THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Monday, January 6, 2014

ड्रोन,प्रिज्म,आधार के बाद अब नेत्र।भारत सरकार पल पल भारतीय नागरिकों को निर्वस्त्र कर रही है और अमेरिका,कारपोरेट कंपनियों के साथ ही अपराधी गिरोहों के साथ निजी गोपनीय तथ्य साझा करके सबकी जान माल को जोखिम में डाल रही है। Government to launch internet spy system 'Netra' soon

ड्रोन,प्रिज्म,आधार के बाद अब नेत्र।भारत सरकार पल पल भारतीय नागरिकों को निर्वस्त्र कर रही है और अमेरिका,कारपोरेट कंपनियों के साथ ही अपराधी गिरोहों के साथ निजी गोपनीय तथ्य साझा करके सबकी जान माल को जोखिम में डाल रही है।

Government to launch internet spy system 'Netra' soon



पलाश विश्वास

आज का संवाद

ड्रोन,प्रिज्म,आधार के बाद अब नेत्र।भारत सरकार पल पल भारतीय नागरिकों को निर्वस्त्र कर रही है और अमेरिका,कारपोरेट कंपनियों के साथ ही अपराधी गिरोहों के साथ निजी गोपनीय तथ्य साझा करके सबकी जान माल को जोखिम में डाल रही है। लेकिन भारतीय मेधा तबके को इसपर कोई एतराज नहीं।जनपक्षधरता के मोर्चे के लिए भी नागरिक संप्भुता कोई मुद्दा है  ही नहीं।किसी कारणवश आपकी बोलती अभी बंद हुई नहीं है तो तुरंत लिखें।


विषय विस्तार से पहले एक शोक संदेश। हमारे उत्तराखंड वाहिनी के पुराने साथी और सत्तर के दशक में अल्मोड़ा के छात्र संघ अध्यक्ष पीसी तिवारी की पत्नी का अल्मोड़ा जिला अस्पताल में दिल का पहला दौरा पड़ने के बाद गैस का इंजेक्शन दिये जाने की वजह से उसी दिन दिल का दूसरा दौरा पड़ने से आकस्मिक निधन हो गया।जिस दिन यह हादसा हुआ पीसी दिल्ली में थे।पिछली ही रात जब वे अल्मोड़ा में थे,उनसे हमारी पहाड़ के हालात पर लंबी बात हुई थी।आज नैनीताल समाचार का ताजा अंक मलने पर उसमें प्रकाशित लेख के बारे में बातचीत करने के लिए समाचार को फोन लगाया तो बागेश्वर में महशदाज्यू मिले।उन्होंने ही इस हादसे की खबर दी।फौरन पीसी को फोन लगाया तो वहा सोमेश्वर से मोहन कपिलेश भोज भी आये हुए थे। हमारी मजबूरी देखिये कि हम चाहकर भी उनके साथ खड़े नहीं हो सकते।पीसी और उनके परिवार के साथ जो हुआ,संजोग से वह पूरे पहाड़ का रोजनामचा है।हम क्या कहें,पीसी ने हमारे पहाड़ छोड़ने के बाद शादी की तो हम फिर अल्मोड़ा जो ही नहीं सकें।हमसे मुलाकात किये बिना हमारी भाबी चली गयीं।


मीडिया विशेषज्ञ जगदीश्वर चतुर्वेदी ने अपने फेसबुक वाल पर चुनाव आयोग के गुगल से हुए समझौते के प्रति आगाह करते हुए इसके पुरजोर विरोध करने की अपील जारी कर दी है।उनका आभार। नागरिकों की गोपनीयता और निजता भंग करने में भारत सरकार की सबसे बड़ी भूमिका है।भारतीय राजनयिक को निर्वस्त्र करने के विरुद्ध भारत सरकार ने बाकायदा अमेरिका के विरुद्ध राजनयिक युद्ध छेड़ दिया है। लेकिन अमेरिका की ओर से भारतीय नागरिकों की भारत में ही खुफिया निगरानी प्रिज्म के  मामले का खुलासा होने के मामले  में भारत सरकार ने कोई कार्रवाई की हो तो बतायें। बायोमेट्रिक डिजिटल खुफिया निगरानी का यह सिलसिला आधार केंद्रित है,लेकिन जगदीश्वर जी ने इसका कोई विरोध अभीतक किया हो,ऐसा हमें कोई जानकारी नहीं है। पल पल भारतीय नागरिकों को निर्वस्त्र कर रही है भारत सरकार और आंकड़े सीआईए नाटो पेंटागन कारपोरेट कंपनियों से लेकर अपराधी गिरोहों के साथ साझा किये जा रहे हैं।अब चुनाव आयोग के सारे तथ्य सीआईए समेत अमेरिकी एजंसियों को सौंपे जाने हैं। अमेरिकी निगरानी काफी नहीं है और अब अगर आप ट्वीट, ईमेल, ब्लॉग आदि में बम्ब, अटैक, ब्लास्ट या किल जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं तो सावधान हो जाइए क्योंकि ऐसे शब्द आपको सुरक्षा एजेंसयों की निगरानी में ला सकते हैं और इसके लिए सरकार जल्दी ही इंटरनेट खुफिया प्रणाली नेत्र शुरू करने वाली है जो आपत्तिजनक शब्दों को पता लगाने में सक्षम होगी।


गृह मंत्रालय नेत्र को अंतिम रूप देने में लगा हुआ है। सभी सुरक्षा एजेंसयां इसे लागू करेंगी ताकि ट्वीट, ईमेल, स्टैटस अपडेट, स्काइप या गूगल टॉक जैसे साफ्टवेयरों के जरिए गुजरने वाले शब्दों को पकड़ा जा सके। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के तहत आने वाली प्रयोगशाला सेंटर फॉर आर्टिफिशियल इंटेंलीजेंस एंड रोबोटिक्स (सीएआईआर) इस प्रणाली को विकसित कर रही है।कैबिनेट सचिवालय, गृह मंत्रालय, डीआरडीओ, सीएआईआर, खुफिया ब्यूरो, सी़डॉट और सीईआरटी इन ने हाल ही में नेत्र तैनात करने की रणनीति पर विचार किया है। एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि नेत्र के लागू हो जाने पर सुरक्षा एजेंसियों को संदिग्ध लोगों और संगठनों की गतिविधियों पर नजर रखने में मदद मिलेगी।


The group also chalked-out a strategy on how to deal with computer security incidents, track system vulnerabilities and promote effective IT security practices across the country. Reuters

Beware! Use of words like 'attack', 'bomb', 'blast' or 'kill' in tweets, status updates, emails or blogs may bring you under surveillance of security agencies as the government will soon launch 'Netra', an internet spy system capable of detecting malafide messages.

The Home Ministry is giving finishing touches to 'Netra', which will be deployed by all security agencies to capture any dubious voice traffic passing through software like Skype or Google Talk, besides write-ups in tweets, status updates, emails, instant messaging transcripts, internet calls, blogs and forums.

The 'Netra' internet spy system has been developed by Centre for Artificial Intelligence and Robotics (CAIR), a lab under Defence Research and Development Organisation (DRDO).

"The specifications of the 'Netra' system can be taken as frozen following tests by the Intelligence Bureau and Cabinet Secretariat, and can be considered for providing multiple user access to security agencies," a Home Ministry note on Netra says.

An inter-ministerial group, comprising officials of the Cabinet Secretariat, Home Ministry, DRDO, CAIR, Intelligence Bureau, C-DoT and Computer Emergency Response Team (CERT-In) recently have discussed the deployment strategy of 'Netra'.

The group also chalked-out a strategy on how to deal with computer security incidents, track system vulnerabilities and

promote effective IT security practices across the country.

"When Netra is operationalised, security agencies will get a big handle on monitoring activities of dubious people and organisations which use internet to carry out their nefarious designs," a government official said.

The inter-ministerial group favoured allocation of 300 GB of storage space to a maximum of three security agencies, including the Intelligence Bureau and Cabinet Secretariat, for intercepted internet traffic and an extra 100 GB would be assigned to the remaining law enforcement agencies.


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  1. सरकार जल्दी ही शुरू करेगी इंटरनेट खुफिया प्रणाली ...

  2. www.livehindustan.com/.../article1-eye-internet-332-332-390451.html

  3. सरकार जल्दी ही शुरू करेगी इंटरनेट खुफिया प्रणाली नेत्र. नई दिल्ली, एजेंसी. First Published:05-01-14 07:06 PM. Last Updated:05-01-14 07:06 PM. Tweet. imageloading ई-मेल Image Loading प्रिंट टिप्पणियॉ: (1) अ+ अ-. अगर आप ट्वीट, ईमेल, ब्लॉग आदि में बम्ब, अटैक, ब्लास्ट ...

  4. इंटरनेट खुफिया प्रणाली नेत्र के लिए समाचार

  5. Live हिन्दुस्तान

  6. इंटरनेट पर आपत्तिजनक शब्दों का इस्‍तेमाल करने ...

  7. www.prabhatkhabar.com/.../77794-Internet-offensive-words-use-ones-e...

  8. 10 घंटे पहले - ट्वीट, ई-मेल, ब्लॉग आदि में बम, अटैक, ब्लास्ट या किल जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, तो सावधान! ऐसे शब्द आपको सुरक्षा एजेंसियों की निगरानी में ला सकते हैं. इसके लिए सरकार जल्दी ही इंटरनेट खुफिया प्रणाली नेत्र शुरू ...

  9. अब \'नेत्र\' से निगरानी की तैयारी में है सरकार - Nation ...

  10. www.samaylive.com/.../government-will-soon-start-internet-intelligence-...

  11. 1 घंटे पहले - ट्वीट, ई-मेल, ब्लॉग आदि में बम, अटैक, ब्लास्ट या किल जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, तो सावधान! ऐसे शब्द आपको सुरक्षा एजेंसियों की निगरानी में ला सकते हैं. इसके लिए सरकार जल्दी ही इंटरनेट खुफिया प्रणाली नेत्र शुरू ...

  12. सरकार जल्द शुरू करेगी इंटरनेट खुफिया प्रणाली 'नेत्र'

  13. www.one.in/.../सरकार-जल्द-शुरू-करेगी-इंटरनेट-खुफिया-...

  14. सरकार जल्द शुरू करेगी इंटरनेट खुफिया प्रणाली 'नेत्र'. अगर आप ट्वीट, ईमेल, ब्लॉग आदि में बम्ब, अटैक, ब्लास्ट या किल जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं तो सावधान हो जाइए क्योंकि ऐसे शब्द आपको सुरक्षा एजेंसियों की निगरानी में ला सकते हैं।

  15. इंटरनेट यूजर्स सावधान ! आप जा सकते हैं जेल - Shri News

  16. www.shrinews.com/DetailNews.aspx?nid=28737

  17. 6 घंटे पहले - आप के ऐसे शब्द आपको सुरक्षा एजेंसियों की निगरानी में ला सकते हैं. इसके लिए सरकार जल्दी ही इंटरनेट खुफिया प्रणाली 'नेत्र' शुरू करने वाली है जो आपत्तिजनक शब्दों को पता लगाने में सक्षम होगी. गृह मंत्रालय 'नेत्र' को अंतिम रूप ...

  18. 'नेत्र' रखेगा इंटरनेट पर आपत्तिजनक ... - Jano Duniya

  19. janoduniya.tv/latest-news/government-will...internet.../201435144

  20. 9 घंटे पहले - इंटरनेट पर अब आप बम्ब, अटैक, ब्लास्ट या किल आदि जैसे शब्‍दों का प्रयोग नहीं कर पाएंगे. इन शब्‍दों का प्रयोग आपको सावधानी से करना होगा अन्‍यथा यह आपको मुसीबत में डाल सकते हैं. क्‍योंकि सरकार जल्‍द ही इंटरनेट खुफिया प्रणाली नेत्र ...

  21. सरकार जल्दी ही इंटरनेट खुफिया प्रणाली 'नेत्र' शुरू ...

  22. www.himalayauk.org/scroll/सरकार-जल्दी-ही-इंटरनेट-खु/

  23. सरकार जल्दी ही इंटरनेट खुफिया प्रणाली 'नेत्र' शुरू करने वाली है, जो आपत्तिजनक शब्दों को पता लगाने में सक्षम होगी। गृह मंत्रालय 'नेत्र' को अंतिम रूप देने में लगा हुआ है। सभी सुरक्षा एजेंसियां इसे लागू करेंगी, ताकि ट्वीट, ईमेल, स्टैट्स ...

  24. इंटरनेट पर अगर लिखी आपत्तिनजक बात, तो पकड़ लेगा ...

  25. www.khabarindia.in/2014/01/05/इंटरनेट-पर-अगर-लिखी.../14982

  26. 23 घंटे पहले - उस खुफिया प्रणाली का नाम नेत्र होगा जो इंटरनेट पर ट्वीट, ई-मेल, ब्लॉग और अन्य किसी भी तरीके से आपराधिक शंका पैदा करने वालों शब्दों पर अपनी प्रतिक्रिया देगी। आज गृह मंत्रालय ने बताया कि वो नेत्र को अंतिम रूप देने में लगा ...

  27. हालात, इंटेलिजेंट सिस्टम और अन्य शांत प्रौद्योगिकी के इंटरनेट...

  28. blogs.intel.com/.../internet-of-things-intelligent-systems-and-other-cool-t...

  29. Internet Intelligence System Eye के लिए खोजे गए अंग्रेज़ी दस्तावेज़ का अनुदित परिणाम

  30. हालात, इंटेलिजेंट सिस्टम और अन्य शांत प्रौद्योगिकी के इंटरनेट...दिसंबर में Amphion फोरम में इंटेल इंटेलिजेंट सिस्टम के लिए एक आँख बाहर रखें और...

  31. ECHELON - विकिपीडिया, मुक्त विश्वकोश

  32. en.wikipedia.org/wiki/ECHELON

  33. Internet Intelligence System Eye के लिए खोजे गए अंग्रेज़ी दस्तावेज़ का अनुदित परिणाम

  34. यह भी डाउनलोड नियंत्रित करता है जो केवल सॉफ्टवेयर प्रणाली के रूप में वर्णित किया गया है...यह एक संकेत खुफिया संग्रह प्रणाली के लिए नाम था कि इंगित करता है....सार्वजनिक (एक बार सबसे इंटरनेट यातायात किया जाता है) टेलीफोन नेटवर्क बंद कर दिया...राजनीतिक जासूसी में उलझाने "पांच आंखें 'के सदस्यों का उल्लेखनीय उदाहरण:.



