माओवादियों ने जंगल महल में वोट बायकाट का फतवा जारी कर दिया!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
माओवादियों ने जंगल महल सभी जिलों में में वोट बायकाट का फतवा जारी कर दिया!खुफिया सूत्रों ने बताया कि कदाचित चरमपंथी अपनी मौजूदगी का एहसास करने के लिए इस इलाके में बड़े हमले का प्रयास करेंगे । इस इलाके के अंतर्गत पश्मिची मिदनापुर, पुरूलिया और बांकुरा जिले आते हैं।खुफिया सूत्रों ने संकेत दिया है कि पश्चिम बंगाल में माओवाद प्रभावित जंगलमहल में पंचायत चुनाव प्रचार अभियान के दौरान राजनीतिक नेताओं पर छत्तीसगढ के जैसा ही हमला होने की 'प्रबल संभावना' है। नक्सल पीड़ित राज्यों; उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, प. बंगाल, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्यों के बीच समन्वय होना चाहिए, जो नहीं है।किसी राज्य में नक्सलियों के खिलाफ जब सघन कार्रवाई होती है तो वे जंगलों के रास्ते दूसरे राज्यों में जाकर छिप जाते हैं, जहां की सरकार उनके प्रति नरम रुख रखती है. इसीलिए उनके खिलाफ कोई अभियान कारगर नहीं हो पाता। मंत्रियों, सांसदों और विधायकों को तो जेड प्लस सुरक्षा मिल जाती है यानी एक नेता के लिए कम से कम 26 सुरक्षाकर्मियों का रक्षा कवच। फिर भा सुकमा जंगल जैसा कांड हो गया।निहत्था आदिवासी और दूसरे लोग माओवाद प्रभावित इलाकों में माओवादियों की हुक्मउदुली करने का दुस्साहस करें, लोकतांत्रिक लव्यवस्था यह बताने में नाकाम है। जंगल महल के बाहर जो हिंसा भड़की है,उसके बाद जंगल महल की विस्फोटक स्थिति को सरकार अगर नजरअंदाज करें तो उसकी मर्जी।
जंगल महल में अमन चैन कायम करने का मां माटी मानुष की सरकार का दावा खोखला साबित हो रहा है। भले ही एकतरफा चुनाव में तऋणमूल कांग्रेस को पंचायत चुनाव में निर्विरोध जीत का रिकार्ड कायम करने का मौका मिला है, लेकिन राज्य चुनाव आयोग के साथ अदालती लड़ाई में फंसकर सुरक्षा इंतजाम का जो हाल हुआ है, उसका खामियाजा देर सवेर भुगतना ही पड़ेगा।जंगल महल में माओवादी सक्रियता की खबर मिलने के बावजूद राज्य सरकार ने कोई एहतियाती इंतजाम नहीं किये औरर अब भूमि आंदोलन में दीदी के खास सहयोगी ही उनकी सत्ता के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनकर उबर रहे हैं। पूरे राज्य में चुनाव संघर्ष का माहौल है और तृणमूल कांग्रेस के गुटों में कुलकर लड़ाई हो रही है, जैसा कि बैरकपुर में हुआ। ऐसे हालात में जंगल महल में माओवादी चुनौती का मुकाबला करना दीदी के लिए असंभव है। पहले से ही दंडकारण्य की तर्ज पर संगठन को मजबूत करने के लिए माओवादियों की जोनल कमिटियां बन चुकी है और संगठन का विस्तार खास कोलकाता, उत्तर बंगाल और कोयलांचल तक में हो गया।अब राज्य में माओवादी सीधे सत्ता से लोहा लेने को तैयारदीख रहे हैं। यह समझने वाली बात है कि छत्तीसगढ़, उड़ीसा और झारखंड में माओवादियों के खिलाफ सुरक्षा बलों का अभियान तेज होने पर उनके लिए नया मोर्चा खोलना अनिवार्य है और यह मोर्चा अब बंगाल में खुल चुका है।
जंगल महल में माओवादी कार्यकर्ता गांव गांव घूमकर ऐलान कर रहे हैं कि तृणमूल कांग्रेस को किसी भी हाल में चुनाव प्रचार न करने दिया जाये। माओवादी राजनीतिक शिविर चला रहे हैं बाकायदा , जहां गांव गांव में वोट के बहिष्कार की तैयरी हो रही है। तृणमूल के टिकट पर चुनाव लड़ने की मनाही कर दी गयी है।माओवादी सीधे वोट बायकाट के लिए गांववालों से कोई बात नहीं कर रहे हैं बल्कि तृणमूल कांग्रेस के मुकाबले उन्हं खड़ा कर रहे हैं, जो दीदी क लिए सबसे खतरनाक बात है।पता चला है कि माओवादियों के शीर्ष नेतृत्व की मई के अंतिम हफ्ते में जंगल महल में हुई बैठक में ही यह रणनीति तय की गयी कि पंचायत चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को जंगल महल में चुनाव प्रचार करने की इजाजत ही न दी जाये।
दुर्गापुर में आग्नेयास्त्र बनाने के कारखाने के पर्दाफाश से शहर में सनसनी फैल गई है। साथ ही यहां से ही माओवादियों को आग्नेयास्त्र की सप्लाई होती थी, इसका खुलासा होने से लोग चिंतित हो गए हैं। इसके अलावे पूरे दक्षिण बंगाल में दुर्गापुर से ही आग्नेयास्त्रों की सप्लाई हो रही थी। पुलिस अब कारखाने के मालिक के साथ-साथ आग्नेयास्त्र सप्लाई करनेवाले एजेंटों की तलाश में जुट गई है।
वर्ष 2011 में संयुक्त बलों के साथ मुठभेड़ में किशनजी के मारे जाने और कई माओवादी शीर्ष नेताओं के गिरफ्तार किए जाने के बाद से ही माआवोदी कभी अपना गढ़ रहे इस इलाके में फिर से संगठित होने की प्रयास में जुटे हैं।
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