THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Sunday, August 31, 2014

पथ की नदियां खींच निकालो,आंधी के झूले पर झूलो पलाश विश्वास

पथ की नदियां खींच निकालो,आंधी के झूले पर झूलो

पलाश विश्वास



माफ करें जी, हम तो अधपढ़ है।तकनीकी क्रांति काल में देशी कंपनियों के सर्वर कायाकल्प और आउटसोर्सिंग के वैदेशिक कारोबार और रातदिन आउटसोर्सिंग को न हम वैज्ञानिक मानते हैं और न अनुसंधान।विप्रो,इंफोसिस,टीएलसी हमारे लिए शेयर ब्रोकर से बेहतर हैं नहीं।


जापानी पूंजी का असर भारत में अबतक इलेक्ट्रानिक उपभोक्ता बाजार और आटोसेक्टर में सीमाबद्ध है जबकि अमेरिका सहित समूचे पश्चिम में बाजार चीनी और जापानी कंपनियों के हाथों बेदखल है।


अंकल सैम भी जापानी एंबुश से रात को चेन से सो नहीं पाते।चीनी सामान की साख देखनी हो तो कोलकाता के खिदिरपुर में फैंसी मार्केट तशरीफ लायें या फिर जहां भी हो ,जैसे भी हो,अपनी चीनी उपभोग की अभिज्ञता से इसे समझ लें।


जापानी पूंजी का असल नजारा देखना है तो अखंड भारत के टूटे् देश बांग्लादेश की अर्तव्यवस्था की समझ जरुरी है जो पूरी तरह जापानी शिकंजे में है।वहां वस्त्र उद्योग के परिसर में भारत में आने वाले वक्त की आहट सुनी जा सकती है।


अब उनका हम क्या करें जो केसरिया कारपोरेट समय का मुकाबला किसी जनप्रतिरोध या जनांदोलन के बजाय शार्ट कट में यूपीए के महिमामंडन बजरिये करने का शार्टकट अपना रहे हैं।


उनके लिए सबसे बड़ी केसरिया त्रासदी तो यह है कि तमाम सरकारी कमेटियों, दलों, संस्थानों और अकादमियों का रंग बदल जाना है और आम जनता की नरकंत्रणा की जो अनंत प्रवाह है,उससे उनका कुछ लेना देना है,ऐसा मुझे लगता है नहीं।


माफ कीजियेगा,ऐसे तमाम धर्मनिरपेक्ष विद्वतजनों का जनसरोकार बस यही तक सीमाबद्ध लग रहा है मुझे।संबद्ध लोग केसरिया फौज की तरह हमें अमित्र घोषित करने को स्वतंत्र हैं।लेकिन आज का यह सबसे भयानक सामाजिक वास्तव है।


मुद्दे की बात तो यह है कि नवउदारवादी भारत में संसदीय राजनीति दो ध्रूवीय है और दोनों ध्रूवों का राजकाज समानधर्मी है।


कांग्रेसवाद और गैरकांग्रेसवाद का किस्सा कोई अलग अलग नहीं है।


कानून का राज कभी नहीं रहा है किसी भी जमाने में।


न संविधान अस्पृश्य भूगोल में कहीं लागू हुआ है अब तक और न जल जंगल जमीन के ठिकानों पर कहीं कोई लोकतंत्र का मुलम्मा भी है।


आज हम जिसे सलवा जुड़ुम कहते हैं,वह नेहरु इंदिरा समय की गौरवमयी विरासत है और जनगण के विरुद्ध युद्ध तो एकाधिकारवादी मनुस्मृति अर्थव्यवस्था के नस्ली राज्यतंत्र का अहम कार्यबार है।


जन मन धन कांग्रेसी योजना है,ऐसा कहकर हम तो उलटे मोदी के गण गायब को वैधता देने लगे हुए हैं।


आर्थिक सुधारों की निरंतरा ही राजकाज का प्रयोजन है। विनियमन, विनियंत्रण और विनिवेश अनिवार्यताएं हैं।