अभिनव सिन्हा और आह्वाण टीम के लिए


अभिनव जी, बहुजन राजनीति कुल मिलाकर आरक्षण बचाओं राजनीति रही है अबतक।वह आरक्षण जो अबाध आर्थिक जनसंहार की नीतियों, निरंकुश कारपोरेट राज,निजीकरण,ग्लोबीकरण और विनिवेश,ठेके पर नौकरी की वजह से अब सिरे से गैरप्रासंगिक है।आरक्षण की यह राजनीति जो खुद मौकापरस्त और वर्चस्ववादी है और बहुजनों में जाति व्यवस्था को बहाल रखने में सबसे कामयाब औजार भी है,अंबेडकर के जाति उन्मूलन के एजंडे को हाशिये पर रखकर अपनी अपनी जाति को मजबूत बनाने लगी है।अनुसूचित जनजातियों में एक दो आदिवासी समुदायों के अलावा समूचे आदिवासी समूह को कोई फायदा हुआ हो,ऐसा कोई दावा नहीं कर सकता।संथाल औऱ भील जैसे अति पिरचित आजिवासी जातियों को देशभर में सर्वत्र आरक्षण नहीं मिलता।अनेक आदिवासी जातियों को आदिवासी राज्यों झारखंड और छत्तीसगढ़ में ही आरक्षण नहीं मिला है।इसी तरह अनेक दलित और पिछड़ी जातियां आरक्षण से बाहर हैं।जिस नमोशूद्र जाति को अंबेडकर को संविधान सभा में चुनने के लिए भारत विभाजन का दंश सबसे ज्यादा झेलना पड़ा और उनकी राजनीतिक शक्ति खत्म करने के लिए बतौर शरणार्थी पूरे देश में छिड़क दिया गया,उन्हें बंगाल और उड़ीशा के अलावा कहीं आरक्षण नहीं मिला। मुलायम ने उन्हें उत्तरप्रदेश में आरक्षण दिलाने का प्रस्ताव किया तो बहन मायावती ने वह प्रस्ताव वापस ले लिया और अखिलेश ने नया प्रस्ताव ही नहीं भेजा।उत्तराखंड में उन्हें शैक्षणिक आरक्षण मिला तो नौकरी में नहीं और न ही उन्हें वहां राजनीति आरक्षण मिला है।जिन जातियों की सामाजिक राजनीतिक आर्थिक स्थिति आरक्षण से समृद्ध हुई वे दूसरी वंचित जाति को आरक्षण का फायदा देना ही नहीं चाहती। मजबूत जातियों की आरक्षण की यह राजनीति यथास्थिति को बनाये रखने की राजनीति है,जो आजादी की लड़ाई में तब्दील हो भी नहीं सकती। इसलिए बुनियादी मुद्दं पर वंचितों को संबोधित करने के रास्ते पर सबसे बड़ी बाधा बहुजन राजनीति केझंडेवरदार और आरक्षणसमृद्ध पढ़े लिखे लोग हैं।लेकिन बहुजन समाज उन्हीके नेतृत्व में चल रहा है।हमने निजी तौर पर देश भर में बहुजन समाज के अलग अलग समुदायों के बीच जाकर उनको उनके मुहावरे में संबोधित करने का निरंतर प्रयास किया है और ज्यादातर आर्थिक मुद्दों पर ही उनसे संवाद किया है,लेकिन हमें हमेशा इस सीमा का ख्यल रखना पड़ा है।


वैसे ही मुख्यधारा के समाज और राजनीति ने भी आरक्षण से इतर  बाकी मुद्दों पर उन्हें अबतक किसी ने स‌ंबोधित ही नहीं किया है। जाहिर है कि जानकारी के हर माध्यम से वंचित बाकी मुद्दों पर बहुजनों की दिलचस्पी है नहीं, न उसको समझने की शिक्षा उन्हें है और बहुजन बुद्धिजीवी,उनके मसीहा और बहुजन राजनीति के तमाम दूल्हे मुक्त बाजार के कारपोरेट जायनवादी धर्मोन्मादी महाविनाश को ही स्वर्णयुग मानते हैं और इस सिलसिले में उन्होंने वंचितों का ब्रेनवाश किया हुआ है।बाकी मुद्दों पर बात करें तो वे सीधे आपको ब्राह्मण या ब्राह्मण का दलाल और यहां तक कि कारपोरेटएजेंटतक कहकर आपका सामाजिक बहिस्कार कर देंगे।


बहुजनों की हालत देशभर में स‌मान भी नहीं है।


मसलन अस्पृश्यता का रुप देशभर में स‌मान है नहीं।जैसे बंगाल में अस्पृश्यता उस रुप में कभी नहीं रही है जैसे उत्तरभारत,महाराष्ट्र,मध्यभारत और दक्षिण भारत में। इसके अलावा बंगाल और पूर्वी भारत में आदिवासी,दलित,पिछड़े और अल्पसंख्यकों के स‌ारे किसान स‌मुदाय बदलते उत्पादन स‌ंबंधों के मद्देनजर जल जंगल जमीन और आजीविका की लड़ाई में स‌दियों स‌े स‌ाथ स‌ाथ लड़ते रहे हैं।


मूल में है नस्ली भेदभाव,जिसकी वजह स‌े भौगोलिक अस्पृश्यता भी है।महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश की तरह बाकी देश में जाति पहचान स‌ीमाबद्ध मुद्दों पर बहुजनों को स‌ंबोधित किया ही नहीं जा स‌कता।


आदिवासी जाति स‌े बाहर हैं तो मध्यभारत,हिमालय और पूर्वोत्तर में जातिव्यवस्था के बावजूद अस्पृश्यता के बजाय नस्ली भेदभाव के तहत दमन और उत्पीड़न है।


उत्पादन प्रणाली को ध्वस्त करने,कृषि को खत्म करने की जो कारपोरेट जायनवादी धर्मोन्मादी राष्ट्रव्यवस्था है,उसे महज अंबेडकरी आंदोलन और अंबेडकर के विचारों के तहत स‌ंबोधित करना एकदम असंभव है।फिर भारतीय यथार्थ को संबोधित किये बना साम्यवादी आंदोलन के जरिये भी सामाजिक शक्तियों की राज्यतंत्र को बदलने के लिए गोलबंद करना भी असंभव है।यह बात तेलतुंबड़े जी भी अक्षरशः मानते हैं।


ध्यान देने की बात है कि अंबेडकर को महाराष्ट्र और बंगाल के अलावा कहीं कोई उल्लेखनीय स‌मर्थन नहीं मिला। पंजाब में जो बाल्मीकियों ने स‌मर्थन किया,वे लोग भी कांग्रेस के स‌ाथ चले गये।


बंगाल स‌े अंबेडकर को स‌मर्थन के पीछे बंगाल में तब दलित मुस्लिम गठबंधन की राजनीति रही है,भारत विभाजन के स‌ाथ जिसका पटाक्षेप हो गया।अब बंगाल में विभाजनपूर्व दलित आंदोलन का कोई चिन्ह नहीं है।बल्कि अंबेडकरी आंदोलन का बंगाल में कोई असर ही नहीं हुआ है।अंबेडकर आंदोलन जो है ,वह आरक्षण बचाओ आंदोलन के सिवाय कुछ है नहीं।बंगाल में नस्ली वर्चस्व का वैज्ञानिक रुप अति निर्मम है,जो अस्पृश्यता के किसी भी रुप को लज्जित कर दें।यहां शासक जातियों के अलावा जीवन के किसी भी प्रारुप में अन्य सवर्ण असवर्ण दोनों ही वर्ग की जातियों का कोई प्रतिनिधित्व है ही नहीं।अब बंगाल के जो दलित और मुसलमान हैं,वे शासक जातियों की राजनीति करते हैं और किन्हीं किन्हीं घरों में अंबेडकर की तस्वीर टांग लेते हैं।अंबेडकर को जिताने वाले जोगेंद्रनाथ मंडल या मुकुंद बिहारी मल्लिक की याद भी उन्हें नही है।


इसी वस्तु स्थिति के मुखातिब हमारे लिए अस्पृश्यता के बजाय नस्ली भेदभाव बड़ा मुद्दा है जिसके तहत हिमालयऔर पूर्वोत्तर तबाह है तो मध्य भारत में युद्ध परिस्थितियां हैं।जन्मजात हिमालयी समाज से जुड़े होने के कारण हम ऴहां की समस्याओं से अपने को किसी कीमत पर अलग रख नहीं सकते और वे समस्याएं अंबेडकरी आंदोलन के मौजूदा प्रारुप में किसी भी स्तर पर संबोधित की ही नहीं जा सकती जैसे आदिवासियों की जल जंगल जमीन और आजीविका से बेदखली के मुद्दे बहुजन आंदोलन के दायरे से बाहर रहे हैं शुरु से।


ऐसे में अंबेडकर का मूल्यांकन नये संदर्भों में किया जाना जरुरी ही नहीं,मुक्तिकामी जनता के स्वतंत्रता संग्राम के लिए अनिवार्य है।आप यह काम कर रहे हैं तो मौजूदा हालात के मद्देनजर आपको और ज्यादा जिम्मेदारी उठानी होगी। आप जो प्रयोग कर रहे हैं,उसकी एक भौगोलिक सीमा है।आप जिन लोगों से संवाद कर रहे हैं,वे आपके आंदोलन के साथी हैं।वंचित समुदायों के होने के बावजूद उत्पादन प्रणाली में अपना अस्तित्व बनाये रखने की लड़ाई में वे आम बहुजन मानसिकता को तोड़ पाने में कामयाब हैं।इसलिए उन्हें आपकी भाषा समझने में कोई दिक्कत होगी नहीं।फिर जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय,मुंबई विश्वविद्यालय या कोई भी विश्वविद्यालय परिसर मूक अपढ़ हमेशा दिग्भ्रमित कर दिया जाने वाला सूचना तकनीक वंचित भारतीय समाज का प्रतिनिधित्व नहीं करता। यह सामाजिक संरचना बेहद जटिल है और इसके भीतर घुसकर उन्हें आप अंबेडकर के मूल्यांकन के लिए राजी करें और अंबेडकर के प्रासंगिक विचारों के साथ बुनियादी परिवर्तन के लिए राजी करें,इसके लिए आपकी भाषा भी आपकी रणनीति का हिस्सा होना चाहिए।ऐसा मेरा मानना है।


हम तो आपको सही मायने में जनप्रतिबद्ध कार्यकर्ता के रुप में सबसे ज्यादा कुशल व प्रतिभासंपन्न तब मानेंगे जब अभिनव जैसा विश्लेषण आप बहुजनों के मूक जुबान से करवाने में कमायाब है।खुद काम करना बहुत कठिन भी नहीं है,लेकिन विकलांग लगों से काम करवा लेने की कला भी हमें आनी चाहिए,खासकर तब जबकि वह काम किसी विकलांग समाज के वजूद के लिए बेहद जरुरी है। हम अंबेडकर का पूनर्मूल्यांकन कर सकते हैं, लेकिन इसका असर इतना नहीं होगा ,जितना कि खुद बहुजनों को हम अंबेडकर के पुनर्मूल्यांकन के लिए तैयार कर दें,एसी स्थिति बना देने का।दरअसल हमारा असली कार्यभार यही है।


हमारी पूरी चिंता उन वंचितों को संबोधित करने की है,जिनके बिना इस मृत्युउपत्यका के हालात बदले नहीं जा सकते।किसी खास भूगोल या खास समुदाय की बात हम नहीं कर रहे हैं,पूरे देश को जोड़ने की वैचारिक हथियार से देशवासियों के बदलाव के लिए राजनीतिक तौर पर गोलबंद करने की चुनौती हमारे समाने हैं। क्योंकि बदलाव के तमाम भ्रामक सब्जबाग सन सैंतालीस से आम जनता के सामने पेश होते रहे हैं और उन सुनामियों ने विध्वंस के नये नये आयाम ही खोले हैं।


आप का उत्थान कारपोरेट राजनीति का कायकल्प है जो समामाजिक शक्तियों की गोलबंदी और असमिताओं की टूटन का भ्रम तैयार करने का ही पूंजी का तकनीक समृद्ध प्रायोजिक आयोजन है।इसका मकसद जनसंहार अश्वमेध को और ज्यादा अबाध बनाने के लिए है। लेकिन वे संवाद और लोकतंत्र का एक विराट भ्रम पैदा कर रहे हैं और नये तिलिस्म गढ़ रहे हैं।उस तिलिस्म कोढहाना भी मुक्तिकामी जनता के हित में अनिवार्य है,जो आप बखूब गढ़ रहे हैं।


जहां तक तेलतुंबड़े का सवाल है,अगर बहुजन राजनीति का अभिमुख बदलने की मंशा हमारी है तो महज आनंद तेलतुंबड़े नहीं, कांचा इलेय्या, एचएल दुसाध, उर्मिलेश, गद्दर, आनंद स्वरुप वर्मा जैसे तमाम चिंतकों और सामाजिक तौर पर प्रतिबद्ध तमाम लोगों से हमें संवाद की स्थिति बनानी पड़ेगी।ये लोग बहुजन राजनीति नहीं कर रहे हैं। अंबेडकर के पुनर्मूल्यांकन अगर होना है तो संवाद और विमर्श से ऐसे लोगों के बहिस्कार से हम बहुजन मसीहा और दूल्हा संप्रदायों के लिए खुल्ला मैदान छोड़ देंगे।जो बहुजनों का कारपोरेट वधस्थल पर वध का एकमुश्त सुपारी ले चुके हैं।



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Yesterday at 2:31pm ·

  • जाति प्रश्न और अम्बेडकर के विचारों पर एक अहम बहस

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  • हिन्दी के पाठकों के समक्ष अभी भी यह पूरी बहस एक साथ, एक जगह उपलब्ध नहीं थी। और हमें लगता है कि इस बहस में उठाये गये मुद्दे सामान्य महत्व के हैं। इसलिए हम इस पूरी बहस को बिना काँट-छाँट के यहाँ प्रका...

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    • Palash Biswas आह्वान टीम के लिए

    • Palash Biswas असहमति के बावजूद हम चाहते हैं कि इस अनिवार्य मुद्दे पर स‌ंवाद जारी रहे।आह्वान टीम अपने असहमत स‌ाथियों के स‌ाथ जो निर्मम भाषा का प्रयोग करती है,उसे थोड़ा स‌हिष्णु बनाने का यत्न करें तो यह विमर्श स‌ार्थक स‌ंवाद में बदल स‌कता है।

    • तेलतुंबड़े अंबेडकरवादियों में एकमात्र ऎसे विचारक हैं जो स‌मसामयिक य़थार्थ स‌े टकराने की कोशिश करते हैं।

    • सबकी अपनी स‌ीमाबद्धता है।अंबेडकर की भी अपनी स‌ीमाबद्धता रही है। मार्क्स भी स‌ीमाओं के आर पार नहीं थे।न माओ।लेकिन स‌बने इतिहास में निश्चित भूमिका का निर्वाह किया है।

    • हम मानते हैं कि आह्वाण की युवा प्रतिबद्ध टीम भी एक ऎतिहासिक भूमिका में है और उसे इसका निर्वाह और अधिक वस्तुवादी तरीके स‌े करना चाहिए।लेकिन जब हम आम जनता को स‌ंबोधित करते हैं तो हमें इस बात का भी ख्याल रखना चाहिए कि वे अकादमिक या वस्तुवादी भाषा में अनभ्यस्त हैं और उनका स‌ंसार पूरी तरह भाववादी है।

    • इस द्वंद्व के स‌माधान के लिए भाषा की तैयारी मुकम्मल होनी चाहिए।

    • आप अंबेडकर,तेलतुंबड़े और दूसरे तमाम स‌मकालीन प्रतिबद्ध असहमत लोगों के प्रति भाषा की स‌ावधानी बरतें तो हमें लगता है कि आपका यह प्रयास और ज्यादा स‌ंप्रेषक और प्रभावशाली होगा।

    • याद करें कि आपके आधारपत्र और वीडियो रपट देखने के बाद हमें तत्काल बहस स‌े बाहर जाना पड़ा। क्योंकि हम जिन लोगों के स‌ाथ काम कर रहे हैं वे इस भाषा में अंबेडकर का मूल्यांकन करना नहीं चाहते।

    • दरअसल मूर्तिपूजा के अभ्यस्त जनता स‌े आप स‌ीधे तौर पर उनकी मूर्तियां खंडित करने के लिए कहेंगे तो स‌ंवाद की गुंजाइश बनेगी ही नहीं।

    • उन्हें अपने स्तर तक लाने स‌े पहले उनके स्तर पर खड़े होकर उनके मुहावरों में संवाद हमारा प्रस्थानबिंदु होना चाहिए।

    • माओ ने इसीलिए जनता के बीच जाकर जनता स‌े सीखने का स‌बक दिया था।

    • भारतीय यथार्थ गणितीय नहीं है और न ही उसे स‌ुलझाने का कोई गणितीय वैज्ञानिक पद्धति का आविस्कार हुआ है।

    • हर प्रदेश,हर क्षेत्र की अपनी अपनी अस्मिता है।हर स‌मुदाय की अस्मिता अलग है।ये असमिताएं आपस में टकरा रहीं हैं,जिसका स‌त्तावर्ग गृहयुद्ध और युद्ध की अर्थव्यवस्था में बखूब इस्तेमाल कर रहा है।

    • मनुस्मृति भी एक बहिस्कार और विशुद्धता के स‌िद्धांत पर आधारित अर्थशास्त्र ही है,ऎसा हम बार बार कहते रहे हैं।

    • हमें आपकी दृष्टि स‌े कोई तकलीफ नहीं है,न आपके विश्लेषण स‌े। हम स‌हमत या असहमत हो स‌कते हैं। लेकिन हम चाहते हैं कि जिस ईमानदारी स‌े आप स‌ंवाद और विमर्श का बेहद जरुरी प्रयत्न कर रहे हैं,वह बेकार न हों।

    • तेलतुंबड़े को झूठा स‌ाबित करना मेरे ख्याल स‌े क्रांति का मकसद नहीं हो स‌कता।बाकी आपकी मर्जी।

    • आप इस बहस को आह्वान के मार्फत व्यापक पाठकवर्ग तक पहुंचा रहे हैं,इसके लिए आभार।हम इस प्रयत्न का अपनी असहमतियों के बावजूद स्वागत करते हैं।संवादहीन समाज में समस्याओं की मूल वजह संवादहीनता की घनघोर अमावस्या है,आप लोग उसे तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं।

    • आपकी आस्था वैज्ञानिक पद्धति में है।हमारी भी है।लेकिन शायद आपकी तरह दक्षता हमारी है नहीं है।

    • हम अपने सौंदर्यबोध में वस्तुवादी दृष्टि के साथ जनता को संबोधित करने लायक भाववादी सौंदर्यशास्त्र का भी इस्तेमाल करते हैं अपने नान प्रयोग में इसी संवादहीनता को तोड़ने के लिए।

    • कृपया इसे समझने का कष्ट करें कि आपके शत्रु वास्तव में कौन हैं और मित्र कौन।

    • Yesterday at 2:42pm · Like

    • Abhinav Sinha पलाश जी, आपके सुझावों का स्‍वागत है। लेकिन यह समझने की आवश्‍यकता है कि राजनीतिक बहस में एक-दूसरे का गाल नहीं सहलाया जा सकता है। इसमें call a spade a spade की बात लागू होती है। तेलतुंबडे जी ने अपने लेख में हमारे प्रति कोई रू-रियायत नहीं बरती है, और न ही हमने अपने लेख में उनके प्रति कोई रू-रियायत बरती है। इसमें दुखी होने, कोंहां जाने, कोपभवन में बैठ जाने वाली कोई बात नहीं है। यह शिकायत जब तेलतुंबडे जी की ही नहीं है (क्‍योंकि वे स्‍वयं भी उसी भाषा का प्रयोग अपने लेख में करते हैं, जिस पर पलाश जी की गहरी आपत्ति है) तो फिर किसी और के परेशान होने की कोई बात नहीं है।

