THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

PalahBiswas On Unique Identity No1.mpg

Monday, August 18, 2014

कारपोरेट केसरिया रंगसाज ने मुक्तबाजार के चुनिंदा कारीगरों के स्वयंसेवी केसरिया पैनल में समूचे योजना आयोग को समाहित न कर दिया फिक्र न करें गुसाई,सभै कर्मफल है साधो मोक्ष के लिए गंगा नहाओ सावन हो या भादो अनाज को मयस्सर हो जमाना त सीमेंट के इस चमचमाते जंग में बो डालो कोंदो पलाश विश्वास

कारपोरेट केसरिया रंगसाज ने मुक्तबाजार के चुनिंदा कारीगरों के स्वयंसेवी केसरिया पैनल में समूचे योजना आयोग को समाहित न कर दिया

फिक्र न करें गुसाई,सभै कर्मफल है साधो

मोक्ष के लिए गंगा नहाओ सावन हो या भादो

अनाज को मयस्सर हो जमाना त सीमेंट के इस चमचमाते जंग में बो डालो कोंदो

पलाश विश्वास

कारपोरेट केसरिया रंगसाज ने मुक्तबाजार के चुनिंदा कारीगरों के स्वयंसेवी केसरिया पैनल में समूचे योजना आयोग को समाहित न कर दिया

फिक्र न करें गुसाई,सभै कर्मफल है साधो

मोक्ष के लिए गंगा नहाओ सावन हो या भादो

अनाज को मयस्सर हो जमाना त सीमेंट के इस चमचमाते जंग में बो डालो कोंदो

ug 18 2014 : The Economic Times (Mumbai)

India Inc Scores High in First Qtr







The June quarter has turned out to be a bumpe one for India Inc, with record net profit growth and a stable top line, but sustaining the high profi growth may be difficult because of the base effect, reports


विवेक देवराय और डा. अमर्त्य सेन बंगाल में पूंजी के स्वर्णिम राजमार्ग पर वामसत्ता की अंधी आत्मघाती दौड़ के कोच रहे हैं।दोनों फिर दीदी के स्मार्ट सिटी पीपीपी वास्तुकार हैं।मंटेक सिंह डूबे तो डूब गया योजना आयोग भी।


कांग्रेस भी योजना आयोग को बोझ मान रही थी।


योजना आयोग  कांग्रेसी जमाने में मंटेक के नेतृत्व में वैश्विक हितों के ग्लोबीकरण विश्वबैंकीय असंवैधानिक तत्वों का कबूतरखाना पूरे भारत की अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करते हुए कृषि और उत्पादन के सर्वानाश का सारा सामान तैयार कर रहा था और यह सिलसिला राजीव की तकनीकी क्रांति के साथ शुरु हो गया था तो नब्वे में मनमोहनी नवउदारवादी अवतरण के साथ ही सोवियत माडल को अलविदा कहने की रस्म निभा दी गयी थी।


लालकिले की प्रचीर से प्रधानतम,सुप्रीम स्वयंसेवक की योजना आयोग के अवसान की घोषणा का इसलिए कोई खास तात्पर्य नहीं होता,अगर कारपोरेट केसरिया रंगसाज ने मुक्तबाजार के चुनिंदा कारीगरों के स्वयंसेवी केसरिया पैनल में समूचे योजना आयोग को समाहित न कर दिया होता।


इन कारीगरों में खासमकास विवेक देवराय है,बंगाल परिप्रेक्ष्य में जिनमें जितना वाम है ,उससे ज्यादा अवाम है और तबाह आवाम है।


अब संघ परिवार ने अपने बुनियादी एजंडा के तहत इतिहास भूगोल शिक्षा संस्कृति जनमानस विवेक ज्ञान गरिमा सबकुछ गौरिक बनाने की ठान ली है।उसकी तैयारियां भी जोरों पर है।


स्मृति की तुलसी भूमिका की योग्यता पर मत जाइये,उनपर जो छत्रछाया है और जो सुदर्शन चक्र का वध विशेषज्ञ काया है,उससे संभल जाइये।


अब तक बंगाल के सुशील समाज के पुरस्कृत सम्मानित होने के कारण तालियां पीट रही थी दिल्ली,अब सबकी पूंछ उठाने की बारी है कि खबर है कि ज्ञानपीठ,साहित्य अकादमी से लेकर साहित्य और संस्कृति का केसरियाकरण होने ही वाला है।


भारत भवन के दरवज्जे मत्था टेकने वाले झंडेवालान के सामने कैसे कैसे अपनी रीढ़ बचायेंगे दिखना वाकई दिलचस्प ही होगा।


वैसे सत्ता की ज्ञानपीठ वामरंगे जेएनयू का केसरिया कायाकल्प तो पूरा ही गया दीख्या जी।प्रवचन गुसाई से लेकर जनसंस्कृति तक की यात्रा अब अस्मिता कारोबार का केसरिया कारोबार है ,जिसपर मंडल का मुलम्मा भी भीषण है।


नजारा वही डीपीटीसे कराटयेचुरी पीपीपीटी है।


हमें नहीं मालूम कि कितने दिनों तक फिर यह लेखन संभव है।कल यकायक मेरे मेल आउटबाक्स से संदेश का बहिर्गमन रोक दिया गया।अभी बमुश्किल एक खाता ओपन हो सका है,बाकी अब भी बंद हैं।


ब्लाग तो उड़ाये ही जाते रहे हैं,आईडी डीएक्टिव किये ही जाते रहे हैं,माडरेट करने के बहाने रोक भी लगती रही है,लेकिन अंतर्जाल के केसरिया एकाधिकार का लघुपत्रिका हश्र होने लगा है।


फ्लिपकार्ट अमाजेन क्रांति ने विमर्श का स्पेस फूंक दिया है और समर्थ लोग भी टीआरपी के मुरीद हो गये हैं।


जंगल में लगी है आग और कंगारु बच्चादानी के साथ सबसे ऊंची छलांग के साथ फेंस बदलने लगे हैं।


कंगारु जो है नहीं,उन शूतूरमुर्ग की मेंढक नींद भी मौसम के शबाब कबाब शराब में शामिल हैं।उनकी भी अजब गजब कारस्तानी है।




जब तोपखानों पर जंग लग गया हो तो पर्चा निकालना चाहिए

जब आसमान में लगी हो आग और हवाएं भी लहूलुहान हो

तो पांव जमीन पर रखकर जमाने के खिलाफ बाबुलंद

आवाज दहाड़ लगानी चाहिए,हालात बदले न बदले

मारे जा रहे लोगों की नींद में हर हाल में

खलल डालनी चाहिए कि बहुत तेज है

दस्तक सिंहद्वार पर,अब न जाग्यो

तो कब जागणा है मुसाफिर

तेरी गठरी ले चोर भाग्यो


लाल किले की प्राचीर से प्रधान सुप्रीम स्वयंसेवक ने संसाधनों और श्रम के अधिकतम इस्तेमाल का हुंकारा भरते हुए नक्सलियों को देख लने की चेतावनी भी दी थी।


कानाफूसी किसी मुघलिये खून की डीएनए जांच की भी है,जिनने कहा जाता है कि लाल किले और चांदनी चौक पर दावा ठोंकने की तैयारी की है।


ऐसे मुघलिये बैरम खां अनेकानेक हैं,जो तमाम सरकारी महकमों और उपक्रमों पर दावा ठोंके बैठे हैं और उनमे से जाहिर है कि कोई इस्लाम का बंदा है ही नहीं।सबै दीनेईमान हैं।हिंदुत्व की खान रसखान हैं।


अब इस पर गौर करें कि कभी बंगाल के किसी मरणासण्ण जराजीर्ण वृद्ध को रात के अंधेरे में लालबाजार उठाकर ले जाया गया और बाकी जो कुछ हुआ तो सिद्धार्थ बाबू जानते रहे हैं जिन्होंने पंजाब के खाढ़कुओं को भी गिल के साथ गिल्ली डंडा खेलते खेलते ठिकाने लगा दिया।हालांकि उनके शागिर्द और तब बंगाल के पुलिस मंत्री सुब्रत मुखर्जी अब भी मां माटी मानुष सरकार में वजनदार मंत्री बने हुए हैं।


