता है कि आप मार्क्सवाद को कैसे लेते हैं, उसे अपने व्यवहार में कैसे उतारते हैं. तेलतुंबड़े इस समाज को जिस तरह से देखते हैं और उसे बदलने की चाहत रखते हैं, दरअसल उनकी वही जमीन उन्हें डॉ. अंबेडकर, फुले और दूसरे नायकों के योगदानों को अहमियत देने और उनके विजन को क्रांतिकारी संघर्षों से जोड़ने की जरूरत बताती है ('अंबेडकरवाद' और मार्क्सवाद में समन्वय की बड़बोली बातों और तेलतुंबड़े की इस बात में एक मजबूत और साफ फर्क है, इसे ध्यान में रखा जाना चाहिए). हाशिया मनमाने तरीके से, जान बूझ कर और जबरदस्ती अपनी स्थापनाएं, विचार और नतीजे दूसरों के सिर पर, यहां तेलतुंबड़े के ऊपर, थोपने की निंदा करता है.

यह अभिनव के बचकाने 'मार्क्सवादी' अहंकार की ही एक और मिसाल है कि बार बार उन्होंनेहाशिया को यह वीडियो पोस्ट करने की चुनौती दी. हाशिया  पर यह वीडियो पोस्ट किया जा रहा है और ऐसे मौके पर हाशिया की मंशा एकाध सुझाव देने की है. पहला तो यह कि आप ऐसी हिंदी में न बोलें, जिसको समझने के लिए उसका फिर से हिंदी में अनुवाद करने की जरूरत पड़े. और दूसरी यह, कि चुनौतियां देने से पहले सोच लें कि आप जिस कंटेंट के बूते चुनौती दे रहे हैं, वो पुख्ता हो. यह वीडियो आपके दावों की पुष्टि नहीं करता. तीसरी बात, आनंद ने सही कहा है कि आपके पूरे गिरोह से ब्राह्मणवादी जातीय नफरत की बू आती है. यह बात हाशिया की पिछली पोस्ट में अनिता भारती के कमेंट्स पर आपकी खुद की टिप्पणियों से सही साबित होती है. बेहतर होगा कि आप यह बेवकूफी भरी हरकतें बंद कर दें. आप महान 'मार्क्सवादी' होंगे, 'क्रांतिकारी' भी होंगे, 'दार्शनिक' और 'कार्यकर्ता' और 'विचारक' भी हो सकते हैं, लेकिन ऐसी घटिया और बेहूदगी भरी टिप्पणियां बर्दाश्त नहीं की जाएंगी.

और अंत में: अगर आप इसे मुहिम मान रहे हैं, तो हाशिया को इससे भी कोई गुरेज नहीं है.

 

…………………………………………………….

अभिनव सिन्हा का आलेख

'हाशिया' को किस बात का डर है?

बहस के ठोस मुद्दों पर अपनी बात कहें और उन्‍हें उद्धरणों और प्रमाणों से पुष्‍ट करें। लेबल चस्‍पां कर देने और गालियां देने से कोई बात सही सिद्ध नहीं होती।