    • दूसरी बात, यहां बहस व्‍यक्तियों की सीमाबद्धता की है ही नहीं। यहां बहस विज्ञान पर है। सवाल इस बात का है कि अंबेडकर के पास दलित मुक्ति की कोई वैज्ञानिक परियोजना थी? क्‍या उनके पास एक समतामूलक समाज बनाने की कोई वैज्ञानिक परियोजना थी ? निश्चित रूप से सीमाओं से परे न तो मार्क्‍स हैं और न ही माओ। ठीक वैसे ही जैसे आइंस्‍टीन या नील्‍स बोर भी नहीं थे। लेकिन अंबेडकर से अलग मार्क्‍स ने सामाजिक क्रांति का विज्ञान दिया। अंबेडकर अपने तमाम जाति-विरोधी सरोकारों के बावजूद सुधारवाद, व्‍यवहारवाद के दायरे से बाहर नहीं जा सके; सामाजिक परिवर्तन के विज्ञान को समझने में वे नाकाम रहे। और हमारे लिए अंबेडकर की अन्‍य व्‍यक्तिगत सीमाओं का कोई महत्‍व नहीं है, लेकिन उनकी इस असफलता का महत्‍व दलित मुक्ति की पूरी परियोजना के लिए है।

    • इसलिए व्‍यक्तियों की सीमाएं होती हैं, इस सर्वमान्‍य तथ्‍य पर बहस ने हमने अपने लेख में की है, और न ही हम आगे ऐसी बहस कर सकते हैं।

    • अगर भाषा के आधार पर ही बहस से बाहर जाना उचित होता हो, साथी, तो फिर हमें तेलतुंबडे जी द्वारा प्रयोग की जाने वाली भाषा पर तुरंत ही बहस से बाहर जाना चाहिए था। हमारे लिए भाषा तब भी उतनी अहमियत नहीं रखती थी, और अब भी नहीं रखती है। मूल बात है बहस के आधारभूत मुद्दे। अगर भाषा पर ही आपकी पूरी आपत्ति ही है तो आपको यह सीख पहले तेलतुंबडे जी को देनी चाहिए, जो बेवजह ही हमें अपना शत्रु समझते हैं। विचारधारात्‍मक बहस आप तीखेपन से चलायें तो सही है, अगर हम चलायें तो ग़लत। यह कहां की नैतिकता है? तेलतुंबडे जी ने अपने वक्‍तव्‍य में असत्‍यवचन कहा था। तो अब हम क्‍या करें ? क्‍या इस बात की ओर इंगित न करें ? क्‍या इसी प्रकार से बहस चलायी जाती है ? हमें लगता है कि यह बौद्धिक-राजनीतिक बेईमानी होगी।

    • जहां तक भारत की जटिलता का प्रश्‍न है, तो आपके अस्मिताओं, गणितीय-गैरगणितीय यथार्थ और उनके गणितीय व गैर-गणितीय समाधानों के बारे में विचारों पर अपनी प्रतिक्रिया हम संक्षेप में नहीं दे सकते हैं। लेकिन इस पर आह्वान के उपरोक्‍त लेख में ही हमारे विचार स्‍पष्‍ट हैं। आप उन्‍हें ही संदर्भित कर सकते हैं। संक्षेप में इतना ही कि इस जटिलता से हम भी वाकिफ हैं और हम इसका कोई 'दो दुनाई चार' वाला समाधान प्रस्‍तावित भी नहीं कर रहे हैं। अगर आप गौर से हमारे लेख का अवलोकन करें तो स्‍वयं ही यह बात स्‍पष्‍ट हो जायेगी।

    • Yesterday at 4:09pm · Like

    • Palash Biswas अभिनव जी,हम आपका लेख पढ़ चुके हैं और वक्तव्य भी स‌ुन चुके हैं। हम कोई तेलतुंबड़े जी का पक्ष नहीं ले रहे हैं और न आपके पक्ष का खंडन कर रहे हैं। हम स‌ारे लोग अलग अलग तरीके स‌े भारतीय यथार्थ को स‌ंबोधित कर रहे हैं। अगर हम राज्यतंत्र में परिवर्तन चाहते हैं और उसके लिए हमारे पास परियोजना है,तो उस परियोजना का कार्यान्वयन भी बहुसंख्य जनगण को ही करना है।

    • हीरावल दस्ते के जनता के बहुत आगे निकल जाने स‌े स‌त्तर के दशक की स‌बसे प्रतिबद्ध स‌बसे ईमानदार पीढ़ी का स‌ारा बलिदान बेकार चला गया।क्योंकि जनता स‌े स‌ंवाद की स्थिति ही नहीं बनी।

    • विचारधारा अपनी जगह स‌ही है,लेकिन उसे आम जनता को,जो हमसे भी ज्यादा अपढ़ और हमसे भी ज्यादा भाववादी है,उस तक आप वैज्ञानिक पद्धति स‌े वस्तुपरक विश्लेषण स‌ंप्रेषित करके उन्हें मुक्ति कामी जनसंघर्ष के लिए देशभर में तमाम अस्मिताओं के तिलिस्म तोड़कर कैसे स‌ंगठित करेंगे,जनपक्षधर मोर्चे की बुनियादी चुनौती यही है।

    • अवधारणाएं और विचारधारा अपनी जगह स‌ही हैं,लेकिन तेलतुंबड़े हों या आप,या हम या दूसरे लोग,हम स‌ामाजिक यथार्थ के मद्देनजर मुद्दों को टाले बिना एकदम तुरंत जनता को स‌ंबोधित नहीं कर पा रहे हैं।

    • यह आह्वान टीम ही नहीं,पूरे जनपक्षधर मोर्चे की भारी स‌मस्या है।शत्रू पक्ष के लोगों में वैचारिक स‌ांगठनिक असहमति होने के बावजूद जबर्दस्त स‌मन्वय और अविराम औपचारिक अनौपचारिक स‌ंवाद है।

    • लेकिन आप जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं,वैसे देश के अलग अलग हिस्से में हमारे तमाम लोग बेहद जरुरी काम कर रहे हैं।लेकिन हमारे बीच कोई आपसी स‌ंवाद और स‌मन्वय नहीं है।

    • 22 hours ago · Like

    • Palash Biswas जब हमारा बुनियादी लक्ष्य मुक्तिकामी जनता को राज्यतंत्र में बुनियादी परिवर्तन के लिए जातिविहीन वर्गविहीन स‌माज की स्थापना के लिए स‌ंगठित करना है,तो आपस में स‌ंवाद में हार जीत और रियायत के स‌वाल गैरप्रासंगिक हैं।

    • जब आप स‌ांगठनिक तौर पर नीतियां तय कर रहे होते हैं,तो वस्तुपरक दृष्टि स‌े पूरी निर्ममता स‌े चीजों का विश्लेषण होना ही चाहिए।

    • लेकिन जब आप स‌ार्वजनिक बहस करते हैं या लिखते हैं तो आपको जनता के हर हिस्से को और खासकर जिस बहुसंख्य स‌र्वहारा वर्ग को आप स‌ंबोधित कर रहे हैं,उसपर होने वाले असर का आपको ख्याल रखना होगा।

    • 22 hours ago · Like

    • Palash Biswas यह कोप भवन में जाने की बात नहीं है। हम जिन तबकों के स‌ाथ जमीनी स्तर पर काम कर रहे हैं,वे मसीहों और दूल्हों के शिकंजे में फंसे मूर्ति पूजक स‌ंप्रदाय है तो स‌ीधे अंबेडकर की मूर्ति को एक झटके स‌े गिराकर उनके बीच आप काम नहीं कर स‌कते हैं।वे तो आपको स‌ुनते ही नहीं है। न वे विचारधारा स‌मझते हैं,न राज्य का चरित्र जानते हैं,न राजकाज की गतिविधियों पर उनकी दृष्ठि है और न वे अर्थव्यवस्था के बुनियादी स‌िद्धांतों के जानकार हैं।

    • 22 hours ago · Like

    • Palash Biswas जाति विमर्श जब आप चला रहे थे,तब आपके आक्रामक तेवर से जो बातें संप्रेषित हो रही थीं,उसे आगे बढ़ते देने से अंबेडकर के पुनर्मूल्यांकन का काम और मुश्किल हो जाता।यह अनिवार्य कार्यभार है और आपने इस पर विमर्श की पहल करके भी बढ़िया ही किया है।लेकिन इस विमर्श औ...See More

    • 22 hours ago · Like

    • Palash Biswas अब देशभर में कश्मीर से लेकर कन्याकुमरी तक हजारों की तादाद में ऐसे पुरातन बीएसपी और बामसेफ के कार्यक्रता भी हमारे साथ हैं,जो अंबेडकरी आंदोलन की चीड़फाड़ के लिए तैयार हैं और अस्मिताओं से ऊपर उठकर अंबेडकर के जाति उन्मूलन के मूल एजंडा के तहत ही उनका मूल्यांकन करने को तैयार हैं और जनसंहारी अर्थ व्यवस्था के विरुद्ध देश व्यापी जनप्रतिरोध के साझ मोर्चे के लिए तैयार हैं। जब आपने विमर्श चलाया तब यह हालत नहीं थी।तेलतुंबड़े जी भी इस बहस को जारी रखने के हक में हैं।देश भर में और भी लोग जो वाकई बदलाव चाहते हैं, इस विमर्श को जारी रखने की अनिवार्यता मानते हैं।

    • 22 hours ago · Like

    • Palash Biswas अब बुनियादी समस्या लेकिन वही है कि हमें उस भाषा और माध्यम पर मेहनत करनी होगी, जिसके जरिये हम वंचितों को तृणमूल स्तर पर इस विमर्श में शामिल कर सकें,ताकि अस्मिताओं का तिलिस्म टूटे और अंधेरा छंटे। विश्लेषण आप भले ही सही कर रहे हों,उसे आडियेंस तक सहीतरीके से संप्रेषित करना आपकी सबसे बड़ी चुनौती है।

    • 22 hours ago · Like

    • Palash Biswas हमारी तुलना में आप लोग युवा हैं, तकनीक दक्ष हैं,विश्लेषण पारंगत प्रतिबद्ध टीम है तो अब आपको इस चुनौती का स‌ामना तो करना ही होगा कि बेहतर तरीके स‌े हम अपनी बात कैसे वंचित तबके तक ले जायें।

    • क्योंकि अंबेडकर के खिलाफ वंचित तबके के लोग कुछ भी स‌ुनना नहीं चाहते।वे तेलतुंबड़े को भी नही पढ़ते हैं और न स‌ुनते हैं।

    • पहले उन्हें इस विमर्श के लिए मानसिक तौर पर तैयार करना होगा वरना आप जो कर रहे हैं,वह स‌त्तावर्ग की स‌मझ में तो आयेगा लेकिन स‌र्वहारा जिस हालत में हैं, वे वहां स‌े एक कदम आगे नहीं बढ़ेंगे।

    • आगे भविष्य आप लोगों का है,हम लोग तेजी स‌े अतीत में बदल रहे हैं।

    • आपसे ही उम्मीदे हैं कि आप इन स‌मस्याओं का स‌माधान निकालकर माध्यमों का बेहतर इस्तेमाल करके वंचित स‌मुदायों स‌मेत देश भर के स‌र्वहारा स‌र्वस्वहारा तबकों को बुनियादी परिवर्तन के लिए स‌ंगठिक करेंगे।

    • मैं कोई आपकी आलोचना के लिए आपको यह स‌ुझाव नहीं दे रहा हूं,बल्कि जो काम आप लोग कर रहे हैं,उसे अति महत्वपूर्ण मानते हुए उसको पूरे देश को स‌ंप्रेषित करने की गरज स‌े ऎसा कर रहा हूं।

    • 22 hours ago · Like

    • Abhinav Sinha हम सहमत हैं, पलाश जी कि जनता के साथ जुड़ने की जरूरत है। उनके साथ एकता-संघर्ष-एकता का रिश्‍ता बनाने की जरूरत है। आप हम पर यक़ीन कर सकते हैं कि हम यह काम कर भी रहे हैं। आह्वान में लिखने वाला एक-एक युवा कार्यकर्ता मुख्‍य रूप से मज़दूर मोर्चे पर कार्यरत है। हमें वहां कभी अंबेडकर के प्रश्‍न पर या उनकी आलोचना के प्रश्‍न पर कभी समस्‍या का सामना नहीं करना पड़ता है, जबकि जिन मज़दूर साथियों के बीच हम काम कर रहे हैं, उनका बहुलांश दलित है। यह समस्‍या हमेशा मध्‍यवर्गीय दलित चिंतकों के साथ आती है। अंबेडकर की किसी आलोचना को सुनने के लिए समूची दलित आबादी का यह तीन-चार फीसदी हिस्‍सा तैयार नहीं है। यह हिस्‍सा बथानी टोला और लक्ष्‍मणपुर बाथे के हत्‍यारों के छूटने पर कोई शोर नहीं मचाता, आंदोलन तो बहुत दूर की बात है। लेकिन अंबेडकर के एक कार्टून पर (जिसमें कुछ भी अंबेडकर विरोधी नहीं था) सुहास पल्‍शीकर के कार्यालय में तोड़-फोड़ कर सकता है।

    • हमें आप जैसे प्रतिबद्ध लोगों का साथ चाहिए। आप यकीन करें कि आलोचना से हमसे कोई नाराज़ नहीं हुआ है। हम खुद महाराष्‍ट्र में काम कर रहे हैं। आह्वान से जुड़ी एक टीम मुंबई विश्‍वविद्यालय के कालीना कैंपस में काम कर रही है। वहां भी हमने अंबेडकर के विचारों पर अपना स्‍टैंड रखा। लोगों से बहसें जरूर हुईं लेकिन हमें नहीं लगता कि इसकी वजह से दलित जनता से हम कोई कट गये। वंचित और दलित आबादी का असली सरोकार अपने जीवन की मूल समस्‍याओं, राजनीतिक-सामाजिक और आर्थिक हक़ों पर जुझारू संघर्ष से है। जो यह करेगा, वह उनके साथ खड़ी होगी। हम यही करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन जो विचारधारात्‍मक विभ्रम है उसके सफाये के लिए जरूरी है कि अंबेडकरवाद की एक वैज्ञानिक आलोचना पेश की जाये। क्‍योंकि दलित मुक्ति की परियोजना के ठहरावग्रस्‍त होने का सबसे बड़ा कारण आज अंबेडकरवाद की एक वैज्ञानिक आलोचना का अभाव है।

    • 20 hours ago · Like

    • Divyendu Shekhar आप लोग एक यूनिवर्सिटी खोल लें क्रिपया। आम आदमी आपके इन विचारों से अपने आपको काफ़ी दूर पाता है

    • 19 hours ago via mobile · Like

    • Abhinav Sinha आम आदमी की मेधा से सबसे ज्‍यादा अपरिचित और विश्‍वविद्यालयों और कारपोरेट घरानों में नौकरी करने वाले लोग ही आम आदमी के बारे में ऐसी टिप्‍पणी कर सकते हैं। सन्‍देह पैदा होता है कि ये कहीं केजरीवाल वाला 'आम आदमी' तो नहीं है!