मुठभेड़ विशेषज्ञ का मां माटी मानुष से कितना गहरा ताल्लुक है,यह तो दीदी ही बता सकती हैं जो बंगाल में सबसे पहले दसों स्मार्टसिटी का लवासा मैप जारी करके सुषमा स्वराज पदचिह्ने सिंगापरु निकल पड़ी है बैंड बाजे गवइया नचनिया के साथ पूंजी को ललचाने,क्योंकि उन्हें मोदी के खिलाफ लड़ाई जारी रखनी है और बंगाल को हर हालत में गुजरात बना देना है।


दूसरी ओर,करोड़ों रुपए के शारदा चिटफंड घोटाले के सिलसिले में धनशोधन की जांच कर रहे प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने पश्चिम बंगाल के वस्त्र मंत्री श्यामपद मुखर्जी और ऐक्ट्रेस-डायरेक्टर अपर्णा सेन से पूछताछ की।


अपर्णा सेन केंद्रीय जांच एजेंसी के साल्ट लेक कार्यालय पहले पहुंचीं। ईडी ने उनका बयान दर्ज किया।


ईडी सारदा समूह द्वारा प्रकाशित एक पत्रिका की संपादक के रूप में उनकी भूमिका की जांच कर रहा है।


घटनाक्रम से जुड़े सूत्रों ने बताया, 'सेन का बयान धनशोधन निवारण कानून की धारा 50 के तहत दर्ज किया गया।


जाहिर है कि इस विकास पीपीपी प्रकल्प में सिद्धार्थ के शागिर्द की खासी भूमिका है,जो दीदी के सियासी उस्ताद भी हैं और जिनकी सिफारिश पर सोमनाथ चटर्जी के खिलाफ दीदी को जंगे मैदान में 1984 में उतार दिया था राजीव गांधी ने।


ज्यादा कयास लगाने की जरुरत भी नहीं है,उन चारु मजुमदार को लालबाजार में ठिकाना लगा दिया गया क्योंकि उन्होंने पहले तो भूमि सुधार मुद्दे पर एक के बाद एक दस्तावेज जारी करके सत्ताधारी वाम की नींद हराम कर दी और फिर वे कहने लगे,चीख चीखकर,चीनेर चेयरमैन,आमादेर चेयरमैन।


चीन के खिलाफ छायायुद्ध संघियों का सबसे प्रिय खेल हैं और संघ के प्रधानतम स्वयंसेवक प्रधानमंत्री अब बांसो उछल उछलकर नारा बुलंद कर रहे हैं कि चीन का रास्ता हमारा रास्ता।इसका क्या कहिये।


खास बात तो यह है कि स्वर्ग के सारे देव देवी एकमत हैं योजना आयोग के खात्मे पर जैसे कि वे विकास का एक ही नजरिया एफडीआई पूंजी जहां से आई,मारठी में बोले ते अपनी आई यानी कि अम्मा और पुरुषवर्स्व वर्णवर्च्सव नस्ल वर्चस्व लिंग वैषम्य की सारी संतानें असंभव मातृभक्त है।


यानी वे भी पूंजी की संतानें हैं और इसे साबित करने के लिए किसी डीएनए जांच की जरुरत नहीं है,झुठलाने के लिए बल्कि ऐसे करतब किये जा सकते हैं।


विदेशी पूंजी का रंग देखना तो साक्षात लक्ष्मी के विरुद्ध अनास्था,घनघोर पापकर्म है और इसीलिए पीपीपी है।


विनिवेश पर एकमत सर्वसम्मत तो पीपीपी के लिए तो अपना अपना हिस्सा कमीशन पैकेज बूझ लेने की बाकायदा मारामारी है।अरबोंअरबपति मालामाल लाटरी जो है।


इस लाटरी में हिस्सेदारी के लिए योजना आयोग और संस्थागत तमाम प्रतिष्ठानों का सफाया और बगुला भगतों के पैनल दर पैनल हीरक बुलेटचतुर्भुज है।देवदेवियों के लि हीरा और जनता के लिए बुलेट।


बाकी जो जनता पापफल का भुगतान कर रहे हैं,उनपर सार्वजनिक आंसू क्या कम हैं।


मुश्किल सिर्फ इतनी सी है कि खून की नदियों में बाढ़ है और ग्लेशियरों से भी खूनैखून हैं,आंसू में ग्लिसरीन माफिक नहीं पड़ा तो मन्नू भाई विदा हैं,इसीलिए अभिनेता अभिनेत्रियों का बाजारभाव राजनीति में सबसे ऊंचा है।


पेट में नहीं खाना तो

फिर गाना बजाना खाना खजाना

सर पर नहीं छत तो

फिर गाना बजाना खाना खजाना

बेदखली की हो इंतहा तो

आन पड़ी आपदा भारी

फिर गाना बजाना खाना खजाना


इसीलिए  बंबई शेयर बाजार का सेंसेक्स आज 287 अंक से अधिक की तेजी के साथ 26,390.96 के नये रिकार्ड स्तर पर पहुंच गया। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी भी करीब 83 अंक की बढ़त के साथ 7,874.25 के रिकार्ड स्तर पर बंद हुआ। यह लगातार पांचवां कारोबारी सत्र है, जब बाजार में तेजी आई है। कारोबारियों के अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 15 अगस्त के संबोधन का असर बाजार पर पड़ा। उन्होंने बुनियादी ढांचा तथा विनिर्माण पर जोर दिया जिससे निवेशकों में उत्साह है और इसका असर बाजार पर पड़ा।


इसीलिए नकदी संकट से जूझ रही भूषण स्टील पर घेरा और कसते हुए उसे कर्ज देने वाले बैंकों के समूह ने कंपनी के बही खातों के फॉरेंसिक ऑडिट का आदेश दिया है। साथ ही प्रवर्तकों से कहा गया है कि वे कंपनी में और पूंजी डालें जिससे भूषण स्टील को दिवालिया होने से बचाया जा सके। भूषण स्टील को ऋण देने वाले बैंकों की आज हुई बैठक में यह फैसला किया गया। उल्लेखनीय है कि सीबीआई ने सिंडिकेट बैंक के चेयरमैन एसके जैन की संलिप्तता वाले कर्ज के लिए रिश्वत घोटाले में भूषण स्टील के वाइस चेयरमैन एवं प्रबंध निदेशक नीरज सिंघल को गिरफ्तार किया गया है।


इसीलिए किंग ऑफ गुड टाइम्स विजय माल्या जल्द डिफॉल्टर घोषित हो सकते हैं। यूनाइटेड बैंक के बाद अब आईडीबीआई बैंक ने भी विजय माल्या को डिफॉल्टर घोषित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। उधर सीबीआई ने माल्या को भारी मरकम लोन देने वाले बैंकों की जांच शुरू कर दी है। आईडीबीआई बैंक, यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया ने विजय माल्या को डिफॉल्टर घोषित करने की प्रक्रिया शुरू की है। इसके अलावा आईडीबीआई बैंक से 5 साल पहले मिले लोन की सीबीआई जांच शुरू हो चुकी है। बताया जा रहा है कि एसबीआई, पीएनबी भी विजय माल्या को डिफॉल्टर घोषित कर सकते हैं।


इसीलिए जेल में बंद सहारा प्रमुख सुब्रत रॉय के तीन होटलों को ब्रुनेई के सुल्तान से जुड़ी एक एक इन्वेस्टमेंट फर्म ने 2.2 अरब अमेरिकी डॉलर में खरीदने की पेशकश की है। सुल्तान हसन्नल बोलकिया से संबंधित फर्म ने सहारा के जिन होटलों को खरीदने की पेशकश की है, उनमें न्यूयॉर्क के प्लाजा, ड्रीम और लंदन का ग्रोसवेनॉर हाउस होटल शामिल हैं। विश्व के सबसे धनी लोगों में शुमार सुल्तान बोलकिया के पास लंदन में पहले से ही काफी रियल एस्टेट प्रॉपर्टी है। इसमें पार्क लेन का डॉचेस्टर होटल भी शामिल है।