-अभिनव

'बात निकलेगी तो फिर दूर तक जायेगी…' – ग़ालिब

रेयाजुल हक़ के 'हाशिया' ब्‍लॉग ने हमारे खि़लाफ अपनी कुत्‍साप्रचार और गाली-गलौच की मुहिम जारी रखी है। बहस को आगे बढ़ाने से उनका डर इसी बात से दिखलायी पड़ रहा है कि वे हमारी टिप्‍पणियों को अपने ब्‍लॉग पर ब्‍लॉक कर रहे हैं और कह रहे हैं कि हमारी पोस्‍ट्स 'बेहूदा' हैं, लेकिन उन्‍होंने हमारी पोस्‍ट्स को उद्धृत करते हुए बताया नहीं कि उसमें क्‍या 'बेहूदा' है। हमने 'हाशिया' पर डाली एक-एक पोस्‍ट में उनके द्वारा चलायी गयी एकतरफा मुहिम का जवाब दिया है, और कुछ अन्‍य अम्‍बेडकरवादियों द्वारा हम पर निजी आक्षेप और टिप्‍पणियों का जवाब दिया है। एक बार फिर उन्‍होंने उल्‍टा चोर कोतवाल को डांटे वाली कहावत को चरितार्थ कर दिया है। उनके ब्‍लॉग पर उनके समेत तमाम अम्‍बेडकरवादी लगातार हमारे खिलाफ गाली-गलौच कर रहे हैं। उन्‍हें वे पोस्‍ट शालीनतापूर्ण लगती हैं! लेकिन अगर हम उन निजी और व्‍यक्तिगत कुत्‍साप्रचारों का जवाब नहीं देते, और आग्रह करते हैं कि आप बहस के मूल मुद्दों पर बात रखें, तो यह उन्‍हें 'बेहूदा' लगता है! यानी रेयाजुल हक़ उम्‍मीद करते हैं कि हम बस उनके समर्थन का कोरस गायें, और उनके गाली-गलौच को स्‍वीकार कर लें; अगर हम उसका जवाब देते हैं, और वह भी बिना किसी अपशब्‍द का इस्‍तेमाल किये हुए, तो हम पर नयी तोहमतें लगा दी जाती हैं। उन्‍होंने अपनी नयी पोस्‍ट में हम पर फिर से गालियों की बौछार कर दी है। उन्‍होंने हमारी चुनौती को स्‍वीकार करते हुए आनन्‍द तेलतुंबड़े और हमारे बीच की बहस के वीडियो के लिंक को डाल तो दिया है (क्‍योंकि ऐसा न करने से उनकी भद पिटती) लेकिन उस वीडियो बहस की अंतर्वस्‍तु पर कुछ भी कहने की बजाय हमारे बारे में ऊल-जुलूल बकना शुरू कर दिया है। यह दावा कर दिया है कि तेलतुंबड़े जी के बारे में हमारा दावा गलत है और वीडियो भी यही साबित करता है। लेकिन कहीं भी उन्‍होंने तेलतुंबड़े के किसी वक्‍तव्‍य को या हमारे किसी बयान को उद्धृत नहीं किया है, बस हमारे गलत होने का फैसला सुना दिया है। हमने निम्‍न टिप्‍पणी उसके नीचे ब्‍लॉग पर डालने का प्रयास किया, लेकिन हमारी पोस्‍ट्स को ब्‍लॉक कर दिया गया है, इसलिए हम नीचे वह पूरी पोस्‍ट डाल रहे हैं:

रेयाजुल हक़ बिना वजह इतना तिलमिला रहे हैं। शैली और भाषा पर वे ही लोग अटकते हैंजिनके पास जवाब देने के लिए कुछ नहीं होता। वह शिकायत कर रहे हैं कि हमारी भाषा जटिल हैहम क्‍या कह सकते हैंयही कह सकते हैं कि उन्‍हें जो-जो समझ नहीं आया, वह हमारे पास भेज दें, हम उन नुक्‍तों को और स्‍पष्‍ट कर देंगे। लेकिन यह दलील जवाब देने से बचने के लिए आड़ के रूप में इस्‍तेमाल की गयी है।

दूसरी बात, आपने खुद स्‍पष्‍ट ही कर दिया है कि आप दोनों पक्षों की बात को रखना ज़रूरी नहीं समझते हैंक्‍योंकि एक दूसरे ब्‍लॉग (हस्‍तक्षेप पर) पर हमारा पक्ष प्रकट हो रहा है। शायद आपने ठीक से उस ब्‍लॉग 'हस्‍तक्षेप' को पढ़ा नहीं है। उस पर सिर्फ हमारा पक्ष नहीं हैदोनों पक्ष हैं। आपने अपने ब्‍लॉग पर रिपब्लिकन पैंथर्स का जो बयान छापा हैवह 'हस्‍तक्षेपपर भी मौजूद हैतेलतुंबड़े जी का बयान भी 'हस्‍तक्षेप' पर मौजूद है, और साथ ही हमारा जवाब भी छापा गया है।

