THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

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Monday, January 20, 2014

माकपाई नेतृत्व पर ऊंची जातियों के वर्चस्व के खिलाफ बंगाल में बगावत तेज ‘উচ্চবর্ণ’ সিপিএম নেতৃত্বের বিরুদ্ধে বিদ্রোহ দাবানল প্রায়

माकपाई नेतृत्व पर ऊंची जातियों के वर्चस्व के खिलाफ बंगाल में बगावत तेज


'উচ্চবর্ণ' সিপিএম নেতৃত্বের বিরুদ্ধে বিদ্রোহ দাবানল প্রায়


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

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भरतीय ही नहीं,विश्वभर में कम्युनिस्ट आंदलोन में विचारधारा पर सहमति असहमति के मुद्दे पर पार्टी का विभाजन आम है।भारत में ऐसे ही मतभेद की वजह से क्मुनिस्ट पार्टी दो फाड़ हो गयी और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का जनम हो गया। साठ के दशक में कामरेड चारु मजुमदार के दस्तावेजों के तहत नक्सल आंदोलन शुरु हुआ जो अब अनेक धड़ों में विभाजित है। हाल में माकपा की जेएनयू शाखा ने भी विचाधारात्मक मुद्दे पर प्रसेनजीत बोस के नेतृत्व में बगावत कर दी। बंगाल में समीर पुतुतुंडु की अगुवाई में पीडीएस पहले से है।


संगठनात्मक स्तर पर खासकर माकपा बहुत संगठित पार्टी रही है। खासकर बंगाल में पैंतीस साल के वामराज में उसके कैडरतंत्र की देश विदेश में धूम रही है।कामरेड ज्योति बसु ने ऐतिहीसक भूल मानने के बावजूद पार्टी के फैसले के मुताबिक प्रधानमंत्री पद ठुकरा दिया। हाल में लोकसभाध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने बारत अमेरिका परमाणु संधि पर पार्टी फैसले के खिलाफ जाकर बतौर लोकसभाध्यक्ष अपनी भूमिका निभायी तो उन्हें पार्टी ने बाहर का दरवाजा दिखा दिया। फिर बंगाल के नेतृत्व की जबर्दस्त जोर आजमाइश के बावजूद अभी उनकी पार्टी में वापसी हो नहीं सकी है।


लेकिन केरल में विजयन अच्युत्यानंदन विवाद के बाद दोनों को पार्टी में बनाये रखने के बाद से पार्टी संगठन पर माकपा नेतृत्व का नियंत्रण लगता है कि खत्म ही हो गया है।जिसे जो मन हो रहा है,सार्वजनिक मंच से दूसरी बुर्जुआ पार्टी के आम रिवाज की तर्ज पर बोल रहा है।याद करें कि बंगाल के दिवंगत कामरेड सुभाष चक्रवर्ती अपने विवादास्पद वक्तव्यों के लिए कितनी बार अनुशासित किये गये।


बंगाल में तख्ता पलट के बाद और केरल में विजयन अच्युत्यानंदन प्रकरण के बाद पार्टी नेतृत्व का अंकुश ढीला पड़ गया है। कामरेड महासचिव प्रकाश कारत ने परेशान होकर सोशल मीडिया पर मतामत को रोकने के लिए फतवा भी जारी कर दिया कि पार्टीजन सोशल नेटवर्किंग का कोई खाता न रखें। बंगाल में माकपा नेता सुजन चक्रवर्ती और ऋतवर्त जैसे दिग्गज कामरेड बदस्तूर फेसबुक परबने हुए हैं।