इसी के मध्य चीन का रास्ता साफ होजाने के बाद हांलांकि  भारत ने पाकिस्तान के साथ होने वाली विदेश सचिव स्तर की बातचीत स्थगित कर दी। सचिव स्तर की बातचीत 25 अगस्त को होनी थी। आज पाकिस्तान के उच्चायुक्त ने कश्मीरी अलगाववादियों को बातचीत के लिए बुलाया था जिसे लेकर काफी विरोध हो रहा था। उधर नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान फौज की तरफ से भी लगातार गोलीबारी जारी है। इन्हें लेकर भारत सरकार नाराज थी और उसने बातचीत रद्द करने का कदम उठाया। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सैयद अकबरुद्दीन ने भी साफ कर दिया कि भारत ने अलगाववादियों को पाकिस्तान उच्चायुक्त की तरफ से मिले बातचीत के न्योते के बाद ये फैसला लिया है।


तमाशा यह भी कम नहीं,मसलन जो है सो आगरा बाजार है।इस तमाशे के मध्य हलाल हलाली घनघोर है।घौगौर करेंः


संघ प्रमुख मोहन भागवत के भारत को हिंदू राष्ट्र बताने वाले बयान पर बवाल छिड़ गया है। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने इसे हिटलरी बयान करार दिया है। जबकि समाजवादी पार्टी ने भागवत के बयान को देश के संवैधानिक ढांचे के लिए खतरनाक बताया है। हालांकि बीजेपी पूरी तरह संघ प्रमुख के बयान के साथ खड़ी दिखाई दे रही है।

वीएचपी के स्वर्ण जयंती समारोह के उद्घाटन कार्यक्रम में हिस्सा लेने मुंबई पहुंचे संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि भारत एक हिंदू राष्ट्र है। हिंदुत्व इसकी पहचान है और यह अन्य को स्वयं में समाहित कर सकता है। पढ़ें भागवत के बयान पर किसने क्या कहाः-

याहया बुखारी: ये बचकाना और बेवकूफी का बयान है। इसे सुनकर हंसी आती है। ये बयान सक्रिय राजनीति में आने की शुरुआत है। मोदी जी को सोचना होगा कि संविधान के दायरे से बाहर के ऐसे लोगों पर लगाम नहीं लगाई गई तो सही नहीं होगा।

आरएसएस समर्थक विचारक राकेश सिन्हा: मोहन भागवत जी ने सही कहा है। मैं उनके बयान का समर्थन करता हूं। भारत की पहचान ही उसकी हिंदू संस्कृति है। अगर ये हिंदू राष्ट्र नहीं तो और क्या है?

केंद्रीय इस्पात और खान मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर: आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने हिंदू धर्म के बारे में जो कहा है, वो बिल्कुल सही है।

आरएसएस के समर्थक विराग पचपोरे: भारत हिंदू राष्ट्र है, सरसंघ चालक जी का ये सुझाव सही है। मैं इसका स्वागत करता हूं।

बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बंगारू दत्तात्रेयः आरएसएस प्रमुख ने कुछ गलत नहीं कहा है। इस पर कोई विवाद करने की जरूरत नहीं है। हिंदुस्तान और भारत एक ही हैं। हमें हिंदू होने पर गर्व है। कांग्रेस और अन्य पार्टियां चुनाव में हार गई हैं इसलिए ध्रुवीकरण की राजनीति कर रही हैं। उन्हें अपनी मानसिकता बदलनी होगी।

सीपीएम नेता वृंदा करात: हम मोहन भागवत के बयान को बिल्कुल सपोर्ट नहीं करते। ऐसा लगता है कि सत्ता में बैठे लोग ही इस तरह के बयानों को सपोर्ट कर रहे हैं। हम इसके खिलाफ हैं।

कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी: मोदी सरकार की कथनी और करनी में अंतर है। मोदी सरकार को संघप्रमुख मोहन भागवत, योगी आदित्यनाथ और गिरिराज किशोर के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए।

आरजेडी नेता मनोज झा: मोहन भागवत, तोगड़िया और योगी आदित्यनाथ जैसे लोगों को शांत समाज पसंद नहीं है। मारकाट-खूनखराबा इनके डीएनए में है। अगर सरकार ने इन्हें नही रोका तो मैं समझूंगा कि सरकार इनसे ये बयान दिलवा रही है।

एनसीपी नेता माजिद मेनन: बार-बार हिंदुत्व की बात करना और धार्मिक सद्भाव बिगाड़ना गलत है। सभी धर्मों का आदर करना चाहिए।

बीजेडी के जय पांडा: भारत में बहुमत हिंदुओं का है पर संस्कृति और कानूनी रंग-ढंग संविधान के मुताबिक है।

समाजवादी पार्टी नेता राजेंद्र चौधरी: ये आरआरएस की राजनीति का दांव पेच है। इस तरह की भाषा जिससे देश के संवैधानिक ढांचे को चोट पहुंचती हो, इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।

एनसीपी नेता तारिक अनवर: मैं आरएसएस के कमेंट से सहमत नहीं हूं। सबकी अपनी-अपनी आस्था है। कोई केवल एक धर्म के बारे में बात करता है तो वो इस मुल्क के लिए खतरनाक है।

फतेहपुर सीकरी मस्जिद के इमाम मुफ्ती मुकर्रम: हम कहते हैं कि भारत एक सेकुलर मुल्क है और सब मिल-जुलकर रहें। वो जो चाह रहे हैं वो कभी पूरा नहीं हो सकता। भारत के प्रधानमंत्री ने खुद ही हिंदुत्व की बात को नकार दिया है।

कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह: क्या कोई व्यक्ति जो इस्लाम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन और अन्य किसी धर्म में विश्वास रखना है वो भी हिंदू है? क्या मोहन भागवत स्पष्ट करेंगे? मुझे लगता था कि हमारे पास सिर्फ एक हिटलर है... पर अब लगता है दो हैं...भगवान बचाए।


योजना आयोग होगा 5 MEMBER थिंक टैंक

Published : 18-08-2014

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योजना आयोग होगा 5 Member थिंक टैंक news five members think tank will take place of planning commision

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के योजना आयोग को खत्म करने की बात कहे जाने के बाद उसकी वैकल्पिक व्यवस्था के बारे में कई तरह के प्रयास लगाए जा रहे हैं। एक अंग्रेजी अखबार के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से शक्तियां लेने वाला 5 सदस्यीय थिंक टैंक योजना आयोग की जगहर ले सकता है। अखबार ने सूत्रों के हवाले से संभावना जताई है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री और शिवसेना नेता सुरेश प्रभु इस थिंक टैंक का सबसे अहम चेहरा हो सकते हैं। इस थिंक टैंक में मुक्त बाजार के हिमायती अर्थशास्त्री अरविंद पानगडिया और बिबेक देबरॉय को भी जगह मिल सकती है। औपचारिक तौर पर इस पैनल की अध्यक्षता प्रधानमंत्री ही करेंगे। अखबार ने चर्चा में शरीक रहे अधिकारियों के हवाले से लिखा है कि इस थिंक टैंक के बारे में ऎलान सोमवार या अगले एक-दो दिन में ही किया जा सकता है। विस्तृत विज्ञान आऎर तकनीकी विशेषज्ञता वाला एक अकादमिक व्यक्ति, जो संभवत: आईआईटी से होगा और संघ परिवार की सोच से इत्तेफाक रखने वाला सामाजिक विज्ञान का एक विशेषज्ञ भी इस थिंक टैंक में शामिल किया जा सकता है। हालांकि इन दोनों पदों के लिए अभी नाम सामने नहीं आए हैं। सूत्रों ने नाम न छापने की शर्त पर अखबार को बताया कि विज्ञान और सामाजिक विज्ञान के विशेषज्ञों के नाम फाइनल होने की प्रक्रिया में हैं। अर्थशास्त्री देबरॉय और पानगडिया लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी की कोर टीम से बतौर सलाहकार जुडे हुए थे। वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों ने बताया कि थिंक टैंक पर सोच-विचार पूरा हो चुका है और सिर्फ दो सवाल रह गए हैं।


पहला, इसका नाम क्या हो। एक वरिष्ठ अधिकारी ने अखबार को बताया कि चीन के डेवलपमेंट एंड रिफॉम्र्स कमिशन से अलग एक नाम खोजा जा रहा है। पैनल में सदस्यों की संख्या पर अधिकारी ने कहा कि एक राय यह भी थी कि ज्यादा सदस्य होंगे तो जाति और प्रदेश जैसे प्रतिनिधित्ववादी राजनीतिक मुद्दों को उपयुक्त जगह मिल सकेगी। हालांकि एक छोटा और दक्ष पैनल ज्यादा लोगों की पसंद बताया जा रहा है, क्योंकि वह मौजूदा आठ सदस्यीय योजना आयोग से अलग होगा।