    • 18 hours ago · Like

    • Divyendu Shekhar सर। आम आदमी इतनी थ्योरी को समझने की शक्ति नहीं रखता। उसको आपको सरल शब्दों में समझाना पड़ेगा। और विश्वविद्यालय । में पढे़ और काॅर्पोरेट में काम करने वाले लोग समाज में वो बदलाव ला रहे हैं जो बाक़ी वामपंथ ना जाने कितने सालों में नहीं ला पाया। हाँ केजरीवाल उस आंदोलन का एक ज़रूरी पात्र है क्योंकि वो उन लोगों से जुड़ पाया जिनसे आप नहीं जुड़ पाये। जिस दिन आप उस इंसान से उसकी भाषा में बात कर पायेंगे उस दिन आपकी बात कोई सुनेगा। तब तक आपकी ये सारी debates irrelevant और किताबी हैं।

    • 18 hours ago via mobile · Like

    • Abhinav Sinha दिव्‍येंदु, यहां पर एक संगोष्‍ठी में चली बहस का जि़क्र हो रहा था। केजरीवाल जिस ''आम आदमी'' की राजनीति कर रहा है, उससे जुड़ा है। हम जिस मज़दूर वर्ग की राजनीति कर रहे हैं, उससे जुड़े हैं। केजरीवाल की राजनीति का क्‍या होना है, ये तो जल्‍द ही पता चल जायेगा। सवाल राजनीति का है, कौन किस वक्‍त जनता से कितना जुड़ा इसका नहीं। उस नाटक का पात्र बनना हमारा मकसद नहीं है, जिसका कि केजरीवाल पात्र है। संगोष्‍ठी में राजनीतिक दायरे के अनुभवी और व्‍यहार से जुड़े लोग जुटते हैं। वहां वह राजनीतिक भाषा में ही बात करते हैं। हम जब लोगों के बीच होते हैं तो हमारी भाषा अलग होती है। फेसबुक पर वैसे भी ये बहसें जनता के लिए अप्रासंगिक ही रहेंगी, क्‍योंकि देश की कुल आबादी के 10 प्रतिशत के पास भी इंटरनेट कनेक्‍शन नहीं है। फेसबुक पर हम यह बहस सीधे समूची आम जनता को गोलबंद करने के लिए चला भी नहीं रहे हैं। जो ऐसा सोचता है, उसकी मेधा के बारे में जितना कम कहा जाय उतना अच्‍छा है। तुम फेसबुक पर ही अपनी ''जनता के करीब'' भाषा से गोलबंदी कर सकते हो। हमें यहां इस बात का रिपोर्ट कार्ड पेश करने की जरूरत नहीं है, कि हम आम जनता के बीच किस पद्धति और भाषा के जरिये जाते हैं। हालांकि, हमारे ऐसे अभियानो और आन्‍दोलनों की रपट भी फेसबुक पर आती रहती है। लेकिन शायद तुम फेसबुकिया टिप्‍पणी के लिए मुद्दे चुनने में काफी सेलेक्टिव हो। केजरीवाल की अदा भी कुछ ऐसी ही है। ताज्‍जुब नहीं।

    • 18 hours ago · Like

    • Divyendu Shekhar हमने आपके एक कटाक्ष का जवाब दिया। लेकिन सोचने की बात ये है कि आप उस जगह और उस बहस में क्यों नहीं आ पाते जहाँ वो है? क्योंकि आज अंबेडकर का कोई महत्व नहीं है। वो 50 साल पहले "थे"। बहरहाल आप अपना काम चालू रखें। मेरा बस यही कहना है कि दुनिया काफ़ी बदल गयी है

    • 17 hours ago via mobile · Like

    • Abhinav Sinha आपकी शिक्षा और नसीहत पर ध्‍यान दिया जायेगा ! हमें जिस बहस में जिस जगह होना है, वहां हम हैं; आपको और 'आप'को जिस जगह जिस 'बहस' में होना है, वहां वह है। समय दोनों का ही हिसाब कर देगा। अंबेडकर के बारे में हमारे विचारों के बारे में बिना पढ़े टिप्‍पणी न करें, तो बेहतर होगा। पहले हमारे विचार जान लें। हमारा काम किसी की नसीहत के बिना भी जारी था और जारी रहेगा। बाकी, दुनिया तो हमेशा ही बदलती रहती है, इस सत्‍य से अवगत होने के लिए भी किसी नसीहत की जरूरत नहीं है। हमने भी आपके कटाक्ष का ही जवाब दिया था। आपका हस्‍तक्षेप ही पहला था इस थ्रेड में। ग़ौर करें, कृपया।

    • 17 hours ago · Like

    • Divyendu Shekhar बिल्कुल। हमारी विचारधारा अब भी यही कहती है कि नेहरू गांधी और अंबेडकर अब भूल जाने लायक हैं। उनको पढ़ के तो और कुछ नहीं होना

    • 17 hours ago via mobile · Like

    • Rohit Parmila Ranjan http://www.indianexpress.com/.../after-maoists.../1215873/

    • 4 hours ago · Like

    • Rohit Parmila Ranjan those people who talks about sr.

    • 4 hours ago · Like



Economic and Political Weekly

If you haven't read it already, do read the independent fact finding committee's report on the Muzaffarnagar riots. The full report is available in Economic and Political Weekly web exclusives:


http://www.epw.in/web-exclusives/fact-finding-report-independent-inquiry-muzaffarnagar-%E2%80%9Criots%E2%80%9D.html

Like ·  · Share · 216 · about an hour ago ·

The Economic Times

ISRO's GSLV-D5 launch: 10 things that make it special http://ow.ly/sinuC

Like ·  · Share · 5672168 · about an hour ago ·


Himanshu Kumar

मुझे अजनबी सा जो जानकार के दिखा रहे हैं गली गली

इस शहर में मेरा घर भी है कहीं ये किसी को पता नहीं

मुज़फ्फर नगर मेरा अपना पुश्तैनी शहर है यहीं पैदा हुआ बड़ा हुआ . आज मुझे लोग इस तरह समझाते हैं जैसे मैं यहाँ के बारे में अनजान होऊँ .


और मुझे ये भी लगता है कि

मेरे कातिलों की तलाश में कई लोग जान से जायेंगे

मेरे क़त्ल में मेरा हाथ है कहीं ये किसी को पता नहीं


बशीर बदर साहब आज बेसाख्ता याद आये उनका घर मेरठ के दंगों में जला दिया गया था तब उन्होंने लिखा था

लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में

तुम तरस भी नहीं खाते बस्तियां जलाने में

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  • Jayantibhai Manani, Pankaj Chaturvedi, Ashutosh Singh and 70 others like this.

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  • Anand Rishi मार्मिक और सटीक !

  • about an hour ago · Like

  • Shalinee Tripathi Subhash सच है हिमांशु जी ,मुज्ज़फर्नगर के जलने का दुःख आपको कितना हुआ होगा इसकी सिर्फ कल्पना कर सकते हैं हम लोग...कोई कहीं भी रहे जब अपनी जन्मस्थली पर दंगों की खबर सुनता है तो आँखों से आंसू नहीं खून गिरता है...

  • 37 minutes ago · Like · 1

Palash Biswas स‌त्ता खेल के जो खिलाड़ी है,उनके लिए आम जनता का यह भोगा हुआ यथार्थ भी पूंजी है,हिमांशु जी। नकदीकरण की होड़ स‌े भी बचना है असहाय लोगों को।जख्म है,मलहम नहीं लेकिन।नमक की आवक बहुत है।


Economic and Political Weekly

"How bad climate impacts will be beyond the mid-century depends crucially on the world urgently shifting to a development trajectory that is clean, sustainable, and equitable, a notion of equity that includes space for the poor, for future generations and other species."


Read about the alarming report of IPCC on global warming:http://www.epw.in/commentary/ipccs-summary-policymakers.html


Abhishek Srivastava

क्‍या आपको पता है कि हमारे कस्‍बों-गांवों के गली-मुहल्‍लों में लोकप्रिय डिटरजेंट 555 अपनी स्‍थापना के 100वें साल में प्रवेश कर गया है? तमाम विदेशी 'टाइडों' की बाढ़ में जब 'विमल' और 'ओके' जैसे पाउडर काल-कवलित हो गए, 1914 में स्‍थापित 555 आज भी पूरे आत्‍मविश्‍वास के साथ विदेशी पूंजी के हमलों के सामने डटा हुआ है।


ग्‍लोबल के खिलाफ लोकल की इस लड़ाई से मैंने भी प्रेरणा ली है और 555 के 100वें साल में अपनी फेसबुक मित्र सूची को साफ़ कर के 555 तक ला दिया है।

Like ·  · Share · 2 hours ago ·

Palash Biswas अभिषेक,तुमने यह अच्छा किया।विदेशी पूंजी के खिलाफ लड़ रही देशज उत्पादों के स‌ाथ हमें खड़ा होना चाहिे।िस पहल के लिए आभार।


Rajiv Nayan Bahuguna

क्रांति और इश्क़ दोनों साथ साथ करो . अच्छी भाषा बोलो , सुरुचि संपन्न कपडे पहनो . यह तुमसे किसने कहा कि गुस्सैल , शुष्क , खडूस और चिडचिडे होने से तुम क्रांति कारी कहलाओगे ? रोज़ दांत साफ़ किया करो . कपडे धोने के लिए साबुन के पैसे नहीं , तो राख या रीठे से कपडे धुलो . शहर का खर्च नहीं पुक्ता तो किसी गाँव में चले जाओ . भूखों नहीं मर सकते . अगर लिखते हो , तो कुछ पढ़ भी लिया करो . गाते हो , तो अभ्यास करो , बे- सुरा मत गाओ . फालतू में दाढ़ी मत बढ़ाओ . बात में चाओ - माओ , लेनिन - सेनिन का जाप मत किया करो . अकारण धार्मिक आस्थाओं की खिल्ली न उड़ाओ . चाउमीन और मोमो खाना बंद करो . नज़र ठीक है तो बौद्धिक दिखने के लिए ज़बरन चश्मा न पहनो . लड़कियों के पीछे भागने वाले लड़कों का उपहास न करो , बल्कि खुद भी भागा करो . प्यार और सेक्स के लिए समय निकालो , तभी सहज रह पाओगे

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Surendra Grover

आज की शाम शुद्ध शाकाहारियों के नाम.. चौले की दाल की पकौड़ी.. नोश फरमाइए...

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जनज्वार डॉटकॉम

आप' का उदय इस बात का द्योतक है कि जनता अब तथाकथित मंदिर-मस्जिद अथवा पाखंडपूर्ण सांस्कृतिक राष्ट्रवाद जैसे झांसे में आने के बजाए रोटी-कपड़ा, मकान-स्वास्थ्य, स्वच्छ जल, महंगाई, भ्रष्टाचार, रोज़गार तथा अपने मूलभूत अधिकारों के लिए ज़्यादा चिंतित है...http://www.janjwar.com/2011-05-27-09-06-02/69-discourse/4666-aap-par-sandeh-nahin-ummid-rakhen-for-janjwar-by-tanveer-jafri

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जनज्वार डॉटकॉम

जिस तेजी से 'आप' का असर पूरे देश में हो रहा है, उससे बिना ममता बनर्जी के भी वाम समेत तीसरे मोर्चे की अच्छी संभावना है. लेकिन इसमें मुश्किल है कि अल्पसंख्यक वोट बैंक के खातिर दीदी अगर संघ परिवार के साथ खड़ी नहीं हो सकतीं, तो दो-तीन सीटें बंगाल में देकर 'आप' के साथ ज्यादा विश्वसनीय गठबंधन बनाकर खुद माकपाई रणनीति की ऐसी-तैसी कर सकती हैं...http://www.janjwar.com/2011-05-27-09-00-20/25-politics/4667-comradon-ka-khel-bigadengin-deedee-for-janjwar-by-bishvas

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Yashwant Singh

सब झूठ, छल, स्वार्थ, अवसरवाद, डर, भय, छल, कपट, सपने, शब्द, नारे, गुणागणित बेच रहे हैं.. लोकसभा चुनाव तक अगर मानसिक प्रदूषण से बचना है तो सोशल मीडिया से ज्यादा से ज्यादा दूर रहें.. पेड एजेंटों की भरमार है... मुखौटे लगाए लोग दोस्त बनते बनाते सिखाते गरियाते चले जा रहे हैं... पर, निराश होने की जरूरत नहीं है... बड़ा अदभुत देश है ये... अपनी गति से चलता है और चलते चलते कुछ क्रिएट कुछ नष्ट करता रहता है... हमारे चाहने न चाहने से बहुत कुछ बनता बिगड़ता नहीं.. केवल हम छलावा, भ्रम रखते पालते हैं कि हम बना बिगाड़ रच रहे हैं... मैं लोकसभा चुनाव तक के लिए खुद को इंगेज रखने की एक नायाब योजना बना रहा हूं.. कुछ प्रयोग करने की.. कुछ दूर जाने की... कुछ मुक्त होने की... कुछ खोने की... कुछ तलाशने की... कुछ देखने की.. कुछ महसूस करने की... इन दिनों बुद्ध के लिट्रेचर को पढ़ने में लगा हुआ हूं... बड़ा सुकून मिल रहा है पढ़कर और बड़ा अफसोस हो रहा है कि अब तक क्यों न पढ़ा.. पर, जब जो हो जाए वही सही... सो कीप इट अप यशवंत... इक बरहमन ने कहा है कि ये साल अच्छा है.... दिल को खुश रखने को ग़ालिब ये खयाल अच्छा है...

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  • Manjul Bhardwaj, Pankaj Chaturvedi and 102 others like this.

  • View 8 more comments

  • Rakesh Dev Narula wah...bilkul sahi...nabaz pakad liye logo ki yashwant bhai...

  • 16 hours ago · Like

  • Mohan K Mongha Jeenab Galib ke amrit vani; "Baalishtae atfaal hai duniya mere aagae, Hoota hai shabu rooz tmasha mere aagae"

  • Dost Dil ke kitab padne lage ho Buddhi se bahar ke duniya mae chlae aaye ho Viraane se chal ke Gulistan mae chlae aaye ho Apni hasti ko mitta ke Massti mae chlae aaye ho! M'saavat ke khushki se Mohbbat ke nami mae aaye ho Jiyoo mere dost! Khushaamdeedh Khushaamdeedh

  • 16 hours ago via mobile · Edited · Like

  • Dhruv Rautela buddham sarnam gachhami!!

  • 16 hours ago via mobile · Like

  • Radheyshyam Singh Yaswant maine kya hota hai ?tum jio ya mar jao duniya chalti rahegi yaswamdt!

  • 14 hours ago via mobile · Like

  • Palash Biswas यशवंत,सबस लोकप्रिय स‌ाइट तुम्हारा है,ये हालात के लिए पहल की जिम्मेदारी भी तुम्हारी है।एक मात्र भड़ा में छपी स‌ामग्री ही गुगल स‌माचार में शामिल हो पाती है।चाहो तो बहुत कुछ कर स‌कते हो।चिरकुटों की तोपंदाजी और रिटायर पापियों के पापस्खलन का माध्यम बने बिना तुम्हारी जो ताकत है,उसका इस्तेमाल करो बदलाव के लिए।तुम तो हनुमान हुए जा रहे हो इन दिनों और लगता है कि तुम्हें तुम्हारी चामात्कारिक ताकत का स‌्मरण कराना ही पड़ेगा।

  • a few seconds ago · Like

Himanshu Kumar

कबुली ने सैंतालीस के दंगे भी देखे थे . और अब दोबारा उसे फिर से अपने गाँव उजड़ना पड़ा है .

Muzaffar Nagar aged Muslim lady compares partition riots with recent one

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Muzaffar Nagar aged Muslim lady compares partition riots with recent one

Unlike ·  · Share · 15 hours ago ·

Rajiv Nayan Bahuguna

लठया ळी राखी बिड़ला , हे ध्याणी राखी बिड़ला

जनु बोलण तनु करण , गलेदारी नि लाणी चुची

झुठी बातु का राणा पाणा गाड़ी का कांच तिडला

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Anita Bharti shared Pavel Singh's photo.

आज मेरा बडा बेटा Pavel Singh पूरे 18 साल का हो गया है। पावेल का नाम हमने "मैक्सिम गोर्की" के उपन्यास "माँ" के नायक "पावेल" से प्रेरित होकर रखा था। इस नाम का एक अर्थ "पा लिया" यानी "उपलब्धी" भी है। सच में पावेल हमारे लिए उपलब्धी ही है।18 साल के होते-होते उसने अपने अंदर कुछ खासियतें विकसित कर ली है । वह गिटार बहुत अच्छा बजाता है। गाता बहुत अच्छा है। कार्टून बहुत अच्छे बनाता है। छोटी-छोटी डाक्यूमेंट्री बनाने में माहिर है। कहानी-कविता खूब बढिया लिख लेता है। स्टेज पर खडे होकर किसी भी विषय पर पूरे आत्मविश्वास के साथ भाषण दे सकता है। जो काम करता है पूरे मन से करता है। अपनी इस छोटी सी उपलब्धी को जन्मदिन की बहुत बहुत मुबारकबाद।

Best friends foreva!(Me & Camera)!! Image courtesy - Rythm Moses

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Sudha Raje

एक बहुत बङी संख्या वाली पत्रिका के संपादक का बयान पढ़ा ""कि गाँधी जी ने खुद अपना ही शौचालय दूसरों का नहीं साफ करके वाह वाही बटोरी ""


शायद उन्होने गाँधी को पूरा पढ़ा जाना समझा नहीं ।


नोआखाली में


भारत विभाजन के दंगों के वक्त भी गाँधी जी जब खूनी होली खेलने वाले सबसे हिंसक इलाकों में नंगे पांव चल चल कर लोगों से हथियार रखने की अपील कर रहे थे तब दंगाईयों ने रास्तों पर काँच और मल बिखेरवा दिया इतना कि गांधी जी के पांव घायल हो गये और हाथ से पास की घास पात उखाङकर गांधी ने पीछे आ रहे साथियों के लिये मल खुद साफ किया और यही नहीं वर्धा साबरमती और दिल्ली के सब आश्रमों का नियम था कि सब स्वयं सेवक साथ पकाते खाते अपना ही काता पहनते और सार्वजनिक रूप से आश्रम के शौचालय साफ करते थे गांधी शायद पहले व्यक्ति थे जिन्होने अपनो का बहिष्कार झेलकर कुष्ट रोगियों तक के मल मूत्र साफ किये दूसरे धर्म के लोगो को साथ रखा और ये परंपरा बनायी ।


जबकि ये सब उस युग में कठिन था ।


कम से कम ""फ्रीडम एट मिडनाईट पढ़ लीजिये ।

©®सुधा राजे

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  • Rajiv Nayan Bahuguna, Sudha Raje and 28 others like this.