पार्टी नेतृत्व की हुक्म उदुली का सिलसिला हालांकि जनाधार वापस लेने की मुहिम से शुरु हुई। बंगाल राज्य व जिला नेतृत्व में फेरबदल की मांग सभी स्तरों से उठायी गयी,जो सिरे से खारिज करदी गयी। किसान सभा के राष्ट्रीय नेता रज्जाक मोल्ला ने अखबारों में बाकायदा बयान देकर कहा कि माकपा नेतृत्व पर ऊंची जातियों का वर्चस्व है।उनके मुताबिक जब तक अनुसूचितों,पिछड़ों और अल्पसंख्यक समुदायों को संगठन के सभी स्तरो पर नेतृत्व में लाया नहीं जाता,जनाधार वापस नहीं होगा। लेकिन बंगाल में सांगठनिक चुनावों में नेतृत्व के ढांचे में कोई बुनियादी परिवर्तन हुआ नहीं।जबकि रज्जाकमोल्ला का अभियान जारी है।


वंचित समुदायों की ओर से वामपंथी विचारधारा और आंदोलन पर जाति वर्चस्व और वर्ण वर्चस्व के आरोप लगते रहे हैं।बंगाल में चूंकि बाकी दलों में भी हालत कमोबेश एक सी है। इसलिए ऐसे आरोप को कामरेड नेतृत्व ने कभी तवज्जो नहीं दी है।इसी बीच बंगाल में पैंतीस साल के वाम शासन का सबसे बड़ा आधार अल्पसंख्यक वोट बैंक से ममता बनर्जी ने कामरेडों को बेदखल कर दिया है।कामरेड मोल्ला बंगाल में सबसे ऴजनदार अल्पसंख्यक कामरेड हैं। लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हुई और न सार्वजनिक मंचों से पार्टी परवर्ण वर्चस्व और जाति वर्चस्व के आरोप लगाने के लिए उन्हें दिवंगत कामरेड सुभाष चक्रवर्ती की तरह अनुशासित किया जा रहा है।


इस बीच यह विवाद दावानल की तरह भड़कने लगा है। पार्टी संगठन पर ऊंची जातियों के वर्चस्व के खिलाफ नंदीग्राम जनसंहार मामले में मुख्य अभियुक्त पूर्व सांसद लक्ष्मण सेठ भी मुखर हो गये हैं।अल्पसंख्यकों की तरह अनुसूचितों के वोट बैंक से भी ममता दीदी ने कामरेडों को बेदखलकर दिया।सत्ता में रहते हुए जो लोग वर्ण व्यवस्था के मुताबिक सत्ता सुख बोग रहे थे,वे अब एक एक करके मुकर होने लगे हैं।


लक्ष्मण सेठ के मुताबिक वंचित समुदाय से होने की वजह से ही इस्तेमाल करके पार्टी ने उनको बलि का बकरा बना दिया है।इसके साथ ही उन्होंने चेतावनी भी देदी है कि अगर पार्टी नेतृत्व पर ऊंची जातियों का वर्चस्व इसीतरह बना रहेगा तो जनाधार तो वापस होगा ही नहीं,राजनीति की  मुख्यधारा में पार्टी की वापसी का सपना भी कभी पूरा नही होगा।उन्होंने माकपा के मौजूदा संकट के लिए पार्टी नेतृत्व को ही जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि तृणमूल कांग्रेस की अगुवाई में नंदी ग्राम और सिंगुर से शुरु भूमि आंदोलन का मुकाबला करने में पार्टी नेतृत्व बुरीतरह नाकाम रहा है।


गौरतलब है कि  प्रकाश कारत को शायद अब यह समझ में नहीं रहा है कि जनसंवाद के जरिये पार्टी के जनाधार को विस्तार दें या बंगाल और केरल में कामरेडों को अनुशासित रखें। जो लोग आप प्रसंग में कामरेड महासचिव के बयानों से उत्साहित होकर सोच रहे थे कियुवाओं की समस्याओं को समझने और उनसे संवाद करने को उन्होंने जरूरी नहीं समझा,वे शायद गलत हैं।आप की टीम में सूचना तकनीक के विशेषज्ञ बेहतरीन लोग हैं और उनके दिल्ली करिश्मे से उत्साहित होकर कारत ने पार्टीजनों को आप  के तौर तरीके से सीखने का सबक दिया,यह बहुत पुराना किस्सा नहीं है।लेकिन अब उन्होंने कोच्चिं से बयान जारी करके फतवा दिया है कि सोशल मीडिया में अपनी राय दर्ज कराना अनुशासन भंग में शामिल है।यह ममला संगीन है क्योंकि लोकसभा चुनाव के पहले माकपा अपने कैडरों को उत्साहित करने के लिए तृणमूल कांग्रेस सरकार के खिलाफ डायरेक्ट एक्शन (सीधा हमला) करने की घोषणा की है। इस नये फतवे से कैडर कितने उत्साहित होंगे ,इसपर ही सवालिया निशान लग गया है।हालांकि माकपाई हमेशा की तरह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन लगाने से अब भी बच रहे हैं।