�अधिकारी ने बताया कि दूसरे क्षेत्रों से विशेषज्ञ लेने का अधिकार होगा। हालांकि अभी विस्तृत दिशा-निर्देश तय किए जाने हैं। यह थिंक टैंक सबसे पहले सरकारी बजट के साइज पर काम कर सकता है। केलकर कमिटी ने कहा था कि राजस्व घाटा और जीडीपी अनुपात को 2017 तक 3 फीसदी पर लाया जाना चाहिए। वित्त मंत्री अरूण जेटली ने भी बजट में इस वित्त वर्ष के लिए राजस्व घाटे का लक्ष्य 4.1 फीसदी पर रखा है, जिसे चुनौतीपूर्ण माना जा रहा है। ए


क अन्य ऑफिसर ने कहा कि प्रधानमंत्री के मन में थिंक टैंक को लेकर सोच बिल्कुल साफ है क्योंकि वह योजना आयोग के हमेशा से आलोचक रहे हैं। 2013 में गुजरात का मुख्यमंत्री रहने के दौरान मोदी ने योजना आयोग के सामने एक प्रेजेंटेशन दिया था। इसमें उसकी गलतियों के बारे में बताया गया था। उन्होंने यह भी कहा था कि आयोग को किस तरह से काम करना चाहिए।


�कौन हैं सुरेश प्रभु!


�महाराष्ट्र की राजापुर लोकसभा सीट से शिवसेना सांसद सुरेश प्रभु पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं और इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया के सदस्य हैं। वह चौथी बार राजापुर से सांसद चुने गए हैं। वह राजग सरकार के अलग-अलग कार्यकाल में केंद्रीय मंत्री और पर्यावरण व वन मंत्री रह चुके हैं। मोदी सरकार ने उन्हें एडवाइजरी ग्रुप फॉर इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ पावर, कोल एंडरिन्यूएबल एनर्जी के उच्चा स्तरीय सलाहकार पैनल का मुखिया नियुक्त किया है।


बिहार के सैकडों गांवों में बाढ का पानी

Published : 16-08-2014

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बिहार के सैकडों गांवों में बाढ का पानी hundreds of villages inundated in bihar, major rivers swollen

पटना। बिहार और नेपाल के तराई क्षेत्रों में हो रही बारिश के कारण बिहार की सभी प्रमुख नदियां विभिन्न स्थानों पर खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं, वहीं बिहार के सुपौल, मुजफ्फरपुर, खगडिया, दरभंगा, सहरसा, बगहा, अररिया समेत कई जिलों में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो गई है। सैकडों गांवों में बाढ का पानी प्रवेश कर गया है। इधर, सरकार ने एनडीआरएफ को बाढ प्रभावित इलाकों में लगाया है। पटना स्थित बाढ नियंत्रण कक्ष के मुताबिक बिहार की सभी प्रमुख नदियों के जलस्तर में वृद्घि दर्ज की जा रही है। वीरपुर बैराज में कोसी नदी के जलस्तर में वृद्घि हो रही है। शाम चार बजे वीरपुर बैराज में कोसी नदी का जलस्तर 2.97 लाख क्यूसेक दर्ज किया गया जबकि वाल्मीकीनगर बैराज में गंडक का जलस्तर 3.14 लाख क्यूसेक दर्ज किया गया।


गंगा नदी कहलगांव में तथा बूढी गंडक चनपटिया में, बागमती नदी बेनीबाद में, कमला बलान जयनगर और झंझारपुर में तथा कोसी बराह, वीरपुर, कुर्सेला और बसुआ में खतरे के निशान के उपर बह रही है। महानंदा नदी ढेंगराघाट में खतरे के निशान को पार कर गई है। मुजफ्फरपुर में बागमती नदी के जलस्तर में बढोतरी के कारण औराई, कटरा, गायघाट, के 25 से ज्यादा गांवों में बाढ़ का पानी प्रवेश कर गया है।


पूर्वी चंपारण के करीब तीन दर्जन गांवों में बाढ का पानी तबाही मचा रहा है जबकि पश्चिमी चंपारण के बौरिया, बगहा, मंगलपुर, नौतन समेत छह प्रखंडों के गांवों में बाढ का पानी प्रवेश कर गया है। कोसी के पूर्वी तटबंध पर सहरसा के बराही गांव के पास दबाव बना हुआ है। जिले के नौहट्टा और महिषी प्रखंड के कई गांवों में बाढ का पानी प्रवेश कर गया है। नवादा और नालंदा जिले को जोडने वाली सडक पर गौंडापुर के पास बाढ का पानी ऊपर से बह रहा है जिस कारण इस मार्ग पर आवागमन रोक दिया गया है। लोग ऊंचे स्थानों की ओर जाने लगे हैं। read more...



Aug 18 2014 : The Economic Times (Mumbai)

Modi-Blessed Think Tank of 5 to Replace Plan Panel

Deepshikha Sikarwar & Vinay Pandey

New Delhi:





New Dispensation Suresh Prabhu likely to lead team of top economists Panagariya & Bibek Debroy as well as science & social science experts

A small, handpicked, five-member think tank, which will draw its power and prestige from Prime Minister Narendra Modi's clear backing, is likely to replace the Planning Commission.

The new panel will most likely be led in an executive capacity by former union minister Suresh Prabhu, with free market economists Arvind Panagariya and Bibek Debroy as two more likely members. It will be formally chaired by the prime minister and the announcement can come as early as Monday or a day or two after that, officials familiar with discussions said. An academic with wide science and technology expertise, perhaps from IITs, and a social science expert familiar with wider Sangh Parivar thinking are likely to be two other members of the as-yet-unnamed advisory body.

Economists Debroy and Panagariya have both been involved in advisory capacities with Narendra Modi's core team before Modi-led BJP won the general election in a landslide in May this year.

Officials who spoke to ET for this report, on the condition they not be identified, said the names of science and social science experts are in the process of being finalised.

One senior official said while most thinking on the new panel's formation is over, two questions being addressed now are: first, the name of the think tank and, second, whether to accommodate at least partially a counter-view on the size of the panel. This official said a name distinct from China's Development and Reforms Commission is being sought but hasn't been decided as yet.

On the size of the panel, the official said there has been a view that a larger think tank may be able to accommodate representational political issues such caste and states. However, a smaller, nimbler panel is the more likely option, he added, because it will be distinct from the nowabolished eight-member Plan Panel.

However, the think tank will have the mandate to co-opt experts from other domains, another official said. He also said while terms of reference of the new body haven't been fixed yet, broad guidelines have been decided.

One immediate focus is likely to be the size of government budget, given the Kelkar committee's recommendation that the fiscal deficit-toGDP ratio be brought down to 3% by 2017. The finance minister's deficit target for this fiscal year is 4.1%.

Advice on government spending by keeping the Kelkar target in mind and devising economic and social sector strategies within that constraint is likely to be the think tank's first priority, said the official quoted earlier.

Another official said the PM has a very clear role for the new body as "he has always been a Planning Commission sceptic". "Back in early 2013, as the chief minister of Gujarat, Modi had made a presentation to the Planning Commission pointing out its shortcomings and the role it should play," this official said. The new panel, according to senior officials, will be a strategic advisor, doing big thinking and thinking for the future. Among other priorities will be a blueprint for a manufacturing revival -a theme in the PM's Independence Day speech. Resource allocation to states, as reported by ET earlier, will move to the finance ministry.

As for the existing staff of the Planning Commission, most staffers are on deputation. The commission's core staff strength is less than 100 and can either be absorbed or deployed elsewhere, officials said.




