THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Friday, August 1, 2014

जो भी हो मलिकान और कंपनियों की मर्जी।वेतन दें न दें,उनकी इच्छा।नौकरी पर रखे या रखने के बाद जब चाहे निकाल दें,इसकी पूरी आजादी।कामगार अगर पगर मांगे तो सीधे औद्योगिक विवाद के बहाने वर्क सस्पेंशन और लाक आउट। औद्योगिक विवाद निपटाने के लिए नौकरी,नौकरी की सुरक्षा,सेवाशर्तें,वेतनमान और मजदूरी,काम के घंटे, ओवरटाइम और कार्यस्थितियां मालिकान और विदेशी कंपनियों के मर्जी मुताबिक करने के लिए श्रमकानूनों में ये संशोधन किये जा रहे हैं।

जो भी हो मलिकान और कंपनियों की मर्जी।वेतन दें न दें,उनकी इच्छा।नौकरी पर रखे या रखने के बाद जब चाहे निकाल दें,इसकी पूरी आजादी।कामगार अगर पगर मांगे तो सीधे औद्योगिक विवाद के बहाने वर्क सस्पेंशन और लाक आउट।

औद्योगिक विवाद निपटाने के लिए नौकरी,नौकरी की सुरक्षा,सेवाशर्तें,वेतनमान और मजदूरी,काम के घंटे, ओवरटाइम और कार्यस्थितियां मालिकान और विदेशी कंपनियों के मर्जी मुताबिक करने के लिए श्रमकानूनों में ये संशोधन किये जा रहे हैं।


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास


आर्थिक सुधारों का दूसरा चरण बेरहमी से लागू हो रहा है। संसद के भीतर या संसद के बाहर किसीतरह के विरोध का स्वर सिरे से अनुपस्थित है।


श्रम कानूनों में एकमुशत 54 संशोधनों को केबिनेट ने हरी झंडी दे दी है।


संसद,संविधान और भारतीय जनता को बायपास करके निजी क्षेत्रों के या पार्टीबद्ध लोगों की विशेषज्ञ समितियों की सिफारिश से ही सीधे तमाम कायदे कानून बदले जा रहे हैं,जो संविधान के मौजूदा प्रावधानों के खिलाफ हैं।


संसदीय कमिटी या संसद की कोई भूमिका नहीं रह गयी है।


दूसरी ओर, श्रम विवादों के बहाने एक के बाद एक औद्योगिक उत्पादन इकाइयां बंद की जा रही हैं।


मसलन बंगाल में एक के बाद एक चायबागान और जूट मिलें बंद ।हुगली नदी के आर पार चालू औद्योगिक उत्पादन इकाइयों का अता पता खोजना मुश्किल है।


उत्पादन सिर्फ निजी या बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हवाले है।जो देशभर में जल जंगल जमीन आजीविका नागरिकता नागरिक और मानवाधिकारों से जनगण की बेदखली के  साथ साथ मौजूदा कायदे कानून और संविधान के भयानक उल्लंघन के तहत बनने वाले  सेज महासेज औद्योगिक गलियारों और स्मार्ट सिटीज,स्वर्णिम चतुर्भुज और हीरक चतुर्भुज के   मध्य भारतीय कायदे कानून से बाहर हैं और जिन्हें टैक्स होलीडे के साथ साथ तमाम सुविधाओं,सहूलियतों,रियायतों और प्रोत्साहन का बंदोबस्त है।


मीडिया की नजर में मारुति सुजुकी के मजदूरों का आंदोलन श्रमिक असंतोष है।


कामगारों के हक हकूककी आवाज जहां भी बुलंद हो रही है,वहां वर्कसस्पेंशन और लाकआउट आम है।


विनिवेशमाध्यमे सरकारी उपक्रमों और देश के संसाधनों के बेच डालने के अभियान  के तहत वैसे ही हायर फायर संस्कृति चालू है और स्थाई नियुक्ति अब सरकारी महकमों में भी असंभव है।


फैक्ट्री एक्ट के लंबे चौड़े प्रावधान है,उनमें बदलाव के बारे में कहा जा कहा है कि यह बदलाव रोजगार सृजन और उत्पादन वृद्धि के लिए हैं।


तीन कानूनों में 54 संशोधन हो रहे हैं।दो चार पंक्तियों के इस रोजगार वनसृजन के अलावा संशोधन के ब्यौरों पर सरकार और मीडिया दोनों खामोश हैं और ट्रेड यूनियनों में निंदा प्रस्ताव दो दिन बाद फिर भी जारी करने की सक्रियता देखी जा रही है,जबकि राजनीति गूंगी बहरी बनी हुई है और अरबपतियों की संसद के बजट सत्र में चीख पुाकर आरोप प्रत्यारोप के अलावा जनसरोकार का कुछ अता पता नहीं है।


बंगाल में हाल में ही हिंद मोटर और शालीमारपेंट्स जैसे अतिपुरातन कारखाने औद्योगिक विवाद के हवाले हैं।


