THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Monday, June 3, 2013

बिजली और कोयला के दाम बढ़ाने में भी प्रधानमंत्री का हाथ,और इस कोलगेट पर कोई हंगामा नहीं बरपा!कोल इंडिया पर दबाव कि बिजली कंपनियों को आपूर्ति के लिए आयातित कोयला का खर्च उपभोक्ताओं से वसूलें।

बिजली और कोयला के दाम बढ़ाने में भी प्रधानमंत्री का हाथ,और इस कोलगेट पर कोई हंगामा नहीं बरपा!कोल इंडिया पर दबाव कि बिजली कंपनियों को आपूर्ति के लिए आयातित कोयला का खर्च उपभोक्ताओं से वसूलें।


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


भारत सरकार का तर्क यह है कि कोयले की कीमत की वजह से बिजली की दरें अब बेलगाम होती जा रही है, लिहाजा कोल इंडिया पर दबाव दिया जा रहा है  कि बिजली कंपनियों को आपूर्ति के लिए आयातित कोयला का खर्च उपभोक्ताओं से वसूलें।महंगे आयात को उपयुक्त बनाने की खातिर कोयले की प्राइस पूलिंग का प्रस्ताव सरकार ने स्थगित कर दिया है। अब सरकार एक ऐसे मॉडल पर काम कर रही है जहां आयात की अतिरिक्त लागत का पूरा भार उपभोक्ताओं पर डाला जाएगा। कोल इंडिया से उन संयंत्रों को अनुबंधित कोयले का 65 फीसदी पूरा करने को कहा जाएगा, जो देश में मार्च 2009 से मार्च 2015 के बीच चालू हुए हैं। लेकिन प्राइस पूलिंग प्रस्ताव के उलट (जहां आयात की उच्च लागत का भार सभी परियोजनाओं पर समान रूप से डाला जाएगा) नया लागत प्लस मॉडल डेवलपर को विकल्प उपलब्ध कराएगा कि वह चाहे तो सीआईएल के आयातित कोयले से बाकी 15 फीसदी जरूरत पूरी करे और इसका भार उपभोक्ताओं पर डाले या फिर सीधे कोयला आयात करे। मालूम हो कि निजी बिजली कंपनियों को कोयला आपूर्ति सुनिश्चत करनेके लिए प्रधानमंत्री कार्यालय से लगातार दबाव डाला जाता रहा है। आपूर्ति अनुबंध पर कोल इंडिया की मर्जी के बिना दस्तखत के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने डिक्री तक जारी कर दिया।


इस पूरी कार्रवाई का असर आम जनता पर कोयला ब्लाकों के आबंटन से कहीं ज्यादा होगा क्योंकि इस प्रक्रिया से कोयला और बिजली, दोनों की कीमतों में बेहिसाब इजाफा होने का अंदेशा है।लेकिन अब तक इस मुद्दे को लकर कोई हंगामा नहीं बरपा है, जबकि कोलगेट का यह सबसे गंभीर मसला है। इसमें भी सीधे तौर पर प्रधानमंत्री का हाथ है और दलील यह दी जा रही है कि बिजली व कोयला क्षेत्र के प्रदर्शन पर असर डालने वाले नीतिगत अवरोध व र्ईंधन की किल्लत को दूर करने के लिए करीब एक साल पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने यह कदम उठाया था!मजे की बात तो यह है कि कोयले की आपूर्ति की समस्या के समाधान के लिए मौजूदा समय में एक प्रस्ताव पर बातचीत हो रही है। बिजली खरीद समझौते में बदलाव के आधार पर कंपनियों के लिए पूरक टैरिफ की खातिर नियामकीय मंजूरी रोजाना की गतिविधियां बनने जा रही हैं। पूरक राहत के दो मामले हाल में देखे गए हैं, जिसमें नियामक ने निजी क्षेत्र की दो कंपनियों अदाणी पावर और टाटा पावर को राहत दी है।


पिछले साल प्रधानमंत्री कार्यालय व राष्ट्रपति की तरफ से जारी किए गए निर्देश के मुताबिक 31 मार्च, 2015 तक स्थापित होने वाली बिजली परियोजनाओं के साथ कोल इंडिया को ईंधन आपूर्ति समझौता (एफएसए) करना अनिवार्य है। एफएसएमें शामिल होने वाली बिजली परियोजनाओं की सूची बिजली मंत्रालय व केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण की तरफ से तैयार की गई है। इन परियोजनाओं की कुल क्षमता 60,000 मेगावाट है।अब कोयला मंत्रालय में प्रधानमंत्री कार्यालय की दखलांदाजी और निजी कंपनियों की सघन लाबिइंग का नतीजा यह है कि कोयला मंत्रालय कोयला लिंकेज (एलओए) हासिल कर चुकी 31 मार्च, 2015 के बाद स्थापित होने वाली परियोजनाओं को भी कोयला देने पर गंभीरता से विचार कर रहा है।मंत्रालय इस मामले में बिजली मंत्रालय से भी विचार करेगा। कोयला सचिव एस.के. श्रीवास्तव के मुताबिक, कोल लिंकेज हासिल कर चुकी 31 मार्च, 2015 के बाद स्थापित होने वाली बिजली परियोजनाओं को कोयला आपूर्ति की व्यवस्था की जाएगी।  31 मार्च, 2009 से लेकर 31 मार्च, 2015 तक स्थापित होने वाली परियोजनाओं के साथ कोल इंडिया को 130 एफएसए करने हैं। इस साल 11 मई तक कुल 62 एफएसए हो चुके हैं जिनकी कुल क्षमता 24,991 मेगावाट की है।अब लगभग 35,000 मेगावाट के लिए एफएसए किया जाना है लेकिन उम्मीद की जा रही है कि और 25,000 मेगावाट क्षमता की परियोजनाएं ही एफएसए करने की स्थिति में हैं। ऐसे में 10,000 मेगावाट के लिए मार्च, 2015 के बाद स्थापित होने वाली बिजली परियोजनाओं के साथ एफएसए किया जा सकता है।




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