চিনের সংস্কার আমাদের সংস্কার, মন্ত্র প্রধানমন্ত্রীর

নিজস্ব সংবাদদাতা

নয়াদিল্লি, ১৮ অগস্ট, ২০১৪, ০৩:৪৭:৫৮

সাতের দশকে চারু মজুমদার অনুপ্রাণিত কলকাতার দেওয়ালে লেখা হয়েছিল, 'চিনের চেয়ারম্যান, আমাদের চেয়ারম্যান।' ১৫ অগস্টের সকালে লালকেল্লার দেওয়ালে নরেন্দ্র মোদী যেন লিখে দিয়েছেন, 'চিনের সংস্কার, আমাদের সংস্কার।'

যোজনা কমিশনের জায়গায় যে নতুন প্রতিষ্ঠান তৈরির কথা ভাবছে মোদী সরকার, তার গায়ে 'মেড ইন চায়না'র ছাপই দেখা যাবে বলে দিল্লি দরবারের খবর। অর্থনৈতিক ও মানব উন্নয়নে নতুন চিন্তাভাবনার জোগান দেওয়ার জন্য মোদীর ভাবনায় রয়েছে চিনের 'জাতীয় উন্নয়ন ও সংস্কার কমিশন'-এর আদল।

শুধু 'সংস্কার কমিশন' নয়। মোদী সরকার আরও বেশ কিছু ক্ষেত্রে চিনের সাফল্য অনুকরণ করতে চাইছেন। প্রধানমন্ত্রী হওয়ার আগে গুজরাতের মুখ্যমন্ত্রী হিসেবেই চিন সফরে গিয়েছিলেন। সে সময় চিনের জাতীয় উন্নয়ন ও সংস্কার কমিশনের কর্তাদের সঙ্গে কথা হয়েছিল তাঁর। মোদীর ঘনিষ্ঠ মহল মনে করে, সে সময়ই চিনের অনুকরণীয় পদক্ষেপগুলি নোটবুকে লিখে এনেছিলেন তিনি। গুজরাতে তার কিছু নিদর্শন ইতিমধ্যেই দেখা গিয়েছে। প্রধানমন্ত্রী হওয়ার পরে দেশ গড়ার কাজেও এ বার সেই পথে হাঁটছেন মোদী। চিনের মতোই ভারতে 'ম্যানুফ্যাকচারিং হাব' তৈরির স্বপ্ন যার অন্যতম। যেখানে দেশীয় সংস্থা ছাড়াও বহুজাতিক সংস্থাগুলিও এসে পণ্য উৎপাদন করবে।

মজার কথা হল, নরেন্দ্র মোদী শুধু চিনের অনুকরণই করছেন না। কিছু ক্ষেত্রে চিনের সাহায্য নিচ্ছেন। আবার চিনের সঙ্গেই টক্কর দিতে চাইছেন। সরকারি সূত্র বলছে, চিনের আদলে যে উন্নয়ন ও সংস্কার কমিশন তৈরি করতে চাইছেন নরেন্দ্র মোদী, তার অন্যতম কাজ হবে এই জাপান, কোরিয়া, এমনকী চিনের সংস্থাগুলিকেও বুঝিয়ে এ দেশে কারখানা তৈরির জন্য ডেকে নিয়ে আসা। সেই স্বপ্ন সাকার করার ডাক দিয়েই স্বাধীনতা দিবসে লালকেল্লা থেকে মোদী বলেছেন, 'আসুন, ভারতে পণ্য তৈরি করুন। বিশ্বের যে কোনও দেশ সেই পণ্য তৈরি করুক। কিন্তু এখানে তৈরি করুক।' অর্থাৎ পৃথিবীর যে কোনও দেশের বাজারে এ বার 'মেড ইন চায়না'র মতোই 'মেড ইন ইন্ডিয়া' ছাপ দেখতে চান মোদী।

অর্থমন্ত্রী অরুণ জেটলি মানছেন, চিনের আসল শক্তি হল, সস্তার পণ্য উৎপাদন। সুতরাং তিনি বলেই দিচ্ছেন, "ভারতীয় পণ্যকে প্রতিযোগিতায় টিকতে হলেও সস্তায় সুদ, নিচু হারে কর, বিশ্বমানের পরিকাঠামো, কম দামে বিদ্যুৎ, দ্রুত ছাড়পত্র এবং শ্রমিক নিয়োগের ক্ষেত্রে যথেষ্ট স্বাধীনতার ব্যবস্থা করে দিতে হবে।"

ক্ষমতায় আসার এক মাসের মাথাতেই মোদীর মন্ত্রিসভা এ দেশে ইন্ডাস্ট্রিয়াল পার্ক তৈরির জন্য চিনের সঙ্গে সমঝোতা-চুক্তিতে সিলমোহর বসিয়েছে। সস্তায় পণ্য তৈরির জন্য এ দেশেই বিশেষ অর্থনৈতিক অঞ্চল তৈরি হবে। সেখানে বিনিয়োগ করবে চিন। অর্থ মন্ত্রকের এক কর্তা বলেন, "সস্তায় পণ্য উৎপাদনের পিছনে চিনের সবথেকে বড় শক্তি ছিল কম বেতনের শ্রমিক। কিন্তু এখন চিনেও শ্রমিকদের পিছনে খরচ বাড়ছে। নতুন সরকার তার ফায়দা তুলতে চায়। তাই শ্রম আইনের সংশোধন হয়েছে।"

শিল্প ও প্রশাসনিক মহল অবশ্য মনে করে, আরও বেশ কিছু ক্ষেত্রে চিনের অনুকরণ করতে পারে মোদী সরকার। কী রকম?

সরকারের বহর কমানোর কথাই ধরা যাক। চিনের জনসংখ্যা ১৩৫ কোটি। সরকারে মন্ত্রক রয়েছে ২২টি। ভারতের জনসংখ্যা চিনের থেকে ১২ কোটি কম হলেও মন্ত্রকের সংখ্যা চিনের থেকে ২৯টি বেশি। শিল্প মহলের সুপারিশ ছিল, মন্ত্রকের সংখ্যা কমানো হোক। রেল, বিমান, সড়ক পরিবহণ, জল পরিবহণের মতো মন্ত্রকগুলি মিশিয়ে দেওয়া হোক। বিদ্যুৎ মন্ত্রকের সঙ্গে কয়লা বা অপ্রচলিত শক্তি মন্ত্রক মিশে যাক। অনাবাসী মন্ত্রক বা ক্রীড়া ও যুব কল্যাণের অপ্রাসঙ্গিক মন্ত্রক বিলুপ্ত হোক। এই সব মন্ত্রক ছাঁটা হলে সরকারের ব্যয়ভার কমবে। লাল ফিতের ফাঁসও কাটবে।

নরেন্দ্র মোদী এখনও অবধি একই মন্ত্রীকে একাধিক মন্ত্রকের দায়িত্ব দিয়েছেন। বিভিন্ন মন্ত্রকের মধ্যে বার্লিন-প্রাচীর ভাঙার কাজ শুরু করেছেন। কিন্তু কোনও মন্ত্রক একেবারে তুলে দেননি। মন্ত্রকের সংখ্যা কমিয়ে মোদী কবে 'মিনিমাম গভর্নমেন্ট'-এর পথে হাঁটবেন, অনেকেই তার দিকে তাকিয়ে রয়েছেন।

চিনে কে মন্ত্রী হবেন, সরকারের উচ্চপদে কে বসবেন সে বিষয়ে পাণ্ডিত্য ও নির্দিষ্ট ক্ষেত্রে দক্ষতাই শেষ মাপকাঠি। পরিসংখ্যান বলছে, চিনের মন্ত্রিসভা বা সরকারি পদে যত জন ডক্টরেট রয়েছেন, আর কোনও দেশে তা নেই। মোদীর সরকারে পিএইচডি ডিগ্রিধারীর সংখ্যা মাত্র এক জন। মনমোহন মন্ত্রিসভায় দু'জন ডক্টরেট ছিলেন। মোদী সরকারের শিক্ষামন্ত্রী স্মৃতি ইরানির শিক্ষাগত যোগ্যতা নিয়ে প্রশ্ন রয়েছে। নিদেনপক্ষে স্নাতক না হয়েও স্মৃতি কী ভাবে শিক্ষামন্ত্রীর গদিতে বসেন, তা নিয়ে বিতর্ক চলছে। রাজনৈতিক বাধ্যবাধকতা মেনে যে দেশে মন্ত্রী বাছাই করতে হয়, সেখানে মোদী শেষ পর্যন্ত বেজিংকে কতটা অনুসরণ করতে পারেন, সেটাই দেখার।