इसी का सारतत्व फिर वही श्रीमद भागवत गीता है यानि कम से कम सरकार और अधिकतम प्रशासन।


अधिकतम प्रसासन फिर वही बिल्डर प्रोमोटर माफिया राज है या शारदा फर्जीवाड़ा या फिर अनंत घोटाला सिलिसिला।


हमारे मित्र तो ऐसा सिद्ध करने की कोशिश कर रहे हैं कि जैसे यूपीए की निरंतरता खत्म होने से सारा सत्यानाश हो रहा है और कांग्रेसी जनमाने में सबकुछ हरा हरा रहा हो हरित क्रांति के बरअक्श जैसे आपलरेशन ब्लू स्टार या केसरिया गुजरात नरसंहार या बाहबरी विध्वंस या भोपाल गैस त्रासदी।


और विडंबना है कि नवउदारवादी परिदृश्य के ये ज्वलंत संदर्भ हमें नजर आते नहीं हैं।


क्योंकि विचारधारा और पार्टीबद्धता का अवस्थान कुछ भी हो,इस महादेश में सीमाओं के आर पार सामाजिक सांस्कृतिक आर्थिक वर्चस्व का भूगोल एक ही है।


सपाट मैदानी भूगोल जहां कोई पूर्वोत्तर और कश्मीर हैं ही नहीं,सशस्त्र सैन्य विशेषाधिकार अंब्रेला मध्ये,न हिमालय है और न गोंडवाना का मध्यभारत और न ही द्रविड़ देशम।न अ्स्पृश्य है कहीं, नकहीं नस्ली भौगोलिक बेदभाव है और न जाति वर्चस्व का कोई बीजगणित है।


मुक्तबाजार में नकदी प्रवाह ही अंतिम सत्य है और फिर वही संभोग से समाधि है,जहां कोई कबीरदास नहीं है और न हैं मुक्तिबोध।


हिंदुत्व सिर्फ संघपरिवार का एजंडा नहीं है,बल्कि यह हमारा अतीत वर्तमान और अनागत भविष्य है और विधर्मी होकर भी लोग अंततः हिंदू हैं चाहे बांग्लादेश में हों या पाकिस्तान में।समस्त आम ओ खास की मानसिकता और वजूद हिंदुत्वमय है।


त्योहारी पर्व पर तमाम धर्मनिरपेक्ष लोगों के संदेश और निजी जीवन खंगाल लीजिये,कैसे कैसे वे धर्मस्थलों और मठों के समामने नतमस्तक है।


यही वह सर्वव्यापी राज्यतंत्र है,जिसे बदले बिना कुछ भी बदलाव नहीं होने वाला है।इस बदलाव के लिए फिर मुक्तिबोध को बार बार पढ़ना जरुरी है।


अभी हमने कायदे से तय ही नहीं किया है कि हम किस ओर हैं।


अभी हम अंधेरे में ही भटक रहे हैं और राजमहल के पिछवाड़े पर कतारबद्ध है लंगरखाना खुल जाने के इंतजार में।


दो चार टुकड़ा नसीब हो तो कर्मफल सिद्दांत को धता बता द्विजत्व माध्यमे कुंडली बदल डालने का योगाभ्यास करते हुए।


बार बार हम उसी पुरातन पथ पर लौट फिरकर मटरगश्ती करने को अभ्यस्त है।आह वाह,क्या हिमपात है।


पथ से नदियां खींच निकालना इस मृत्यु उपत्यका में असंभव सा है  और हममें किसी का कलेजा इतना मजबूत भी नहीं है कि आंधियों का झूला झूलने का जोखिम उठाये।


केसरिया कारपोरेट समय में हम सारे लोग फिर वहीं शूतूरमुर्ग हैं जो नमोकाल में मनमोहन मनमोहन जाप रहे हैं और कांग्रेस को वापस लाकर ही परिवर्तन कर देंगे।


