THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Wednesday, June 5, 2013

माओवादी चुनौती को गंभीरता से नहीं ले रही हैं दीदी!

माओवादी चुनौती को गंभीरता से नहीं ले रही हैं दीदी!


नंदीग्राम के सोनाचूड़ा गांव की चार महिला माओवादी सुकमा हमले में शामिल,जब बंगाल से माओवादी छत्तीसगढ़ पहुंचकर सुकमा जैसी वारदात को अंजाम दे सकते हैं, तो बंगाल वे कितना कहर बरपा सकते हैं, इसका महज अंदाजा लगाया जा सकता है।


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


मुख्यमंत्रियों के वार्षिक सम्मेलन में न जाकर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी एक तरफ पंचायत चुनावों के लिए जरुरी केंद्रीय बलों के लिे केंद्र पर दबाव नहीं डाल पायी तो दूसरी ओर बंगाल में नये सिरे से अत्यंत गंभीर होती जा रही माओवादी चुनौती से निपटने के लिए केंद्र के साथ संवाद के अवसर को भी गवां दिया उन्होंने। इस सम्मेलन का बहिष्कार वैसे तो तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने भी किया है , लेकिन न तो वहां पंचायत चुनाव जैसा कोई संवेदानिक संकट है और न माओवाद से निपटने की गंभीर चुनौती।आंतरिक सुरक्षा पर मुख्यमंत्रियों के वार्षिक सम्मेलन में बुधवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, गृह मंत्री सुशील कुमार शिन्दे और कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों के भाषणों में छत्तीसगढ में हाल ही में कांग्रेसी नेताओं के काफिले पर हुआ नक्सली हमला छाया रहा। मां माटी मानुष की सरकार चाहे जो दावा करें , लेकिन हकीकत यह है कि बंगाल में आंतरिक सुरक्षा की स्थितियां अत्यंत नाजुक है। केंद्रीय सरकार की ओर से राज्य में माओवादी खतरे के बारे में लगातार सूचनाएं दी जा रही है और जंगल महल में दंडकारण्य की तरह ही माओवादियों की जनल कमिटिया बन रही हैं। इसके अलावा जो सबसे खतरनाक सूचना है , वह यह है कि सुकमा के जंगल में हुए हमले में मालकानगिरि उड़ीसा के जिस माओवादी दस्ते ने अगुवाई की , उसका नेतृत्व नंदीग्राम के सोनाचूड़ा गांव की चार महिला माओवादियों ने किया। नंदीग्राम भूमि आदोलन के दौरान इसी सोनाचूड़ा को माओवादियों ने अभेद्य किला बना रखा था। जब बंगाल से माओवादी छत्तीसगढ़ पहुंचकर सुकमा जैसी वारदात को अंजाम दे सकते हैं, तो बंगाल वे कितना कहर बरपा सकते हैं, इसका महज अंदाजा लगाया जा सकता है। जंगल महल में तृणमूल उम्मीदवारों को भी पंचायत चुनाव में नामांकन न करने का माओवादियों ने फतवा जारी कर रखा है, जबकि माओवादियों की हिटलिस्ट में खुद ममता दीदी, पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य समेत पक्ष विपक्ष के तमाम नेताओं के नाम हैं। लेकिन दीदी माओवादी चुनौती को गंभीरता से नहीं ले रही हैं। बंगाल के कई इलाक़े माओवादी गतिविधियों से प्रभावित हैं!


पश्चिम बंगाल के नक्‍सलबाड़ी से 60 के दशक में शुरू हुआ नक्‍सल आंदोलन आज छत्तीसगढ़, मध्‍य प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश, झारखंड, महाराष्ट्र, ओडिशा समेत कुल नौ राज्‍यों में फैला हुआ है। लाल आतंक ने देश के 160 जिलों को अपनी चपेट ले लिया है। इन चार-पांच दशकों में नक्‍सलियों ने अपने नेटवर्क का खासा विस्‍तार कर लिया और इनके संबंध आईएसआई से होने के भी संदेह हैं। उन्‍हें चीन से भी मदद मिलने की बातें यदा कदा सामने आती रहती हैं। इन हालातों में यदि हम नक्‍सलियों को लेकर थोड़ी भी लापरवाही और बरते तो आंतरिक मोर्चे पर कई समस्‍याओं का सामना करना पड़ेगा। बीते कुछ सालों में प. बंगाल, आंध्र प्रदेश व ओड़िसा में तो नक्सली हमलों पर कुछ काबू पाया जा सका है, लेकिन छत्तीसगढ़ में यह अभी भी गंभीर चुनौती बना हुआ है।  अरसे तक सांगठनिक दृष्टि से बेहोश पड़े रहने के बाद जंगल महल में माओवादियों की बहुचर्चित सक्रियता ने पश्चिम मेदिनीपुर जिला समेत समूचे जंगल महल में पुलिस प्रशासन का सिरदर्द बढ़ा दिया है।