শিল্পমহল বলছে, সরকারি নিয়ন্ত্রণের ক্ষেত্রে সংস্কারের কাজটা করাটাও মোদীর পক্ষে একেবারেই কঠিন নয়। এ দেশে মাটির তলায় যত কয়লা রয়েছে, তার মালিকানা কয়লা মন্ত্রকের। কাকে কোথায় কয়লা খননের সুযোগ দেওয়া হবে, তা ঠিক করে মন্ত্রক। আবার মন্ত্রক নিজেই কোল ইন্ডিয়া চালায়। বিমান মন্ত্রক নিজে এয়ার ইন্ডিয়া চালায়। আবার অন্যান্য বিমান সংস্থার জন্য তারাই নীতি তৈরি করে। অর্থাৎ মন্ত্রক একাধারে নিজেই প্রতিযোগী, নিজেই নীতি নির্ধারক। কিন্তু এ দু'টি সম্পূর্ণ পৃথক করতে না পারলে নীতি নির্ধারণ কখনও পক্ষপাতশূন্য ও নৈর্ব্যক্তিক হতে পারে না। চিনে এই ব্যবস্থাটা সফল ভাবে রূপায়িত হয়েছে। নরেন্দ্র মোদীও এ দেশে সেই ভাবনা বাস্তবায়িত করতে পারেন।

কৃষির উৎপাদন বাড়ানোর ক্ষেত্রেও চিনকে অনুকরণ করা যেতে পারে বলে কৃষি মন্ত্রকের অনেকের মত। শুধু ধানের ক্ষেত্রেই তুলনা করলে, চিনের হেক্টর প্রতি ধান উৎপাদন ভারতের তুলনায় দ্বিগুণ। ফলে ভারতের থেকে অনেক কম জমিতে ধান চাষ করেও বেশি ধান উৎপাদন করে চিন। কারণ ষাটের দশক থেকেই ধানে হাইব্রিড বীজ ব্যবহার শুরু করেছে চিন। ভারত এখনও সেই ক্ষেত্রে পিছিয়ে রয়েছে।

http://www.anandabazar.com/national/new-era-to-begin-after-dissolve-of-yojona-commission-1.60450

Aug 18 2014 : The Times of India (Delhi)

LEARNING WITH THE TIMES - '90s' liberalism triggered decline of planning era







What was the need to have a Planning Commission?

The early days of Independence were chaotic in terms of economic planning. The geographical and economic statistics of the country required drastic revision. India was formed after the integration of many former Indian states that were earlier being governed in different ways.

The influx of several million people after partition had aggravated the country's food supply problems. The econo my had also inherited the in flationary pressure caused by World War II and the private sector was not strong and confident enough to step forth. A fresh assessment of the financial and other resources was required and in 1949 the Advisory Plan ning Board appointed by the interim government recom mended the appointment of a Planning Commission.

When was the Planning Commission formed?

The Planning Commission was set up in March 1950 as an executive arm of the Union government and was chaired by Pandit Jawaharlal Nehru, the PM at that time. It was responsible for making an assessment of all the country's resources and planning how they could be used most efficiently. Also, it was supposed to identify the most important priorities of the govern ment. In 1953, scientist and statistician PC Mahalanobis joined the commission.

Are five-year plans (FYPs) unique to India? FYPs were first im plemented by Joseph Stalin in Soviet Un ion in the late 1920s.

This method was ad opted by many other countries. Among the bigger economies, China and India both have continued to use FYPs. China, howev er, has renamed its eleventh FYP (2006-2010) as a guideline (guihua) rather than a plan (jihua). This is seen as the central govern ment signalling a relatively non-interventionist appr oach in economic planning.

What were the focuses of different five-year plans?

The first FYP was focused on agriculture, price stability , power and transport. The sec ond focused on rapid industri alization and was moderately successful at a time when the country faced an acute short age of foreign exchange. The third gave top priority to agriculture to support industries and export, but was a complete failure because of the Indo-China war (1962), Indo-Pak war (1965) and severe drought 1965-66. Defence became an important priority. Thus, the first three FYPs saw resources being spent on creating the massive public sector (steel, rail, power) and building of key infrastructure (hydel projects). Subsequent plans encouraged the Green Revolution, making India self-reliant in food and so on. Since the eighth Plan (1992-97), focus shifted to liberalization and, with that, the decline of the planning process itself.

What are plan holidays? Plan holidays are declared for years when government is not in the position to make a five-year plan. The Indo-Pak conflict of 1965 caused the first break. Between 1966 and 1969, the government operated through three annual plans. Similarly in 1990, the eighth FYP could not take off because of an unstable political situation.



বাস্তবতা হারিয়েই আজ বিদ্রুপের পাত্র কমিশন

নিজস্ব সংবাদদাতা

নয়াদিল্লি, ১৮ অগস্ট, ২০১৪, ০৩:৪৪:৩১


সেই কবে ১৯৮৫ সালে যোজনা কমিশনের সদস্যদের 'একদল জোকার' বলে বিদ্রুপ করেছিলেন রাজীব গাঁধী। মুখ পাল্টালেও সেই 'জোকার'-দের লোক হাসানো যে এখনও চলছে, দিল্লিকে ঘিরে এক্সপ্রেসওয়ের কাজ আটকে থাকাই তার উদাহরণ। নরেন্দ্র মোদী সরকারের যোজনামন্ত্রী রাও ইন্দরজিৎ সিংহ নিজে হরিয়ানার সাংসদ। মন্ত্রী হয়েই তিনি চার বছরের পুরনো বিবাদ এক কথায় বন্ধ করে দেন। নিদান দেন, আগে জমি অধিগ্রহণ করে রাস্তা তৈরি হোক। টোল কী হবে, তা পরে দেখা যাবে।

নরেন্দ্র মোদী আরও এক ধাপ এগিয়ে যোজনা কমিশনটাই তুলে দিয়েছেন। তাতে সব থেকে বেশি মন খারাপ এক শ্রেণির অর্থনীতিবিদের। কারণ যোজনা কমিশনের চেয়ারে বসে পরামর্শ দেওয়ার দিন ফুরলো। এক সময় টেস্ট ক্রিকেটারদের মতোই জনপ্রিয় ছিলেন এই সব অর্থনীতিবিদ। প্রশান্ত মহলানবীশ থেকে সুখময় চক্রবর্তী যারাই পঞ্চবার্ষিকী পরিকল্পনা তৈরির ক্ষেত্রে গুরুত্বপূর্ণ ভূমিকা নিয়েছেন, তাঁদের নাম স্বর্ণাক্ষরে লেখা হয়েছে।

সময় পাল্টেছে। সরকারি বিনিয়োগকে ছাপিয়ে গিয়েছে বেসরকারি লগ্নি। অর্থনীতিতে সরকারি ব্যয়বরাদ্দের থেকে এখন আন্তর্জাতিক পুঁজি অনেক বেশি গুরুত্বপূর্ণ। ফলে সরকারি ব্যয়বণ্টনের থেকেও বেশি গুরুত্ব পায় সুদ-নীতি। স্বাভাবিক ভাবেই মন্টেক সিংহ অহলুওয়ালিয়া নন, প্রচারমাধ্যমে বেশি গুরুত্ব পান রঘুরাম রাজন। বর্তমান পঞ্চবার্ষিকী পরিকল্পনায় কোন ক্ষেত্রে অগ্রাধিকার দেওয়া হচ্ছে, এখন অর্থনীতির ছাত্ররাও তার খোঁজ রাখে না। অর্থনীতির পাঠক্রমেও সে সব পড়ানো হয় না। যোজনা কমিশনের এক উপদেষ্টাই ঠাট্টাচ্ছলে বলেন, "যোজনা কমিশন এর পরেও আগের চেহারায় থেকে গেলে তার কাজ হত ৩০৩০ সালে আলুর দাম কত হবে, সেই ভবিষ্যদ্বাণী করা।"

সংসদ ভবন থেকে বেরিয়ে সংসদ মার্গ ধরে হাঁটলে তিনটি বাড়ির পরেই যোজনা ভবন। কমিশন উঠে গেলে ১৯৫৪ সালে তৈরি যোজনা ভবনের নামটাও পাল্টে যাবে। তা সে যত ওজনদার ব্যক্তিই হোন, প্রথম থেকেই এই বাড়ির কর্তারা ব্যঙ্গ-বিদ্রুপের শিকার। রাজীব গাঁধী যে যোজনা কমিশনকে 'জোকারের দল' বলেছিলেন, তখন তার উপাধ্যক্ষ ছিলেন স্বয়ং মনমোহন সিংহ। কমিশনের সচিব সি জি সোমাইয়া পরে তাঁর স্মৃতিকথায় লিখেছিলেন, রাজীবের কথা শুনে পদত্যাগ করতে চেয়েছিলেন মনমোহন। সোমাইয়া অনেক বুঝিয়ে তাঁকে ধরে রাখেন।

জওহরলাল নেহরু যখন প্রশান্তচন্দ্র মহলানবীশকে যোজনা কমিশনে আনেন, সে সময়ও সব থেকে অখুশি হয়েছিলেন অর্থমন্ত্রী টি টি কৃষ্ণমাচারি। মহলানবীশ যখন দ্বিতীয় পঞ্চবার্ষিকী পরিকল্পনা তৈরি করছেন, অর্থমন্ত্রী সে সময় ঘনিষ্ঠ মহলে ক্ষোভ প্রকাশ করে বলেছিলেন প্রধানমন্ত্রী এক জন 'সুপার ফিনান্স মিনিস্টার' বসিয়েছেন!

