THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA

THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS TALKS AGAINST CASTEIST HEGEMONY IN SOUTH ASIA INDIA AGAINST ITS OWN INDIGENOUS PEOPLES

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Friday, October 11, 2013

महिषासुर को बलात्कारी दिखाना बंद करो

महिषासुर को बलात्कारी दिखाना बंद करो

बंगवासियों को शक्तिपूजा का बेहद गर्व है. वे कहते नहीं अघाते कि उनके यहां औरतों का सबसे अधिक सम्मान है. लेकिन इस बात की भी पोल इस बात से खुल जाती है कि वृंदावन में विचरने वाली अधिकांश विधवाएं बंग समाज की ही हैं, जिन्हें उनके परिजन विधवा होने के बाद वहां छोड़ आये हैं...

विनोद झारखण्ड

कोलकाता के पंडालों में इस बार महिषासुर को बलात्कारी के रूप में दिखाया जा रहा है. यह नस्ली भेदभाव की पराकाष्ठा है. इसकी हम कड़े स्वर में भर्त्सना करते हैं. हकीकत यह है कि महिषासुर जिस समुदाय विशेष का प्रतिनिधित्व करता है, उस समाज में बलात्कार नहीं होता. बलात्कार तो मनुवादी संस्कृति का हिस्सा है.

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देश मे होने वाली बलात्कार की अधिकांश घटनाएं गैर आदिवासी इलाकों में होती है और बलात्कारी भी गैर आदिवासी समाज से आते हैं. आदिवासी बहुल इलाकों में हुए बलात्कार की अधिकांश घटनाओं में भी गैर आदिवासी शामिल रहते हैं.

बंगवासियों को शक्तिपूजा का बेहद गर्व है. वे यह कहते नहीं अघाते कि उनके यहां औरतों का सबसे अधिक सम्मान है. लेकिन इस बात की भी पोल इस बात से खुल जाती है कि वृंदावन में विचरणे वाली अधिकांश विधवाएं बंग समाज की ही हैं, जिन्हें उनके परिजन विधवा होने के बाद वहां छोड़ आये हैं.

ऐसी पचास विधवा महिलाओं को इस बार एक एनजीओ की मदद से कोलकाता ले जाया गया. उन विधवाओं में से कुछ के परिजन उनसे मिलने भी पहुंचे. लोलिता नाम की एक सौ वर्ष से उपर की विधवा महिला से मिलने जब उसके परिजन होटल पहुंचे और उससे घर चलने का आग्रह किया, तो उसने जबाब दिया कि इस उम्र में अब घर जाकर क्या करेगी.

उसकी कथा यह है कि ग्यारह वर्ष की उम्र में उसका विवाह हुआ और 25 की उम्र में वह विधवा हो गई. घर वालों ने जबरन उसे वृंदावन की गाड़ी में चढा दिया. यही समाज मिट्टी की प्रतिमा को पंडालों में सजा कर महिलाओं के सम्मान का ढकोसला करता है.

पतित कर्म को देव वृत्ति क्यों नहीं कहते?

कुछ लोग कहते हैं कि बुरा काम असुर वृत्ति है और अच्छा काम देव वृत्ति. इससे किसी समुदाय विशेष का बोध नहीं होता. सवाल यह है कि बुरे कर्म को असुर वृत्ति क्यों कहा जाये और अच्छे कर्म को देव वृत्ति? पौराणिक कथाओं को ही आधार माना जाये तो देवताओं का आचरण ज्यादा पतित और धुर्तई से भरा है. समुद्र मंथन देवता और असुरों ने मिलकर किया.

लक्ष्मी सहित तमाम बहुमूल्य चीजें हरप ली देवताओं ने. देवताओं की पंक्ति में लग कर राहु-केतु ने अमृत पीना चाहा, तो उन्हें सर कटाना पडा. रावण असुर था. सीता को हर कर ले गया, लेकिन उसके साथ कभी अभद्र व्यवहार नहीं किया. मर्यादा पुरुषोत्तम कहे जाने वाले राम ने बार-बार सीता को अपमानित किया. अग्नि परीक्षा ली. गर्भावस्था में उन्हें जंगल भेज दिया.

पांडव पुत्र भीम ने लक्षागृह से निकलने के बाद जंगल में भटकते हुए एक दानव कन्या के साथ सहवास किया. फिर पलटकर नहीं देखा कि उस औरत ने अपने पुत्र घटोत्कच का कैसे पालन किया. जबकि उस पुत्र ने पांडवों के पक्ष में लड़ते हुए प्राण त्याग दिये. पतित कर्म करें देवता और उस कर्म को नाम दें आप असुर वृत्ति, यह कहां तक उचित है?

(विनोद झारखण्ड के फेसबुक वाल से.)

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