वैसा ही परिवर्तन जो दीदी ने पीपीपी बंगाल में कर दिखाया है और जहां इस वक्त पद्मप्रलय सबसे तूफानी है।


हम तो नये कोलकाता और शांति निकेतन को स्मार्ट सिटी बनाने पर ऐतराज जता रहे थे अबतक।बनारस में महीनेभर बिताया है भगवती चरण वर्मा की कथा वसीयत के फिल्मांकन के लिए,जिसकी पटकथा और संवाद हमने लिक्खे थे।


गंगाघाट पर कुछ ही वक्त हमने बिताया कवि ज्ञानेंद्र पति के साथ।एक दफा गंगा आरती भी देख ली विदेशी पर्यटकों की भीड़ में धंसते हुए।काशीनाथ सिंह के साथ भी कुछ वक्त भी बिताया है।


बाकी बनारस को हम साहित्य और इतिहास के माध्यम से महसूसते हैं।


बाबा विश्वनाथ के मंदिर या दशाश्वमेध का महत्व नास्तिक नजरिये से कुछ भी नहीं है।इतनी भी पूंजी नहीं है कि दालमंडी पर बाग बाग हो जाये।औघड़ों का भक्त भी जाहिर है नहीं हूं।न काॆसीवास की कोई भविष्यनिधि योजना है।


हमारे नजरिये से इस पूरे महादेश में और शायद दुनियाभर में जनविमर्श का एपिलसेंटर है वाराणसी जो शास्त्रार्थभूमि है।विचार और व्याख्याओं का अनंत प्रवाह है।


जापानी पूंजी और जापानी तकनीक से एक झटके से हजारों साल के वैदिकी गेटअप उतारकर झां चकाचक स्मार्ट सिटी बन जाने से केसरिया बनारस में क्या हलचल है,हम नहीं जानते।लेकिन यह निश्चय ही शास्त्रार्थ,विचार,व्याख्याओं,जनविमर्श और गंगाजमुनी सांस्कृतिक इतिहास का अंत है।


अब उम्र भी नहीं है और न मौका है कि कोई जापान से सावधान लिखना शुरु कर दूं।जब अमेरिका के खिलाप मुहिम छेड़ी थी,तब आईटी विशेषज्ञों की यह जमात कहीं नहीं थी और न मीडिया की नीतियां कारपोरेट थीं।


तब लघु पत्रिका नामक एक जनांदोलन जरुर था,जो अब दिवंगत है।सोशल मीडिया का करपोरेटीकरण और केसरियाकरण इतना तेज है कि अब मालूम नहीं कब किस समयहमारा अवसान नियतिबद्ध है।


अपने आदरणीय मित्र सुरेंद्र ग्रोवर जी सोशल मीडिया में भाई यशवंत के बाद इन दिनों सबसे बड़े टीआरपी विशेषज्ञ बनकर उभरे हैं।साइट को पठनीय दर्शनीय बनाने के उनके करतब का पहले से कायल हूं।


आज सुबह फेसबुक पर उनका पोस्ट देखकर जी हरा हरा हो गया क्यंकि अरसे से गायपट्टी के बाहर हूं और जायका का मिजाज बदल गया है।ग्रोवर जी ने लिखा हैःमूंग की धुली दाल उबाल कर स्वादानुसार नमक, प्याज़, हरी मिर्च, धनिया और नीम्बू के साथ.. एक बार बना कर खाइए... आनंद आ जायेगा.. और हाँ, दाल का पानी फेंके नहीं.. वो सूप की तरह नमक, काली मिर्च और नीम्बू के साथ सूप की तरह पी सकते हैं..


