THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Sunday, June 30, 2013

उत्तराखंड त्रासदी लापरवाही का नतीजा : पर्यावरणविद

उत्तराखंड त्रासदी लापरवाही का नतीजा : पर्यावरणविद
(09:49:46 PM) 30, Jun, 2013, Sunday
नई दिल्ली !   उत्तराखंड में हाल ही में आई आपदा की सही वजहों का पता लगाया जाना अभी बाकी है लेकिन पर्यावरणविदों ने इसे दशकों से प्राकृतिक संसाधनों के साथ किये जा रहे खिलवाड़ का परिणाम और मानव निर्मित संकट करार दिया है।
कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि वैश्विक तापमान में अचानक भारी बदलाव के कारण ऐसे संकट आते हैं, लेकिन पर्यावरणविद इस बात पर एकमत हैं कि हिमालय की सुकुमार पारिस्थितिकी से छेडछाड़ की वजह से इस क्षेत्र में प्राकृतिक आपदायें आ रही हैं। पर्यावरणविदों का कहना है कि हिमालय दुनिया का सबसे तरूण पर्वत है, जहां कठोर चटट्ानों पर भूमि जमा है। इसके कारण वहां भूक्षरण, भूस्खलन और भूकम्पीय हलचलें होने का अंदेशा लगातार बना रहता है। 
 जवाहर लाल नेहरू  विश्वविद्यालय में पर्यावरण विभाग के डीन डॉ. अरूण अत्री का कहना है कि अनियोजित एवं अवैज्ञानिक निर्माण और बांधो की बहुलता से इस क्षेत्र की नाजुक पारिस्थितिकी को भारी नुकसान पहुंचा है। उन्होंने उत्तराखंड में जल विद्युत परियोजनाओं के अंधाधुंध निर्माण को पागलपन करार देते हुए कहा कि निर्माण की वजह से मामूली असंतुलन से भी और जल विद्युत परियोजनाओं से हिमालय के ऊपरी हिस्से पर बड़ा दुष्प्रभाव पड़ता है। डॉ. अत्री ने कहा कि जल विद्युत परियोजनाओं के लिए निर्मित किये गए जलाशय पर्वत के निचले हिस्से के संतुलन को गडबडा सकते हैं और यह गंगा के प्रवाह में दिखाई भी दे रहा है। वर्तमान में 10 हजार मेगावाट विद्युत उत्पादन के लिए गंगा पर करीब 70 जल विद्युत परियोजनायें निर्मित हो गयी हैं या प्रस्तावित हैं। इन जल विद्युत पड़रयोजनाओं की श्रृंखला से गंगा एक दिन या तो सुरंग में परिवर्तित हो जायेगी या वह एक जलाशय में तब्दील हो जायेगी। इससे गंगा के अस्तित्व को ही खतरा पैदा हो रहा है।   विज्ञान एवं पर्यावरण केद्र के लिए घाटी में काम कर रहे श्री नित्या जैकब का भी कहना है कि भविष्य की परवाह किये बगैर वहां अंधाधुंध निर्माण किये जा रहे हैं। श्री जैकब ने कहा कि केदारनाथ के ऊपरी क्षेत्र में बादल फटने की घटना कोई अनोखी नहीं है। यह मौसम के असामान्य हो जाने का नतीजा है। कुछ दशकों के अंतराल पर ऐसा होता रहता है। इस बार यह उस समय हुआ जब केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्रा पर हजारों श्रध्दालु वहां गए हुए थे। रिकार्ड के अनुसार 1880 और 1890 में भी वहां बादल फटने की भीषण घटनायें हुई थी. लेकिन तब पानी का बहाव पेडों और अन्य वनस्पड़तयों की बहुलता की वजह से नियंत्रित हो गया था।  श्री जैकब ने कहा कि पिछले करीब 150 वर्षों  ययशेष पृष्ठ 3 पर य
में वनों की अंधाधुंध कटाई से जमीन के कसाव में काफी कमी आई है जिससे पहाडियों में निरंतर अस्थिरता आ रही है। हालांकि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा इस त्रासदी को पहाडों की सुनामी कहते हुए इसे भीषण प्राकृतिक आपदा मान रहे हैं।      निश्चित तौर पर यह नहीं कहा जा सकता कि उत्तराखंड में बादल फटने की घटना जलवायु परिवर्तन का नतीजा है या इसकी कुछ और वजह है, लेकिन पिछले कुछ वष्रों के रिकार्ड से यह तो स्पट है कि देश में भारी बारिश की घटनायें बढ़ रही है और मध्यम वर्षा का दौर कम होता जा रहा है। 
    भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान पुणे के आंकड़ों के अनुसार उत्तराखंड में बादल फटने और अप्रत्याशित बारिश होने की भारी आशंका है। उल्लेखनीय है कि 15 जून को केदारनाथ के ऊपरी पर्वतीय इलाके में बादल फटने से 24 घंटे में 240 मिलीमीटर वर्षा हुई थी। इसी वजह से आई भीषण बाढ़ के कारण उत्तराखंड में भारी तबाही हुई है। 
  पर्यावरणविद और विशेषज्ञ उत्तराखंड जैसे राय में विकास की जरूरत से तो सहमत हैं. लेकिन उनका कहना है कि हाल की त्रासदी से यह स्पष्ट है कि इन इलाकों के लिए विकास का नया मॉडल तैयार किया जाना चाहिए. जिसके केद्र में क्षेत्र की जैव भौतिकीय परिस्थितियों को मुख्य रूप से रखा जाना चाहिए।
http://www.deshbandhu.co.in/newsdetail/186610/1/20

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