THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Saturday, June 8, 2013

नकार दें नफरत से प्यार करने वालों को राम पुनियानी

नकार दें नफरत से प्यार करने वालों को


घृणा फैलाने वाले वक्तव्य और साम्प्रदायिक राजनीति

राम पुनियानी

महात्मा गाँधी, जिन्होंने साम्प्रदायिक सद्भाव की खातिर अपनी ज़िन्दगी कुर्बान कर दी – जिन्हें इसलिये मौत के घाट उतार दिया गया क्योंकि वे विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच प्रेम की बात करते थे – उन महात्मा के पास तीन बन्दरों की एक छोटी सी मूर्ति थी। इनमें से एक बन्दर अपने मुँह पर हाथ रखे हुये था। इसका अर्थ यह था कि हमें बुरा नहीं बोलना चाहिये। जो लोग शांति और अमन की राह पर चल रहे हैं, वे विभिन्न धार्मिक समुदायों को एक करने की बात करते हैं; जिनके लिये राजनीति एक व्यापार है, जिसे वे धर्म के नाम पर खेलते हैं, वे लगातार दूसरे समुदायों के विरूद्ध जहर उगलते रहते हैं। कहने की आवश्यकता नहीं कि इस तरह की घृणा फैलाने वाली बातों से हिंसा भड़कती है और विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच की खाई और चौड़ी होती है। हमारी यह स्पष्ट मान्यता है कि राजनैतिक दलों और समूहों की उनकी नीतियों को लेकर आलोचना की जा सकती है और की जानी चाहिये – यह बुरा बोलना नहीं है और न ही यह किसी धार्मिक समुदाय विशेष पर हमला है। घृणा फैलाने वाली बातें साम्प्रदायिक राजनीति के पैरोकारों का प्रमुख हथियार हैं। उन्हें यह अच्छी तरह से मालूम है कि ''दूसरे से घृणा करो'' की राजनीति चुनाव में उन्हें बहुत लाभ पहुँचा सकती है।

इस सन्दर्भ में, सबसे ताजा मामला वरूण गाँधी का है। उनका महात्मा गाँधी से कोई लेना-देना नहीं है परन्तु वे साम्प्रदायिक सद्भाव के एक बहुत बड़े मसीहा पण्डित जवाहरलाल नेहरू के परिवार से हैं। वरूण गाँधी ने सन् 2009 में एक आमसभा में घृणा फैलाने वाली बातें कहीं थीं। पीलीभीत में भाषण देते हुये उन्होंने दूसरों के हाथ काट डालने और ऐसी ही कई बेहूदा और निम्नस्तरीय बातें कहीं थीं। उनके भाषण को कैमरे पर रिकॉर्ड कर लिया गया और उनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज कर लिये गये। सारे सबूतों के होते हुये भी उन्हें अदालत ने बरी कर दिया क्योंकि सभी गवाह पलट गये। यह घटनाक्रम हमें गुजरात के बेस्ट बेकरी मामले की याद दिलाता है, जहाँ भी धन के लालच में या डर के चलते

Ram Puniyani,राम पुनियानी

राम पुनियानी, लेखक आई.आई.टी. मुम्बई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं।

अधिकाँश गवाह पक्षद्रोही हो गये थे। तहलका द्वारा किये गये स्टिंग आपरेशन से यह साफ हुआ कि भाजपा कार्यकर्ताओं ने किस प्रकार या तो गवाहों को खरीद लिया था या फिर उन्हें डरा-धमका कर अदालत में अपने ही पहले के बयानों से मुकरने पर मजबूर कर दिया था। भारत में गवाहों की सुरक्षा के लिये कोई कानून नहीं है। सामाजिक कार्यकर्ता लम्बे समय से यह माँग कर रहे हैं कि सुनियोजित हिंसा के पीड़ितों को न्याय दिलवाने के लिये यह आवश्यक है कि गवाहों को उनके जानोमाल की हिफाजत की गारंटी दी जाये। जहीरा शेख मामले में भी निचली अदालत ने गवाहों के पक्षद्रोही हो जाने के कारण  आरोपियों को बरी कर दिया था।