मौसम का मिजाज भी बदलने लगा है और रूठे बादर भी घुमड़ना सीखने लगे हैं।सर्दियों की आहट होने लगी है।नैनीताल में तो बरसात के दिनों में कई कई दिनों तक सोने का अभ्यास रहा है।लिहाफ तानकर सोने का मजा ही कुछ और है।


दरअसल यह वक्त कुछ लिहाफ ओढ़कर सो जाने का जैसा होने लगा है।जो कुछ करें इस्मत चुगताई की तर्ज पर लिहाफ के अंदर करें।


लिहाफ जिन्हें नसीब नहीं है और लिहाफ के साथ वह उष्मा के जो मोहताज हैं,उनके लिए ग्रोवर जी का नूस्खा बड़े काम की चीज है।


इस जनम में विदेश यात्रा नहीं हो सकी है।तराई से जुड़ी नेपाल की भूमि है,पैदल पैदल उसे स्पर्श करना जरुर हुआ है।बांग्लादेश सीमा और पाकिस्तान सीमा को भी स्पर्स किया हुआ है।विदेश यात्रा के लिए अब कम से कम किसी कमेटी वमेटी याफिर संसद या विधानसभा की सदस्यता लेनी होगी।


रामजी तो उन्हीं की दुर्गति में ज्यादा मजा लेते हैं जो सिलते हुए जीवन बीता देते हैं।हमारा पासपोर्ट वगैरह भी नहीं है।


विदेशी साहित्य के जरिये परदेश में जनपदों के हालात और विदेशी स्वदेशी फिल्मों से विदेश की चकाचौंध के बारे में कुछ धारणा जरुर है।


अब पिछले तेईस साल से औद्योगीकरण और विकास के बहाने जो भारत को विदेश बनाने का अभियान है,उसमें अपन के विदेशी बन जाने की आशंका है।शायद इसी तरह विदेश यात्रा का मंसूबा पूरा हो जाये।


माननीय शेखर गुप्ता महाशय और उन जैसे तमाम मीडिया महारथी खुद को उतना ही वैज्ञानिक दृषिटि के धनी मानते हैं,जैसे हर केसरिया स्वयंसेवक अपने को इतिहास बोध का शंकराचार्य मानते होंगे।उनके नजरिये से देश को विदेश बनाने के इस रेसिपी का जो भी विरोध करें वे या तो मूरख हैं हद दर्जे के या फिर राष्ट्रद्रोही।


फिलहाल गनीमत है कि हमारी औकात ब्लाग लेखन से बढ़कर कुछ नहीं है,इसलिए हमारे वर्गीकरण की तकलीफ वे उठाते नहीं हैं।वे ग्रोवर साहेब का देशी सूप पीकर बात करें तो शायद हमारी भी आंखें खुलें।


अब इसका क्या करें कि हमें न जीएम फसल सुहाती है और न अबाध विदेशी पूंजी।अर्थव्यवस्था विदेशी निवेशकों की अटल आस्था पर निर्भर हो,ऐसा एफडीआई राज भी हमें राष्ट्र की संप्रभुता और स्वतंत्रता के लिहाज से सिरे से गलत लगती है।


फिर जो पोंजी अर्थतंत्र है सेबी ,रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय के मातहत,उसके कामकाजी फर्जीवाड़े और राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम राष्ट्र का सैन्यीकरण और जन गण के खिलाफ अविराम युद्ध भी हमारे नजरिये से अश्वमेध यज्ञ है।


जाहिर है कि नाना रंगीन पुरोहितों की विचारधारा समावेशी विकासयात्रा की वृद्धदर और रेटिंग की जो हरिकथा अनंत का अविराम पाठ है,उसमें हमारी आस्था नहीं है।


इसीके मध्य गोरखपुर से बीजेपी के सांसद योगी आदित्यनाथ ने दंगों से जुड़ा बयान देकर विवाद खड़ा कर दिया है। योगी आदित्यनाथ का कहना है कि जिन जगहों पर अल्पसंख्यकों की आबादी है, उन जगहों पर सांप्रदायिक हिंसा ज्यादा होती है। योगी का कहना है कि जैसे-जैसे अल्पसंख्यकों की आबादी बढ़ती जाती है, वैसे वैसे सांप्रदायिक हिंसा बढ़ती जाती है। योगी का कहना है कि जहां मुस्लिम आबादी बहुसंख्यक है वहां दूसरे धर्म के लोग सुरक्षित नहीं हैं। योगी ने कहा कि अगर हिंदुओं पर हमले होते हैं या उनका जबरन धर्मांतरण होता है तो हिंदू उन्हें उसी भाषा में जवाब देंगे।