तीसरी बात, आपने वीडियो अपलोड करके बहुत अच्‍छा किया है। लेकिन आपने वीडियो में आनन्‍द तेलतुंबड़े के वक्‍तव्‍य, उसकी आलोचना और फिर उनके द्वारा रखे गये दूसरे वक्‍तव्‍य के बारे में कुछ भी नहीं कहा है। वीडियो में मौजूद बहस के ठोस तर्कों (चाहे वे हमारी ओर से आये हों या तेलतुंबड़े जी की तरफ से) का जि़क्र किये बिना बस तोहमतें लगा दी हैं। हमें लगता है कि बेहतर होता कि आप वीडियो की अन्‍तर्वस्‍तु के बारे में कुछ बोलते। आगे हम इस पूरी बहस का ट्रांस्क्रिप्‍ट प्रकाशित करेंगे, ताकि जो लोग पूरा वीडियो देखने का धैर्य नहीं रखते हैं, वे वीडियो के साथ-साथ तेलतुंबड़े जी का पूरा भाषण और उसका जवाब और फिर तेलतुंबड़े जी का दूसरा वक्‍तव्‍य खुद देख सकें।

आपने बस लिख दिया है कि यह वीडियो हमारे दावों की पुष्टि नहीं करता। तो इन प्रश्‍नों का उत्‍तर दें:

1- आनन्‍द तेलतुंबड़े अपने पहले भाषण में हमें जातिवादी, ब्राह्मणवादी आदि करार देते हुए कहते हैं कि हमें पता होना चाहिए कि अंबेडकर का दर्शन जॉन डेवी के दर्शन से करीबी रखता था और डेवी एक वैज्ञानिक पद्धति देते हैं, जिससे मार्क्‍सवाद का कोई अंतरविरोध नहीं है। वे डेवी की इस पद्धति का बचाव करते हैं और उसे प्रगतिशील और वैज्ञानिक बताते हैं। बाद में जब डेवी और अंबेडकर की पद्धतिउसके वर्ग दृष्टिकोण और राजनीति की आलोचना हमारी तरफ से पेश की जाती है तो तेलतुंबड़े क्‍या कहते हैं? अब वे कहते हैं कि वे डेवी की विचारधारा को नहीं मानते और न ही वे अंबेडकर का बचाव कर रहे हैं;इससे पहले वे खुद मान चुके थे कि अंबेडकर का पूरा बौद्धिक जीवन (जैसा कि अंबेडकर ने ही कहा था) डेवी के प्रति ऋणी था। वे कहते हैं कि उन्‍हें गलत समझ लिया गया (!) कि वे डेवी का बचाव कर रहे हैं, जबकि आप पहले वक्‍तव्‍य में स्‍पष्‍ट रूप में डेवी का बचाव करते हुए तेलतुंबड़े का देख सकते हैं।

2- पहले वक्‍तव्‍य में तेलतुंबड़े बोलते हैं कि हमारा मुख्‍य पेपर जातिवादी है। लेकिन अपनी आलोचना के बाद दूसरे वक्‍तव्‍य में वे बोलते हैं कि इसकी अधिकांश चीज़ों से वे सहमत हैं। और ज्‍यादा लंबी बात न रखते हुए, उन्‍होंने अधिकांश मुद्दों पर सहमति जतायी। यह वीडियो में स्‍पष्‍ट रूप से देखा जा सकता है। और बाद में जाकर उन्‍होंने एक बयान जारी कर दिया कि वे तो चंडीगढ़ की संगोष्‍ठी के संयोजकों को जबर्दस्‍त डांट लगाकर आये हैं! मुझे लगता कि अहंकार इसे कहते हैं, अपने तर्कों को पूरे ज़ोर के साथ रखने को नहीं, क्‍योंकि उस परिभाषा से तो आप घमण्‍डी कहलायेंगे। लेकिन रेयाजुल हक से हम वीडियो की अन्‍तर्वस्‍तु पर टिप्‍पणी करने की कोई उम्‍मीद नहीं कर सकते हैं, क्‍योंकि उन्‍होंने बहस से पहले ही तय कर रखा है कि कौन सही और कौन गलत है, और हम पर एक फैसला पास कर रखा है।