গত দশ বছরের ইউপিএ-আমলে মন্টেক সিংহের জমানায় কেন্দ্রীয় সরকারের বিভিন্ন মন্ত্রকের সঙ্গে যোজনা কমিশনের সংঘাত আরও বেড়েছে। মনমোহনের সঙ্গে ঘনিষ্ঠতার সুবাদে বিভিন্ন মন্ত্রকের ওপর ছড়ি ঘোরাতে চেয়েছেন মন্টেক। তাতে হয় প্রকল্পের কাজ আটকে থেকেছে, অথবা যোজনা কমিশনকে পাত্তা না দিয়ে মন্ত্রকগুলি নিজেদের মতো কাজ করে গিয়েছে। যোজনা কমিশনের তৈরি দিস্তা দিস্তা নথি আলমারিতেই সাজানো থেকেছে।

এর সব থেকে বড় উদাহরণ বিভিন্ন ক্ষেত্রে সরকারি-বেসরকারি যৌথ উদ্যোগের জন্য তৈরি চুক্তি বা 'মডেল কনসেশন এগ্রিমেন্ট'-এর খসড়া। প্রায় গোটা পঞ্চাশেক এমন খসড়া ছাপিয়েছিলেন মন্টেক। দামি কাগজে, সুন্দর করে বাঁধানো সেই সব বই যোজনা কমিশনের আমলাদের ঘরে ঘরে সাজানো। কিন্তু একমাত্র বন্দর সংক্রান্ত চুক্তি বাদ দিলে কোনওটিতেই কেন্দ্রীয় মন্ত্রিসভার অনুমোদন মেলেনি। মন্টেক সেই সব চুক্তি মন্ত্রকগুলির উপর চাপিয়ে দিতে চেয়েছিলেন। জাতীয় সড়ক কর্তৃপক্ষ বা জাহাজ মন্ত্রক কিন্তু নিজেদের মতোই কাজ করে গিয়েছে।

বিভিন্ন শহরে মেট্রো রেল তৈরির ক্ষেত্রেও যোজনা কমিশনের নীতি বাধা হয়ে দাঁড়িয়েছে। নগরোন্নয়ন মন্ত্রক ও রাজ্য সরকারের যৌথ উদ্যোগে হায়দরাবাদ, জয়পুরের মতো শহরে মেট্রো তৈরির পরিকল্পনা হয়েছে। যোজনা কমিশন বলে দিয়েছে, নগরোন্নয়ন মন্ত্রক ও যোজনা কমিশনের সমান অংশীদারিত্ব থাকবে। কিন্তু যৌথ উদ্যোগে যে কোনও সংস্থা চালাতে গেলে কোনও এক জন লগ্নিকারীর অংশীদারিত্ব অন্তত ৫১ শতাংশ হওয়া প্রয়োজন। না হলে সংস্থায় সিদ্ধান্ত নেওয়া যায় না। হায়দরাবাদ, জয়পুরে মেট্রো রেলের কাজও একই সমস্যায় থমকে গিয়েছে।

বার বার কাজ আটকে দেওয়া মন্টেকের সেই যোজনা কমিশনই এ বার তুলে দিলেন নরেন্দ্র মোদী। কমিশনের এক প্রাক্তন সদস্যের কথায়, "আসলে বাস্তবের সঙ্গে সম্পর্কটাই মুছে গিয়েছিল কমিশনের। যে যোজনা ভবনে ৩৫ লক্ষ টাকার শৌচাগার তৈরি হয়,সেই যোজনা ভবন থেকেই ঘোষণা হয় দেশে এক জন গরিব মানুষ মাত্র ২৮ টাকাতেই দিব্যি দিন গুজরান করতে পারেন।"

http://www.anandabazar.com/national/planning-commission-losing-reality-today-satire-1.60444


দাদাগিরি ঘোচায় আঞ্চলিক দলগুলি খুশি, প্রশ্ন বিকল্প কী

নিজস্ব সংবাদদাতা

নয়াদিল্লি, ১৮ অগস্ট, ২০১৪, ০৩:৪৫:৪১

যোজনা কমিশনের খবরদারি খর্ব হওয়ায় খুশি আঞ্চলিক দলগুলি ও তাদের সরকার। বিজেপির সঙ্গে সঙ্গে আঞ্চলিক দলগুলিও মনে করছে, যোজনা কমিশন বিলোপের ফলে যুক্তরাষ্ট্রীয় কাঠামো আরও মজবুত হবে, উন্নতি হবে কেন্দ্র-রাজ্য সম্পর্কের। রাজ্যগুলি তার অর্থ আরও স্বাধীন ভাবে খরচ করার সুযোগ পাবে। রাজ্যের হাতে বাড়তি ক্ষমতা তুলে দেওয়ার সিদ্ধান্তকে তাই সামগ্রিক ভাবে স্বাগত জানিয়েছেন তামিলনাড়ুর মুখ্যমন্ত্রী তথা এডিএমকে নেত্রী জয়ললিতা বা জেডিইউ-এর নীতীশকুমার। ঘনিষ্ঠ মহলে ওই সিদ্ধান্তে সায় দিয়েছেন অখিলেশ সিংহ যাদবও। সকলেই মনে করছেন, মোদীর এই সিদ্ধান্তে যোজনা কমিশনের বাড়াবাড়ির দিন শেষ হল।

যদিও মোদীর সিদ্ধান্তকে প্রকাশ্যে সমর্থন করার ক্ষেত্রে সমস্যা রয়েছে কিছু দলের। তারা মোদীর খোলাখুলি প্রশংসা করতেও নারাজ। ঘরোয়া আলোচনায় যোজনা কমিশনের বিদায়কে ইতিবাচক পদক্ষেপ বলে মেনে নিয়েও তাই প্রকাশ্যে ঢোক গিলছে তারা। তৃণমূল, সিপিএম, আরজেডি বা জেডিইউয়ের মতো দলের নেতারা জানতে চান, যোজনা কমিশন তুলে দেওয়ার পরে বিকল্প ব্যবস্থার ধরন-ধারণ কী হবে?

