राजय सरकार व चार धाम मंदिर समिति पूर्णतया जिम्मेदार
Posted: 28 Jun 2013 08:49 AM PDT
ऋषिकेश में सूबे के काबीना मंत्री हरक सिंह रावत केदारनाथ में आपदा में पर्यटकों के मरने की जिम्मेदारी खच्चर वालों पर डाली है, उन्होेने कहा कि 16 व 17 जून को केदारनाथ में आपदा में प्रभावितों की संख्या कम होती यदि वहां खच्चर वालों की हड़ताल न होती। हड़ताल के कारण केदारनाथ में घटना के रोज जरूरत से ज्यादा यात्री मजबूरन रूके। जबकि उमा भारती ने कहा है कि सरकारी भूल से केदारनाथ की घटना हुई, जनहानि रोकी जा सकती थी, रूद्रप्रयाग में पर्यटकों को रोका जा सकता था, परन्तु राज्यथ सरकार द्वारा कुछ भी व्यमवस्थां नहीं की गयी थी, वहीं इस घटना से ज्ञात हो जाएगा कि चार धाम मंदिर समिति व उत्तथराखण्ड सरकार ने आपदा राहत के लिए प्राथमिक उपाय तक नहीं किये थे, केदारनाथ में बादल फटने से हुई तबाही का मंजर झेलकर लौटे कुछ लोगों ने हरिद्वार में बताया कि केदारनाथ में दो बार बादल फटा है। 17 जून की सुबह जब कुछ बचे लोग कुछ संभलने की कोशिश कर रहे थे तो दूसरी बार की तबाही में सबकुछ खत्म हुआ। केदारनाथ में स्थिति भारत सेवा श्रम में काम करने वाले गौतम ने मीडिया को बताया कि 16 जून की रात आठ बजे वे खाना खाने की तैयारी कर रहे थे। तभी बहुत तेज की आवाज हुई और उनके कमरे में पानी और मलबा घुस गया। पूरी गर्दन तक मलबे में दब गए। आधी रात तक वे अपने को बचाने के लिए चिल्लाते रहे। कोई भी नहीं आया। अपने साथी सपन कुमार, प्रकाश, सूरज को किसी तरह से आधी रात तक वहां से बाहर निकाला और केदारनाथ मंदिर के कार्यालय में शरण ली। 17 जून की सुबह केदारनाथ परिसर में लाशें ही लाशें बिखरी पड़ी थी। कुछ लोग मलबे में अपनों को खोज रहे थे और चीख पुकार मची हुई थी। कुछ लोग सुरक्षित स्थानों पर जाने की कोशिश कर रहे थे। करीब सुबह सात बजे फिर से भारी मात्रा में पानी के साथ पत्थर और मलबा आया, जो केदारनाथ में सबकुछ तबाह करके ले गया। गौतम ने बताया कि दूसरी बार मची तबाही में उनका साथी सूरज सहित कई यात्री व आश्रम के महंत जगदीशानंद गायब हो गए। तबाही के दौरान कुछ लोगों के पास बदन ढकने तक के कपड़े नहीं थे, जो ठंड के कारण वहीं अकड़ गए। प्रकाश ने बताया कि केदारनाथ में 16 जून को अंधेरा होने से लोगों को स्थिति का पता नहीं चल पाया। ऊपर की ओर भागने के बजाय लोग नीचे की ओर भागे, जिससे अधिक लोगों की जान गयी है।
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