वरूण गाँधी के मामले ने एक बार फिर देश का ध्यान गवाहों के पलटने की समस्या पर केन्द्रित किया है।तहलका ने एक बार फिर यह साबित किया है कि गवाहों को "मैनेज" किया गया था।  इसमें कोई सन्देह नहीं कि घृणा फैलाने वाले लोगों को यदि इसी प्रकार दोषमुक्त किया जाता रहा तो उनके हौसले बढ़ते ही जायेंगे। इस मुद्दे से एक और पहलू जुड़ गया है। हाल में "ऑल इण्डिया मजलिस ए इत्तहादुल मुसलमीन" के अकबरुद्दीन ओवेसी को गिरफ्तार किया गया और वे अपने ''हिन्दू विरोधी भाषण''के लिये मुकदमें का सामना कर रहे हैं। यह बिलकुल ठीक हो रहा है। दोषियों को सजा मिलनी इसलिये जरूरी है ताकि इस तरह की घटनायें दोहराई ना जायें। ओवेसी के भाषण के जवाब में प्रवीण तोगड़िया ने भी उतना ही भडकाऊ भाषण दिया। उनके विरूद्ध एफआईआर तो दर्ज कर ली गयी परन्तु इससे आगे कोई अब तक कोई कार्यवाही नहीं हुयी। उन्हें गिरफ्तार तक नहीं किया गया। तोगड़िया इस खेल के पुराने खिलाड़ी हैं परन्तु उन्हें केवल एक बार जेल की सलाखों के पीछे डाला गया है। जाहिर है कि उनकी हिम्मत बढ़ती जा रही है।

घृणा फैलाने वाले भाषणों के मामले में भारतीय संविधान और कानूनों में बहुत स्पष्ट प्रावधान हैं। भारतीय दण्ड संहिता, दण्ड प्रक्रिया संहिता और कई अन्य कानून, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता की सीमा को परिभाषित करते हैं और घृणा फैलाने वाली बातें कहने या लिखने को प्रतिबन्धित करते हैं। दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 95, राज्य सरकार को किसी भी प्रकाशन को प्रतिबन्धित करने का हक देती है अगर ''राज्य सरकार की दृष्टि में प्रकाशन… में ऐसी कोई बात कही गयी है जो भारतीय दण्ड संहिता की धारा 124 ए या 153 ए या 153 बी या 292 या 293 या 295 ए के तहत् दण्डनीय अपराध है''। भारत ''नागरिक और राजनैतिक अधिकारों पर अन्तर्राष्ट्रीय समझौता" (आईसीसीपीआर) का हस्ताक्षरकर्ता है, जो यह कहता है कि ''राष्ट्रीय, नस्लीय या धार्मिक आधार पर घृणा फैलाने की ऐसी कोशिश, जिसका उद्देश्य हिंसा भड़काना, शत्रुता का भाव उत्पन्न करना या भेदभाव करने के लिये प्रेरित करना हो, कानून के अन्तर्गत प्रतिबन्धित होगी।'' हमें यह याद रखना चाहिये कि हर समुदाय में विभिन्न प्रकार के लोग होते हैं। जब कोई व्यक्ति किसी समुदाय विशेष के बारे में घृणा फैलाने वाली बातें कहता है तो वह उस समुदाय के सभी सदस्यों को एकसार बताता है। यह तथ्यात्मक रूप से सही नहीं है। एक सेवानिवृत्त अधिकारी जे.बी. डिसूजा ने बाबरी मस्जिद ध्वँस के बाद मुम्बई में हुयी हिंसा के दौरान और उसके पश्चात्, घृणा फैलाने वाली बातें कहने के आरोप में बाल ठाकरे के विरूद्ध मामला दायर किया था। परन्तु उन्हें उनके इस प्रयास में कोई खास सफलता नहीं मिल सकी, क्योंकि हमारे कानून में ढेर सारे छेद हैं।