जैसा कि हमने पहले ही लिखा है कि वामदलों को आप के उत्थान में नमोमय भारत निर्माण में उतनी दिलचस्पी नहीं है जितना कि ममता बनर्जी को हाशिये पर रखकर राष्ट्रीय राजनीति में अपनी प्रासंगिकता बनाये रखने और खासकर बंगाल और केरल में अपना वजूद कायम रखने की है।हम यह भी लिख चुके है ंकि दीदी एकझटके के साथ एक दो सीटें आप को बंगाल में देकर माकपा का खेल बिगाड़  सकती हैं। मोदी का समर्थन करने पर उनका वोट बैंक समीकरण गड़बड़ा सकता है  लेकिन आप से समझौता करने पर ऐसा कोई खतरा नहीं है।


आप ने कारत का बयान आते ही वामशासन में वाम के बंगाल में किये कराये के मद्देनजर वाम के साथ तीसरे मोर्चे के गठन की संभावना सिरे से खारिज कर दिया तो दीदी अब आप की तारीफ करने लगी हैं।यानी तीसरे मोर्चे की वाम परियोजना में मुलायम सिंह के अलावा कोई और वामपक्ष में नहीं दीख रहा है।


कांग्रेस की हालत पतली देखकर पहले ही मुलायम भाजपा की तारीफ कर चुके हैं और मुजफ्फरनगर दंगों के बाद अल्पसंख्यकों में उनकी साख खराब हो गयी है,इसपर तुर्रा यह कि कांग्रेस बहुजन समाज पार्टी को उत्तर प्रदेश में  पूरे पचास सीटें देकर उससे महाराष्ट्र,पंजाब और हरियाणा मे ंगठबंधन करने जा रही है।


बिहार में भी कांग्रेस के साथ राजद और लोजप के गठबंदन के बाद नीतीश कुमार के उस गठबंधन में शामिल होने की संबावना नहीं है। ऐसे में मुलायम और नीतीश के सामने सारे दूसरे विकल्प खुले हैं,ऐसे विकल्प जो वाम दलों को मंजूर होगा नहीं।


राष्ट्रीय राजनीति में एकदम अकेले हो जाने के सदमे में लगता है कि कामरेड महासचिव को आप की तारीफ में वाम कार्यकर्ताओं को दी गयी नसीहत याद नहीं है।अब वे फेसबुक,ट्विटर और ब्लाग के खाते खोलकर अपनी राय देने वाले माकपाइयों को अनुशासित करने लगे हैं।


बंगाल में सुजन चक्रवर्ती और ऋतव्रत जैसे तमाम खास कार्यकर्ता सोशल नेटवर्किंग में बेहद सक्रिय हैं। कारत उन सभी पर अंकुश लगायेंगे तो सोशल नेटवर्किंग के जरिये आप की तरह वामदलों का जनादार बनेगा कैसे,इसका कोई खुलासा लेकिनकामरेड ने नहीं किया है।धर्म कर्म की आजादीकी तरह लगता है कि केरल की कट्टर पार्टी लाइन से बाहर निकलने में कामरेड को अब भी दिक्कत हो रही है।गौरतलब है कि बंगाल में माकपाइयों को जनता से जुड़ने के लिए धर्म कर्म की इजाजत दे दी गयी है लेकिन केरल में नहीं।