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  • Pran Chadha हिदी अनुवाद भी कुछ आ गए है ..मनहर चौहान का मूल्य १५० ..

  • 4 hours ago · Like · 1

  • ठाकुर आशीष सिंह श्रीनेत sab man gadhrantbate hai...

  • 3 hours ago · Like · 1

  • Sudha Raje ब्रिटिश पत्रकारों का एक समूह फोटो सिनेमा सहित दंगों की कवरेज करता रहा और बहुत कठिन दौर में भी सप्रमाण सामग्री विदेशी लेकर गये क्योंकि वे गलत साबित कर नहीं पाये गाँधी को गांधी का फायदा उठाने वाले गलत हैं

  • 2 hours ago via mobile · Like

  • Sudha Raje विलियम सी डगलस और लेपियरे ब्रदर्स ऐसे ही लोग थे

  • 2 hours ago via mobile · Like

  • Palash Biswas स‌ुधा असमंजस में हू। रात में मेल में तुम्हारी टिप्पणी देखी।दफ्तर में फेसबुक खुलता है नहीं। अंतःस्थल मेरा ब्लाग है।संवाद वहीं चल रहा है।वहां मैं ही नाम स‌मेत तुम्हारी रचनाएं अबतक पोस्ट करता रहा हूं।तकनीक विशेषज्ञ वहां भी घुसपैठ कर रहे हों तो मैं असहाय हूं।इसकी काट तो तकनीकी लोग ही स‌ुझा स‌कते हैं। बहरहाल तुम जो लिख रही हो,उसे महत्वपूर्ण स‌मझकर इस स‌ंवाद में शामिल करता रहा हूं अबतक।अब यह भी तुमने ऎसा लिख दिया है कि इसे भी शामिल करना पड़ रहा है।तुम्हारा नाम हर रचना के स‌ाथ जा रहा है और पाठकों तक बात पहुंच भी रही है।अब तुम फैसला करो कि आगे स‌ंवाद में तुम््हारी अविराम रचनाशीलता को जोड़े रखा जाये या नहीं।वैसे बहुत स‌ारे शोधार्थी मेरा लिखा प्रिंट में न होने की वजह स‌े,खासकर स‌ार्वजनिक स‌्थलों में मेरे कहे तथ्यों को मोबाइल इत्यादि स‌े रिकार्ड करके बिना नामोल्लेख अपना बताकर कैम्बिज,आक्सपोर्ड,लंदन स‌्कूल आफ इकोनामिक्स के अपने शोधपत्रों में खपाते हैं।हमें इसका अफसोस नहीं है।क्योंकि हम विचारों और जनसरोकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं।कालजयी होने की लालसा होती तो वैकल्पिक मीडिया के चौखट पर होने के बजायसंपादकों,प्रकाशकों और आलोचकों के यहां पंक्तिबद्ध होते।तुम या हम जो लिखते हैं,वह पाठकों तक किसी भी रुप में पहुंचे,यह जरुरी है।पहले भी लिखा है कि तुम्हारी हर पंक्ति में तु्म्हारी खास पहचान दर्ज होना चाहिए,उस ठप्पे को अलग करने का करिश्मा कोई नहीं कर स‌केगा।जैसा वाल्तेयर या नजरुल की किसी रचना के स‌ाथ हो ही नहीं स‌कता।मुक्तिबोध स‌े चुराने की कोशिश करनेवाला आत्महत्या ही करेगा।

  • 4 minutes ago · Like

  • Palash Biswas अभी तुमने चूंकि मना नहीं किया है,कम स‌े कम यह पोस्ट मैं स‌ंवाद में शामिल कर रहा हूं।आगे तुम न चाहो तो जैसे चाहकर भी कंवल भारती जी का लिखा उनकी मनाही के कारण मैं लेता नहीं हूं,वैसे तुम्हारा भी लिखा स‌ंवाद में फिर शामिल न होगा।हमें खुशी है कि हमारे नये पुराने ज्यादातर मित्रों ने इसकी इजाजत दे रखी है।तुमसे और स‌ुनीता भास्कर स‌े उत्तराखंडी लगाव कुछ ज्यादा ही है।तुम मना करोगी तो अफसोस जरुर रहेगा।लेकिन यकीन करो कि हम तुम्हारी रचनाशीलता पर निरंतर नजर रखेंगे और गाहे बगाहे अपना ज्ञान भी बघारकर तुम्हारी नींद में खलल डालते रहेंगे।भूढ़े लोगों की कुछ बुरी आदतें बी होती हैं, जो छूटती नहीं है।

  • a few seconds ago · Like

Satya Narayan

"प्यार का उल्टा नफ़रत नहीं, तटस्थता है। सुंदर का उल्टा असुंदर नहीं, तटस्थता है। विश्वास का उल्टा अविश्वास नहीं, तटस्थता है। जीवन का उल्टा मृत्यु नहीं तटस्थता है।"


– एली वीज़ल

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Avinash Das

दिसंबर में फॉरवार्ड प्रेस के युवा पत्रकार अशोक चौधरी [Ashok Chaudhary] ने मुझसे तीन सवाल पूछे थे, मैंने यथाबुद्धि अपने जवाब भेज दिये। जनवरी के अंक में वह छपा है। सवाल-जवाब दोनों ही बहसतलब हो सकते हैं, इसलिए यहां उसे कटिंग के साथ शेयर कर रहा हूं। (कृपया इसे सेल्‍फ प्रोमोशन न मानें...)


1) उत्तर भारत के मीडिया पर दलित बहुजन तबकों की ओर लगातार यह आरोप लगते रहें है कि यहां उनकी बात नहीं सुनी जाती। आप इन आरोपों में कितना दम पाते हैं?


- भारतीय मीडिया के बारे में प्रचारित धारणा भले ही निरपेक्ष, लोकतांत्रिक संस्‍था के रूप में है, लेकिन सच यही है कि इसकी पूरी संचरना भारतीय समाज की अपनी विसंगतियों से अलग नहीं है। मेधा पर हजारों सालों के सवर्ण आधिपत्‍य को संविधान ने जिस तरह से समतल करने की सहूलियतें दी हैं, दुर्भाग्‍यपूर्ण तरीके से वह निजी संस्‍थाओं पर लागू नहीं होती। यही वजह है कि मीडिया ही नहीं, भारत के तमाम निजी उपक्रमों में अघोषित सवर्ण वर्चस्‍व की स्थितियां मौजूद है। इसलिए अगर दलित-बहुजन भारतीय मीडिया पर उनकी बात अनसुनी करने का आरोप लगाते हैं, तो वह अकारण नहीं है।


2) अगर यह आरोप सही हैं तो इस दिशा में मीडिया को क्या उपाय करना चाहिए?


- मीडिया अब पूरी तरह से कारोबारी संस्‍था हो चुका है। टर्न-ओवर की चिंता उसकी प्राथमिकता है, न कि खबरों की विश्‍वसनीयता। अभी के हालात में वहां सामाजिक सुधार की कोई भी प्रक्रिया मुश्किल है। ऊंचे पदों पर ऊंची जाति का कब्‍जा है और गलती से कोई बहुजन नेतृत्‍व वहां जाता भी है, तो उन्‍हीं के हितपोषण की अतिरिक्‍त कोशिश करता हुआ दिखता है। सिर्फ पूंजी का दबाव ही वहां काम कर सकता है। लिहाजा समृद्ध दलित-बहुजनों के लिए तो वहां एकाध गुंजाइश निकलते हुए तो हम देखते हैं - पर उसे सामान्‍य न्‍याय के रूप में हम नहीं देख सकते।


3) क्या आप दलित-बहुजनों के "अपने" वैकल्पिक मीडिया हाउस की जरूरत महसूस करते हैं?


- दलित-बहुजनों को अपने मीडिया-विकल्प पर इसलिए भी काम करना चाहिए, क्‍योंकि देश को देखने के उनके नजरिये के प्रसार की आज बहुत सख्‍त जरूरत है। जब दलित-बहुजनों की वैकल्पिक राजनीति के लिए देश में जगह बन सकती है, तो उनके वैकल्पिक मीडिया का भी स्‍वागत किया जाएगा। निश्चित ही वह जातीय मीडिया नहीं होगा, क्‍योंकि भारतीय परिस्थितियों में दलित-बहुजन एक सामाजिक-राजनीतिक विमर्श है, विचार है। हां, ऐसे मीडिया का ढांचा अगर कॉरपोरेट की जगह कॉपरेटिव होगा, तो वह समग्रता में भारत के मुख्‍यधारा मीडिया के विकल्‍प की तरह भी खड़ा हो पाएगा।

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Himanshu Kumar shared a link.

BSF still occupying our schools, market area, Pls help us get them vacated...

cgnetswara.org

CGnet Swara is a platform to discuss issues related to Central Gondwana region in India. To record a message please call on +91 80 500 68000.

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Jagadishwar Chaturvedi

केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश ने कहा है आप पार्टी के उदय और दिल्ली में उसकी जीत ने सभी परंपरागत दलों को चेतावनी दी है कि यदि परंपरागत दलों ने जनता की आवाज नहीं सुनी तो वे जल्द ही इतिहास के पन्नों में समा जाएंगे ।

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Shruti Nagvanshi and Lenin Raghuvanshi shared a link.

PVCHR: मुजफ्फरनगर के दंगा पीड़ितों के राहत शिविर का सच : कराहती मानवता एवं कड़ाके की ठंड में जम...

pvchr.net

  • Shruti Nagvanshi
  • ऐसे में जरूरत है कि विभिन्न राजनैतिक पार्टिया अपनी - अपनी रोटियाँ सेंकने और जनता को गुमराह करने व एक दूसरे पर दंगे की जिम्मेदारी डालने के बजाय दंगा पीड़ितों के तन से गहरे मन के घावों को भरने के प्रयास में मिलकर काम करें | पीड़ितों के इज्जत, आशा, मानवीय गरिमा को ध्यान में रखते हुए अविलम्ब बिना किसी भेदभाव के नागरिक अधिकार संरक्षित करते हुए पुनर्वासित किये जाने के लिए लम्बी अवधि तक कार्यक्रम चलाना होगा, जिसमें मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक सम्बल के पहल को महत्व देना होगा | जरूरत है की दंगा प्रभावित ग्राम पंचायतें दंगे के शिकार पीडितो से क्षमा याचना करते हुए (Reconciliation) उन्हें अपने निवास ग्रामों में वापस लाकर पुनर्वासित करने का कार्य करें अन्यथा शासन द्वारा इन ग्राम पंचायतो का विकास फण्ड रोक दिया जाय |

  • http://www.pvchr.net/2014/01/blog-post_5605.html

  • Like ·  · Share · 92 · 14 hours ago ·

  • Lenin RaghuvanshiAkhilesh Yadav
  • ऐसे में जरूरत है कि विभिन्न राजनैतिक पार्टिया अपनी - अपनी रोटियाँ सेंकने और जनता को गुमराह करने व एक दूसरे पर दंगे की जिम्मेदारी डालने के बजाय दंगा पीड़ितों के तन से गहरे मन के घावों को भरने के प्रयास में मिलकर काम करें | पीड़ितों के इज्जत, आशा, मानवीय गरिमा को ध्यान में रखते हुए अविलम्ब बिना किसी भेदभाव के नागरिक अधिकार संरक्षित करते हुए पुनर्वासित किये जाने के लिए लम्बी अवधि तक कार्यक्रम चलाना होगा, जिसमें मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक सम्बल के पहल को महत्व देना होगा | जरूरत है की दंगा प्रभावित ग्राम पंचायतें दंगे के शिकार पीडितो से क्षमा याचना करते हुए (Reconciliation) उन्हें अपने निवास ग्रामों में वापस लाकर पुनर्वासित करने का कार्य करें अन्यथा शासन द्वारा इन ग्राम पंचायतो का विकास फण्ड रोक दिया जाय |

  • http://www.pvchr.net/2014/01/blog-post_5605.html

  • Like ·  · Share · 15 hours ago near Varanasi ·

Yashwant Singh

मीडिया वाले ऐसी खबरें व इससे संबंधित वीडियो नहीं दिखाएंगे जिसमें साफ साफ चेकपोस्ट वाले सरकारी कर्मचारी कह रहे हैं कि उनकी हिम्मत नहीं पड़ती विधायकों मंत्रियों की गाड़ियां रोकने की... क्योंकि, मीडिया वालों ने फिलहाल केजरीवाल एंड कंपनी के एक-एक पल (जैसे पूरा मीडिया बिग बॉस के कैमरों में तब्दील हो गया हो) को सूक्ष्म लेंस से देखने का ठेका ले लिया है... अरे भइया, यूपी बिहार में जगह जगह खबर है, वीडियो है, फुटेज है... उसे दिखाओ ताकि हर जगह सुशासन आए... आम आदमी पार्टी वाले तो बेचारे खुद ही इतने वादे करके आए हैं कि उन्हें अब मजबूरी में पूरा कर दिखाना है, और वो करेंगे भी, क्योंकि पंद्रह साल में कांग्रेस ने जो बिगाड़ा है उसे आखिर पंद्रह दिन में तो बिलकुल ठीक नहीं किया जा सकता... मीडिया वालों व सोशल मीडिया वालों, दोनों से अनुरोध है कि इस खबर में दिए गए वीडियोज को देखें और इसे शेयर करें ताकि सबकी आंख खुले...

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चेकपोस्ट वाले कह रहे हैं- कौन चेक करेगा मंत्रियों और विधायकों की गाड़ियां (देखें वीडियो)

http://bhadas4media.com/state/up/16998-2014-01-04-16-25-02.html

Bhadas4media

चेकपोस्ट वाले कह रहे हैं- कौन चेक करेगा मंत्रियों और विधायकों की गाड़ियां (देखें वीडियो) http://bhadas4media.com/state/up/16998-2014-01-04-16-25-02.html

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  • 24 people like this.

  • Narendr Kumar Gupta उन ख़बरों को दिखाने के लिए कांग्रेस पैसा नहीं देती. और केजू कम्पनी तो कांग्रेस का ही बच्चा है. उसकी खबर क्यों न दिखाएँ . बोटी मिलना बंद न हो जाएँगी.

  • 16 hours ago · Like · 2

  • Arun Sathi और भी गम हे

  • 8 hours ago via mobile · Like

TaraChandra Tripathi

प्रदेश में तो 'आ" ठीक है. पर क्या अपरीक्षित आदर्शवादियों को देश् की बागडोर सौंपना उचित होगा?

Like ·  · Share · 17 hours ago ·

गंगा सहाय मीणा with आम आदमी पार्टी

अगर आम आदमी पार्टी मानती है कि इंसान-इंसान बराबर है, इसलिए आरक्षण की कोई जरूरत नहीं है तो उसे काफी जनरल सीटों पर SC/ST उम्‍मीदवारों को टिकट देना चाहिए था.

Like ·  · Share · about an hour ago near New Delhi ·

Pradyumna Yadav shared Ajeet Yadav's photo.

उत्तर प्रदेश के सवर्ण न्यायालय के फैसले को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी से बाहर की गयी जातियों को पुनः ओबीसी वर्ग में शामिल किये जाने का आदेश दिया है।

पुलिस भर्ती में शामिल

सभी युवाओ को बधाई!