कोयलांचलों में भी कोयलाखानों में इसी वजह से उत्पादन बार बार बाधित है।


बंगाल और असम के चायबागानों में कितने बंद हुए कोई हिसाब किताब नहीं है।


जूट मिलें तो कपडा उद्योग की तरह मरणासण्ण है।


बंगाल के परिवर्तन राज में गुजराती पीपीपी माडल की सबसे ज्यादा धूम है।


यहां सत्ता का दावा गुजराते से आगे निकलने का है।


और नजारा,ईद मुबारक के मौके पर ही बुधवार को हुगली के इसपार टीटागढ़ मे  किनिसन जूट मिल बंद हो गयी तो उसपार श्रीरामपुर में इंडिया जूट मिल।


गुरुवार को 1899 से चालू शताब्दी प्राचीन जंगपना चायबागान बंद हो गया।


बाकी राज्यों में  हाल हकीकत बंगाल से बेहतर हैं,ऐसा मान लेने की कोई वाजिब वजह भी नहीं है।


औद्योगिक विवाद निपटाने के लिए नौकरी,नौकरी की सुरक्षा,सेवाशर्तें,वेतनमान और मजदूरी,काम के घंटे, ओवरटाइम और कार्यस्थितियां मालिकान और विदेशी कंपनियों के मर्जी मुताबिक करने के लिए श्रमकानूनों में ये संशोधन किये जा रहे हैं।


इसे मीडिया वाले बेहतर समझ बूझ सकते हैं अपने साथियों की आपबीती से।


छंटनी और आटोमेशन  से मीडिया प्रजाति प्रणाली विलुप्तप्राय है लेकिन बाकी लोग सरकारी उपक्रमों और महकमों में पांचवें छठें सातवें वेतनमान से चर्बीदार हुए लोगों की तरह ही ऐसे मुलम्मेबंधे ब्रांड हो गये,कि कौन कहां मर रहा है,सपरिवार आतमहत्या कर रहा है,किसी को कोई परवाह नहीं है।


हायरफायर के तहत भाड़े पर आये मीडियाकर्मी भी अपने वेतन और सुविधाओं में निरंतर वृद्धि से मुक्त बाजार के सबसे प्रलयंकर समर्थक हो गये है।


इन्होंने न सिर्फ नमो सुनामी का सृजन किया,बल्कि केसरिया कारपोरेट बिल्डर प्रोमोटर माफिया बहुुराष्ट्रीय रकार की जनसंहारी नीतियों को महिमामंडित करने और कामगारों और किसानों को राष्ट्रद्रोही साबित करके जनगण के किलाफ राष्ट्र के सलवा जुड़ुम के भी वे प्रबल समर्थक हैं।


मीडिया के अंदरखाने जो वर्ण वर्चस्व सारस्वत है,जो चरण छू संस्कृति है और पोस्तों पेइड न्यूज के लिए ज मारामारी है,जो नस्ली भेदभाव है,वह तो सनातन वैदिकी परंपरा है ही।


लेकिन अब मजीठिया मालिकान की मर्जी मुताबिक,उनकी सुविधा के लिए लागू करने या न भी करने की जो छूट है,तेरह साल की अनंत प्रतीक्षा के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी,उससे साफ जाहिर है कि ऐसी ही परिस्थितियां बाकी क्षेत्रों में भी स्थाई बंदोबस्त बनाने के कवायद का आखिर मतलब क्या है।


कितने कल कारखाने बंद हो रहे है,कहां कहां किसानों की बदखली से विकास कामसूत्र का अखंड पाठ हो रहा है और पीपीपी गुजरात माडल के लागू होने पर किस कंपनी को कितना फायदा हो रहा है और औद्योगिक उत्पादन इकाइयों को बंद करने में सरकारें और राजीतिक दलों का कितना और कैसा सहयोग है,मीडिया इस पर श्रम कानूनों में 54 संशोधनों पर सन्नाटे की तरह मौन है।


उत्पादन इकाइयों में दिनपाली को छोड़ रात्रिपाली में काम लेने का हक जो मालिकान को मिल रहा है,उससे महिलाओं का कितना कल्याण होगा,आईटी सेक्टर के अंदर महल में या मीडिया के खास कमरों में ताक झांक करने से इस निरंकुश उत्पादन की तस्वीरें मिल सकती है।


अप्रेंटिस को अब नौकरी देने की मजबूरी नहीं है।


सस्ते दक्ष श्रम का कंपनियां अनंत काल तक खेप दर खेप इस्तेमाल करने को स्वतंत्र होंगी तो किसी भी महकमें में कर्मचारियों से संबंधित ब्यौरा दाखिल न करने की छूट मजीठिया के तहत ग्रेडिंग और प्रोमोशन के नजारे दाखिल करेगी।


जो भी हो मलिकान और कंपनियों की मर्जी।वेतन दें न दें,उनकी इच्छा।नौकरी पर रखे या रखने के बाद जब चाहे निकाल दें,इसकी पूरी आजादी।कामगार अगर पगर मांगे तो सीधे औद्योगिक विवाद के बहाने वर्क सस्पेंशन और लाक आउट।


कंपनियों की कानूनी बंदिसें चूकि हटायी जा रही हैं और उन्हें किसी को कोई ब्योरा भी नहीं देना है,श्रम आयोग संबंधी कानून का तो वैसे ही कबाड़ा हो गया।


लेबर कमिश्नर या तो बैठे बैठे कुर्सिया तोड़ेंगे और यूियन दादाओं दीदियों की तरह हफ्ता वसूली करेंगे या ज्यादा क्रांतिकारी हो गये तो दो बालिश्त छोटा कर दिये जायेंगे।


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