3- आपको यह बताना चाहिए कि हमने कौन-सी बात तेलतुंबड़े जी पर थोप दी है। एक हिन्‍दी दैनिक ने उनके एक कथन को सन्‍दर्भ से काटकर प्रकाशित कर दिया ("अम्‍बेडकर के सारे प्रयोग एक महान विफलता में समाप्‍त हुए")। हमने न तो यह कथन कहीं खुद भेजा और न ही प्रकाशित किया (हालांकि तेलतुंबड़े ने यह कहा था)। इसका आरोप हम पर नहीं लगाया जा सकता है। लेकिन यह तो सच है कि तेलतुंबड़े जी ने एक दूसरे परिप्रेक्ष्‍य में यह बात बोली थी। लेकिन उन्‍होंने इस विफलता का कारण अम्‍बेडकर के विचारों को नहीं बताया था। उनका मानना था कि अम्‍बेडकर एक वैज्ञानिक मेथड का अनुसरण करते हुए प्रयोग कर रहे थे, और उनका असफल होना एक वैज्ञानिक पद्धति की आत्‍मशुद्धि का अंग माना जाना चाहिए। हमने अपने जवाब में कहा कि अम्‍बेडकर के प्रयोगों की विफलता-सफलता के मूल को उनकी डेवीवादी पद्धति में और उनकी वर्ग पक्षधरता, विश्‍व दृष्टिकोण और दर्शन में ही ढूंढा जाना चाहिए। हर पद्धति में एक अप्रोच अन्‍तर्निहित होता है। कोई भी पद्धति वर्गेतर, विचारधारा से इतर, राजनीति से इतर नहीं होती, जैसा कि डेवी अपनी पद्धति के बारे में मानते थे, और अम्‍बेडकर भी मानते थे। हमने स्‍पष्‍ट किया कि यही डेवी के दर्शन का मूल है, जो राज्‍य, राजनीति और दर्शन को वर्गेतर मानता है। यहीं से राज्‍य के 'अफर्मेटिव एक्‍शन' का सिद्धांत पैदा होता है। हमने जो जवाब दिया उसमें हमने डेवी/अम्‍बेडकर के पूरे दर्शन और राजनीति की आलोचना रखीजिस पर बाद में तेलतुंबड़े जी ने खुद कहा कि वे सहमत हैंऔर वे डेवी का बचाव नहीं कर रहे हैंजबकि पहले वक्‍तव्‍य मेंआप स्‍वयं वीडियो में देख सकते हैंकि वे डेवी की पद्धति का बचाव कर रहे थे। बाद में उन्‍होंने अपनी तमाम शुरुआती बातों को बिल्‍कुल बदल दिया है।

4- रेयाजुल हक को वीडियो से कथनों को उद्धृत करते हुए अपने दावों को पुष्‍ट करना चाहिए। हमने ऊपर स्‍पष्‍ट रूप में रखा है कि दोनों वक्‍तव्‍यों में तेलतुंबड़े की पोजीशन बिल्‍कुल बदल गयी है। अगर हम यह गलत कह रहे हैंतो आप भी वीडियो से कोट करें। वीडियो पोस्‍ट करने की चुनौती को स्‍वीकारने से (वह तो आपको करना ही था) आपकी बात सही सिद्ध नहीं हो जाती। आपको वीडियो की अन्‍तर्वस्‍तु के बारे में कुछ कहना चाहिएकि हमने कहां पर अपनी बात बदलीहमने क्या आलोचना रखी जो कि गलत हैक्‍या तेलतुंबड़े जी ने अपनी बातें बदली हैं ?

लेकिन रेयाजुल हक कुछ भी ठोस कहने की बजायगाली-गलौच पर उतर आये हैं। हम फिर से उनसे आग्रह करेंगे कि इतना तिलमिलायें नहीं। बहस के बुनियादी एथिक्‍स का पालन करें। हमारी आपत्ति इस बात पर नहीं है कि वे कठोर भाषा इस्‍तेमाल करते हैं। हम स्‍वयं कठोर और खरी भाषा के पक्षधर हैं। लेकिन लोगों को कुछ नाम पुकार देने से आपका तर्क कहीं पुष्‍ट नहीं होता, रेयाजुल जी। आप हमारी टिप्‍पणियों के बेहूदा, बेवकूफी भरा होने के बारे में काफी कुछ बोल चुके हैं। लेकिन बेवकूफी और बेहूदगी की मिसाल तो आपने इस पोस्‍ट में पेश की है। आपको अपशब्‍द और ऊल-जुलूल बात करने की बजाय पूरी बहस के वास्‍तविक मुद्दों पर अपनी बात रखनी चाहिए।