विकास कामसूत्र के अकंड पाठ और गायपट्टी के शाही कायकल्प का नजारा है यह।जो बौदधमय बंगाल की विरासत के अतःस्थल तक में संक्रमित है।


काशी को स्मार्टसिटी बनाने का संकल्प पूरा करते ही बुद्धं शरणं गच्छामि का मंत्रपाठ करने लगे मोदी बजरंगी उदितराज के धर्मांतरण की तर्ज पर।


दैनिक जागरण के मुताबिक बाबा विश्वनाथ की नगरी और देश की धार्मिक राजधानी वाराणसी अब दुनिया के चुनिंदा स्मार्ट शहरों में भी शामिल होगी। अपने चुनाव अभियान में ही जनता को इसका अहसास करा चुके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने इस मिशन में कितने गंभीर हैं इसका संकेत उन्होंने इसी से दे दिया कि जापान पहुंचते ही दोनों देशों के बीच इस बाबत पहला करार हुआ। वाराणसी को परंपरा और आधुनिकता का अद्भुत संगम बनाने के मोदी के इस जतन में जापान भी हर मुमकिन साथ देगा। इस संबंध में शनिवार को मोदी की मौजूदगी में दोनों देशों के बीच सहयोग समझौते पर दस्तखत हुए।


भारतीय उप महाद्वीप से बाहर अपने पहले द्विपक्षीय दौरे के तहत जापान पहुंचे मोदी ने अपना पहला पड़ाव क्योटो को ही बनाया है। यहां उनकी और जापानी प्रधानमंत्री शिंजो एबी की मौजूदगी में दोनों देशों के बीच 'मान्य साझेदार शहर' समझौते पर दस्तखत किए गए। इसके तहत वाराणसी को स्मार्ट शहर के तौर पर विकसित करने में जापान मदद करेगा। समझौते पर जापान में भारत के राजदूत दीपा वाधवा और क्योटो के मेयर डायसाकू काडोकावा ने दस्तखत किए। एबी ने मोदी के सम्मान में रात्रि भोज भी दिया। दोनों नेताओं ने मछली को खाना खिलाने की जापानी धार्मिक परंपरा में भाग लिया।


वाराणसी के विकास की ललक में प्रधानमंत्री ने अपनी जापान यात्रा के कार्यक्रम में फेर-बदल करते हुए सबसे पहले क्योटो जाने का फैसला किया था ताकि वे इस शहर के अनुभव से सीख सकें। यहां तक कि जापानी प्रधानमंत्री भी पारंपरिक औपचारिकता को तोड़ते हुए उनका स्वागत करने के लिए राजधानी टोक्यो को छोड़ यहां पहुंच गए। दोनों की मौजूदगी में इस समझौते पर दस्तखत किए गए। इससे पहले अपनी पांच दिन की जापान यात्रा के तहत प्रधानमंत्री शनिवार की दोपहर ओसाका अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा पहुंचे।


विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सैयद अकबरुद्दीन ने बताया कि यह समझौता वाराणसी की विरासत, पवित्रता और पारंपरिकता को कायम रखने और शहर के आधारभूत ढांचे को आधुनिकतम बनाने में मदद करेगा। इसके साथ ही कला, संस्कृति और अकादमिक क्षेत्र में भी शहर के विकास में दोनों देश सहयोग करेंगे।

प्रधानमंत्री मोदी ने चुनाव से पहले ही वादा किया था कि वे देश में सौ स्मार्ट शहर विकसित करेंगे। वाराणसी के अलावा वे मथुरा, गया, अमृतसर, अजमेर और कांचीपुरम जैसे कई धार्मिक शहरों के लिए भी ऐसी ही योजना तैयार कर रहे हैं। ये शहर धार्मिक पर्यटन के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण हैं, मगर हाल के वर्षो में ये विकास की रफ्तार में पीछे रह गए हैं।

