THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Sunday, October 27, 2013

कर्मसंस्कृति गयी तेल लेने,चंडीपाठ ले लेकर जूता सिलाई सबकुछ दीदी करेंगी,बाकी सबकी मौज

कर्मसंस्कृति गयी तेल लेने,चंडीपाठ ले लेकर जूता सिलाई सबकुछ दीदी करेंगी,बाकी सबकी मौज

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


कर्मसंस्कृति गयी तेल लेने,चंडीपाठ ले लेकर जूता सिलाई सबकुछ दीदी करेंगी,बाकी सबकी मौज। कुल मिलाकर बंगाल में राजकाज का समग्र चित्र यही है। दीदी पहल करेंगी तो बाकी लोग काम पर लगेंगे।काम शुरु करने से पहले दीदी की हरी झंडी का इंतजार करेंगे मंत्री, मेयर, सांसद, विधायक, अफसरान और कर्मचारी चाहे कुछ  भी हो जाये।मसलन भारी बरसात में जलमग्न कोलकाता में पानी निकालने के लिए मुख्यमंत्री को पहाड़ से फोन करके मेयर और पालिका मंत्री को निर्देश देने पड़ रहे हैं। दीदी की मौजूदगी में हर कोई मुश्तैद और दीदी नहीं तो जग अंधियारा।मां माटी मानुष के राजकाज का यह नजारा है।


हावड़ा में राइटर्स के स्थानांतरण से जो परिवर्तन की उम्मीद बनी थी,जलमग्न नवान्न में अपनी समस्याओं के घिरे कर्मचारियों की लाचारी के मद्देनर वे उम्मीदें भी अब जलप्लावित हैं।


दुर्गोत्सव की लंबी छुट्टियों के बाद फिर दीवाली राजकीय है।मुख्यमंत्री की रात दिन सक्रियता को छोड़ दें तो राज्य सरकार और प्रशासन का कहीं कोई वजूद है  ही नहीं। सबकुछ छुट्टी के मिजाज में है। राजकाज पार्टी का राजनीतिक कर्म धर्म है,वामपंथियों ने बंगाल में इस परंपरा की नींव डाली और चूंकि राजकाज पर पार्टी के लेबेल चल्पां हो तो काम चाहे जैसा हो राज्य के तमाम राजनीतिक दलों,जो सत्ता में नहीं है,उनका परम धर्म बन जाता है हर सरकारी कदम के खिलाफ मोर्चाबंदी और सरकार कुछ भीकरें उसमें अड़ंगा डाल दिया जाये।पैतीस साल के वाम शासन के बाद दो साल के परिवर्तन राज में वही रघुकुल रीति प्रचलित है।अच्छा बुरा,राज्य का हित अहित कुछ भी विवेचनीय नहीं है। जनमानस पार्टीबद्ध।सामाजिक विवेक पार्टीबद्ध।कर्मसंस्कृति भी पार्टी बद्ध।


पार्टीबद्ध कर्म संस्कृति किस चिड़िया का नाम है,बाकी देश जाने या न जाने, हर बंगवासी अपनी हड्डियों के पोर पोर में इस सबसे भयानक सामाजिक यथार्थ का शिकार है।यहां अब भी पार्टी के लेवेल के बिना मजाल है कि कोई कुछ भी काम करा लें।


नवान्न में दीदी की जमीनी जनपदीय दौड़ खत्म होने पर कब वे नियमित बैठ पायेंगी, इसकी भविष्यवाणी सायद विधाता भी न कर सकें। लेकिन नवान्न में कुछ भी नहीं हो रहा है।दीदी की अनुपस्थिति में कुछ भी होना असंभव है।कोई फाइल एक इंच खिसक नहीं रही है।


कर्मचारियों की दिक्कतें अपनी जगह है।वेतनमान और भत्तों के मामले में केंद्र समान होना ही चाहिए। तो कामकाज के मामले में केंद्र समान क्यों नहीं होना चाहिए,यह सवाल पूछने का कलेजा किसी में नहीं है। उत्सव क्या कारोबार और उद्योग धंधों में मर खप रहे लोगों का नहीं होता,कोई पूछ लें। किसी को वहां मरने की फुरसत नहीं है।उत्सव क्या असंगठित क्षेत्र के मजदूरों का या निजी क्षेत्र में काम करनोवालों का नहीं होता तो बताइये उनकी छुट्टी कितने दिनों की होती है और उनके कार्यस्थल पर कितनी मस्ती कितने पिकनिक की गुंजाइश है।


मौसम खराब है।जलमग्न है  सबकुछ तो जीवन तो ठहर नहीं गया।उद्योग धंधे तो बंद नहीं हुए।निजी क्षेत्र के लोग हर हाल में टाइम से पहले अपने कार्यस्थल पर पहुंचकर पंच करते हैं और काम के घंटे पूरे होने के बाद ही निकलते हैं।


इसके उलट नवान्न और राज्यभर के सरकारी दफ्तरों में आवाजाही समयबद्ध है ही नहीं।हुगली आरपार आवाजाही के लिए लंबी तैयारियां हुई।हावड़ा और सियालदह से मंदिरतला पहुंचनें में नसमुंदर लांघना है और न हिमालय,लेकिन ज्यादातर कर्मचारी बारह बजे तक नहीं पहुंच पाते। फिर लिफ्ट की लाइन में घंटाभर। टेबिल पर पहुंचे तो फिर पानी के पाउच का इंतजाम।तब तक वापसी की तैयारियां भी शुरु।


यह मर्ज अब क्षयरोग है तक सीमाबद्ध नही है।यह लाइलाज कैंसर है।किमो थेरापी से भी संक्रमण रोकना असंभव है।


एक अकेली ममता बनर्जी अपने ही जुनून में सबकुछ बदल देने के ख्वाब में मारी मारी जनपद जनपद दिवानी सी भटकती रहे राज दिन सातों दिन। उनकी यह अंधी दौड़ बाकी सबके लिए पूंजी है।दीदी को कैश करा लो,फिर कर लो मौज।दीदी खुद कुछ करने को कहेंगी तो कर देंगे।वरना कुछ भी जरुरी नहीं है।चाहे लोग जिये ये मरे।


अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।


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