THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Sunday, June 30, 2013

कोयला नीति में ही घोटालों के बीज, कोयलांचल में तबाही के संकेत

कोयला नीति में ही घोटालों के बीज, कोयलांचल में तबाही के संकेत


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


राजनीति ने हमेशा कोयलांचल की उपेक्षा ही की है। झारखंड आंदोलन में यह शिकायत बार बारबार होती थी कि कोयला और खनिज संसाधनों से भरपूर आदिवासी इलाकों का कोई विकास ही नहीं हुआ।झारखंड अलग राज्य बने अरसा बीता, हालात नही बदले। झरिया रानीगंज में लुटेरों की तादाद बढ़ गयी है। अवैध खनन का सिलसिला जारी है और जीवन के हर क्षेत्र में माफिया का सर्वव्यापी वर्चस्व है। लेकिन विकास के नाम पर कुछ भी नहीं है। जो कथा बिहार की है, वही बंगाल की भी है। देश के दूसरे हिस्सों के कोयलंचलों में कोई अलग कथा व्यथा नहीं है।


आज़ाद भारत का सबसे बड़ा घोटाला बताये जा रहे एक लाख 86 हजार करोड़ रुपये के कोयला घोटाले की पीछे यह बदल रही कोयला नीति है। कोयला ब्लाकों के आबंटन के मामले से कोयलांचल में व्याप्त भ्रष्टाचार का तनिक खुलासा हुआ है। लेकिन राष्ट्रीयकरण के बाद से देश के सभी कोयला क्षेत्रों में अपनायी जा रही कोयला नीति में  ही भ्रष्टाचार की जड़ें जमी हुई हैं। राजनीति ने सत्ता समीकरण के मुताबिक भ्रष्टाचार के मामले को तुल दिया लेकिन कोयला नीति में निहित सर्वनाश को हमेशा की तरह नजरअंदाज किया।


स्थानीय लोगों के विकास पर किसी का ध्यान नहीं जाता। माफिया गैंगवार में लहूलुहान होते लोगों की सुनवाई नहीं होती। आर्थिक सुधारों के बहाने जिस तरह कोल इंडिया को बलि का बकरा बना दिया गया है, उसके खिलाफ कोई बोल नहीं रहा है।निजी बिजली कंपनियों को कोयला आयात की अनुमति देकर, आपूर्ति गारंटी योजना के तहत आयात के जरिये कोयला खरीदकर बिजली कंपनियों को देने की कोल इंडिया की मजबूरी और इस आयातित कोयले की कीत म उपभोक्ताओं पर डालने की कोयला नीति भारतीय अर्थव्यवस्था पर कुठाराघात है।आम जनता तो मरी हुई है, लिकिन रुपये की गिरावट की एक बड़ी वजह कोयला आयात नीति में बदलाव है। यह कोलगेट से कम बड़ा घोटाला नहीं है और इस पर कोई चर्चा नहीं हो रही है।

इससे  मुद्रास्फीति बढ़ेगी, जिससे ब्याज दरों में कटौती की संभावना भी कम हो गई है। लिहाजा, विकास दर पर भी असर पड़ेगा। इससे एफआईआई ज्यादा बिकवाली कर सकते हैं, जिससे रुपया और नीचे लुढ़ेगा। मुद्रा भंडार पर दबाव बढऩा जारी रहा तो भुगतान संकट पैदा हो सकता है। विदेशी मुद्रा विनिमय संकट बढऩे की आशंका से सरकार सुधार की दिशा में आगे बढ़ सकती है।


हाल ही में तमाम मंत्रालयों से एफडीआइ से जुड़ी उनकी लंबित नीतियों पर रिपोर्ट मंगवाई गई है। कोयला कीमत को लेकर बिजली मंत्रालय और उर्वरक मंत्रालय के सख्त विरोध के बावजूद प्रधानमंत्री ने हस्तक्षेप कर इस पर फैसला करवाया।


कोयला आबंटन कोयला नीति के तहत ही हुआ है। आबंटन पर बवाल मचाने वाले लोग निरंतर कोयला नीति में जनविरोधी बदलाव के खिलाफ सिरे से खामोश हैं। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया है। इतना ही नहीं ज्यादातर वैश्विक मुद्राओं की तुलना में रुपये की हालत सबसे खस्ता है। इसके नतीजे भी बेहद खराब हैं। जून में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने शेयर और ऋण दोनों से अपना निवेश निकाल लिया और इसी वजह से रुपये में गिरावट आई है। रुपये में गिरावट से आयात महंगा हो गया है। ईंधन मसलन कच्चा तेल, गैस और कोयले की कीमत रुपये में काफी बढ़ गई है।