Like ·  · Share · 82 · 22 hours ago ·


TaraChandra Tripathi

18 hours ago ·

  • बचपन में दादी एक कथा सुनाया करती थी।
  • "एक राजा था। राजा ने संतान के लिए तरह-तरह की मनौतियाँ मानी, पर सन्तान नहीं हुई। वंश के अन्त की चिन्ता तो थी ही, प्रजा भी अपुतरी (पुत्रहीन) राजा का मुँह देखना अपशकुन मानते थे। राजा भी परेशान, रानी भी।
  • संयोग से एक दिन एक योगी आये। राजा और रानी ने रो-रो कर उन्हे अपनी व्यथा सुनायी। योगी ने एक शर्त रखी कि जो फल वे रानी को खाने के लिए देंगे, उससे उनके दो पुत्र होंगे, लेकिन बारह साल बाद उनमें से एक पुत्र उन्हें योगी को सौपना होगा।
  • मरता क्या न करता। राजा और रानी ने शर्त मान ली।
  • साल भर बाद रानी के दो पुत्र उत्पन्न हुए। बड़ी दिव्य आभा वाले पुत्र। दोनों ने बडे़ मनोयोग से उनका पालन पोषण किया। वे पुत्र स्नेह में इतना डूबे कि उन्हें योगी को दिये गये वचन की याद ही नहीं रही।
  • इसी तरह बारह वर्ष बीत गये। बारह वर्ष बीतते ही एक दिन सुबह-सुबह योगी ने दरवाजे पर दस्तक दे कर अपनी शर्त याद दिलायी। बड़े दुखी मन से राजा-रानी ने अपने दोनों पुत्रों को बुलाया। योगी से कहा, महाराज! जिसे आप ले जाना चाहें, उसे ले जाइये।
  • योगी ने दोनों बच्चों को अपने पास बुलाया और पहले बच्चे से पूछा। बच्चा! तुम शहर के रास्ते चलोगे या जंगल के? बच्चे ने सहज ही उत्तर दिया। शहर के रास्ते। योगी थोड़ी देर तक चुप रहा।
  • फिर उसने दूसरे बच्चे से पूछा। बच्चा! तुम शहर के रास्ते चलोगे या जंगल के। बच्चे ने उत्तर दिया। जंगल के रास्ते बाबा जी!। योगी प्रसन्न हुआ और उस बच्चे को अपने साथ लेकर चल दिया।
  • आश्रम में जाकर योगी ने बच्चे से कहा। बच्चा! मैं भिक्षाटन के लिए बाहर जा रहा हूँ। मेरे आने तक तुम उस कढ़ाव में तेल उबाले रखना। योगी चला गया।
  • बच्चे ने कढ़ाव में तेल उबालने के लिए रख दिया। उत्सुकता वश वह आश्रम में इधर-उधर देखने लगा।
  • जैसे ही उसने एक अलमारी खोली, उसके भीतर रखे कंकाल खड़खड़ाते हुए हँसने लगे। बच्चा चकित हुआ, डरा भी। दूसरी अलमारी खोली। वहाँ रखा कंकालों का ढेर भी हँसने लगा। इसी तरह बच्चे ने छोटी-बड़ी सारी अल्मारियाँ खोल डालीं। सब जगह एक ही हाल। सब जगह खड़खड़ा कर हँसती हुई हड्डियाँ। बच्चे ने उनसे हँसने का कारण पूछा।
  • हड्डियाँ बोली। तुम बड़े मस्त क्या हो रहे हो, तुम्हारी भी यही दशा होने वाली है।
  • बच्चे ने पूछा। हड्डियाँ! बताओ मुझे क्या करना चाहिए।
  • हड्डियाँ बोली। यह योगी घर आकर पूछेगा। बच्चा! तेल उबल गया। तेल तो उबल ही रहा होगा । इसलिए तुम सहज ही कहोगे हाँ बाबा!
  • इसके बाद बाबा तुम से कहेगा। बच्चा! जरा नाच कर तो दिखाओ। जैसे ही तुम उसके कहे अनुसार नाचने लगोगे, वह एक मुदगर मार कर तुम्हें उबलते हुए तेल कढाव में गिरा देगा और भून कर खा जायेगा।
  • बच्चे ने पूछा। हड्डियो! बताओ, मुझे क्या करना होगा।
  • हड्डियाँ बोली। जैसे ही योगी तुमसे नाचने के लिए कहे, तुम कहना बाबा जी! पहले गुरु, पीछे चेला और जैसे ही मल्ल-मल्ल, वह नाचने लगे, तुम मुद्गर मार कर उसे तेल के कढ़ाव में गिरा देना।
  • बाबा आया। देखा कढ़ाव में तेल उबल रहा है। बच्चे से कहा बच्चा! जरा नाच के तो दिखाओ। बच्चे ने कहा। नाचना तो सीखा ही नहीं। इसलिए पहले गुरु, पीछे चेला।
  • योगी नाचने लगा। जैसे ही वह नाचने लगा बच्चे ने मुद्गर मार कर उसे उबलते तेल के कढ़ाव में गिरा दिया।
  • योगी मर गया।
  • बच्चे ने फिर हड्डियों से पूछा। बताओ, अब क्या करना होगा। हड्डियाँ बोलीं। उस अलमारी में एक कलश में अमृत रखा हुआ है। उसे हम पर छिड़क दो। बच्चे ने वही किया। सारी हड्डियाँ हाय नींद, हाय नींद, कहती हुई उठ खड़ी हुईं। सब के सब राजकुमार जैसे ही। उन्होंने राजकुमार का आभार माना और अपने अपने देश को चले गये। 'काथ पुरीणि पलि पलिगे' (कथा पूरी हुई....गयी।)
  • शहर के रास्ते चलने वाला बच्चा हमारी तुम्हारी तरह, चैन से छोटा बड़ा राजसुख भोगता रहा और कहीं खो गया। पर जंगल के रास्ते चलने वाले सिरफिरे बच्चे ने खतरा भले ही मोल लिया हो, मन में कुछ उम्मीदें जगायीं।
  • शहर का रास्ता चुनने वाले हम सब लोग जंगल का रास्ता चुनने वाले उस बच्चे की हँसी उड़ाते रहे, अपने छोटे- बड़े सुख में डूबे रहे. योगी कापालिक मनमानी चल रही है. पता नहीं जंगल के रास्ते चलने वाला बच्चा कब आयेगा--------
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Bhaskar Upreti

ओमप्रकाश वाल्मीकि के बाद ओमप्रकाश वाल्मीकि

:::हाल में दिवंगत हुए लेखक ओमप्रकाश वाल्मीकि के व्यक्तित्व और कृतित्व पर आज 'संवेदना' की बैठक में लेखक-वैज्ञानिक अरुण कुमार असफल ने अपना संस्मरण पढ़ा. कई जानकारियां मिलीं, जैसे वाल्मीकि दंपत्ति ने मराठा दलित लेखन समझने के लिए मराठी सीखी. मराठी और हिंदी में थियेटर भी किया. 'हंस' पत्रिका और ओमप्रकाश वाल्मीकि एक दूसरे का पर्याय बन गए थे. लेकिन, उनकी पहली रचना छापने में राजेंद्र यादव ने बहुत समय लिया. वह भी तब छापी जब वे देहरादून में हुए एक समारोह में बोल रहे थे कि हिंदी में दलित लेखन नहीं हो रहा तो वहां उपस्थित वाल्मीकि ने भीड़ के बीच से कहा कि आप दलित लेखकों को छापते ही नहीं. अगले ही अंक में उनकी कहानी 'बैल की खाल' आ गयी. उसके बाद वे 'हंस' के स्थायी लेखक हो गए.

चर्चा में शामिल होते हुए दून स्कूल के शिक्षक डॉ. फ़ारूकी ने कहा कि वाल्मीकि जी जिस समाज के लिए शिद्दत के साथ लिखते थे, उस शिद्दत के साथ उनके आंदोलनों में नहीं दिखाई दिए. बात ये थी कि वे उस समय में लिख और छप रहे थे जिस समय में दलित आन्दोलन उभार में आया. हिंदी लेखकों की जो सीमायें थीं, वो वाल्मीकि भी नहीं तोड़ पाए.

लेखक दिनेश चन्द्र जोशी ने कहा कि वाल्मीकि जी व्यावहारिक व्यक्ति थे. सबसे बनाकर चलते थे. दलित साहित्य उनका कामिटमेंट था, लेकिन केवल साहित्य में ही. वे सवर्णों की मुखालफत करते थे, लेकिन नास्तिक नहीं थे. दलितों का दर्द उठाना उनका पब्लिशिंग स्टंट भी हुआ करता था. लेकिन उनके कहे हुए का असर होता और एक तरह से वे साहित्य की दलित धारा के नायक बन गए.

वरिष्ठ लेखक सुभाष पन्त ने कहा कि लेखक की रचना का मूल्यांकन उसके अपने जीवन काल में तो होता ही ही है, लेकिन उससे अधिक उसके मरने के बाद होता है. वाल्मीकि जी एक सफल लेखक थे लेकिन यह समाज की अपेक्षा रहती है कि उस समाज के हालात बदलें जिस पर लेखक लिख रहा है.

*संवेदना मंच की बैठक माह के पहले रविवार की शाम हिंदी भवन, देहरादून में होती हैं. यह मंच 35 साल से सक्रिय है. इसकी बैठकों में बाबा नागार्जुन, कमलेश्वर, राजेंद्र यादव, रमेश उपाध्याय आदि नामी लेखक भी शामिल हो चुके हैं. इन बैठकों में लेखक अपनी रचनाएँ पढ़ते हैं. उन पर दूसरे लेखक अपनी प्रतिक्रियाएं देते हैं. आम तौर पर तीखे रूप में, ताकि रचना और परिपक्व हो सके. खुद ओमप्रकाश वाल्मीकि इस मंच पर आते-जाते रहे. और शहर के लेखकों के आत्मीय हैं.

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  • Rajiv Nayan Bahuguna, Jagadishwar Chaturvedi, Anita Bharti and 15 otherslike this.

  • Vijay Gaur बैल की खाल कहानी से पहले कविताएं प्रकाशित हुई थी हंस में। कहानी कविताओं के बाद वाले अंक में आयी थी। या तो आपके सुनने में गलती हुई हो या फ़िर अरूण जी की स्म्रति में आगा पीछा हुआ होगा।मामला समारोह का नहीं एक छोटी सी गोष्ठी का था। आमने सामने बैठकर। खबर यहां लगाकर देहरादून पहुंचा दिया भाई । आभार।

  • 17 hours ago · Edited · Like · 1

  • Shirish Kumar Mourya 2005 मुझे एक बार उन्‍होंने फोन किया था। प्रसंगVijay भाई द्वारा दूरदर्शन के लिए लिए गए मेरे साक्षात्‍कार का था, जिसमें मैंने हिन्‍दी दलित साहित्‍य को मराठी दलित साहित्‍य(जिसके लम्‍बा सामाजिक-राजनीतिक आंदोलन है)के बरअक्‍स रखकर टिप्‍पणी की थी। स्‍त्री और...See More

  • 16 hours ago · Like · 2

  • Abhishek Mishra मराठा दलित लेखन kya hota hai ?

  • 15 hours ago · Like

  • Bhaskar Upreti विजय जी जो मैंने सुना उसके अनुसार 'युगवाणी' ने उनकी कविताएँ छापी पहले. वैसे दिनेश जोशी जी ने एक-दो प्रसंगों में असफल जी के संस्मरणों को करेक्ट किया था. पोस्ट शेयर करने की मेरी मंशा के पीछे यही बात है कि 'संवेदना' की बैठकों में किस निर्ममता से अपने ही लेखकों की खबर ले ली जाती है. यह खास बात है, जो हिंदी लेखक अक्सर सहन नहीं कर पाते.

  • 47 minutes ago · Like

Jagadishwar Chaturvedi

मीडिया की गैरजिम्मेदारी और तथ्यहीन रिपोर्टिंग देखना हो तो मंत्री राखी बिडलान के बारे में कल आई खबर को देखें। तथ्यों को जाने बिना पत्रकार रिपोर्ट करना बंद करें। आज पता चला है-


दिल्ली की महिला एवं बाल विकास मंत्री राखी बिड़ला की कार पर कथित तौर से अज्ञात लोगों द्वारा किए गए हमले में नया मोड़ आ गया है। चश्मदीदों के मुताबिक, कार के शीशे पर पत्थर नहीं बल्कि पास में क्रिकेट खेल रहे एक बच्चे की गेंद लगी थी। गेंद लगने के बाद बच्चे और उसके पिता ने मंत्री से माफी भी मांग ली थी। आरोप लग रहे हैं बच्चे और पिता के द्वारा माफी मांगने के बावजूद राखी बिड़ला ने तथ्य को छिपाते हुए मंगोलपुरी थाने में दर्ज एफआईआर में हमले की बात कही है।


बीजेपी और कांग्रेस ने कहा है कि जब माफी मांग ली गई थी, तो मंत्री को बात को वहीं पर खत्म कर देना चाहिए था, पुलिस को गुमराह नहीं करना चाहिए था। कुछ स्थानीय लोगों ने टीवी कैमरे के सामने कहा कि मंत्री को पुलिस सिक्यॉरिटी लेनी है, इसलिए वह नौटंकी कर रही हैं।

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Satya Narayan

आम तौर पर यह माना जाता है कि युद्ध राजनीतिक कारणों से होते हैं तथा अधिकांशतः आत्मरक्षा/आत्मसम्मान हेतु लड़े जाते हैं। बुर्जुआ संचार माध्यमों के द्वारा व्यापक जनसमुदाय में इस धारणा की स्वीकृति हेतु विभिन्न कार्यक्रमों का प्रसारण किया जाता है। युद्धाभ्यास, युद्धसामग्री की ख़रीद-फ़रोख़्त हथियारों के प्रेक्षण आदि जैसी सैन्य क्रियाओं को राष्ट्रीय अस्मिता के साथ जोड़ते हुए शोषित-उत्पीड़ित जनता को गौरवान्वित करने हेतु प्रोत्साहित करने का कार्य पूँजीवादी भाड़े के भोंपू निरन्तर करते रहते हैं। परन्तु यह तथ्य स्पष्ट है कि पूँजीवाद की उत्तरजीविता को बरकरार रखने तथा अकूत मुनाफ़े की हवस ने दो महायुद्धों व 50 के दशक के बाद विश्व के बड़े भूभाग (लातिन अमेरिका, एशिया, अफ्रीका) पर चलने वाले क्रमिक युद्धों को जन्म दिया। द्वितीय विश्वयोद्धोत्तर काल में लड़े गये अधिकांश युद्ध साम्राज्यवादी आर्थिक हितों के अनुकूल ही रहे हैं। साम्राज्यवादी देशों की बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा अकूत सम्पदा की लूट के बाद यदि किसी को सर्वाधिक लाभ हुआ तो वे थीं हथियार निर्माता कम्पनियाँ! युद्ध सामग्री के वैश्विक व्यापार की विशेषता निरन्तर लाभ की मौजूदगी है। हथियारों का यह व्यवसाय सर्वाधिक लाभकारी है। किसी भी राष्ट्र द्वारा ख़रीदी गयी युद्ध सामग्री का प्रयोग अनिवार्यतः युद्ध में हो इसकी कोई गारण्टी नहीं है चूँकि युद्ध उपकरण कुछ समय बाद ही पुराने पड़ जाते हैं। अतः नवीन युद्ध उपकरणों की ख़रीद-फ़रोख़्त की प्रक्रिया पुनः प्रारम्भ हो जाती है।

http://ahwanmag.com/archives/650

"विश्व शान्ति" के वाहक हथियारों के सौदागर

ahwanmag.com

आम तौर पर यह माना जाता है कि युद्ध राजनीतिक कारणों से होते हैं तथा अधिकांशतः आत्मरक्षा/आत्मसम्मान हेतु लड़े जाते हैं। बुज़ुर्आ संचार माध्यमों के द्वारा व्यापक जनसमुदाय में इस धारणा की स्वीकृति हेतु...

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Jagadishwar Chaturvedi

मैं अपने लेखन की बहुत आलोचना सुनता हूँ ,मजा भी आता है। किताबें खूब लिखता हूँ तो उनको देखकर लोग तरह-तरह की बातें करते हैं,फेसबुक पर खूब लिखता हूँ तो बहुत सारी खरी खोटी सुनता हूँ।कोई पंडित कहता है, कोई कॉमरे़ड कहता है, कोई प्रोफेसर कहता हूँ.किसी को वामपंथी,किसी को कांग्रेसी ,किसी को मोदी प्रचारक नजर आता हूँ।

सच यह है मैं किसी दल का सदस्य नहीं हूँ।जाति से ब्राह्मण हूँ। लेखन में भी ब्राह्मण हूँ। लेखन में ब्राह्मण से मतलब उस धारणा से है जिसको हजारीप्रसाद द्विवेदी मानते हैं। द्विवेदी जी ने लिखा है-"ब्राह्मण वे हैं जो अपनी योजना के अनुसार लिखते -पढ़ते हैं। "

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  • You, Mohan Shrotriya, Pankaj Chaturvedi, Sanjoy Roy and 54 others like this.

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  • Udan Tashtari हम तो दोनों हाल में दण्डवत हैं प्रभु- प्रोफेसर होवें तो, ब्राह्मण होवें तो!!

  • 12 hours ago · Like · 1

  • Jai Prakash Tripathi हम सफ लिखते हैं, ताकि लोग अच्छा पढ़े। हमे भी उतनी ही शिद्दत से साफगोईपसंद होना होगा। मेरी समझ से निजी जीवन दर्शन में भी हर व्यक्ति का कोई न कोई पक्ष अवश्य होता है। कोई अमूर्त या सामान्यीकृत स्थिति होती ही नहीं है। आप जो लिखते हैं, उसे 'ब्राह्मण'' शब्द से क्यों परिभाषित करना चाहते हैं, समझ नहीं आ रहा है। अगर ब्राह्मण''शब्द के सिरे से ये वामपंथ का सिरसासन है तो फिर कहा भी क्या जा सकता है!

