THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Monday, March 18, 2013

“Not the politicians but social revolutionaries have the courage in calling the spade a spade.” - Chaman lal


Status Update
By Chaman Lal
"Not the politicians but social revolutionaries have the courage in calling the spade a spade." - Chaman lal 

"इस देश की सत्ता कभी बिहार प्रदेश से चलती थी ! बिहार कभी ज्ञान-विज्ञानं का केंद्र हुवा करता था जहां केवल इस देश के अन्य प्रदेशों से ही नहीं बल्कि अन्य देशों से भी ज्ञानार्जन के लिए लोग बिहार आया करते थे ! विश्व कि प्रथम विश्वविद्यालय 'नालंदा विश्वविद्यालय' भी कभी बिहार में ही हुवा करता था ! बिहार कभी धन-धान्य से परिपूर्ण हुवा करता था और वहां के लोग खुशहाल हुवा करते थे ! वहीँ दूसरी ओर आज बिहार की यह स्थिति है कि वह अत्यंत पिछड़े प्रदेशों में गिना जाता है, वहां के लोग शैक्षणिक, आर्थिक द्रष्टिकोण से अत्यंत पिछड़े हैं, और आज उनको ज्ञानार्जन के लिए दिल्ली तथा अन्य प्रदेशों की ओर कूच करना पड़ता है तथा अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए बिहार को छोड़कर अन्य प्रदेशों में जाकर झुग्गी-झोपड़ी में मुसक्कत से जीवन-यापन करना पड़ता है ! और बिहार के नेतावों को बिहार के विकास के लिए दिल्ली कि ओर देखना पड़ता है !" ..... – गर्वशाली प्राचीन बिहार और शर्मनाक वर्तमान बिहार की स्थिति के बारें में बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री माननीय नितीश कुमार ने कल (17/03/2013) दिल्ली में रामलीला मैदान में हुई 'अधिकार रैली' के दौरान उपस्थित लोगों को बतायी और बिहार कि वर्तमान दयनीय परिस्थिति का हवाला देकर केंद्र की सरकार से बिहार राज्य के लिए 'विशेष राज्य' का दर्जा देकर विशेष आर्थिक मदत की केंद्र से गुहार की !
नितीश कुमार ने लोगों को यह नहीं बताया कि बिहार की वर्तमान स्थिति के लिए कोन जिम्मेदार है ? कैसे पाटलिपुत्र (पटना) में देशद्रोही एवं विदेशी ब्राहमण पुष्यमित्र सुंग ने वहां के मूलनिवासी राजा वृहद्रथ की षड़यंत्र पूर्वक हत्या करके वहां के लोगों की ज्ञान-विज्ञानं पर आधारित एवं प्रगतिशील विचारधारा 'बुद्धिज़्म' को ख़त्म करके जबरदस्ती से असमानता की विचारधारा 'ब्राह्मणवाद' को मानने के लिए हथियार के बल पर विवश किया और इस विचारधारा को मानने के कारन से ही बिहार और वहां के मूलनिवासी लोग मौलिक रूप से ब्राह्मण धर्म के अनुसार 'ज्ञान', 'बुद्धि', 'संपत्ति' और सुरक्षा से महरूम हो गए ! तत्पश्चात विदेशी ब्राह्मणों के इतिहासकारों ने इसी पुष्यमित्र नाम के हत्यारे ब्राह्मण को रामायण में मर्यादा पुरषोत्तम 'राम' के चरित्र के रूप में शामिल किया और फिर बिहार के मूलनिवासियों को रामायण सुनाकर 'रामभक्त' बनाकर उनका हमेशा-हमेशा के लिए बेडा-गर्क कर दिया ! अर्थात भारत में विदेशी ब्राह्मण ही बिहार प्रदेश और वहां के लोगों कि दयनीय परिस्थिति के लिए मौलिक रूप से जिम्मेदार है – ऐसा माननीय मुख्यामंत्री नितीश कुमार को अपने समर्थकों को अधिकार रैली के दौरान बताना चाहिए था, जो उन्होंने नहीं बताया ! ऐसा नहीं है कि नितीश कुमार को यह बात पता नहीं है, हम ऐसा बिलकुल भी नहीं मानते हैं ! लेकिन हम इतना अवश्य मानते हैं कि अगर यह बातें लोगों को बतायी जाती तो बिहार और वहां के लोगों का इस जानकारी के प्रकाश में गुलामी से मुक्ति का रास्ता अवश्य खुल गया होता जिसको खोलने में नितीश कुमार जी असफल रहे हैं !