प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन की शुरूआत में ही छत्तीसगढ में कांग्रेस नेताओं, कार्यकर्ताओं और उनके सुरक्षाकर्मियों पर वामपंथी उग्रवादियों के बर्बर और अमानवीय हमले का जिक्र करते हुए कहा कि लोकतंत्र में ऐसी हिंसा की कोई जगह नहीं है। उन्होंने कहा कि केन्द्र और राज्यों को मिल कर काम करना चाहिए ताकि इस तरह की घटना दोबारा न होने पाए। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नक्सली हमलों पर चिंता जताते हुए इस मुद्दे पर विचार-विमर्श के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाने का आह्वान किया है।उन्होंने कहा कि इस समस्या से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने दो आयामी रणनीति अपनाई थी और पिछले कुछ सालों के दौरान इसके अच्छे परिणाम भी देखने को मिले हैं। माओवादी हिंसा में मारे जाने वाले लोगों की संख्या में कमी आई है और इस तरह घटनाएं भी कम हुई हैं। 25 मई को छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी के क़ाफ़िले पर हुए हमले के बाद हो रहे एक दिन के इस सम्मेलन को बहुत अहम बताया जा रहा है।देश के 160 जिलों में चलाये जा रहे नक्सल आन्दोलन में नक्सलियों ने भोले भाले आदिवासियों को अपनी ढाल बना कर सरकार के सामने लगातार चुनौती पेश कर रहे है। अपनी बेजा मांगो को सामने रखकर उन्होंने सरकार को झुकाने की लगातार कोशिश कि है। केंद्र सरकार ने इस लाल आतंक को थामने के लिए 'आपरेशन ग्रीन हंट' शुरू किया इसी बात पर चिढ़े नक्सलियों ने महाराष्ट्र के गढ़चिरौली, छत्तीसगढ़ के बस्तर , सुकमा, और आन्ध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम जैसे जिलों में हमले तेज़ कर दिए।


देश की आंतरिक सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर विचार-विमर्श के लिए यहां आयोजित मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हिस्सा नहीं लिया लेकिन अपना विरोध दर्ज कराया। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, ओड़िशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह और पंजाब के उपमुख्यमंत्री सुखवीर सिंह बादल ने एनसीटीसी के प्रस्ताव को संघीय ढांचे के सिद्धांतों पर अतिक्रमण कहकर इसका विरोध किया।इस पर अपना विरोध दर्ज कराते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि प्रस्तावित एनसीटीसी देश के संघीय ढांचे से मेल नहीं खाता। मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्रा ने ममता के भाषण को पढ़ा। ममता ने अपने भाषण में कहा कि कई अन्य राज्यों की तरह पश्चिम बंगाल की भी राय है कि एनसीटीसी का प्रस्तावित स्वरूप देश के संघीय ढांचे को गड़बड़ करता है।  


कोलकाता हाईकोर्ट ने राज्य चुनाव आयोग की मांग के मुताबिक सुरक्षा इंतजाम के लिए राज्य सरकार को निर्देश दे दिये हैं जबकि हालत यह है कि चुनाव आयोग ने पंचायत चुनाव के दौरान सुरक्षा इंतजाम के लिए 321 कंपनी सुरक्षाबल की मांग की है जबकि राज्य सरकार की ओर से इसके जवाब में मात्र 35 कंपनी दी गयी है। धारा 137 के तहत अब राज्य चुनाव आयोग अगली कार्रवाई के लिए फिर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। पड़ोसी राज्यों को माओवादी समस्या से जूझना पड़ रहा है इसलिए वहां से कोई वाहिनी नहीं आ सकती। दीदी दिल्ली जाती तो पंचायत चुनावों के दौरान माोवादी खतरे के मद्देनजर केंद्र से सुरक्षा बल भेजने के लिए दबाव बना सकती थी।