রাজ্যের টাকা কোন উন্নয়ন প্রকল্পে কত খরচ হবে, এত দিন কার্যত সেটাই নিয়ন্ত্রণ করে আসত যোজনা কমিশন। তাদের এই অহেতুক হস্তক্ষেপকে কেন্দ্র করে বিগত দশকগুলিতে কম বিতর্ক হয়নি। রাজ্যের যোজনা বরাদ্দ ঠিক করে দেওয়ার ক্ষেত্রে কমিশনের ছড়ি ঘোরানোর বিরুদ্ধে বিভিন্ন সময়ে সরব হয়েছেন আঞ্চলিক দলের নেতারা। চতুর্থ অর্থ কমিশনের সদস্য হিসেবে অর্থনীতিবিদ ভবতোষ দত্ত সেই ষাটের দশকেই যোজনা কমিশনের ভূমিকার সমালোচনায় সরব হয়েছিলেন। ভবতোষবাবু ব্যক্তিগত ভাবে যোজনা কমিশনের হাতে বাড়তি ক্ষমতা থাকার বিরোধী ছিলেন। তাঁর মতে, সংবিধানের রূপকার হওয়া সত্ত্বেও বি আর অম্বেডকর যোজনা কমিশনের হাতে ওই বাড়তি ক্ষমতা মেনে নিতে পারেননি। অম্বেডকর মনে করতেন, বরাদ্দ বণ্টনের দায়িত্ব কেবলমাত্র অর্থ কমিশনের হাতে থাকা উচিত। এটি একটি সাংবিধানিক প্রতিষ্ঠান। কিন্তু যোজনা কমিশনের অকারণ হস্তক্ষেপে তা সম্ভব হচ্ছে না।

অর্থনীতিবিদদের একাংশ এখন মনে করছেন, যোজনা কমিশন বিলোপের পরে অর্থ কমিশন তার গুরুত্ব ফিরে পাবে। শুধু তাই নয়, এর ফলে যুক্তরাষ্ট্রীয় ব্যবস্থাও আরও শক্তিশালী হবে বলে মনে করছে বিজেপি শিবির।

মুখ্যমন্ত্রী থাকার সময় বরাবর রাজ্যগুলিকে অধিক ক্ষমতা দেওয়ার পক্ষে সওয়াল করে এসেছেন মোদী। প্রধানমন্ত্রী হয়ে রাজ্যগুলির দীর্ঘদিনের দাবি তিনি পূরণ করলেন বলেই দাবি করছেন বিজেপি নেতারা। এই সিদ্ধান্তে কেন্দ্র-রাজ্য সম্পর্কেও উন্নতি হবে বলে মনে করছেন তাঁরা।

যোজনা কমিশনের হস্তক্ষেপ নিয়ে সরব ছিলেন তামিলনাড়ুর মুখ্যমন্ত্রী তথা এডিএমকে নেত্রী জয়ললিতাও। ২০১২ সালে দিল্লিতে যোজনা কমিশনের কর্তাদের সঙ্গে বৈঠকের পরে অসন্তুষ্ট জয়ললিতা মন্তব্য করেছিলেন, "আমাদের নিজেদের টাকা আমরা কী ভাবে খরচ করব তা বলে দেওয়াই যেন যোজনা কমিশনের কাজ!" তিনি মনে করেন, নতুন সিদ্ধান্তে রাজ্যগুলি নিজেদের মতো করে অর্থ খরচ করতে পারবে। আর জেডিইউ-এর রাজ্যসভা সদস্য তথা দলের মুখ্যপাত্র কে সি ত্যাগীর মতে, "এই সিদ্ধান্ত স্বাগত। দল দীর্ঘদিন ধরেই রাজ্যের হাতে বাড়তি ক্ষমতা দেওয়ার দাবি জানিয়ে আসছিল।"

তবে রাজ্যগুলির দীর্ঘদিনের দাবিপূরণ হওয়া সত্ত্বেও মোদীকে পুরো নম্বর দিতে রাজি নন জেডিইউয়েরই নীতীশকুমার। বিহারের এই প্রাক্তন মুখ্যমন্ত্রী ঘনিষ্ঠ মহলে জানিয়েছেন, সরকার কী বিকল্প ব্যবস্থা আনছে, সেটা খতিয়ে দেখা দরকার। আসলে রাজনৈতিক বাধ্যবাধকতায় মোদীর পাশে দাঁড়াতে পারছেন না অনেক নেতাই। যেমন লালুপ্রসাদ যাদব। মুখ্যমন্ত্রী থাকার সময় একাধিক বার যোজনা কমিশনের অতিরিক্ত হস্তক্ষেপের বিরুদ্ধে সওয়াল করেছেন এই যাদব নেতা। কিন্তু এখন কিছুটা সতর্ক ভাবেই তিনি বলছেন, ''বিকল্প ব্যবস্থাটি কী, তা আগে জানা দরকার। কেননা, মোদী নিজেকেই তো যোজনা কমিশন বলে মনে করেন!"

কেন্দ্র-রাজ্য সম্পর্কের প্রশ্নে সিপিএম নেতৃত্ব বরাবরই রাজ্যের হাতে বেশি ক্ষমতা দেওয়ার পক্ষে। রাজ্যকে বেশি কর আদায়ের ক্ষমতা, প্রয়োজনে বাজার থেকে বেশি ধার নেওয়ার সুবিধা, ঋণ মকুব করা, কেন্দ্র-রাজ্য যৌথ প্রকল্প রূপায়ণে বাড়তি কেন্দ্রীয় সাহায্যের দাবিতে বরাবরই সরব থেকেছেন সিপিএম নেতৃত্ব। কিন্তু মোদীর ওই সিদ্ধান্ত প্রসঙ্গে রাজ্যের প্রাক্তন অর্থমন্ত্রী অসীম দাশগুপ্তের বক্তব্য, "আমরা যোজনা কমিশনের পক্ষে। ওখানে আলোচনা করলে অনেকগুলি মতামত পাওয়া যেত। তার মধ্য থেকে একটি পথ বেছে নেওয়া হতো। এর আগে নেতাজি যখন প্ল্যানিং কমিশনের পরিকল্পনা দেন, তখন পশ্চিম ভারতের শিল্পপতিরা এর বিরোধিতা করেন। এখনও সেটা দেখা যাচ্ছে।" অসীমবাবুও বলেছেন, "সরকার বিকল্প কী ব্যবস্থা আনছে, তা জানা গেলে তবেই গোটা বিষয়টি স্পষ্ট হবে। তার আগে মন্তব্য করা অর্থহীন।"

নীতিগত ভাবে রাজ্যের হাতে বাড়তি ক্ষমতার পক্ষ নিলেও সিপিএমের আশঙ্কা, ওই সিদ্ধান্তের জেরে ধীরে ধীরে জনকল্যাণমুখী প্রকল্পগুলি বন্ধ হয়ে যাবে। দলের পলিটব্যুরো সদস্য সীতারাম ইয়েচুরি মনে করছেন, এর ফলে সামাজিক প্রকল্পগুলির মাধ্যমে পিছিয়ে পড়া মানুষের জন্য যে কাজ বা উন্নয়নমুখী প্রকল্পগুলি চলছিল তা-ও বন্ধ হওয়ার উপক্রম হবে। ইয়েচুরির কথায়, "এই সিদ্ধান্তে শিশুদের জন্য আইসিডিএস বা ১০০ দিনের কাজের মতো সামাজিক সুরক্ষা প্রকল্পগুলির ভবিষ্যৎ নিয়ে সংশয় তৈরি হল।"

দ্বিধায় তৃণমূলও। যোজনা কমিশনের বাড়তি হস্তক্ষেপ খর্ব হওয়ায় দল খুশি। কিন্তু কেন্দ্র একতরফা ভাবে যোজনা কমিশন তুলে দেওয়ার সিদ্ধান্ত নেওয়ার সংসদে এর বিরোধিতায় সরব হওয়ারও পরিকল্পনা নিয়েছেন তৃণমূল নেতৃত্ব। ফলে তৃণমূলের রাজ্যসভা সাংসদ ডেরেক ও'ব্রায়েন আজ বামেদের সঙ্গে একই সুরে বলেছেন, "নতুন প্রস্তাব আসার পর তা বিশ্লেষণ করলে তবেই তার ভাল-মন্দ বোঝা যাবে।" কিন্তু লোকসভায় তৃণমূলের দলনেতা সুদীপ বন্দ্যোপাধ্যায় অপেক্ষায় থাকতে নারাজ। তিনি বলেছেন, "১৪ অগস্ট পর্যন্ত সংসদের অধিবেশন চলল। সেখানে যোজনা কমিশন তুলে দেওয়া নিয়ে আলোচনা হল না। কিছু জানানোই হল না। আচমকা ১৫ অগস্ট প্রধানমন্ত্রীর ভাষণ থেকে এত বড় একটা সিদ্ধান্ত জানা গেল। তৃণমূল এই সিদ্ধান্ত সমর্থন করে না।" সুদীপবাবুর আরও বক্তব্য, "কেন্দ্র এবং রাজ্যগুলির মধ্যে সুসম্পর্ক বজায় রাখতে যোজনা কমিশন সেতুর ভূমিকা পালন করে। কমিশনের সচিবদের সঙ্গে রাজ্য সরকারগুলির বৈঠকে কমিশনের তরফে সদর্থক বার্তা পাওয়া যায়। সেই কমিশন কী এমন ক্ষতি করল যে, তাকে বিলুপ্ত করে দিতে হল?"


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