  • 6 hours ago · Like · 1

  • Prabhat Ranjan आपने काफी अलग तरह की किताबें लिखी हैं हिन्दी में। मीडिया पर इतनी गहराई से हिन्दी में कोई और नहीं लिखता

  • 4 hours ago · Like · 1

  • Bhaskar Upreti आप ऐसे हैं...बड़े गड़बड़ हैं

  • 40 minutes ago · Like

Ashok Dusadh

बाबू जगजीवन राम भी गांधीवादी थे , उन्हें भी 'जातिवाद ' से ऊपर की बात सोचने के लिए प्रशिक्षित और ड़ीप्युत किया गया था .औकात तो तब पता चलता था जब बाबासाहेब के संघर्षो के बदौलत मिला आरक्षण ही उनका पनाहगाह होता था ,उन्होंने दलितों के कुछ नही किया यह जगजाहिर है .आज भी मीरा कुमार सुरक्षित सिट से ही सुरक्षित है और शायद राखी बिरलान भी .मगर रविश तो रविश हैं आधुनिक मनुवादी जैसे मार्क्सवादी 'क्रन्तिकारी' मनुवादी ?


http://khabar.ndtv.com/video/show/hum-log/304140

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Ashok Dusadh

बहन मायावती और बीएसपी के दो तरह के विरोधी है

एक जिन्हें मायावती जैसे नहीं बनने का दंश और इन्फेरिअरिटी है ,जो खासकर के बहुजन समुदाय के ही लोग है

दूसरा जिनके समाजिक ,सांस्कृतिक और आर्थिक वर्चस्व के लिए बहुजन समाज ,मायावती ,बीएसपी चुनौती लगती है और उसको समाप्त करना उनका ध्येय है .

पहले वाले विरोधियों ने चमचा संस्कृति को आत्मसात ही नहीं किया है बल्कि उसे दुसरे को भी ग्राह्य बनाने के लिए मिशन चला रहे है .

दुसरे किस्म के लोग 'आप' के छवि मांज धोकर बहुजन प्रो साबित कर रहे है !

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Faisal Anurag

ब्रांड बन कर कुछ भी बेचा जा सकता है।ज़रूरत पड़ने पर अपने गरज़ने को मिमियाने में बदल जा सकता है और माँ की मेहनत को भी। मानों दूसरों की माँ माँ ही नहीं। ज़किया जाफरी भी किसी की माँ हैं औ रसैकडों माताओं के सामने उनके मासून बच्चों की लाशें बिछीं। लेकिन उन्हें ब्रांड नहीं वास्त्विकताओं में जीना पड़ता है।

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चन्द्रशेखर करगेती

बल भैजी,


अब देश की राजनीति की सफाई सींक की झाड़ू से होना संभव नहीं है, आम आदमी जैसे आप लोग इस बात को समझ ही नहीं पा रहें हैं l


बल भैजी, नये ज़माने की राजनीति है, बड़े बड़े धन्ना सेठ लोग राजनीति में आ गये हैं, जो सुबह का नाश्ता भी सोने के चमच्च से करते है, अब ऐसे लोगो को सींक की झाड़ू के सहारे राजनीति से बाहर नहीं किया जा सकता ना ? सींक की झाड़ू दिल्ली की सत्ता दिलवा सकती है देश की व्यवस्था बदलनी है तो सोने-चाँदी की झाड़ू भी पास में होनाईच मंगाता ना !


खैर देश की राजनीति को सुधारने के लिए "आम आदमी पार्टी" ने सोने-चांदी की झाड़ू को भी साथ में लेना शुरू कर ही दिया है,अब सोने चांदी की झाड़ू रखने वालो की अलग जमात बनाई जायेगी और उन्ही से सोने के चमच्च रखने वालों की सफाई करवाई जायेगी, शुरुआत लोकसभा चुनाव से होगी बल !


खैर टाटा और अम्बानी खुश है और देख रहें है, कि इस देश की जनता का चूरन बनाने के लिए कमल-पंजा ही काफी नहीं था, उसे सोने चाँदी की झाड़ू का लोलीपोप भी दिया जाना जरूरी है !


इस कचरा सफाई को "आम आदमी" समझे या ना समझे पर ग्याडू अच्छे से समझ रहा है, राजनीति जो न करवाए भैजी, सींक वाली झाड़ू और सोने-चांदी की झाड़ू !


ग्याडू जनता सब समझती है, सोने की झाड़ू से साजिया इल्मी, नौटियाल जैसे लोग आयेंगे तो सींक वाली झाड़ू से राखी बिडला, गोपालराय जैसे लोग, क्या गजब संयोग बनेगा हो भैजी, जैसे गांधी और नेहरु में बना था....?

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  • मनोरथ कोठारी and 27 others like this.

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  • चन्द्रशेखर करगेती Sheetal P Singh जी, आप खुले दिल दिमाग के व्यक्ति है, मैं शाजिया इल्मी और टाटा बिडला को एक केटेगरी में नहीं रख रहा बल्कि उन्हें प्रतीक के रूप में बता रहा हूँ.....जब तक कॉर्पोरेट कल्चर को कोई राजनीतिक पार्टी त्यागती नहीं है, स्वराज की कल्पना बेमानी है, ...See More

  • about an hour ago · Edited · Like · 2

  • Dhananjay Singh टोपियाँ ही तो हैं साहब /कभी इसके सर तो कभी उसके

  • about an hour ago · Like · 1

  • Sheetal P Singh कोई कारपोरेट आया है? कुछ शीर्ष श्रेणी के नौकर(CEO CFO type) ज़रूर सुनें हैं । कैप्टन गोपीनाथ भी self made vizard कहे जा सकते हैं बस । ये लोग अन्ना आन्दोलन के साथ भी थे । वैसे World Bank UN और multinational corporates की होल्डिंग बाडी NGOs को बाक़ायदा officially funds देती है तीसरी दुनिया के देशों में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जनमत खडा़कर इसको रोकने के लिये। वैसे ही जैसे सड़क मेट्रो हवाई अड्डे और रेलवे के लिये ।

  • 57 minutes ago via mobile · Like

  • Sheetal P Singh आज ही दिल्ली विधान सभा में LG से सरकार ने कहलाया है कि आडिट न कराने वाली बिजली वितरण कंपनी का लायसेंस रद्द कर दिया जायगा । रिलायंस और टाटा दिल्ली में बिजली वितरण करते हैं । इसको तो देखिये या जुमा जुमा ८ दिन पुरानी सरकार से बोलशेविक क्रंाति की मांग से कम पर नहीं मानेंगे ।

  • "दिमाग़ खुला होने का complement देने के लिये आभार"। आप मेरे पसंदीदा फेसबुकिये हैं ।

  • 51 minutes ago via mobile · Like

Ashok Dusadh

बाबासाहेब चुनाव बहुत कठिनाई से जीतते थे ,जगजीवन राम आसानी से ! वैसे ही मान्यवर कांशीराम भी ,लेकिन रामविलास पासवान ने जित का वर्ल्ड रिकोर्ड बनाया ?आज भी लोग वही सवाल कर रहे है पंद्रह प्रतिशत दिल्ली में वोट पाने वाली राजनीतिक पार्टी बीएसपी को दलित छोड़कर अआप की तरफ क्यों चले गए !!

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  • Nomad's Hermitage, Vikash Mogha, Gautam Rs and 20 others like this.

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  • Sandeep Bansal Ab ek aur dalit netri paida ho gayi hai. Rakhi Bidlan. yeh kise bachche ki ball se toote apne gadi ke shishe ko apne uper hamle bata rahi hai.

  • http://khabar.ibnlive.in.com/news/114354/12

  • राखी बिड़ला ने दी सफाई, किसी ने मुझसे माफी नहीं मांगी

  • khabar.ibnlive.in.com

  • दिल्ली सरकार में मंत्री राखी बिड़ला की कार का शीशा टूटने के बाद रविवार को खबर फैली कि उनकी कार पर हमला किया गया। राखी ने पुलिस में इसकी शिकायत भी की।

  • 2 hours ago · Like · 1

  • Gangadin Lohar यदि `वामपंथी और समाजवादी मुख्यधारा´ के लिए सिद्धांत और व्यवहार में (i) पूंजीवाद एक तरह के अविकसित या अर्ध-विकसित साम्यवाद से अलग कुछ भी नहीं है अथवा (ii) साम्यवाद एक तरह के पूर्ण विकसित पूंजीवाद से अलग कुछ भी नहीं है -- तो उनको इस बात पर हैरान नहीं होन...See More

  • 2 hours ago · Like · 1

  • Pankaj Kumar जगजीवन बाबू 1971 की भारत – पाक के युद्ध के समय युद्ध के मोर्चे पर जवानों से मिलने जाते थे वह भी अपनी पत्नी के साथ बाद मै ईंदिरा जी उनके हौसले से प्रेरित हो कर स्वयं भी जाने लगी । दुनिया मै सब कोई सब काम नही कर सकता ईसका मतलब यह नही की वह कोई काम का नही ।

  • about an hour ago · Like

  • Mmakhra Mmakhra दुनिया में सब कामों को सब नहीं कर सकता पर जिस कार्य को करने के लिये संविधान ने आपको अरक्षित सिट दी जदी वो नहीं कर पाते तो फैल ही माना जाते हैं

  • जैसे बच्चे को सकुल में पड़ने भेजा जाए तो वो पडने के वजाएे और कहीं ध्यान रखे तो फैल ही होता है

  • 4 minutes ago via mobile · Like

गंगा सहाय मीणा and Manish Kumar Neurosurgeon shared a link.

'मैं राखी बिड़ला नहीं, बिडलान बोल रही हूं'

ndtv.com

दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार में सबसे छोटी कैबिनेट मंत्री राखी बिड़लान ने कहा कि वह देश सेवा के लिए पद पर बनी हैं। हमलोग में इस बार पेश है राखी से खास बातचीत...

  • गंगा सहाय मीणा
  • कल 'हम लोग' में राखी बिड़ला/बिडलान और Ravish Kumar, दोनों ने निराश किया. रवीश ने राखी को बच्‍चे की तरह लिया और राखी ने खुद को बच्‍चे की तरह पेश किया. आरक्षण के बारे में राखी और उनके पिता का बयान बेहद निराशाजनक था. एक तरफ वे कहते हैं कि वे वाल्‍मीकि समुदाय और निम्‍न वर्ग से हैं, दूसरी तरफ कहते हैं कि हम इंसान-इंसान को बराबर मानते हैं, कोई जाति-पांति नहीं मानते.

  • हमारा कहना है कि जो लोग आरक्षण के खिलाफ हैं, वे आरक्षण का फायदा लेना छोड़ें. राखी को जनरल सीट से चुनाव लड़ना चाहिए था, शायद तभी इसका फैसला हो पाता कि सभी इंसान बराबर हैं.

  • Like ·  · Share · 5216 · about an hour ago near New Delhi ·

Satya Narayan

प्रगतिशीलता और जनवाद से फ़ासीवाद को हर-हमेशा ख़तरा रहता है। इसलिए वह संस्कृति की दुहाई देकर इस तरह के विचारों को ख़त्म कर देने की कोशिश करता है।

http://ahwanmag.com/archives/3357

ख़बरदार जो सच कहा!

ahwanmag.com

इतिहास और विज्ञान से हमेशा ही फासीवादियों का छत्तीस का आँकड़ा रहा है। फासीवाद का आधार ही अज्ञान और झूठ होता है। अतीत का आविष्कार, मिथकों का सृजन और झूठों की बरसात-इन्हीं रणनीतियों का इस्तेमाल कर फासीवाद पनपता है और पूँजीपतियों की सेवा करता है। जर्मनी और इटली में फासीवादियों ने इन्हीं रणनीतियों का इस्...

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Satyendra Murli

अनुसूचित जाति से आने वाली राखी बिड़ला दिल्ली की महिला एवं बाल विकास मंत्री हैं...राखी की मां सफाईकर्मी हैं...आरक्षित सीट पर जीत कर आने वाली राखी ने आरक्षण मामले में आम आदमी पार्टी की विचार धारा सबके सामने रख दी...लम्बे समय से राखी अरविंद केजरीवाल एंड़ टीम से कैड़र जो ले रही हैं...राखी बिड़ला जैसे कई उदाहरण हैं जो हमारी सेपरेट इलेक्टोरल की मांग को और मजबूत करते हैं।

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Mohan Shrotriya

दिल्ली की मंत्री राखी बिड़लान की कार पर उपद्रवियों द्वारा हमला निंदनीय है. ‪#‎आप‬को समझना चाहिए कि यह दौर सुरक्षा व्यवस्था के तिरस्कार का नहीं है. यह सही है कि अन्य राज्यों के मंत्रियों/मुख्यमंत्रियों से अलग दिखने की चाह का अपना महत्व है. यह कोई छुपी हुई बात नहीं है कि जहां इतने विरोधी हों, वे बौखलाहट में हमले भी कर/करवा सकते हैं, इसलिए सुरक्षा का समुचित बंदोबस्त होना ज़रूर चाहिए.

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  • Rajiv Nayan Bahuguna, Prem Chand Gandhi, Ashok Kumar Pandey and 79 others like this.

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  • Mohan Shrotriya अतिशय आदर्शवाद भी तो मारता है न? मौजूदा राजनीतिक माहौल में न्यूनतम सुरक्षा तो चाहिए ही. यह दूसरी तरह का अतिवाद है कि कोई सुरक्षा बंदोबस्त न हो...

  • 5 hours ago · Like · 2

  • Ravinder Goel are bhai ham kyon iski parokari kar rahen hain. wo sab jaante honge ya jaan jayenge. Kejriwal ji ko pata lag gaya na ki unko makaan chahiye aur kitna bara. Kuch cheejen in logon ko swayam seekhne dijiye

  • 5 hours ago · Like

  • Prem Mohan Lakhotia अतिशय आदर्शवाद नाटकीय हो तो जन-सामान्य को और भी मारता है!

  • 4 hours ago · Like · 1

  • Jeevesh Prabhakar मोहन जी आज की खबर देखें ....वह क्रिकेट की गेंद थी जो बच्चे से गलती से उनके शीशे पर जा टकराई थी जिसके लिए उस बच्चे और उसके परिवार ने माफी भीमांग ली थी मगर राखीजी संतुष्ट नहीं हुई और थाने में रिपोर्ठ लिखा दी ...ताजा खबर ये है कि राखी के घर वालों ने उस मो...See More

  • 4 hours ago · Like · 4

Mohan Shrotriya

‪#‎हरकिशनसिंह‬ सुरजीत की याद क्यों नहीं आ रही, इन दिनों, किसी को भी?


बड़े हंगामाखेज़ दिन होते ! ऐसा सन्नाटा तो शर्तिया नहीं हो पसरा होता !


कुछ होता या नहीं होता, रौनक़ तो रहती ही ! बढ़ती भी !


हासिल भी कुछ न कुछ तो होता ही, मुझे तो ऐसा लगता है, न जाने क्यों !

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  • Rajiv Nayan Bahuguna, Jagadishwar Chaturvedi, Faisal Anurag and 55 others like this.

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  • Amar Nadeem भारतीय संशोधनवाद के पुरोधाओं में से एक थे सुरजीत .

  • 6 hours ago · Like

  • Jeevan Singh आम आदमी के उन्नयन के लिए जोड़-तोड़ की राजनीति करने की बजाय , जब जब सादगी की राजनीति की गयी,तब तब उसने अपना असर दिखलाया । संसदीय--पूंजीवादी व्यवस्था धीरे-धीरे 'आम' को जब ख़ास में बदल देती है तो 'आम' फिर से 'आम' का रास्ता चुनता है । एक ज़माना था,जब कम्युनिस...See More

  • 3 hours ago · Like

  • Mohan Shrotriya ऐसा लगता है, अब सब कुछ #अभिधा में ही कहा जाना चाहिए. वामपंथी पार्टियों का चरित्र इतना भी नहीं बदल गया है कि उन्हें सुरजीत याद न आएं. इशारा इस ओर ही था कि संसदीय वामपंथी पार्टियां इतनी पस्त-हिम्मत हो बैठी हैं कि अब वह भी करने की नहीं सोच पा रहीं, जो वे कुछ समय पहले तक करती आ रही थीं.

  • 2 hours ago · Like

  • Devdeep Mukherjee सवाल प्रतिबद्धता का है...जब आपकी प्रतिबद्धता 'जन' से विच्‍युत होकर 'राज' पर ही टिकी रहें और साधारण रहकर आन्‍दोलनपरक न बनें,,तब सुरजीत ही क्‍यों,,मुजफ्फर अहमद तक बिसार दिए जाएंगे..

  • 2 hours ago · Like

Economic and Political Weekly

The Khobragade affair has jolted the Indian foreign administration as well as alerted those who thought that caste and class weren't important factor in this event.


Here are two perspectives on the issue:

1) Editorial: http://www.epw.in/editorials/avoidable-mess.html


2) Margin Speak: http://www.epw.in/margin-speak/humiliation-class-matters-too.html

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Shrimant Jainendra

तिहाड़ जेल में सजायाफ्ता महिला कैदी आरती की एक कविता 'पाप'


कैसे कहूं,

मैं पापी नहीं हूं।

मैंने बार-बार कहा,

पाप मैंने नहीं किया।

हुआ नहीं,

मारा नहीं,

किसी को सताया नहीं।

हाँ!!मैंने देखा घर था।

चोर का,

चुपके से घुसना।

अंधेरे बंद कमरे में,

सोते इंसान का जगाना।

चोर से जूझना,

दो चोर एक इंसान,

उस इंसान का बार बार चीखना।

पकड़ो....