पंचायत मंत्री सुब्रत मुखर्जी नामांकन प्रक्रिया शांति पूर्ण होने का दावा कर रहे हैं तो राज्य चुनाव आगोग के रवैये को किसी संदर महिला के नखरे से तुलना करने वाले राज्य के महाधिवक्ता ने राज्य में चाक चौबंद सुरक्षा इंतजाम का दावा करते हुए पंचायत नामांकन के सिलसिले में एक भी एफआईआर दर्ज न होले की बात कही। जबकि हकीकत यह कि व्यापक पैमाने पर चुनावी हिंसा के सिलसिले में एफआईआर दर्ज हो रहे हैं।पहले चरण के मतदान के लिए नामांकन के सिलसिले में नौ जिलों में वाममोर्चा,कांग्रेस और भाजपाकी ओर से डेढ़ सौ से ज्यादा एफआईआर दर्ज किये जाने की खबर है। और तो ओर सत्तादल तृणमूल कांग्रेस की ओर से भी वर्दमान और उत्तर व दक्षिण 24 परगना जिलों में पंद्रह से ज्यादा एफआईआर दर्ज कराये गये हैं। जंगल महल में पंचायत चुनाव में माओवादी सक्रियता के मद्देनजर और ज्यादा हिंसा होने का अंदेशा है, जिसे राज्य सरकार सिरे से नजरअंदाज कर रही हैं।रानीगंज में एक तृणमूल समर्थक की मौत भी हो चुकी है।


पंचायत चुनाव को बाधित करने के लिए माओवादियों का गुट सूबे में प्रवेश कर गया है तथा उसके मंसूबे ठीक नहीं है। इसकी सूचना राज्य व केंद्रीय खुफिया विभाग को है। माओवादी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के कोई हिंसक वारदात भी कर सकते हैं। केंद्रीय व राज्य खुफिया विभाग के सूत्रों के अनुसार सूबे के जंगल क्षेत्र के तीन जिला समेत राज्य के 9 जिलों में माओवादी गतिविधि विभिन्न समय पर देखी गई हैं। इससे संबंधित रिपोर्ट खुफिया विभाग ने राज्य व केंद्रीय गृह विभाग भेजी है। खुफिया विभाग को आशंका है कि राज्य सरकार और चुनाव आयोग को चुनौती देने के लिए माओवादी हिंसक वारदात कर सकते हैं। माओवादी कार्यकलाप बंद करने का सुरक्षा बल अभियान के दौरान माओवादी शीर्ष नेता किशनजी की मौत व कई प्रभावशाली कमांडर सरेंडर करने के बाद माओवादी शक्ति घटी थी। मगर फिर से माओवादियों के सक्रिय होने की सूचना खुफिया विभाग के पास पहुंच रही हैं। बताया जाता है कि बकुड़ा, पश्चिम मेदनीपुर, पुरूलिया जिला इलाका में माओवादी सक्रिय तेजी से बढ़ी है। गृह विभाग को भेजी रिपोर्ट में खुफिया विभाग ने कहा कि पश्चिम मेदनीपुर के नयाग्राम, गोपीवल्लभपुर सीमावर्ती क्षेत्र के उड़ीसा से माओवादी का एक स्कवायड राज्य में प्रवेश किया है। इसके अलावा झारखंड क्षेत्र से भी माओवादी दल मेहदीपुर छोड़कर वर्दमान, वीरभूम, उत्तर व दक्षिण 24 परगना, हावड़ा, हुगली जिला में माओवादी हमला करने की फिराक में है इसके अलावा उत्तर बंगाल के कई जिले में भी माओवादी नेपाली माओवादी की मदद से हमले की योजना बना रहे हैं।