गौरतलब है कि करात ने अगरतला में  पहलीबार हुई माकपा की केंद्रीय समिति की बैठक के दौरान संवाददाताओं से कहा, विधानसभा चुनाव में आप कांग्रेस और भाजपा के सामने एक सशक्त विकल्प के रूप में उभरी है। हमें आप को समर्थन देने से पहले उनके राजनीतिक कार्यक्रमों, नीतियों और योजनाओं को देखना है।इसके अलावा मीडिया में उन्होंने आप को वाम विरासत वाली पार्टी भी कह दिया और जनाधार बनाने के लिए कैडरों से आप से सीखने की सलाह भी दे दी।बाद में हालांकि उन्होने अगरतला से कोच्चिं पहुंचकर यह भी कह दिया कि आम आदमी पार्टी बुर्जुआ दलों का विकल्प बन सकती है, लेकिन यह वामपंथी दलों का नहीं। उन्होंने कहा कि 28 दिसंबर को दिल्ली में अल्पमत सरकार बनाने वाली आप पर अभी भी कोई राय बनाना बहुत जल्दबाजी है। करात ने यहां मीडिया से कहा,आप ने दिल्ली में अच्छा प्रदर्शन किया और यह एक महत्वपूर्ण ताकत है, लेकिन मैं अन्य राज्यों के लिए निश्चिंत नहीं हूं।


उन्होंने कहा,वे बुर्जुआ दलों के लिए विकल्प हो सकते हैं, वामपंथी दलों के नहीं। यह अच्छी बात है कि उन्होंने मध्य वर्ग से सहयोग लिया है। लेकिन हम उनसे उनके कार्यक्रमों और नीतियों का इंतजार कर रहे हैं। करात ने कहा कि महानगरों में माकपा का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा। हमें मध्य वर्ग की वर्तमान पीढी के साथ समस्या हो रही है और इसलिए माकपा और वामपंथियों ने खुद को अनुकूल बनाना शुरू कर दिया है।


आप के साथ वामपंथी दलों के गठबंधन के सवाल पर करात ने कहा कि ऎसा लगता है कि उन्हें गठबंधन में कोई दिलचस्पी नहीं है और इस समय वे खुद को स्थापित करने को लेकर चिंतित हैं। करात ने कहा,हमें नव उदारवादी नीतियों और सांप्रदायिकता पर उनका दृष्टिकोण जानने में दिलचस्पी है।


जाहिर है कि माकपा केरल लाइन के शिकंजे से बाहर निकली नहीं है।कामरेड महासचिव के ताजा फतवे से तो यह साबित हो रहा है।



'উচ্চবর্ণ' সিপিএম নেতৃত্বের বিরুদ্ধে ক্ষোভ লক্ষ্মণ শেঠের



তমলুক: রেজ্জাক মোল্লার পর লক্ষ্মণ শেঠ, সিপিএমের বিদ্রোহী তালিকায় নতুন সংযোজন৷ অতীতে তমলুকের দাপুটে সিপিএম নেতা দলের বিরুদ্ধে বিষোদ্গারে গলা মেলালেন৷ কাজ করিয়ে নেওয়ার পর দল তাঁকে ছুড়ে ফেলে দিয়েছে বলে প্রকাশ্যে আক্ষেপ করলেন তিনি৷ জানিয়ে দিলেন, নেতৃত্বে উচ্চ বর্ণের আধিপত্য থাকলে সিপিএমের ঘুরে দাঁড়ানোর স্বপ্ন কোনদিন পুরণ হবে না৷ রাজ্যের ক্ষমতায় থাকার সময় নন্দীগ্রাম, সিঙ্গুর নিয়ে তৃণমূলের মোকাবিলা করতে রাজ্য ও পুর্ব মেদিনীপুর জেলা নেতৃত্ব ব্যর্থ হয়েছিল বলে কড়া সমালোচনা করেন অতীতে হলদিয়া ভবনের অধিকারী৷