अब कोयला नियामक के शस्त्र से आबंटन विवाद को भी रफा दफा किया जा रहा है, लेकिन विनिवेश और विभाजन के विरोध में लामबंद यूनियनों और प्रधानमंत्री का इस्तीफा मांग रहे राजनीतिक दलों ने कोयला नियामक का कोई विरोध नहीं किया है।


 कोयला आपूर्ति गारंटी समझौते से लेकर कोयला नियामक तक सरकारी कोयला नीतियों का असल मामला निजी इस्पात और बिजली कंपनियों को फायदा पहुंचाने की रही है।ईंधन आपूर्ति करार और बिजली खरीद समझौते से जुड़े कानून में संशोधन होने के बाद कंपनियां नई योजना के तहत आयातित कोयले की पूरी लागत का भार ग्राहकों पर डाल सकेंगी। मौजूदा शुल्क व्यवस्था के तहत अभी आयातित कोयले की ऊंची लागत का भार ग्राहकों पर डालने की अनुमति नहीं है। शुरुआती अनुमान से लगता है कि लैंको इन्फ्रा, जीएमआर, अदाणी पावर और सीईएससी जैसी कंपनियों को नई योजना से फायदा होगा।हालांकि इस नवीनतम प्रस्ताव से उपभोक्ताओं के लिए बिजली और महंगी हो जाएगी लेकिन इससे कोयले की उपलब्धता और बिजली उत्पादन बेहतर करने में मदद मिलेगी।


चूंकि बिजली की दरें इस नीति की वजह से बढ़ रही है, इसलिए बिजली कपनियों को हो रहे फायदे पर थोड़ा बहुत शोर होने लगा है। लेकिन इस्पात उद्योग के बारे में खामोशी है। आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने कोयला आपूर्ति और कीमत प्रक्रिया पर नया कदम उठाकर बिजली उत्पादन उद्योग को राहत दी है। इससे पहले भी अप्रैल 2013 में कोयले के दाम की पूलिंग का प्रस्ताव आया था मगर राज्यों के बिजली बोर्डों ने इसे नकार दिया।दूसरी बात, कंपनियों को संबंधित राज्य नियामकों से निजी तौर पर शुल्क बढ़ाने की गुजारिश करनी पड़ेगी और इससे हर कंपनी पर अलग असर पड़ेगा। उनके इस सतर्क रवैये की वजह यह भी है कि ऐसी पहल से उपभोक्ताओं और बिजली वितरण कंपनियों पर असर पड़ेगा खासतौर पर तब जबकि अगले साल आम चुनाव होने हैं।


कोयला कंपनियों के अलावा निजी और सरकारी इस्पात संयंत्र झारखंडड और बंगाल का भूगोल बनाते हैं। अगर कोयला कपनियों पर विकास का कार्यभार है, तो इस्पात सयंत्रों और कंपनियों पर भी विकास का दायित्व है। दोनों तरफ से लेकिन कुछ हुआ नहीं है।


बड़ी कंपनियों की बात करें तो इस नई योजना से अदाणी पावर की 1424 मेगावाट मुंद्रा 3 परियोजना और 1320 मेगावाट की तिरोडा परियोजना को फायदा हो सकता है क्योंकि इन परियोजनाओं के लिए कोल इंडिया के साथ ईंधन आपूर्ति करार पर हस्ताक्षर किए गए हैं। विश्लेषकों का मानना है कि लैंको इन्फ्राटेक को भी सरकार के इस कदम से फायदा हो सकता है क्योंकि कंपनी राज्य वितरण कंपनियों से अपने 300 मेगावाट संयंत्र से उत्पादित बिजली की शुल्क दर बढ़ाने के लिए काफी लंबे समय से गुजारिश कर रही थी। कंपनी के अमरकंटक संयंत्र को कोयले की पर्याप्त आपूर्ति नहीं होने से यहां महज 47 पीएलएफ पर ही परिचालन किया जा रहा है। लेकिन सरकार के इस कदम से आने वाले समय में लैंको का मुनाफा और नकदी प्रवाह बेहतर स्थिति में हो सकता है। विश्लेषकों का मानना है कि सीईएससी की 600 मेगावाट की प्रस्तावित बिजली उत्पादन क्षमता (जिसका परिचालन वित्त वर्ष 2014) कोयला उपलब्ध होने से पीपीए पर हस्ताक्षर करने की बेहतर स्थिति में होगी।


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