पश्चिम बंगाल में 2011 में हुए विधानसभा चुनाव और उसी साल के नवंबर में हुई शीर्ष नक्सली नेता कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी की मुठभेड़ में मौत के बाद पश्चिम मेदिनीपुर समेत समूचे जंगल महल में माओवादी हिंसा एकबारगी थम गई थी। इस बीच कई माओवादी गिरफ्तार किए गए, तो कई मुठभेड़ में मारे गए, लेकिन कुछ दिन पहले छत्तीसगढ़ में हुए कांग्रेसी नेताओं के काफिले पर हुए नक्सली हमले के बाद नए सिरे से कुछ माओवादी नेताओं के खड़गपुर आने की चर्चा ने पुलिस महकमे की नींद उड़ा रखी है। ऐसी चर्चा है कि छत्तीसगढ़ के शीर्ष माओवादी नेता वेणुगोपाल और झारखंड के मंगल मुड़ा ने खड़गपुर आकर गुप्त बैठक की और लौट गए। हालांकि पुलिस अधिकारी ऐसी किसी सूचना से इन्कार करते हैं, लेकिन चर्चा के सूत्र कुछ दिन पहले आसनसोल के विधायक और राज्य में मंत्री मलय घटक को मिले धमकी भरे पत्र से जुड़े पाए जाने के संकेत खुफिया विभाग को मिले हैं। बताया जाता है कि घटक को कथित एन. रामाराव के नाम से भेजा गया धमकी भरा पत्र खड़गपुर के डाकघर से ही पोस्ट किया गया था। पत्र के माओवादी लेटरहेड पर लिखे होने और उस पर माओवादी शैली में कोड (302) लिखा होने से प्रशासनिक महकमा इसे गंभीरता से लेने को मजबूर है। हाल के दिनों में जंगल महल में उच्चस्तरीय प्रशासनिक बैठकों में तेजी आई है। खड़गपुर के अपर पुलिस अधीक्षक डॉ. वरुण चंद्रशेखर ने माओवादी नेताओं के खड़गपुर आने की आधिकारिक सूचना से इन्कार करते हुए कहा कि पुलिस की हर घटनाक्रम पर नजर है।


दक्षिण के राज्य आंध्र प्रदेश में स्थित विश्व प्रसिद्द तिरुपति बालाजी का मंदिर देश दुनिया के भक्तों के के लिए आस्था का वो केंद्र है जिनकी झोलिया भगवान् विष्णु के अवतार तिरुपति के बाला जी हमेशा भरते रहते है। वैसे ही उत्तर में स्थित नेपाल देश में स्थित पशुपति नाथ का मंदिर भी देवों के देव कहे जाने वाले भोले शंकर का विश्व प्रसिद्द मंदिर है।तिरुपति से पशुपति मंदिर तक जहा भक्तों की आस्था जुड़ी है वही एक बात और दोनों क्षेत्रो के मदिरों में समान है वो है इन दोनों मदिरो के बीच बीते पांच दशको से जड़ जमाता लाल गलियारा, या ये कहे लाल आतंक। लाल आतंक का आतंक इन दोनों विश्व प्रसिद्द मंदिरों के बीच इतना फ़ैल चुका है जहा नेपाल सरकार इस नक्सल आतंक के आगे हथियार डाल चुकी है वही भारत सरकार नक्सल समस्या से बुरी तरह जूझ रही है।उत्तर में स्थित नेपाल से होता हुआ ये लाल आतंक आज दक्षिण के राज्य आन्ध्र प्रदेश तक पहुँच चुका है। इनके बीच आने वाले करीब नौ राज्य आज नक्सल समस्या से ग्रस्त है। उत्तर प्रदेश,बिहार , झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र इन सभी राज्यों के क्षेत्रों को मिला दिया जाए तो एक लाल गलियारा तैयार हो जाता है।  


वर्ष 2012 में ओडिशा, छत्तीसगढ़, और झारखण्ड में अपनी धमक दिखाते हुए इन कई हमले किये इन हमलों में करीब 300 नागरिक मारे गए, 114 सुरक्षा कर्मी शहीद हो गए। 74 नक्सली मारे गए। वही सुरक्षा बलों की काम्बिंग में 1882 नक्सली पकडे गए , 134 हमले सुरक्षा बलों ने नक्सलियों पर किये वही 217 बार नक्सलियों को सुरक्षा बालों ने घेरा।


नक्सलियों ने अपनी धमक कायम रखने के लिए जिन बड़ी वारदातों को अंजाम दिया उनमे


29 जून 2008 को ओडिशा के बेलिमेला कुंड में पुलिस दल पर हमला 38 जवानो की मौत।


16 जुलाई 2008 को ओडिशा के ही मल्कानगिरी में पुलिस के वाहन को बम से उड़ाया 21 जवानो की मौत।