आप अगर वीडियो की अन्‍तर्वस्‍तु से तेलतुंबड़े जी के पहले भाषण और दूसरे भाषण की ठोस बातों को उद्धृत करके, हमारी आलोचना को उद्धृत करके अपने तर्कों को पुष्‍ट करें तो बेहतर होगा। हमने ऊपर कुछ ठोस उदाहरण दिये हैं कि तेलतुंबड़े जी ने कहां और कैसे यू-टर्न मारा है। आप भी यह प्रदर्शित कर सकते हैं, डर किस बात का है। सिर्फ दावे न करें, उन्‍हें प्रमाणों से पुष्‍ट करें। और अगर आप ईमानदार हैं तो अपनी टिप्‍पणियों के साथ दोनों पक्षों को छापेंजैसा कि 'हस्‍तक्षेपने किया है। केवल एक पक्ष को छापकर आप स्‍वयं ही अपने इरादों को उघाड़कर सामने रख रहे हैं। और अब तो आपने हमारे पोस्‍ट्स को भी 'हाशिया' पर तरह-तरह के आरोप लगाकर ब्‍लॉक कर दिया है। इसी से पता चलता है कि आपका असली मकसद क्‍या है। हमारे बारे में आपने पहले ही निर्णय पास कर रखा हैऔर अब उसे सीधी या टेढ़ी उंगली से किसी भी तरह से सिद्ध करने पर आमादा हैं। इसे बहस नहीं कहा जा सकता है। इसे ट्रायल कहा जा सकता है। इसलिए बेहतर होगा कि ट्रायल न चलायें और दोनों पक्षों को प्रकाशित करेंऔर अपने पक्ष को तो आप रखेंगे ही। आपको कोई नाम देने में हमारी कोई दिलचस्‍पी नहीं है। हम बहस को रचनात्‍मक तरीके से आगे बढ़ाने के पक्षधर हैं। अगर आप भी ऐसा ही चाहते हैं, तो नाम पुकारना बंद करें। ठोस तर्कों और ठोस बातों का ठोस जवाब दें। भाषा और शैली के जटिल होने के आरोप की आड़ में छिपने की कोशिश न करें। वह भी स्‍पष्‍ट कर दें कि आपकी क्‍या समझ में नहीं आया, उसका अनुवाद करने की ज़हमत आपको नहीं उठानी पड़ेगी, हम आपको अनुवाद करके भेज देंगे।

बहस में सन्दर्भ के लिये इन्हें भी पढ़ें –

'हस्‍तक्षेप' पर षड्यन्‍त्र का आरोप लगाना वैसा है कि 'उल्‍टा चोर कोतवाल को डांटे'

यह तेलतुंबड़े के खिलाफ हस्तक्षेप और तथाकथित मार्क्सवादियों का षडयंत्र है !

भारतीय बहुजन आन्दोलन के निर्विवाद नेता अंबेडकर ही हैं

भावनात्‍मक कार्ड खेलकर आप तर्क और विज्ञान को तिलां‍जलि नहीं दे सकते

कुत्‍सा प्रचार और प्रति-कुत्‍सा प्रचार की बजाय एक अच्‍छी बहस को मूल मुद्दों पर ही केंद्रित रखा जाय

Reply of Abhinav Sinha on Dr. Teltumbde

तथाकथित मार्क्सवादियों का रूढ़िवादी और ब्राह्मणवादी रवैया

हाँडॉ. अम्‍बेडकर के पास दलित मुक्ति की कोई परियोजना नहीं थी

अम्‍बेडकरवादी उपचार से दलितों को न तो कुछ मिला है, और न ही मिले

अगर लोकतन्त्र और धर्मनिरपेक्षता में आस्था हैं तो अंबेडकर हर मायने में प्रासंगिक हैं

हिन्दू राष्ट्र का संकट माथे पर है और वामपंथी अंबेडकर की एक बार फिर हत्या करना चाहते हैं!

No comments:

Post a Comment

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...