नितीश कुमार एक राजनीतिज्ञ हैं न कि एक सामाजिक क्रांतिकारी, सामाजिक क्रांतिकारियों को सच बोलने से कोई रोक नहीं सकता और समावेशी राजनीती करने वाले मूलनिवासी राजनेतावों कि सच बोलने में चोक होती है क्योंकि वो अपनी पार्टी में ब्राह्मणों,क्षत्रियों और वैश्यों को भी रखते हैं जिन्होंने इनका बेडा-गर्क करके रखा हुवा है इसलिए इनके डर के मारे बेचारे सच बयान ही नहीं कर पाते हैं ! बल्कि जिन लोगों कि विचारधारा समाज में व्याप्त होती है उस विचारधारा के प्रभुत्व के अनुरूप मूलनिवासी राजनेता विवशतावश अपनी भाषा और शैली को नियंत्रित करते हैं ! 'हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा विष्णु महेश है!', 'ब्राह्मण शंख बजाएगा हाथी चलता जाएग'...आदि-आदि नारों कि अन्यथा आवश्यकता ही नहीं पड़ती और अगर यह कहना पड रहा है तो मात्र इसलिए कि अल्पसंख्यांक विदेशी ब्राह्मणों की विचारधारा 'ब्राह्मणवाद' अर्थात 'हिन्दुवाद' आज समाज में व्याप्त है, मूलनिवासियों कि मौलिक विचारधारा 'बुद्धिज़्म' को ब्राह्मणों ने समाज से षड्यंत्रपूर्वक तरीके से ख़त्म कर दिया है ! जिन लोगों की समाज में विचारधारा व्याप्त होती है उन्ही लोगो कि राजनीती भी सफल होती है इसमें कोई दो राय नहीं है ! जब समाज के अन्दर मूलनिवासियों की विचारधारा 'बुद्धिज़्म' व्याप्त थी तो मूलनिवासियों की राजनीती भी भारत में सर्वोच्च शिखर पर थी जिसके फलस्वरूप भारत सोने कि चिडया इतिहास में कहलवाया गया ! राजनीती में सफल होने के लिए मूलनिवासी समाज में जिस मौलिक विचारधारा की व्यापकता कि आवश्यकता है उस विचारधारा के व्यापकीकरण के लिए किसी भी पिछड़े (मूलनिवासी) वर्ग के नेता के पास कोई अजेंडा नहीं है और न ही दूर-दूर तक दिखाई देता है, ऐसी परिस्थिति में राजनीती कैसे क्रांतिकारी बदलाव का माध्यम हो सकती है ? यह बिलकुल संभव नहीं है ! सामाजिक क्रांति से ही मूलनिवासियों कि स्थिति में आमूल-चूल बदलाव संभव है ! अगर यह राजनीती के माध्यम से संभव होता तो तथागत गौतम बुद्धा को अपना राज-पाठ छोड़कर जंगलों में जाकर दुसरे तरीकों के बारें में न सोचना पड़ता ! 
पिछड़े वर्ग के नेतावों का बीजेपी से तालमेल करने के कारन उनके ज्ञान में इतना बदलाव अवश्य हुवा है कि उन्होंने 'भारत' को 'हिन्दुस्तान' कहना शुरू कर दिया है ! अधिकार रैली के दौरान नितीश कुमार और माननीय शरद यादव जी ने भारत को 'हिन्दुस्तान' कहकर सम्भोदित किया जो अपने आप में मूलनिवासियों की मुक्ति के लिए चिंताजनक बात है ! हमारा ऐसा मानना है कि बिहार के लोगों कि स्थिति में अमूल-चूल परिवर्तन करने के लिए सामाजिक क्रांति के माध्यम से एतिहासिक सच्चाई बताने के नितांत एवं पहली आवश्यकता है, बिहार को 'विशेष राज्य' का दर्जा भी दिया जाए लेकिन 'विशेष राज्य' के माध्यम से इसको नेतावों का घर भरने का साधन बनाया जाए इसका हम विरोध करते हैं ! दरअसल अगर समाज के अन्दर ब्राह्मणी विचारधारा व्याप्त है जिसके कारण शाशन-प्रशाशन के अन्दर अल्पसंख्यांक ब्राह्मण बहुसंख्यांक हैं ऐसे लोग ब्राह्मणी धर्म की भावना के तहत में मूलनिवासियों तक कोई मदत पहुँचने ही नहीं देते हैं , इसलिए 'विशेष राज्य' का दर्जा लेकर बिहार के नेता केवल अपना घर ही भरने का काम करेंगे इसकी ज्यादा सम्भावना है !
बामसेफ संघठन ही भारत में एकमात्र ऐसा संघठन है जो मूलनिवासियों की विचारधारा के स्तर पर जाकर उनके मनोस्थिति में बदलाव करके, उनकी सम्पूर्ण क्षेत्रों में मुक्ति के लिए कटिबद्ध है ! इसलिए स्वंयं और राष्ट्र की मुक्ति के लिए यूनिफाइड संस्थागत बामसेफ (व्यक्ति प्रधान बामसेफ नहीं) के विचार परिवर्तन के आन्दोलन को समर्थन देने के अलावा हमारें पास कोई भी विकल्प बचा नहीं है, इसको समझने कि नितांत आवश्यकता है ! प्रत्यक्ष रूप से मूलनिवासियों के 'व्यक्ति प्रधान' सामाजिक या फिर राजनैतिक संघठन भारत में ब्राह्मणों की सामाजिक व्यवस्था को यथास्थिति में बनाए रखने में सहायक होते हैं ऐसा हम हाल के ही इतिहास में घटित होते देख रहें हैं, इससे अगर सबक नहीं लिया गया तो भविष्य में भी ऐसा ही होगा इसमें कोई दो राय नहीं है ! मूलनिवासियों के 'व्यक्ति-प्रधान' संघठनो को ब्राह्मण अपनी व्यवस्था को बनाये रखने के लिए खाद-पानी देकर सींचते हैं और आवश्यकता पड़ने पर ब्राह्मणवाद में यथास्थिति (status quo) निर्मिती के लिए उनका समय-समय पर इस्तेमाल करते हैं ! इसको जितनी जल्दी समझा जाएगा उसकी, उसके समाज और भारत राष्ट्र की मुक्ति उतनी ही जल्द संभव हो सकेगी !

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