मोदी ने एबी को भगवद गीता का संस्कृत और जापानी संस्करण के अलावा स्वामी विवेकानंद के जापान से जुड़े संस्मरणों पर आधारित एक पुस्तक भी भेंट की। प्रधानमंत्री अपने साथ इस किताब के जापानी और अंग्रेजी संस्करण ले गए थे। समझौते पर दस्तखत के बाद वहां के मेयर और दूसरे अधिकारियों ने मोदी को एक प्रेजेंटेशन देकर बताया कि शहर को कैसे विकसित किया जाए ताकि उसकी ऐतिहासिकता भी बनी रहे, प्रकृति को नुकसान भी नहीं पहुंचे और उसे आधुनिक भी बनाया जा सके।



सौजन्ये एबीपी न्यूजः


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने जापान दौरे के दूसरे दिन आज दो प्राचीन बौद्ध मंदिर तोजी और किनकाकुजी गए, वहां प्रार्थना की और आम लोगों तथा पर्यटकों से मुलाकात की.

इस दर्शन के बाद तयशुदा कार्यक्रम के तहत कई डेलीगेशन से मुलाकात और बातचीत के बाद मोदी जापान की राजधानी टोक्यो के लिए रवाना हो गए.

अपनी पोशाक के प्रति हमेशा सजग रहने वाले मोदी ने सफेद कुर्ता पायजामा, बिना बाजू वाली जैकेट तथा सफेद सैंडलें पहनी थीं. ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो वह इस अवसर की गंभीरता का संदेश दे रहे हों.

किनकाकुजी मंदिर में प्रधानमंत्री ने पर्यटकों और आगंतुकों से मुलाकात की, उनसे हाथ मिलाया, प्यार से एक बच्चे के कान खींचे और लोगों के साथ तस्वीरें खिंचवाईं.

उनके दिन की शुरूआत प्राचीन तोजी मंदिर में पूजा के साथ हुई जो हिन्दू दर्शन के ब्रह्मा, विष्णु और महेश की त्रयी से प्रेरित है. तोजी मंदिर यूनेस्को का एक विश्व धरोहर स्थल है. मोदी जब इस मंदिर में गए तो उनके साथ उनके जापानी समकक्ष शिन्जो एबे भी थे.

प्रधानमंत्री करीब आधे घंटे तक प्राचीन बौद्ध मंदिर में रहे. इस दौरान उन्होंने इस 8 सदी पुराने बौद्ध पगोडा के इतिहास के बारे में जानकारी ली. मंदिर के प्रमुख बौद्ध भिक्षु मोरी ने प्रधानमंत्री को पांच मंजिला मुख्य पगोडा तथा लकड़ी से बने मंदिर में घुमाया.

पहचान पत्र पर नाम पढ़ने के बाद प्रधानमंत्री ने प्रमुख पुजारी यासु नागामोरी से कहा ''मैं मोदी हूं, आप मोरी हैं.''

तोजी मंदिर 57 मीटर उंचा है और जापान का सबसे उंचा पगोड़ा है. यह मंदिर और क्योतो दोनों का ही प्रतीक है और इसे शहर के कई स्थानों से देखा जा सकता है. मंदिर परिसर से बाहर आते समय मोदी ने अपने साथ यहां तक आने और समय बिताने के लिए एबे को धन्यवाद कहा.

एबे ने मोदी को बताया कि वह दूसरी बार तोजी मंदिर आए हैं. पहली बार वह तब इस मंदिर में आए थे जब छात्र थे और पढ़ाई कर रहे थे. जापान के प्रधानमंत्री मोदी से मिलने के लिए तोक्यो से खास तौर पर यहां आए और उनके साथ हैं.