यद्यपि मूलतः भारत की सांस्कृति शांति और सद्भाव की संस्कृति है तथापि विशिष्ट धार्मिक समुदायों को घृणा का पात्र बनाने के प्रयास ब्रिटिश शासन काल में ही शुरू हो गये थे। अपनी ''फूट डालो राज करो'' की नीति के तहत ब्रिटिश शासकों ने इतिहास का साम्प्रदायिकीकरण किया और साम्प्रदायिक तत्वों को एक दूसरे के समुदायों के विरूद्ध लोगों को भड़काने के लिये प्रोत्साहित किया।  अँग्रेजों ने अपनी विभाजनकारी राजनीति खेलने के लिये हिन्दू और मुस्लिम समुदायों को चुना। दोनों धर्मों के लोगों की जीवन शैली के कुछ चुनिन्दा पक्षों को घृणा फैलाने के लिये इस्तेमाल किया जाने लगा। सूअर का माँस खाना,गाय का माँस खानामस्जिद के सामने बाजे बजानामन्दिरों का विध्वँस, तलवार की नौंक पर इस्लाम का प्रसार आदि कुछ ऐसी चुनिंदा ''थीम'' थीं, जिनका इस्तेमाल दशकों तक घृणा फैलाने और हिंसा भड़काने के लिये किया जाता रहा। आडवाणी की रथयात्रा में भी इन्हीं मुद्दों को प्रमुखता से उठाया गया था। मुस्लिम राजाओं द्वारा मन्दिरों का विध्वँस करने के मुद्दे को पागलपन की हद तक हवा दी गयी। एक जुनून-सा पैदा कर दिया गया। इस घृणा से उपजी हिंसा और रथयात्रा जहाँ- जहाँ से भी गुजरी, वहाँ खून बहा।

आज भी कई लोग बाँटने वाले दुष्प्रचार का बड़ी कुटिलता से इस्तेमाल कर रहे हैं। कई वेबसाईटें इस काम में जुटी हुयी हैं और भड़काऊ ई-मेलों को एक व्यक्ति से दूसरे, दूसरे से तीसरे को भेजा जा रहा है। सुब्रमण्यम स्वामी एक अन्य ऐसे राजनेता हैं जो नियमित तौर पर घृणा फैलाने वाली बातें कहते रहे हैं परन्तु उनके खिलाफ कुछ नहीं हुआ। मुसलमानों के प्रति घृणा से लबरेज उनके एक लेख के प्रकाशन के बाद यद्यपि भारत में उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गयी तथापि अमरीका के एक विश्वविद्यालय से उनकी प्रोफेसरी समाप्त कर दी गयी। आज भी उनकी घृणा फैलाने वाले भाषण के वीडियो इन्टरनेट पर उपलब्ध हैं। ऐसी चीजों को हमारा समाज नजरअंदाज करता आ रहा है परन्तु हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि इस तरह के वीडियो, ई-मेल और भाषण हमारी राष्ट्रीय एकता को नुकसान पहुँचाते हैं। वरूण गाँधी के मामले से यह साफ है कि हमारी न्याय व्यवस्था में दोषियों के लिये बच निकलना बहुत आसान है। वे घृणा फैलाने वाली बातें कहकर राजनैतिक लाभ भी अर्जित कर लेते हैं और बाद में उन्हें अपने किये की कोई सजा भी भुगतनी नहीं पड़ती है।

वैश्विक स्तर पर 9/11 के डब्ल्यूटीसी हमले के बाद से अमरीकी मीडिया में इस्लाम और मुसलमानों को खलनायक सिद्ध करने का अभियान चल रहा है। इसी अभियान का यह नतीजा यह है की वहाँ पर आम मुसलमानों पर हमले हो रहे हैं। हाल में इंग्लैण्ड में भी इस तरह के हमले बढ़े हैं। इनमें शामिल हैं ड्रम वादक लीराईट बी की वुलेच में हत्या। हम एक डरावने दौर से गुजर रहे हैं जब प्रेम और सद्भाव के मूल्यों को हर ओर से चोट पहुँचायी जा रही है।

अपनी एक कविता में जावेद अख्तर लिखते हैं ''भूल के नफरत, प्यार की कोई बात करें''। काश हम सब इसे गम्भीरता से लेते। वरूण गाँधी, ओवेसीतोगड़िया जैसे लोग जहाँ नफरत की तिजारत कर रहे हैं वहीं ऐसे लोग भी हैं जो शांति मार्च निकाल रहे हैं, अमन के गीत गा रहे हैं और सद्भाव की खुशबू फैला रहे हैं। हमारे ये ही मित्र राष्ट्रीय एकीकरण की नींव रखेंगे और घृणा फैलाने वाली बातों पर विजय प्राप्त करेंगे। अब समय आ गया है कि हम उन सब लोगों को एक सिरे से खारिज करें जो किसी धर्म विशेष या उसके मानने वालों को घृणा का पात्र सिद्ध करने की कोशिश कर रहे हैं।

हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)

 (लेखक आई.आई.टीमुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं।)

 

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