রেজ্জাক মোল্লা যে সংখ্যালঘু মঞ্চ গঠনের চেষ্টা করছেন, তার প্রয়োজন মানছেন লক্ষ্মণ শেঠ৷ সিপিএমের রাজ্য কমিটির প্রাক্তন এই সদস্য নন্দীগ্রাম মামলায় হাজিরা দিতে বৃহস্পতিবার তমলুক জেলা আদালতে এসেছিলেন৷ মামলার পরবর্তী দিন ধার্য হয়েছে ২৪ জানুয়ারি৷ ওই দিন মামলার চার্জ গঠন হতে পারে বলে আদালত সূত্রে জানা গিয়েছে৷ সেক্ষেত্রে তাঁর উপর আইনের রোষ নেমে আসা যে সময়ের অপেক্ষা তা আঁচ করতে পারছেন পুর্ব মেদিনীপুরে সিপিএমের এই দুঁদে নেতা৷


এমন দুঃসময়ে দলকে তেমন ভাবে পাশে পাচ্ছেন না বলে তিনি অনুভব করছেন৷ আগেই তাঁকে রাজ্য কমিটি থেকে সরিয়ে দিয়েছেন সিপিএম নেতৃত্ব৷ আসন্ন লোকসভা নির্বাচনে তমলুক আসনে দল তাঁকে মনোনয়ন দেবেও না বলে বুঝে গিয়েছেন তিনি৷ ফলে রাগে, ক্ষোভে, হতাশায় সাংবাদিকদের প্রশ্নের উত্তরে আদালত চত্ত্বরে দাঁড়িয়েই দলীয় নেতৃত্বের বিরুদ্ধে ক্ষোভে ফেটে পড়লেন লক্ষ্মণবাবু৷


নন্দীগ্রামের প্রসঙ্গেই তমলুকের প্রাক্তন সাংসদ বলেন, 'নন্দীগ্রামকে প্রচারে এনে তখনকার বিরোধীরা বাজিমাত করলেও সিপিএম শাসকদলে থেকেও সেই ঘটনাটি থেকে কোনও রাজনৈতিক ফায়দা তুলতে পারেনি৷ সে সময় নন্দীগ্রামে আমাদেরও অনেক কর্মী খুন হয়েছেন৷ অনেক পার্টি অফিস ভেঙে বা পুড়িয়ে দেওয়া হয়েছে৷ কিন্ত্ত তা নিয়ে রাজ্য বা জেলা নেতৃত্ব প্রচারে ব্যর্থতা দেখিয়েছেন৷ তৃণমূল ফায়দা তুলতে পারার জন্য দায়ী আমাদের নেতাদের ব্যর্থতা৷'


তা হলে রাজ্য নেতৃত্বের উপর কি আপনার ক্ষোভ আছে? লক্ষ্মণবাবু উত্তর দেন, 'আমার ক্ষোভ থাকবে কেন? আমার উপর দলীয় নেতৃত্বের ক্ষোভ আছে৷ তাই আমি যখন একটার পর একটা মামলায় জর্জড়িত, তখন আমাকে রাজ্য কমিটি থেকে বাদ দেওয়া হয়েছিল৷' এরপরই ক্ষোভ উগরে তিনি বলেন, 'দলে এমন ভাবে উচ্চ বর্ণের সংখ্যাগরিষ্ঠতা চলতে থাকলে বামপন্থা ধুলিস্যাত্‍ হয়ে যাবে৷ যতদিন নেতৃত্বে আদিবাসী, তপশিলি বা সংখ্যালঘুদের প্রাধান্য থাকবে না, ততদিন বামপন্থার উন্নতি হবে না৷'


অস্বস্তিতে পড়ে প্রতিক্রিয়ায় সাবধানী সিপিএম নেতারা৷ দলের পুর্ব মেদিনীপুর জেলা সম্পাদক কানু সাহু বলেন, 'লক্ষ্মণবাবুর বক্তব্য না শুনে আমি কিছু বলতে পারব না৷'


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