तोजी मंदिर में एक अन्य बौद्ध भिक्षु हासी भी मोदी के साथ थे. उन्होंने बताया ''हम प्रसन्न हैं कि प्रधानमंत्री इस मंदिर में आए. हमारे मंदिर के लिए यह गर्व की बात है. उनका (मोदी का) दिल बहुत बड़ा है.'' जब मोदी मंदिर पहुंचे तो वहां उन्हें देखने के लिए बड़ी संख्या में भारतीय तिरंगा ले कर खड़े थे. मोदी ने उत्साहित लोगों से हाथ मिलाया.

तोजी मंदिर के बाद मोदी किनकाकुजी मंदिर गए. स्वर्ण पत्ती वाले इस मंदिर का वर्तमान स्वरूप 1955 से देखा जा रहा है. इससे ठीक पांच साल पहले, 1950 में यहां एक बौद्ध भिक्षु ने 14 वीं शताब्दी में बने मंदिर के मूल ढांचे को आग लगा दी थी.

मोदी ने इस बौद्ध मंदिर में पूजा की और इसके आसपास बने बगीचे तथा समीप स्थित एक झील को भी देखा. उन्होंने इस मंदिर के इतिहास के बारे में भी जानकारी ली.

मंदिर के आसपास घूमते हुए मोदी ने आगंतुकों से बातचीत की और कुछ के साथ तस्वीरें खिंचवाई. उन्होंने करीब 10 साल के एक बच्चे से बातें करते करते अचानक उसके कान प्यार से खींच लिए और छायाकारों ने इसे कैमरे में कैद कर लिया.

इस मंदिर में आए विदेशी नागरिक भारतीय प्रधानमंत्री को यहां देख कर रोमांचित थे. उनमें से कई लोग अपने मोबाइल फोनों से मोदी की तस्वीरें लेते देखे गए.

एक अमेरिकी पर्यटक को जब पता चला कि मोदी भी यहां आए हैं तो वह अपने साथी से यह कहते सुना गया ''हम सही समय पर यहां आए हैं.'' जापानी महिलाओं के एक समूह के साथ जब मोदी ने तस्वीरें खिंचवाईं तो यह समूह बेहद खुश हो गया.

सौजन्ये दैनिक जागरणः

'मोरी' ने 'मोदी' को दिखाया 'तोजी', साथ में मौजूद थे शिंजो आबे

Publish Date:Sun, 31 Aug 2014 09:28 AM (IST) | Updated Date:Sun, 31 Aug 2014 02:05 PM (IST)

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'मोरी' ने 'मोदी' को दिखाया 'तोजी', साथ में मौजूद थे शिंजो आबे

क्योटो। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने पांच दिवसीय जापानी दौरे के दूसरे दिन रविवार को सुबह क्योटो के तोजी मंदिर पहुंचे। इसके बाद वह जापान के प्राचीनतम मंदिरों में से एक किन्काकूजी मंदिर भी गए और यहां पर उन्होंने भगवान बुद्ध के दर्शन किए। इस मौके पर उनके साथ जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे भी मौजूद थे।

तोजी मंदिर के प्रमुख पुजारी ने प्रधानमंत्री को न सिर्फ पूरे मंदिर की सैर करवाई बल्कि इस मंदिर की प्राचीनता के बारे में कई जानकारियां भी दी। उन्होंने बाद में कहा कि भारतीय प्रधानमंत्री ने इस मंदिर में आकर यहां की शोभा को ओर बढ़ा दिया है। यहां पहुंचने के रास्ते में कई भारतीयों ने भी हाथों में तिरंगा थामे मोदी का जोरदार स्वागत किया।

इस दौरान उन्होंने यहां पर मौजूद पर्यटकों से हाथ मिलाया और फोटो भी खिंचवाया। अपनी यात्रा के पड़ाव में शाम को टोकियो जाएंगे और वहां पर विभिन्न स्तरों पर दोनों देशों के बीच कई नए समझौते होने की भी उम्मीद जताई जा रही है।

माना जा रहा है कि भारत टोकियो में जापानी निवेश के लिए सौ शहरों के दरवाजे खोल सकता है।


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