बचाओ....

मारो....

जाना ....

मन पर छाया भय,

पर मैंने मारा नहीं।

किसी को सताया नहीं,

रोकने का सोचा भी नहीं।

कानून मुझे अपराधी नहीं कहता।

पर बोलो,

मैं किससे कहूं,

मैं पापी नहीं हूँ।

( राजकमल से हाल में ही प्रकाशित तिहाड़ जेल की महिला कैदियों का कविता संकलन ' तिनका तिनका तिहाड़' से एक कविता, जिसका संपादन विमला मेहरा और वर्तिका नंदा ने किया है । सौजन्य - शुक्रवार )

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  • Anita Bharti, गंगा सहाय मीणा, Harnot Sr Harnot and 53 others like this.

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  • Vartika Nanda Shrimant Jainendra इस कोशिश को सराहने के लिए आपका आभार।

  • 19 hours ago · Like · 1

  • Shrimant Jainendra Vartika Nanda.....आपने इन कविताओं को लिखवाकर और संकलित कर हिंदी साहित्य की परिधि को समृद्ध किया है | हो सकता है इनका कोई विशेष साहित्यिक मूल्य ना हो लेकिन इस तरह के लेखन को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए | जेल के अन्दर से भी बड़ा साहित्य अन्य भाषा में आया है | इसलिए आप बधाई की पात्र हैं | शुभकामनाएँ|

  • 18 hours ago · Like · 2

  • Jay Prakash Jha इन्हीं खेवनहारों से आधुनिक हिन्दी साहित्य नित नूतन प्रतीत होगा ।क्योंकि अब और सोना................है।

  • 4 hours ago · Like · 1

  • Ghanshyam Kumar Devansh बहुत ही उम्दा लेखन...उम्दा प्रयास...बधाई

  • 2 hours ago · Like · 1

Siddharth Kalhans

अपनी करनी कर गुजरो, जो होगा देखा जाएगा।


साल 18989 से 92 के जमाने में लखनऊ विश्वविद्यालय में हम थे। राम मंदिर का उभार था। सांप्रदायिकता चरम पर थी। हम ये नारे शहर लखनऊ के तनावग्रस्त इलाके में लगाते थे और अमन मार्च निकालते थे। अपने हास्टल में हमें खतरा था पिट जाने का। इस कदर सांप्रदायिक हुआ था तब का नौजवान। मगर हालात आज पहले से खराब है। मैने इस कदर कट्टरवाद पनपते उस दौर में भी न देखा। आज जिस कदर घृणा से भरा नौजवान है वो तो तब भी नही था। तब तो गनीमत थी कि तमाम दानिशवर सांप्रदायिक माहौल में एक साथ मुकाबिल थे। आज उनमें से एक बड़ी तादाद केजरी के करप्शन फ्री सरकार के मोह से ग्रस्त हो वाम प्रतिबद्धता को भूल बैठी है। हम उनसे आदेश निर्देश पाते रहे हैं। आज वौ डांट रहे हैं जब हम कहते हैं कि आरक्षण. कारपोरेट, दलितो, मूलनिवासियों, माइनारिटी के बारे में भी श्री केजरी के विचार बता दें। शाना ब शाना हम भी खड़े होंगे।

मगर आप भी कामरेड, कहते हो देखते रहो। न बहस न मुबाहिसा, न तर्क न वितर्क, वही हो गया .... न खाता न बही जो कहे केजरी वही सही।

कैसे लड़ेंगे। आजादी के बाद की सबसे कठिन घड़ी है।

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  • Virendra Yadav, Satyendra Pratap Singh, Vivek Avasthi and 89 others like this.

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  • Siddharth Kalhans संदीप भाई वाम की तीसरी धारा माने एमएल तो केजरी के पैरों में गिरी है। बाकी लोग जैसे करात वगैरा डर के मारे केजरी गान में जुट गए हैं।

  • 2 hours ago · Like · 1

  • Siddharth Kalhans दीपक भाई हमें क्या दिक्कत हम तो आपकी तरह हैं न दाएं न बाएं। केजरी का झंडा उठा लेंगे पर थोड़ा बड़े सवाल हैं देश के सामने उनके जवाब जरुरी हैं। करप्शन कारपोरेट, ईलीट, मिडिल क्लास को ज्यादा सालता है। विश्व बैंक भी उसके खिलाफ लड़ने को पैसा देता है। हाशिए पर खड़ा समाज तो तमाम बहुत सी चीजों से मुकाबिल है उस पर भी सामने आना होगा।

  • 2 hours ago · Like · 2

  • Brijendra Dubey bilkul sahi

  • about an hour ago · Like · 1

  • Sandeep Verma मंनरेगा का घोटाला किसी मध्यवर्ग का घोटाला नही है . छात्र वृत्ति का घोटाला किसी मध्यवर्ग मात्र को परेशान नही करता . अस्पताल में लाईन में ईलाज करवा रहा मरीज जब बाहर से जांच कर्वार्ता है वह महज मध्य वर्ग को परेशान करने वाला घोटाला नहीं है .

  • 41 minutes ago · Like

Musafir D. Baitha

कल रवीश ने 'हमलोग' प्रोग्राम में 'आप' मंत्री राखी बिड़लान को कुरेद कुरेद कर उसकी मूर्खताओं को उजागर किया। वह और उसका बाप तो खुद को दलित मानने को तैयार भी नहीं।

बिड़लान अपनी कलाई में अंधविश्वास का लाल रक्षक धागा भी बांधे हुई थी।

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  • H L Dusadh Dusadh, गंगा सहाय मीणा, Shamshad Elahee Shams and 46 otherslike this.

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  • View 3 more comments

  • Ashok Yadav ~बिड़लान अपनी कलाई में अंधविश्वास का लाल रक्षक धागा भी बांधे हुई थी।~

  • दलित पिछड़े समाज में ऊंचे पदों पर बैठे लोगों में ऐसों की कमी नहीं है जो अपनी कलाई में अंधविश्वास का लाल रक्षक धागा बांधे हुए हैं. ...See More

  • 4 hours ago · Like

  • Kumar Jaydeep dalito ne dalito ko jyada tawah kiya hai ...jo shirf tab dalit banate hai jab koi hit sadhana ho

  • 4 hours ago · Like · 2

  • Musafir D. Baitha दलितों के लिए निर्धारित सीट से निर्वाचित होने के बाद भी अपनी दलित पहचान पर बात न करने की मानसिकता में जीती लड़की, बडबोली लड़की, भ्रष्टाचार पर ज्यादा प्याज खाने वाली यह लड़की किस मानस को जियेगी, सहज अनुमान्य है।

  • कोई पति/पत्नी को छोड़कर बाज़ार में मुंह मारे त...See More

  • 2 hours ago via mobile · Like · 3

  • Sandep Aisa जी शायद सोचने लगी हैं की मैं मायावती बराबर हो गयी । वो घुमाव टी लाल धागा कही इन्हें न गोल गोल न घुमा दे ।

  • बकौल पूर्व कांग्रेसी राखी के पिता हम दलित नहीं हैं । दलित वो हैं जो अपने कर्म का माढा है। ं

  • 2 hours ago via mobile · Like · 1

Pushya Mitra

राजनीतिक पार्टियों में शामिल होने का सबसे बड़ा खतरा है कि आपको पार्टी के हर सही गलत फैसले पर यस और ऑल राइट कहना पड़ता है. असहमतियों के स्पेस को क्रूरता से मिटा दिया जाता है. हमारे जैसे लोगों के लिए पत्रकारिता ही सही जगह है...


( कई पत्रकार साथी इन दिनों आप में शामिल होने को लेकर दुविधा में हैं, दोनों काम तो वैसे भी एक साथ करना अनैतिक है, या तो पत्रकारिता छोड़ दीजिये या राजनीतिक दलों में शामिल होने की ख्वाहिश )

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  • Pankaj Chaturvedi, Ranjit Kumar and 22 others like this.

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  • Kuldip Kumar Kamboj सच्ची पत्रकारिता क्या होती है मित्र ?

  • 2 hours ago · Like · 1

  • Padmasambhava Shrivastava नैतिक मूल्यों पर आधारित सामाजिक ढाँचे पर निरंतर खोजी नज़र...!

  • 2 hours ago · Like

  • Jitendra Narayan बिलकुल सही बात....

  • कुछ लोग राजनैतिक दल में शामिल होकर भी पत्रकार होने का झांसा लोगों को देते रहते हैं...जबकि वस्तुतः वे अब दल के प्रचारक बन चुके होते हैं..

  • about an hour ago · Like · 1

  • Faisal Anurag लेकिन पुष्य पत्रकारिता में भी हम जो सोचते हैं कह नहीं पाते.मेरा अनुभव तो यही है. नीतियां कुछ लोग बनाते हैं जिन्हें प्रबंधन कहा जाता है और हम पत्रकार उसका या तो पालन करते हैं या बाहर जाने के लिए विवश कर दिए जाते हैं. मुझे लगता है सबसे कम लोकतंत्र मीडिया की आंतरिक संरचना में हैं.

  • about an hour ago · Like · 3

Jayantibhai Manani

आज शिक्षा में 27% ओबीसी आरक्षण लागु है, लेकिन आज भी,

1. निजी उद्योगों में ओबीसी आरक्षण लागु नहीं किया गया है.

2. ओबीसी की जनगणना आज तक नहीं कियी गई है.

3. ओबीसी अधिकारी-कर्मचारीगण को बढती में 27% आरक्षण लागु नहीं हुवा है.

4. ओबीसी समुदाय के लिए एससी-एसटी की तरह विद्यार्थियो के लिए अलग सरकारी छात्रालायो खोलने की सिफारिस का अमल नहीं हुवा है.

5. ओबीसी समुदाय को सरकारी संसाधनों और जमीनों के आम्बटन की सिफारिस को लागु नहीं किया गया है.

Jayantibhai Manani

मंडल कमीशन(1980) 1990 से आज 2014 तक.

-----------------मंडल कमीशन-1980 से 7 अगस्त-1990.

20 दिसंबर 1978 : सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की स्थिति की समीक्षा के लिए मोरारजी देसाई सरकार ने बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल की अध्यक्षता में छह सदस्यीय पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन की घोषणा की।

1 जनवरी 1979 : आयोग के गठन के लिए अधिसूचना जारी।

दिसंबर 1980 : मंडल आयोग ने तत्कालीन गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह को रिपोर्ट सौंपी। इसमें अन्य पिछड़े वर्गों को 27 फीसदी आरक्षण दिए जाने की सिफारिश की गई।

सन 1982 : आरक्षण पर मंडल कमी...Continue Reading

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Manish Ranjan

एक समय था जब कांग्रेस विरोध मतलब ब्राह्मण विरोध था , तब जो कांग्रेस विरोधी क्षेत्र थे उनको भारत से ही अलग कर दिया गया(पाकिस्तान) ! उसके बाद भी जिन क्षेत्रो में कांग्रेस विरोधी जनमानस था वहाँ ब्रह्मणो का कम्युनिष्ट पैक बनाया गया (बंगाल में ) उसके बाद जहाँ पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी वहाँ भी कम्युनिष्ट के खोल में खेल हुवा (केरला में ) तमिलनाडु में ये नहीं खेल सके क्यों कि पेरियार ने बहुत लम्बी पारी खेल दी ................... अब उतर भारत में कम्युनिष्ट के नाम पर खेलने में खतरा यह था कि कभी भी ज्योति बासु या अचुत्यानन्दन जैसा गैर ब्राह्मण अखिल भारतीये स्तर पर उभर सकता था अतः वहाँ हिन्दू के नाम पर खेले पर काम बनता नहीं दिखा ............. तब निर्णय हुवा कि "आप" जैसा कुछ आजमाया जाये !

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  • Ashok Dusadh, Satyendra Murli, Sunil Sardar and 19 others like this.

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  • Sunil Kumar ham jaankar bhi ye khel karne de rahe hai

  • 2 hours ago · Like · 1

  • Manish Ranjan aise kaise...........dallo ke yahan chal gaye .......idhar no enrti hai ...........

  • 2 hours ago · Like

  • Md Iqbal वैसे इस कहानी मे भाजपा का कोई ज़िक्र नहीं है भाजपा बनाये जाने का एहसास कब हुआ ?? क्यूं हुआ ??

  • 2 hours ago · Like · 1

  • Manish Ranjan RSS और कम्युनिस्ट पार्टी दोनों का गठन 1925 में एक ही सप्ताह में हुवा दोनों जगह तिलक के अनुयायी ब्राह्मण ही नेतृत्वकारी भूमिका में थे …बस दोनों के दिखावटी नीति में अंतर था .... एक धनिको के लिए … दुशरी गरीबो के लिए ....... एक बिरोधाभाष भी(दिखावटी) , कि ध...See More

  • 51 minutes ago · Like · 2

Umesh Tiwari

बहुत से मित्र आम आदमी पार्टी के नेताओं के प्रति शंका का भाव बनाकर टिप्पणी कर रहे हैं, स्वाभविक है, वो इतनी बार छले जो गए हैं। पर एक तो मसीहा, भगवान या मायावी का विशेषण आम आदमी की राजनीति के शीर्ष पर दीख रहे व्यक्तियों पर फिट नहीं बैठता, मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ, इसके लिए आपको थोड़ा सा टेक्निकल होकर पार्टी संविधान पढ़ना होगा। दूसरे, जहां अच्छी संभावना दिखे उसकी सकारात्मक दृष्टि से पड़ताल करना भी तो ज़रूरी है वरना भविष्य में किसी समाजोपयोगी विचार को पनपने से पहले ही दबा देने का लांछन झेलना होगा। जहां तक केजरीवाल का प्रश्न है बहुत से कांग्रेसियों, मायावती, लालू, मुलायम और मोदी जैसे नेताओं और केजरीवाल में सबसे बड़ा फ़र्क नीयत का है।

Unlike ·  · Share · Yesterday at 12:17am ·

Navbharat Times Online

आम आदमी पार्टी नेता प्रशांत भूषण ने कश्मीर से सेना हटाने को लेकर जनमत संग्रह कराने की मांग की है। पढ़िए, क्या कहना है उनका http://nbt.in/FtchZa

Like ·  · Share · 791394151 · about an hour ago ·

Mithilesh Priyadarshy

मुखर्जी नगर, पटना, इलाहाबाद में कई मित्र दिन-रात सिविल सर्विस की परीक्षा में अपनी आँखें फोड़ रहे हैं. पर हैं सब एक से बढ़कर एक ब्राह्मणवादी, जातिवादी, सांप्रदायिक, घोर स्त्रीविरोधी और फासिस्ट मिज़ाज के. सोचता हूँ, यही कल जब नौकरशाह बनेंगे तो कितने खतरनाक हो जाएंगे, देश-दुनिया-समाज के लिए, अल्पसंख्यकों के लिए, स्त्रियों के लिए, हाशिये और वंचित समूह के लोगों के लिए और उन तमाम लोगों के लिए जो अक्षम हैं, कमजोर हैं, जो मुख्यधारा की क्रूर लाइन में मिसफिट हैं.

Like ·  · Share · 18 hours ago near New Delhi · Edited ·

Pramod Joshi

राजदीप सरदेसाई ने राहुल गांधी को सलाह दी है कि उन्हें पाँच साल तक विपक्ष में बैठकर अनुभव हासिल करना चाहिए। उन्होंने लिखा है कि जैसे ज्यादातर संपादक शुरू में रिपोर्टर होते हैं वैसे ही उन्हें विपक्ष में होना चाहिए। राजदीप की सलाह अपनी जगह है और उसे मानना न मानना राहुल गांधी का काम है, पर मुझे लगता है कि भारत में बड़ी संख्या में पत्रकार अपने आपको राजनेताओं का सलाहकार बनाना चाहते हैं या मानते हैं। उनका काम यह है ही नहीं।http://www.thehoot.org/web/Be-like-a-chief-reporter-/7225-1-1-32-true.html

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  • Pawan Karan, Sanjeev Chandan, Srijan Shilpi and 42 others like this.

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  • Sandeep Verma पत्रकारों को ऐसे काम करने में उनकी रोजी रोटी बनी रहती है . सब पापी पेट की खातिर है .

  • about an hour ago · Like · 1

  • Rahul Singh Shekhawat 100 % agreed

  • 50 minutes ago · Like

  • Pramod Joshi राजनेताओं से परिचय और रिश्तों के बगैर पत्रकारिता संभव नहीं है, पर इस परिचय की सीमा रेखाएं तय होनी चाहिए। जिस अंदाज में पत्रकार राजनेताओं के पैर छूते हैं और बड़े से बड़ा पत्रकार मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्रियों से अपने रिश्तों का बखान करता है उससे सारी...See More

  • 28 minutes ago · Like · 2

  • Triveni Prasad Pandey आपने बिल्कुल सही कहा,सौ फीसदी

  • 18 minutes ago · Like


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