22 मई 2009 को महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में काम्बिंग के दौरान पुलिस गश्ती दल पर हमला 16 पुलिस कर्मियों की मौत ।


16 जून 2009 को झारखण्ड के पलामू जिले में बारूदी सुरंग में किये गए विष्फोट में 11 पुलिस अधिकारीयों कि मौत।


6 अप्रैल 2010 को दंतेवाड़ा में सीआरपीएफ के काफिले पर किये गए हमले में 76 जवानों कि मौत 50 घायल।


29 जून 2010 को छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले में सीआरपीएफ के वाहन पर हमला 15 जवानों की मौत।


26 मई 2013 को देश का सबसे बड़ा हमला जो छत्तीसगढ़ के बस्तर - सुकमा जिले के बीच दरभा घाटी में हुआ जिसमे कई नेताओं कि मौत हो गई।


उग्रवाद के आंकड़ों पर काम करने वालों के मुताबिक देश के कुल 640 जिलों में से 252 जिले माओवादी, इस्लामी, एथनिक और हिन्दुत्ववादी उग्रवाद से प्रभावित हैं। इनमें से 173 जिलों में माओवादियों का प्रभाव है। यानी अधिकांश जिलों में माओवादी ही प्रभावशाली हैं। हाल-हाल तक माना यह जा रहा था कि माओवादियों पर भारत सरकार ने अंकुश लगाने में सफलता हासिल कर ली है। 1994 के बाद पहली बार 2012 में ही आतंकवादी हिंसा की केजुअलिटी तीन अंकों (804) में पहुंची थी। 2011 में यह संख्या 1,073 थी और 2001 में सर्वाधिक 5,839। 2001 से इस पर कुछ अंकुश लगने जैसी स्थिति - आंकड़ों में, दिखने लगी।पी.डब्ल्यू.जी और माओइस्त कम्युनिस्ट सेंटर (एम.सी.सी.), ने मिलकर एक पार्टी सी. पी. आई. (माओवादी) बना ली तो उसकी मारक क्षमता बढी दिखने लगी। देश के प्रधानमंत्री ने इसके बाद ही माओवादियों को ग्रेवेस्ट इंटरनल सिक्योरिटी थ्रेट बताना शुरू किया। मगर इन माओवादियों की हिंसा में भी, हाल के दिनों में, नाटकीय कमी दर्ज़ की गई थी।  2010 में जहां माओवादियों की हिंसा में मरने वालों की संख्या 1,080 दर्ज़ की गयी वहीं 2011 में यह घट कर मात्र 602 रह गई थी। 2012 में तो यह मात्र 367 रह गयी। इसी बीच 2009-10 के सालों में माओवादियों के बड़े - बड़े नेताओं की रहस्यमय हत्याएं हुईं और उनके बड़े -बड़े नेता गिरफ्तार भी किये गए। इसमें पश्चिम बंगाल की राजनीति का भी बड़ा हाथ है जहां रणनीतिक अवसरवाद के तहत किशन जी के नेतृत्व में माओवादियों ने तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी के साथ हाथ मिला कर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के काडर राज के खिलाफ मोर्चा खोला था और जहां सत्ता में आने के बाद सत्ता के द्वारा अपनी जरूरतों के मुताबिक किशन जी की हत्या कर दी गयी और माओवादियों को जंगल महाल छोड़ कर, सरकारी शब्दावली में जिसे रेड कोरिडोर तथा माओवादियों की भाषा में एम.ओ.यू .कोरिडोर कहा जाता है, के इलाकों में, जाने को बाध्य कर दिया गया। मगर उसके बावजूद भी 2012 के आंकड़ों के मुताबिक माओवादी आर्म्ड काडरों की संख्या 8,600 आंकी गयी जबकि 2006 में यह संख्या 7,200 आंकी गयी थी। इसके अलावा 38,000 जन मिलिशिया की संख्या आंकी गयी है। सरकार के पास इस के कोई आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं कि माओवादियों के पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (पी.एल.जी.ए.) के पूरावक्ती क्रांतिकारियों की मदद करने वाले अनाम समर्थकों की संख्या कितनी है।


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